Saturday, September 14, 2019

सागर : साहित्य एवं चिंतन 63 .... शैलीगत बन्धनों से मुक्त कवि अम्बिका यादव - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

                  स्थानीय दैनिक समाचार पत्र "आचरण" में प्रकाशित मेरा कॉलम "सागर साहित्य एवं चिंतन " । जिसमें इस बार मैंने लिखा है मेरे शहर सागर के कवि अम्बिका यादव पर आलेख। पढ़िए और जानिए मेरे शहर के साहित्यिक परिवेश को ....

सागर : साहित्य एवं चिंतन

     शैलीगत बन्धनों से मुक्त कवि अम्बिका यादव
                           - डॉ. वर्षा सिंह
                                 
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परिचय      : अम्बिका यादव
जन्म स्थान :  सागर
जन्म         : 1 फरवरी 1950
शिक्षा        : बी.ए.
माता-पिता : श्रीमती बेनी बाई यादव,  श्री भागीरथ यादव
लेखन विधा : पद्य
प्रकाशन।     :    आसमानों से आगे (काव्य संग्रह)
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              कविता को व्याख्यायित करते हुए कवि धूमिल ने बड़ी सुन्दर पंक्तियां लिखी हैं- ‘‘ कविता क्या है/ कोई पहनावा है/ कुर्ता-पाजामा है/ ना भाई ना/ कविता शब्दों की अदालत में मुजरिम के कटघरे में खड़े/ बेकसूर आदमी का हलफनामा है। ’’ अर्थात कविता जब अंतर्मन और बाहरी दुनिया को विश्लेषित कर रसात्मक ढंग से प्रस्तुत करने लगती है तो उसकी सार्थकता के सम्मुख उसका शिल्प गौण हो जाता है। किन्तु कविता के कलेवर को साधना भी अपनेआप में चुनौती भरा एक काम होता है। ऐसी चुनौतियों को स्वीकार करते हुए सागर नगर के अनेक कवियों ने कविताएं लिखी हैं। कुछ अधिक साध पाए हैं तो कुछ कम। किन्तु इससे उनके कवि कर्म के महत्व को कम करके नहीं अांंका जा सकता है।
            सागर नगर में ‘ताओ’ के उपनाम से कविता लिखने वाले कवि अम्बिका यादव काव्य सृजन के रूप में साहित्य सेवा कर रहे हैं। श्री भागीरथ यादव एवं श्रीमती बेनी बाई यादव के पुत्र के रूप में 1 फरवरी 1950 को सागर में जन्में अम्बिका यादव की आरम्भिक शिक्षा सागर में ही हुई। अपनी विद्यालयीन शिक्षा पूरी करने के बाद अम्बिका यादव ने सागर विश्वविद्यालय से बी.ए. की उपाधि प्राप्त की। तदोपरांत वे कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक में सेवाकार्य करने लगे। शाखा प्रबंधक के पद से सेवानिवृत्त होने के उपरांत वे इंकमीडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मॉस कम्युनिकेशन एंड आई टी सागर में अध्यापन कार्य कर रहे हैं।
           अम्बिका यादव शिल्पगत बंधनों से मुक्त हो कर कविता लिखते हैं। उनकी कविताओं में गजल और गीत विधा का पुट देखा जा सकता है। वे अपनी कविताओं में प्रेम, मित्रता और दुनियादारी को अभिव्यक्ति देते हैं। प्रेम पर लिखी उनकी यह कविता देखिए-
जितनी बार पढ़ा उतनी बार नई ।
प्यार की इबारत हर बार नई ।
समंदर को मुट्ठी में भरने की ख्वाहिश
इस कोशिश में हाथ से छूटे मोती कई ।
जितना हम समझ सके वह नाकाफी है
आसमानों के पार हैं आसमान कई ।
दुनिया की कोई भी किताब पढ़ लो ‘ताओ’
प्यार के सिवा कोई बात नहीं नई।

           अम्बिका यादव की कई कविताओं में सुन्दर बिम्ब प्रयुक्त हुए हैं जिनसे उनकी भाव-भूमि को और अधिक सरसता मिली है। उदाहरणार्थ -
काश घनघोर अंधेरा होता।
और साथ तुम्हारा होता ।
रात काली में मिलती तुम
और दूब का कालीन होता ।
तारे भले ताकते रहते
नदी किनारे मिलना होता ।
लोग सारे देखते रहते
नाव में सिर्फ तुम और मैं होता ।
सिर्फ मोहब्बत रह जाती ‘ताओ’
काश दुनिया में और कुछ न होता।

            समसामयिक वातावरण प्रत्येक संवेदनशील मन को झकझोरता है। आतंकवाद, बमविस्फोट आदि के प्रति चिन्ता अम्बिका यादव की कविताओं में भी देखी जा सकती है। दहशतगर्दी पर टिप्पणी करते हुए वे लिखते हैं-
बम फट रहे हैं पटाखों की तरह ।
आज मेरा, कल तेरा शहर पुर्जा पुर्जा पटाखों की तरह ।
इस बरस गरीबी हटाने का बिल आया है
शायद चुनावी तैयारी है हर बार की तरह ।
दहशतगर्दी का आलम ऐसा दुनिया में
अच्छा था नासमझ रहते हम बंदरों की तरह।
तरक्की का दौर, दानिश मंदी का दौर
अणु परमाणु बम जुटती दुनिया भस्मासुर की तरह।
दुनिया सिकुड़ कर मुट्ठी भर रह गई ‘ताओ’
इंसानियत फिसल रही उससे रेत की तरह।

