Tuesday, October 15, 2019

आत्मशुद्धि का माह कार्तिक - डॉ. वर्षा सिंह

   
Dr. Varsha Singh
 हिंदू कलैंडर के अनुसार कार्तिक मास का प्रारंभ हो चुका है। कार्तिक मास में शिव पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर राक्षस का वध किया था, इसलिए इसका नाम कार्तिक पड़ा, जो विजय देने वाला है। कार्तिक महीने का माहात्म्य स्कन्द पुराण, नारद पुराण, पद्म पुराण में भी मिलता है।
कार्तिक मास के लगभग बीस दिन मनुष्य को देव आराधना द्वारा स्वयं को पुष्ट करने के लिए प्रेरित करते हैं। इसलिए इस महीने को मोक्ष का द्वार भी कहा गया है। शास्त्रों में कहा गया है कि कार्तिक मास में मनुष्य की सभी आवश्यकताओं, जैसे- उत्तम स्वास्थ्य, पारिवारिक उन्नति, देव कृपा आदि का आध्यात्मिक समाधान बड़ी आसानी से हो जाता है।
       

       कार्तिक महीने में भगवान लक्ष्मीनारायण की पूजा का विशेष महत्व होता है। यह मान्यता है कि कार्तिक महीने में सूर्योदय से पहले शीतल जल का स्नान करना सबसे उत्तम है। कार्तिक माह में ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करने से धरती के जितने तीर्थ स्थान है, उनका पुण्य एक साथ प्राप्त हो जाता है। यह माह बहुत पवित्र माना जाता है और यह कार्तिकेय और भगवान विष्णु जी को समर्पित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार शरद पूर्णिमा की रात्रि में मां श्रीमहालक्ष्मी पृथ्वी पर आकर सम्पूर्ण कार्तिक माह में भगवान विष्णु के निद्रा त्यागने से पहले सम्पूर्ण सृष्टि की व्यवस्था देखती हैं। सभी ऋषि, मुनि, योगी और सन्यासियों का चातुर्मास्य व्रत भी इसी माह में कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी को जगतगुरु विष्णु के पूजन के साथ संपन्न होता है।


         कार्तिक माह की त्रयोदशी, चतुर्दशी और पूर्णिमा को शास्त्रों ने अति पुष्करिणी कहा है। स्कन्द पुराण के अनुसार जो प्राणी कार्तिक मास में प्रतिदिन स्नान करता है वह इन्हीं तीन तिथियों की प्रातः स्नान करने से पूर्ण फल का भागी हो जाता है। त्रयोदशी को स्नानोपरांत समस्त वेद प्राणियों समीप जाकर उन्हें पवित्र करते हैं। चतुर्दशी में समस्त देवता एवं यज्ञ सभी जीवों को पावन बनाते हैं, और पूर्णिमा को स्नान अर्घ्य, तर्पण, जप, तप, पूजन, कीर्तन दान-पुण्य करने से स्वयं भगवान विष्णु प्राणियों को ब्रह्मघात और अन्य कृत्या-कृत्य पापों से मुक्त करके जीव को शुद्ध कर देते हैं। इन तीन दिनों में भगवत गीता एवं श्रीसत्यनारायण व्रत की कथा का श्रवण, गीतापाठ विष्णु सहस्त्र नाम का पाठ, 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' का जप करने से प्राणी पापमुक्त-कर्ज मुक्त होकर भगवान श्रीविष्णु जी की कृपा पाता है।

      यह भी कहा जाता है कि कार्तिक में झूठ बोलना, चोरी-ठगी करना, धोखा देना, जीव हत्या करना, गुरु की निंदा करने व मदिरापान करने से बचना चाहिए। एकादशी से पूर्णिमा तक के मध्य भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए खुले आसमान में दीप जलाते हुए इस मंत्र का उच्चारण करने से शुभ फल प्राप्त होता है-           दामोदराय विश्वाय विश्वरूपधराय च !
         नमस्कृत्वा प्रदास्यामि व्योमदीपं हरिप्रियम् !!

