Friday, November 16, 2018

डॉ. विद्यावती "मालविका" हिन्दी विभाग, डॉ. हरी सिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर में


Dr Varsha Singh
    कल दिनांक 15.11.2018 को मेरी माताश्री डॉ. विद्यावती "मालविका" जी, जो स्वयं हिन्दी की व्याख्याता रही हैं, ने डॉ हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर के हिंदी विभाग में जाने की इच्छा प्रकट की । उन्होंने कहा कि मैं आज विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में जाना चाहती हूं जहां आचार्य नंददुलारे बाजपेई, आचार्य रामरतन भटनागर, डॉ. भगीरथ मिश्र, प्रेम शंकर,  डॉ. कांति कुमार जैन सरीखे प्रकांड विद्वानों से अनेक अवसरों, आयोजनों में मिलना हुआ करता था। अतः मैं और बहन डॉ. (सुश्री) शरद सिंह उन्हें विश्वविद्यालय लेकर गए जहां हिन्दी विभाग के वर्तमान विभागाध्यक्ष डॉ आनंद प्रकाश त्रिपाठी तथा विद्वत स्टाफ डॉ. आशुतोष मिश्रा, डॉ राजेंद्र यादव, डॉ. लक्ष्मी पांडे इत्यादि से उनकी आत्मीय मुलाकात हुई। सभी ने माताश्री का बड़ी आत्मीयता से स्वागत किया।
बायें से:- डॉ. राजेंद्र यादव, डॉ. आशुतोष मिश्र, डॉ. आनंद प्रकाश त्रिपाठी, डॉ. श्रीमती विद्यावती "मालविका", मैं यानी डॉ. वर्षा सिंह, डॉ. सुश्री शरद सिंह एवं डॉ. लक्ष्मी पाण्डेय



        चर्चा के दौरान माताश्री ने " हिन्दी संत साहित्य पर बौद्ध धर्म का प्रभाव" विषय में प्राप्त अपनी पी.एचडी. उपाधि और डॉ. गौर से संबंधित संस्मरण साझा किये। जिसमें उन्होंने याद करते हुए यह भी कहा कि पंडित हजारी प्रसाद द्विवेदी ने उनका वाईवा लिया था।
बायें से:- डॉ. राजेंद्र यादव, डॉ. आशुतोष मिश्र, डॉ. आनंद प्रकाश त्रिपाठी, डॉ. श्रीमती विद्यावती "मालविका", डॉ. लक्ष्मी पाण्डेय , मैं यानी डॉ. वर्षा सिंह एवं डॉ. सुश्री शरद सिंह 
तत्पश्चात माताश्री को बुंदेली पीठ, हिन्दी विभाग की पत्रिका " ईसुरी" के सम्पादक एवं बुंदेली पीठ के सचिव डॉ. राजेन्द्र यादव ने बुंदेली लोकगीतों पर एकाग्र पत्रिका का ताज़ा अंक भेंट किया।
बायें से:- डॉ. लक्ष्मी पाण्डेय,  डॉ. आनंद प्रकाश त्रिपाठी, डॉ. आशुतोष मिश्र, डॉ. श्रीमती विद्यावती "मालविका", मैं यानी डॉ. वर्षा सिंह, डॉ. सुश्री शरद सिंह एवं डॉ. राजेंद्र यादव




बायें से:- डॉ. लक्ष्मी पाण्डेय,  डॉ. आनंद प्रकाश त्रिपाठी. श्रीमती विद्यावती "मालविका", मैं यानी डॉ. वर्षा सिंह, डॉ. सुश्री शरद सिंह एवं डॉ. राजेंद्र यादव
         विश्वविद्यालय से लौटते हुए सिविल लाइन स्थित अमूल रेस्टोरेंट में हमने काफी पी। जहां हमारे पारिवारिक आत्मीयजन कपिल बैसाखिया से भी उनकी भेंट हुई।





कल का दिन उनके लिए थका देने वाला, किन्तु अत्यंत सुखद रहा।
डॉ. हरी सिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर शिक्षा के क्षेत्र में मध्यप्रदेश और भारत.देश ही नहीं बल्कि समूचे विश्व में अपनी विशिष्ट शैक्षणिक उपादेयता की ख्याति के कारण विख्यात है। इसकी स्थापना की कथा भी अन्यों से सर्वथा भिन्न है।
डॉ. हरी सिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर का प्रवेश द्वार