            दूषित राजनीति का प्रभाव व्यक्ति के स्वभाव को परिवर्तित कर देता है। पुराने मित्र मित्रता का अर्थ भुला देते हैं और वे एक कुशल व्यवसायी की तरह मित्रता में भी नफा-नुक्सान देखने लगते हैं तब इसी तरह की कविता बनती है जैसी कि कवि अम्बिका यादव ने यह कविता लिखी है -
वो सोचते हैं अब सियासतदारों की तरह ।
दोस्त नहीं रहे अब पुराने यारों की तरह ।
या तो हमें कुछ चाहिए  या उन्हें चाहिए हमसे
दोस्त हैं अब दुकानदारों की तरह ।
दावत में उसने उनको पास बैठाया है
वजन है तोहफों का जिसके हाथियों की तरह ।
प्यारी बातें तो है उनकी बच्चों की तरह
काश पढ़ लिख कर हम रहते उनकी तरह ।
‘ताओ’ नासमझ ही रहते हम परिंदों की तरह
काश समझदार न होते इंसानों की तरह।

             अम्बिका यादव का एक काव्य संग्रह ‘‘आसमानों से आगे’’ प्रकाशित हो चुका है। अपनी पुस्तक एवं अपनी रचनाओं के बारे में वे कहते हैं कि ‘‘बहरहाल मेरी कविताओं की यह कोशिश आपको जरूर पसंद आएगी इसी विश्वास के साथ यह पुस्तक जिसे आप गजल, गीत, कविता की तरह स्वीकार कर सकते हैं एवं इसका आनंद ले सकते हैं।’’ वे अपनी पुस्तक ‘‘आसमानों से आगे’’ की भूमिका में लिखते हैं कि ‘‘कविता अभिव्यक्ति है मन की फिर लिखने का मन सो लिखी गई यह किताब कुछ-कुछ गजल नुमा कुछ कविता और फिर जमाने की सच्चाई कहने की कोशिश है कुछ हम लोगों को पसंद थी हमारी बातें सो जस की तस उनको लिखा है।’’
 
कवि अम्बिका यादव

             शैलीगत बंधनों से मुक्त हो कर खूबसूरत ढंग से कविता कही जा सकती है। यदि कवि के हृदय में सौहार्द का आग्रह है और प्रेम की भावनाएं हैं तो वह मानता है कि जाति, धर्म कोई बाधा नहीं बन सकती है। यही भावना कवि यादव की इस कविता में निहित है-
दिल मिले न मिले आंख तो मिलाइए
फिर मिले न मिले पता तो बताइए
मील के पत्थर की तरह खड़ा हूं राह में
रुके न रुके एक नजर तो डालिए
वह गुलाबी फूल तुम्हें ताक रहा है
भर देगा खुशबू से प्यारी सी नजर तो डालिए
कब तलक बैठे रहोगे सहमें किनारे पे
एक बार प्यार के समंदर में कूद तो जाइए
आदमी में बहुत बुरा सही ‘ताओ’
दुआ सलाम, राम- राम के रिश्ते तो निभाइए

Sagar Sahitya Avam Chintan - Dr. Varsha Singh 

           ‘‘ताओ’’ के उपनाम से कविताएं लिखने वाले अम्बिका यादव की ‘रोटी और हुस्न की गजल’ पर लिखी गई ये पंक्तियां भी काबिले गौर हैं-
रोटी और हुस्न की गजल आज भी नई ।
अंदाज ए बयां बदल गए वो बेवफा फिर भी नई ।
कोई क्या कहेगा, क्या नया लिखेगा
दास्तानें वही, सिर्फ उंगलियां नई ।
फूल खिलने बिखरने का सिलसिला जारी है ‘ताओ’
बगीचे वही, सुगंध वही, सिर्फ ये पौध नई।

             जीवन को अनिश्चितताओं से घिरा हुआ माना जाता है। वर्तमान समय में भौतिकतावाद इतना अधिक बढ़ गया है कि व्यक्ति आत्मिक सुख को भूल कर भौतिक सुखसुविधाओं के लिए बाजार की चकाचौंध में डूबा रहता है। ऐसे वातावरण में यदि जीवन की अनिश्चितता और बढ़ जाए तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं है। अम्बिका यादव अपनी रचना में इसी अनिश्चितता को रेखांकित करते दिखाई पड़तें है-
जिंदगी का सफर कहां ले जाएगा पता नहीं चलता।
साथ दोस्त चल रहा है या दुश्मन पता नहीं चलता ।
अब तो दोनों आंखें भी अलग-अलग सपने देखने लगी
हमसफर साथ तो है, दिल कहां उसका पता नहीं चलता ।
मायूस को हमदर्दी हौसले के दो जुमले
उसे दे देंगे जिंदगी नई पता नहीं चलता ।
यूं तो जमाने में अपने बहुत है दोस्त ‘ताओ’
बुरे वक्त के बिना कुछ पता नहीं चलता।

          उल्लेखनीय है कि भावों की काव्यात्मक अभिव्यक्ति के साथ ही अम्बिका यादव कार्टूनों के माध्यम से भी अपने भावों को व्यक्त करते हैं। विभिन्न समाचार पत्रों में उनके कार्टूनों का प्रकाशन हो चुका है। अभिव्यक्ति की विविधता को अपनाने वाले कवि अम्बिका यादव सागर साहित्य जगत में देखे जा सकते हैं।
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( दैनिक, आचरण  दि. 14.09.2019)
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