Thursday, December 6, 2018

राहगीरी .... जन्मदिन, वृक्षारोपण और राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh
      दैनिक भास्कर, सागर संस्करण एवं सागर राहगीरी सोशल ग्रुप, सागर के संयुक्त आयोजन "राहगीरी" में इस रविवार दिनांक 02.12.2018 को मेरी बहन एवं सागर की प्रख्यात लेखिका डॉ.(सुश्री) शरद सिंह का जन्मदिन मनाया गया। इस अवसर पर मेस्कॉट पब्लिक स्कूल के छात्र-छात्रों तथा "राहगीरी" में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने वाले बच्चों के साथ डॉ.(सुश्री) शरद सिंह ने केक काटा तथा 'राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस' पर बच्चों को सम्बोधित करते हुए कहा कि ‘‘प्लास्टिक की थैलियां हानिकारक होती है, उससे हमारे पर्यावरण और पशुओं को नुकसान हो रहा है। प्लास्टिक की थैलियों से उपजाऊ जमीन को भी नुकसान हो रहा है। प्लास्टिक की थैलियां नदी, तालाबों के पानी को दूषित कर रही हैं। मुंबई और चेन्नई में आई बाढ़ें भी इसी का दुष्परिणाम थीं। हमारे सागर नगर में भी नालियां चोक होने का सबसे बड़ा कारण ये पन्नियां ही होती हैं अतः इन पन्नियों का उपयोग करने से बचना चाहिए।’’ डॉ. (सुश्री) शरद सिंह ने मेस्कॉट पब्लिक स्कूल के डायरेक्टर सिद्वार्थ पंडा एवं प्रिंसिपल अंजू अजमानी को बच्चों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करने के लिए धन्यवाद दिया।



इसी कार्यक्रम में कदम संस्था के तत्वाधान में डॉ. (सुश्री) शरद सिंह ने वृक्षारोपण भी किया। पर्यावरण की रक्षा के लिए वृक्षारोपण की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए मैंने यानी आपकी इस मित्र डॉ. वर्षा सिंह ने पर्यावरण संरक्षण को वर्तमान की सबसे बड़ी आवश्यकता बताते हुए  कहा कि, ‘‘मानव जीवन के अस्तित्व के लिए पेड़ों को बचाना अत्यंत आवश्यक है। पेड़ हमें फल-फूल तथा शुद्ध हवा प्रदान करते हैं।  जितने अधिक पेड़ लगाये जायेंगे उतना ही पर्यावरण शुद्ध होगा।’’

वृक्षारोपण पर्यावरण को संतुलित कर मानव के अस्तित्व की रक्षा करने के लिए आवश्यक है। हमारे देश में पेड़ पौधों की भी पूजा की जाती है, संत कबीर ने इनके महत्व को इस प्रकार व्यक्त किया है-
वृक्ष कबहुं नहीं फल भखे, नदी न संचे नीर,
परमारथ के कारने, साधुन धरा शरीर
प्रदूषण कम हो एवं पर्यावरण की सुरक्षा के साथ सामंजस्य रखते हुए संतुलित विकास की ओर हम अग्रसर हों , इसके लिए  ज़रूरी है अनिवार्य रूप से वृक्षारोपण किया जाना। राहगीरी, सागर आयोजन में प्रत्येक सप्ताह कदम संस्था के सहयोग से वृक्षारोपण किया जाता है।


           इस अवसर पर सागर राहगीरी सोशल ग्रुप के बंटी जैन ने भी पर्यावरण संरक्षण को मानवजीवन के लिए जरूरी बताया। उल्लेखनीय है कि 'दैनिक भास्कर’, सागर संस्करण, सागर एवं राहगीरी सोशल ग्रुप द्वारा प्रत्येक सप्ताह बच्चों की प्रतिभा को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न प्रकार के मनोरंजक एवं शिक्षाप्रद प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं। पिछले सप्ताह आयोजित प्रतियोगिता के विजेता बच्चों को मुख्यअतिथि के रूप में डॉ. शरद सिंह ने मेडल, ट्रॉफी एवं सर्टीफिकेट दे कर सम्मानित किया। इस कार्यक्रम का संचालन शुभ जैन द्वारा किया गया।