डॉ. हरी सिंह गौर विश्वविद्यालय का ड्रोन से लिया गया हवाई फोटोग्राफ
सागर विश्वविद्यालय की स्थापना डॉ. हरी सिंह गौर ने 18 जुलाई 1946 को अपनी स्वयं की निजी पूंजी से की थी। उन्होंने अपनी गाढ़ी कमाई से 20 लाख रुपये की धनराशि से अपनी जन्मभूमि सागर में सागर विश्वविद्यालय की स्थापना की तथा वसीयत द्वारा अपनी पैतृक सपत्ति से 2 करोड़ रुपये दान भी दिया था। वे सागर विश्वविद्यालय के संस्थापक, उपकुलपति होने के साथ ही अपने जीवन के आखिरी समय दिनांक 25 दिसम्बर 1949 तक इसकी समृद्धि के लिए प्रयासरत रहे। डॉ. गौर का स्वप्न था कि सागर विश्वविद्यालय को कैम्ब्रिज तथा ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालयों जैसी मान्यता और कीर्ति प्राप्त हो। डॉ. हरी सिंह गौर स्वयं एक शिक्षाशास्त्री, ख्यति प्राप्त विधिवेत्ता, न्यायविद्, समाज सुधारक, साहित्यकार कवि, उपन्यासकार एवं देशभक्त थे।
अपनी स्थापना के समय सागर विश्वविद्यालय भारत का 18 वां विश्वविद्यालय था। किसी एक व्यक्ति के दान से स्थापित होने वाला यह देश का एकमात्र विश्वविद्यालय है। वर्ष 1983 में जनभावनाओं का सम्मान करते हुए सागर विश्वविद्यालय का नाम परिवर्तित कर  डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय कर दिया गया। इसे 27 मार्च 2008 से  केन्द्रीय विश्वविद्यालय की श्रेणी प्रदान की गई।
   डॉ. हरी सिंह गौर विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में देश के जानेमाने विद्वतजन अधिष्ठाता, प्राध्यापक और व्याख्याता रहे हैं। जिनमें आचार्य नंददुलारे बाजपेई, आचार्य रामरतन भटनागर, डॉ. भगीरथ मिश्र, प्रेम शंकर,  डॉ. कांति कुमार जैन का नाम प्रमुख है।
आचार्य नंददुलारे बाजपेई

      उन्नाव जिले के मगरायल नामक ग्राम में सन् 1906 ई. में जन्में नंददुलारे बाजपेई की प्रारंभिक शिक्षा हजारीबाग में हुई थी। काशी हिंदू विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात वे कुछ समय तक काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदीविभाग में अध्यापक तथा बाद में अनेक वर्षों तक सागर विश्वविद्यालय के हिंदीविभाग के अध्यक्ष रहे। वरिष्ठ आलोचक के रूप में आचार्य वाजपेयी ने छायावाद का परिवर्धन एवं उन्नयन करते हुए भारतीय काव्यशास्त्र की आधारभूत मान्यताओं को ग्रहण करते हुए चर्चित कवियों, लेखकों एवं उनकी कृतियों की जो वस्तुपरक आलोचनाएँ प्रस्तुत की हैं, वे हिन्दी साहित्य की बहुमूल्य धरोहर हैं।
डॉ. रामरतन भटनागर
      प्रख्यात आलोचक एवं निबन्धकार  डॉ रामरतन भटनागर ने 1951 से डॉ हरी सिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर के हिन्दी विभाग में शिक्षण कार्य शुरु किया और वहीं से 1976 में प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त हुए। आलोचना और निबंध की उनकी लगभग 75 पुस्तकें प्रकाशित हुईं। वे एक संवेदनशील कवि भी थे। ताण्डव, प्रकाश जहां भी है, वेणुगीत, गीतों के अमलतास आदि उनके चर्चित काव्य संग्रह हैं। उन्होंने उपन्यास भी लिखे जिनमें अम्बपाली, जय वासुदेव और आकाश की कथा शामिल हैं।
डॉ. भगीरथ मिश्र

 लगभग 32 स्वतंत्र ग्रंथों और हिन्दी के दर्जनों ग्रंथों की प्राथमिक, समीक्षात्मक भूमिकाओं के लेखक डॉ भगीरथ प्रसाद मिश्र सागर विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के प्रोफेसर, अध्यक्ष रहे। बाद में वे यहीं कुलपति भी रहे। उनका जन्म 1914 में कानपुर जिले के एक छोटे से गाँव ‘सैंथा’ में हुआ था। लखनऊ विश्वविद्यालय से ‘हिन्दी काव्य-शास्त्र का इतिहास’ विषय में पी-एच.डी. डॉ. भगीरथ मिश्र की हिन्दी काव्यशास्त्र का इतिहास, काव्यशास्त्र, पाश्चात्य काव्यशास्त्र, तुलसी रसायन, काव्यरस चिन्तन और आस्वाद, भाषा-विवेचन, हिन्दी रीति साहित्य आदि उल्लेखनीय पुस्तकें  हैं। अनेक विद्वानों ने समय- समय पर अपने ज्ञान से इस विश्वविद्यालय को सिंचित किया।
       प्रख्यात आलोचक नामवर सिंह भी वर्ष 1959 से 1960 तक सागर विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में व्याख्याता के रूप में  कार्यरत रहे।
नामवर सिंह
वर्तमान में वरिष्ठ समालोचिक एवं साहित्यकार डॉ. आनंद प्रकाश त्रिपाठी हिन्दी विभाग के विभागाध्यक्ष के रूप में विभाग का यशवर्धन करने हेतु संकल्पित हैं।

डॉ. विद्यावती "मालविका"

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