अर्थात -मै सर्वस्वरूप एवं विश्वरूपधारी भगवान दामोदर को नमस्कार करके यह आकाशदीप अर्पित करता हूँ जो भगवान को अतिप्रिय है।

         साथ ही इस मंत्र का उच्चारण करते हुए आकाशदीप जलाने से शुभफल प्राप्त होता है :--
         नमः पितृभ्यः प्रेतेभ्यो नमो धर्माय विष्णवे !
         नमो यमाय रुद्राय कान्तारपतये नमः !!

अर्थात 'पितरों को नमस्कार है, प्रेतों को नमस्कार है, धर्म स्वरूप श्रीविष्णु को नमस्कार है, यमदेव को नमस्कार है तथा जीवन यात्रा के दुर्गम पथ में रक्षा करने वाले भगवान रूद्र को नमस्कार है।

भगवान विष्णु  का स्मरण इस मंत्र के जाप के साथ किया जाता है :-
       शांताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशम् ,     
       विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम् ।
       लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम् ,
       वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ।

    इस मंत्र का अर्थ है कि जिस हरि का रूप अति शांतिमय है जो शेष नाग की शय्या पर शयन करते हैं। इनकी नाभि से जो कमल निकल रहा है वो समस्त जगत का आधार है। जो गगन के समान हर जगह व्याप्त है , जो नील बादलो के रंग के समान रंग वाले हैं। जो योगियों द्वारा ध्यान करने पर मिल जाते है , जो समस्त जगत के स्वामी है , जो भय का नाश करने वाले हैं। धन की देवी लक्ष्मी जी के पति है इसे प्रभु हरि को मैं शीश झुकाकर प्रणाम करता हूँ।


         कार्तिक माह में पूर्ण निष्ठा और भक्ति भाव से पूजा अर्चना करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं। कार्तिक महीने में बड़े और मुख्य तीज-त्योहार पड़ते हैं।कार्तिक महीने की शुरुआत शरद पूर्णिमा से हो जाती है। इसके बाद करवा चौथ, धनतेरस, रूप चौदस, दीपावली, गोवर्धन पूजा, भैया दूज, देव उठनी एकादशी आदि पर्व मनाए जाएंगे। कार्तिक महीने का समापन कार्तिक पूर्णिमा पर होता है। कार्तिक महीने में देवउठनी एकादशी के अवसर पर एक बार फिर शुभ एवं मांगलिक कार्यों की शुरुआत होगी। विवाह, शादी, गृह प्रवेश, मुहूर्त आदि का प्रारंभ हो जाते हैं।

         इस महीने में तुलसी पूजन करने तथा सेवन करने का विशेष महत्व बताया गया है। वैसे तो हर मास में तुलसी का सेवन व आराधना करना श्रेयस्कर होता है, लेकिन कार्तिक में तुलसी पूजा का महत्व कई गुना माना गया है।

सागर सहित समूचे बुंदेलखंड में कार्तिक मास में स्त्रियां ब्रह्म मुहूर्त में जलाशयों में स्नान कर श्री कृष्ण की पूजा अर्चना करती हैं।  बुंदेली लोकगीतों में कार्तिक गीतों का विशेष महत्व है। एक बहुचर्चित गीत है :-

भई ने बिरज की मोर सखी री
मैं तो भई ने बिरज की मोर।
कहां रहती कहां चुनती
कहां करती किलोल सखी री। भई...
गोकुल रहती वृन्दावन चुगती
मथुरा करती किलोल। सखी...
गोवर्धन पे लेत बसेरो,
नचती पंख मरोर। सखी...
उड़-उड़ पंख गिरे धरनी पे
बीनत जुगल किशोर। सखी...
वृन्दावन की महिमा न्यारी,
जाको ओर न छोर। सखी...


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