    सागर झील किनारे पर स्थित संजय ड्राइव, सागर (म.प्र.) में प्रत्येक रविवार को 'दैनिक भास्कर’, सागर संस्करण व नगर निगम के संयुक्त कार्यक्रम ‘सागर राहगीरी’ के आयोजन की शुरुआत दिनांक 26 जुलाई 2015 से हुई । सुबह सात बजे से नौ बजे तक राहगीरी  का समय रखा गया और राहगीरी की  व्यवस्थाएं नगर निगम द्वारा की जाने लगीं। इसका शुभारंभ नगर निगम, सागर के महापौर अभय दरे ने किया था। बाद में नगर निगम, सागर की उदासीनता के चलते राहगीरी की  व्यवस्थाओं का दायित्व सागर नगर की एक संस्था सागर राहगीरी सोशल ग्रुप ने ले लिया, जिसे इस संस्था द्वारा वर्तमान में भी निर्वाह किया जा रहा है।




         राहगीरी सागर में प्रत्येक सप्ताह , उस सप्ताह की तारीखों में जन्में व्यक्तियों का जन्मदिन मनाने की शुरुआत डॉ. (सुश्री) शरद सिंह के जन्मदिन 29.11.2015 से हुई। जिसमें 29 नवम्बर को उस दिन डॉ. (सुश्री) शरद सिंह का जन्मदिन राहगीरी में केक काट कर मनाया गया था। इस अवसर पर सागर नगर विधायक शैलेन्द्र जैन, महापौर अभय दरे, डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर के कुलपति आर.पी.तिवारी, मैं स्वयं डॉ. वर्षा सिंह सहित सागर नगर के अनेक गणमान्य नागरिक उपस्थित थे। जन्मदिन मनाने की यह परम्परा, यह आयोजन अभी भी बरकरार है।
राहगीरी सागर में जन्मदिन मनाने का शुभारंभ - (सुश्री) शरद सिंह का जन्मदिन मनाया गया दिनांक 29.11.2015 


राहगीरी, सागर में मनाया गया डॉ. (सुश्री) शरद सिंह का जन्मदिन 2018


     प्रिय मित्रों, आप सब जानते ही हैं कि प्रति वर्ष 2 दिसंबर को दुनियाभर में 'राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस' यानी  National Pollution Prevention Day मनाया जाता है। इसे मनाने का उद्देश्य है औद्योगिक आपदा के प्रबंधन और नियंत्रण के लिए जागरूकता फैलाना, साथ ही हवा, पानी और मिट्टी को प्रदूषित होने से बचाना और उनमें होने वाले प्रदूषण की रोकथाम के लिए अलग-अलग तरह से समाज में जागरूकता फैलाना। यह दिवस वर्ष 1984 में सैकड़ों लोगों के भोपाल गैस त्रासदी में मारे जाने के बाद प्रत्येक वर्ष मनाया जाता है. भोपाल गैस त्रासदी की घटना 2-3 दिसंबर की मध्य रात्रि को वर्ष 1984 में घटित हुई थी।उसमें बहुत सारे लोगों की मृत्यु ‘मिथाइल आइसोसाइनेट’ जिसको एमआईसी (MIC) भी कहते हैं नामक जहरीली गैस के कारण हो गई थी।भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड प्लांट में गैस लीकेज के कारण हज़ारों की संख्या में लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी तथा सैंकड़ों लोगों को शारीरिक अक्षमता का सामना करना पड़ा.
   
यह विश्व के भयानक त्रासदियों में से एक है इसके परिणामों का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि आज भी वहां लोगों को मानसिक एवं शारीरिक परेशानियों से जूझना पड़ रहा है.
भोपाल गैस त्रासदी को विश्व के इतिहास में घटित होने वाली सबसे बड़ी औद्योगिक प्रदूषण आपदाओं में से एक माना जाता है। गौरतलब है कि भारतीय कानून द्वारा प्रदूषण की रोकथाम के उपायों में कुछ इस प्रकार है-
(i) जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974।
(ii) वायु (प्रदूषण रोकथाम एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981।
(iii) पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986।

प्लास्टिक प्रदूषण को भूमि पर विभिन्न प्रकार के प्लास्टिक सामग्री के संचय के रूप में परिभाषित किया जाता है, इसके अलावा यह हमारी नदियों, महासागरों, नहरों, झीलों आदि को भी प्रदूषित करता है। एक वस्तु के रूप में दुनिया भर के बड़े पैमाने पर इसका इस्तेमाल किया जाता है। मूल रूप से यह एक सिंथेटिक पॉलीमर है। जिसमें कई कार्बनिक और अकार्बनिक यौगिक होते हैं, और जो ज्यादातर ओलेफिन जैसे पेट्रोकेमिकल्स से प्राप्त होते हैं।





      प्लास्टिक सामग्री को मुख्य रूप से थर्मोप्लास्टिक Thermoplastic (पॉलीस्टायरीन और पॉलीविनाइल क्लोराइड) और थर्मोसेटिंग पॉलिमर Thermosetting polymers (पॉलीइज़ोप्रीन) के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। इनके अलावा, उन्हें बायोडिग्रेएबल, इंजीनियरिंग और इलास्टोमेर प्लास्टिक के रूप में भी वर्गीकृत किया जा सकता है। हालांकि वे कई मायनों में अत्यधिक उपयोगी हैं और वैश्विक पॉलीमर उद्योग का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, हालांकि इसका उत्पादन और निपटान पृथ्वी पर सभी जीवन स्वरूपों के लिए एक बड़ा खतरा है।
        प्लास्टिक आमतौर पर लगभग 500-1000 वर्षों में खराब हो जाती है। हालांकि हम वास्तविकता में इसके ख़राब होने का समय नहीं जानते है। प्लास्टिक पिछले कई शताब्दियों से ज्यादा उपयोग में लायी जा रही है। इसके निर्माण के दौरान, कई खतरनाक रसायन निकलते है, जिससे मनुष्य और साथ ही अन्य जानवरों में भी भयानक बीमारियाँ हो सकती हैं।




       एथीलीन ऑक्साइड, xylene, और benzene, प्लास्टिक में मौजूद कुछ रासायनिक विषाक्त पदार्थ हैं, जो पर्यावरण पर खतरनाक प्रभाव डाल सकते हैं। इसे समाप्त करना आसान नहीं है, और यह जीवित प्राणियों को स्थायी नुकसान पहुंचा सकती है।प्लास्टिक में पाया जाने वाला कई additives, जैसे phthalates, adipates, और यहां तक ​​कि alkylphenols, को जहरीले सामग्री के रूप में मान्यता दी गई है, विनाइल क्लोराइड, जिसका इस्तेमाल PVC पाइपों के निर्माण में किया जाता है, इसको कैंसर जनक के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

     वर्तमान समय को यदि पॉलीथीन अथवा प्लास्टिक युग के नाम से जाना जाए तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। क्योंकि सम्पूर्ण विश्व में यह पॉली अपना एक महत्त्वपूर्ण स्थान बना चुका है और दुनिया के सभी देश इससे निर्मित वस्तुओं का किसी न किसी रूप में प्रयोग कर रहे हैं। सोचनीय विषय यह है कि सभी इसके दुष्प्रभावों से अनभिज्ञ हैं या जानते हुए भी अनभिज्ञ बने जा रहे हैं। पॉलीथीन एक प्रकार का जहर है जो पूरे पर्यावरण को नष्ट कर देगा और भविष्य में हम यदि इससे छुटकारा पाना चाहेंगे तो हम अपने को काफी पीछे पाएँगे और तब तक सम्पूर्ण पर्यावरण इससे दूषित हो चुका होगा।


      इस सप्ताह राहगीरी, सागर में प्लास्टिक प्रदूषण का मुद्दा विशेष रहा। चर्चा-परिचर्चा के दौरान यह बात भी सामने आई कि हालाँकि प्लास्टिक निर्मित वस्तुएँ गरीब एवं मध्यवर्गीय लोगों का जीवनस्तर सुधारने में सहायक हैं, लेकिन वहीं इसके लगातार उपयोग से वे अपनी मौत के बुलावे से भी अनभिज्ञ हैं। यह एक ऐसी वस्तु बन चुकी है जो घर में पूजा स्थल से रसोईघर, स्नानघर, बैठकगृह तथा पठन-पाठन वाले कमरों तक के उपयोग में आने लग गई है। यही नहीं यदि हमें बाजार से कोई भी वस्तु जैसे राशन, फल, सब्जी, कपड़े, जूते यहाँ तक तरल पदार्थ जैसे दूध, दही, तेल, घी, फलों का रस इत्यादि भी लाना हो तो उसको लाने में पॉलीथीन का ही प्रयोग हो रहा है। आज के समय में फास्ट फूड का काफी प्रचलन है जिसको भी पॉली में ही दिया जाता है। आज मनुष्य पॉली का इतना आदी हो चुका है कि वह कपड़े या जूट के बने थैलों का प्रयोग करना ही भूल गया है। अर्थात दुकानदार भी हर प्रकार के पॉलीथीन बैग रखने लग गए है और मजबूर भी हैं रखने के लिये, क्योंकि ग्राहक ने उसे पॉली रखने को बाध्य सा कर दिया है यह प्रचलन चार पाँच दशक पहले इतनी बड़ी मात्रा में नहीं था तब कपड़े, जूट या कागज से बने थैलों का प्रयोग हुआ करता था जोकि पर्यावरण के लिये लाभदायक था।लेकिन आज तो यत्र-तत्र सर्वत्र पॉली ही पॉली दिखाई देती है जो सम्पूर्ण पर्यावरण को दूषित कर रही है यह पॉली निर्मित वस्तुएँ प्रकृति में विलय नहीं हो पाती हैं यानि यह बायोडिग्रेडेबल पदार्थ नहीं है। खेत खलिहान जहाँ भी यह होगा वहाँ की उर्वरा शक्ति कम हो जाएगी और इसके नीचे दबे बीज भी अंकुरित नहीं हो पाएँगे। अत: भूमि बंजर हो जाती है। इससे बड़ी समस्या नालियाँ अवरुद्ध होने को आती हैं। जहाँ-तहाँ कूड़े से भरे पॉलीथीन वातावरण को प्रदूषित करते हैं। खाने योग्य वस्तुओं के छिलके पॉली में बंदकर फेंके जाने से, पशु इनका सेवन पॉलीथीन सहित कर लेते हैं, जो नुकसानदेय है और यहाँ तक की पशुओं की मृत्यु तक हो जाती है।


     जहाँ-जहाँ भी मानव ने अपने पाँव रखे वहाँ-वहाँ पॉलीथीन प्रदूषण फैलता चला गया। यहाँ तक यह हिमालय की वादियों को भी दूषित कर चुका है। यह इतनी मात्रा में बढ़ चुका है कि सरकार भी इसके निवारण के अभियान पर अभियान चला रही है। सैर सपाटे वाले सभी स्थान इससे ग्रस्त है।

    भारत में लगभग दस से पंद्रह हजार इकाइयाँ पॉलीथीन का निर्माण कर रही हैं। सन 1990 के आंकड़ों के अनुसार हमारे देश में इसकी खपत 20 हजार टन थी जो अब बढ़कर तीन से चार लाख टन तक पहुँचने की सूचना है जोकि भविष्य के लिये खतरे का सूचक है।
       यह समाज का कर्तव्य है कि वे इस कहावत को सही साबित करें कि प्रकृति भगवान का अनोखा उपहार है। इसलिए लोगों को पॉलीथीन की वजह से प्रदूषण को रोकने के लिए आगे आना होगा और हर किसी को अपने स्तर पर इसका निपटान करने में शामिल होना होगा। चाहे वह बच्चा हो या बुजुर्ग, शिक्षित हो या अशिक्षित, समृद्ध हो या गरीब, शहरी हो या ग्रामीण सभी को प्लास्टिक के खतरे से छुटकारा पाने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी। परिवार के पुराने सदस्यों को पॉलीथीन का उपयोग नहीं करना चाहिए और अन्य सभी सदस्यों को इसका प्रयोग करने से भी रोकना चाहिए। इसके अलावा यदि आप इसके बारे में लोगों को उचित जानकारी प्रदान करते हैं तो यह पॉलीथीन के इस्तेमाल को रोकने का सबसे बड़ा कदम होगा। जब आप बाजार में खरीदारी करते हैं तो अपने साथ कपड़े से बना एक जूट या बैग ले लीजिए और अगर दुकानदार पाली बैग देता है तो उसे पेश करने से प्रबल होता है। अगर उपभोक्ताओं ने इसे बंद कर दिया है तो इसकी आवश्यकता दिन-प्रति दिन कम हो जाएगी और एक समय आएगा जब पर्यावरण से पॉलीथीन का सफाया हो जाएगा। सरकारी मशीनरी को भी पॉलीथीन के निर्माण में लगे इकाइयों को बंद करना होगा।


     प्लास्टिक अपशिष्ट के अन्य समाधानों में से एक इसका रीसाइक्लिंग है। रीसाइक्लिंग का अर्थ है प्लास्टिक की बर्बादी से प्लास्टिक वापस लेकर प्लास्टिक की नई चीजों को बनाना। प्लास्टिक रीसाइक्लिंग को पहली बार 1970 में कैलिफोर्निया फर्म द्वारा तैयार किया गया था। इस फर्म ने प्लास्टिक स्पिल्ल्स और प्लास्टिक की बोतलों से जल निकासी के लिए टाइल तैयार की थी लेकिन प्लास्टिक की रीसाइक्लिंग के काम अपनी सीमाएं है क्योंकि रीसाइक्लिंग की प्रक्रिया काफी महंगी है और अधिक प्रदूषण के भार से लदी हुई है।

      भारत की राजधानी नई दिल्ली में डिस्पोजेबल प्लास्टिक के इस्तेमाल पर रोक लगाई गई थी, लेकिन इसका बहुत ही कम असर देखने को मिला क्योंकि उसे "ठीक से लागू नहीं किया गया". पिछले दस साल के दौरान दिल्ली में कई बार पॉलिथीनों का इस्तेमाल रोकने की कोशिश की गई है. हाल में पॉलिथीन के इस्तेमाल पर भारी जुर्माना लगाने का एलान भी किया गया. बावजूद इसके आप दिल्ली में हर जगह पॉलिथीन इस्तेमाल होते देख सकते हैं.
संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण प्रमुख एरिक जोलहाइम कहते हैं, "प्लास्टिक से होने वाला प्रदूषण हर जगह एक बड़ी समस्या है." उन्होंने पर्यावरण संरक्षण पर ज्यादा से ज्यादा ध्यान केंद्रित करने के लिए भारत की सराहना की.


     उनका कहना है कि भारत में यात्रा करते हुए उन्होंने कुछ बहुत ही "सुंदर जगहें देखी, जो प्लास्टिक प्रदूषण के कारण बर्बाद हो रही हैं". वह कहते हैं, "तो समस्या बड़ी है लेकिन बदलाव करने के लिए क्षमता भी बड़ी है."

     संयुक्त राष्ट्र ने प्लास्टिक पर बैन को प्रभावी बनाने के लिए कई सिफारिशें भी पेश की हैं, जिनमें उद्योगों की तरफ से सहयोग को प्रोत्साहित करने से लेकर उन्हें कुछ इंसेंटिव देना भी शामिल है. रिपोर्ट कहती है कि दुनिया भर में हर साल 5 ट्रिलियन प्लास्टिक बैग इस्तेमाल होने का अनुमान है.

      सूखे की आशंका वाले साइप्रस में वहां के राष्ट्रपति ने कहा है कि वह चाहते हैं कि उनका देश जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए भूमध्यसागर और मध्य पूर्व के देशों के प्रयासों में समन्वयक की भूमिका निभाए. राष्ट्रपति निकोस अनासतासियादेस ने साइप्रस के अधिकारियों से कहा है कि दुनिया के इस हिस्से में साइप्रस को बड़ी भूमिका अदा करनी चाहिए जहां जलवायु परिवर्तन से ज्यादा खतरा है.
प्लास्टिक के कारण होने वाले खतरों से हमने अपनी आंखें कितनी भी बंद कर ली हों, लेकिन प्लास्टिक प्रदूषण वास्तव में एक वास्तविकता है।  धरती को प्रदूषण से बचाने में  देर हो जाने से पहले त्वरित सहकारी कार्रवाई की आवश्यकता है। पूरी दुनिया प्लास्टिक प्रदूषण से इतनी मुक्त नहीं हो सकती है इसलिए इसे पूरी तरह से छुटकारा पाने में थोड़ा और समय लगेगा।


      पर्यावरण पर प्लास्टिक प्रदूषण के प्रभाव को कम करने में किए जाने वाले कार्यों को व्यापक होने की आवश्यकता नहीं है, हर दिन सिर्फ एक ईमानदारी भरा प्रयास  इस विषय में एक बड़ा योगदान देगा।
आइये हम संकल्प लें कि प्लास्टिक से बनी वस्तुओं का बहिष्कार करें.
       प्लास्टिक की बैग और बोतल जो कि उन्हें इस्तेमाल के योग्य हूं उन्हें फेंके नहीं  उनका तब तक इस्तेमाल करें जब तक कि वह खराब ना हो जाए.प्लास्टिक से बनी हुई ऐसी वस्तुओं के इस्तेमाल से बचें जिन्हें एक बार इस्तेमाल में लिए जाने के बाद  फेंकना पड़े.प्लास्टिक की जगह कपड़े, कागज और जुट से बने थैलों का इस्तेमाल करें.जब भी आप कोई वस्तु खरीदने जाए तो फिर से कपड़े का थैला अपने साथ लेकर जाएं जिससे कि आपको प्लास्टिक की थैलियों में सामान नहीं लाना पड़े.दुकानदार से सामान खरीदते वक्त उसे कहें कि कपड़े या कागज से बनी थैलों में ही समान दे.खाने की वस्तुओं के लिए स्टील या फिर मिट्टी के बर्तनों को प्राथमिकता दें.प्लास्टिक की पीईटीई (PETE) और एचडीपीई (HDPE) प्रकार के सामान चुनिए. क्योंकि इस प्रकार के प्लास्टिक को रिसाइकिल करना आसान होता है.प्लास्टिक के दुष्प्रभाव का प्रचार प्रसार किया जाना चाहिए जिससे कि लोगों द्वारा स्कोर कम उपयोग में लिया जाए.स्कूलों में विद्यार्थियों को प्लास्टिक के दुष्प्रभाव के बारे में निबंध लिखवाने चाहिए इस पर वाद-विवाद प्रतियोगिता होनी चाहिए जिससे कि विद्यार्थियों को पता चल सके की प्लास्टिक हमारे जीवन के लिए कितना हानिकारक है जिससे कि वह बचपन से ही कम से कम प्लास्टिक का इस्तेमाल करने लगेंगे.कभी भी प्लास्टिक को स्वयं  नष्ट करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए क्योंकि इससे हम किसी ना किसी प्रकार के प्रदूषण को बढ़ावा ही देंगे. इससे अच्छा होगा कि हम किसी रिसाइकिल करने वाली कंपनी को यह प्लास्टिक दे दे.
.... और सब मिल कर यह नारा दोहरायें -

प्लास्टिक हटाओ
धरती बचाओ।



दैनिक भास्कर और राहगीरी सोशल ग्रुप का संयुक्त कार्यक्रम सागर राहगीरी



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