Sunday, August 19, 2018

सागर : साहित्य एवं चिंतन -15 डॉ. अखिल जैन : विश्वास भरा एक युवा-स्वर - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

स्थानीय दैनिक समाचार पत्र "आचरण" में प्रकाशित मेरा कॉलम "सागर साहित्य एवं चिंतन " । जिसमें इस बार मैंने लिखा है मेरे शहर सागर के युवा कवि डॉ. अखिल जैन पर आलेख। पढ़िए और जानिए मेरे शहर के साहित्यिक परिवेश को ....

सागर : साहित्य एवं चिंतन

डॉ. अखिल जैन : विश्वास भरा एक युवा-स्वर
- डॉ. वर्षा सिंह

सागर के साहित्याकाश में कई युवा रचनाकार अपनी लेखनी से अपनी प्रतिभा की ज्योति बिखेर रहे हैं। इन्हीं में एक युवा साहित्यकार हैं डॉ. अखिल जैन। 09 अक्टूबर 1982 को जन्मे डॉ. अखिल जैन पैथोलॉजी में स्नातक तथा समाज शास्त्र स्नातकोत्तर एवं एम एस डब्ल्यू हैं। बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज, सागर में लैब टेक्नोलॉजिस्ट के पद पर कार्यरत अखिल जैन को विक्रमशिला हिंदी विश्वविद्यालय भागलपुर द्वारा विधा वाचस्पति मानद डॉक्टरेट एवं विद्यासागर मानद डी लिट् की उपाधि प्राप्त है। डॉ. अखिल जैन सामाजिक कार्यों में भी सक्रिय रहते हैं। मध्यप्रदेश के मुख्य मंत्री शिवराज सिंह जी द्वारा गणतंत्र दिवस के अवसर पर रक्तदान एवं एच आई व्ही जागरूकता के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने उन्हें सम्मान सम्मानित किया जा चुका है। कई सामाजिक संगठन भी उनके सेवाकार्य के लिए उन्हें सम्मानित कर चुके हैं।
Sagar Sahitya Chintan -15 Dr Akhil Jain - Vishwas Bhara Ek Yuva Swar - Dr Varsha Singh

बचपन से ही साहित्य में रुझान होने के कारण साहित्य की विभिन्न विधाओं में अपनी कलम चलाते हुए उन्होंने कवि सम्मेलनों के मंचों पर भी अपना विशेष स्थान बनाया और आकाशवाणी, दूरदर्शन के साथ ही देश के अनेक मंचों पर वे ख्यातिनाम कवियों के साथ काव्यपाठ कर चुके हैं। डॉ. अखिल जैन बताते हैं कि वे विगत तीन वर्षों से व्हाट्सएप जैसे सोशल नेटवर्क पर एक साहित्यिक समूह छंद मुक्त पाठशाला के एडमिन हैं। जिसमें अलग अलग देशों से रचनाकार जुड़े हुए हैं। व्हाट्सएप के इस साहित्यिक समूह के द्वारा ‘भावां की हाला’ नामक काव्य संग्रह डॉ. जैन के संपादन में निकाला गया जो कि व्हाट्सएप के इतिहास में प्रथम अनूठा प्रयास था। व्हाट्सएप जुड़े साहित्यकारों द्वारा इस संग्रह का स्वागत किए जाने से उत्साहित हो कर इसी समूह के द्वारा दूसरा काव्य संग्रह उनके द्वारा संपादित किया गया। जिसका नाम था- ‘शब्दों का प्याला’। उनकी स्वयं की कविताओं का एक संग्रह ‘शब्दों के पंख’ प्रकाशनाधीन है।
अपनी रचनाधर्मिता के बारे में डॉ. अखिल जैन का कहना है कि -‘‘शब्दों को कलम की तूलिका से पेपर के कैनवास पर घुमाते, नचाते और मन के भाव के रंग में डुबाते हुए कविता का सृजन होता गया और मैं एक साधारण से इन्सान से कलमकार कब बन गया ये तो मित्रों की प्रशंसा के बाद पता चला। ये तो माँ शारदे का आशीर्वाद ही है कि नैसर्गिक और रचनात्मक छवियों की छत्र-छाया में, कभी उमंग, कभी उल्लास, कभी भावों के भंवर की उलझती लहरों से खिन्न मन ने कलम को ही अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया और रचनाओं की श्रृंखला बना डाली । मेरी दृष्टि में लिखो भले ही कम मगर ऐसा लिखो की पढ़ने वाले सभी की खुशियां दुख दर्द सभी कविता के भीतर समाये हुए हो। तभी लेखन का, सृजन का सार है।’’ वे अपने लेखन की सफलता एवं ख्याति का श्रेय उस वातावरण को देते हैं जो उन्हें अपने पिता डॉ. आनन्द जैन एवं माता श्रीमती पुष्पा जैन के आशीष, स्नेह और सहयोग से प्राप्त हुआ।
अखिल जैन की कविताओं में एक बहुरंगी दुनिया दिखाई पड़ती है जिसमें खुशी है, दुख है, चिन्तन है, चिन्ता है और एक युवा उत्साह है। मंचीय कविताओं से परे शेष काव्य में वह गाम्भीर्य है जो साबित करता है कि कवि को जीवन के सभी उतार-चढ़ाव से सरोकार है। अपने चारों ओर की विषम परिस्थितियों का विश्लेषण करने की क्षमता कवि में है तथा वह अपनी इस क्षमता को बड़ी बारीकी से अपनी कविताओं में पिरोता जाता है। अपनों के द्वारा छले जाने पर कई ज़िन्दगियां इस त्रासदी से किस तरह गुज़रती हैं। इस कटु यथार्थ को अखिल जैन की कविता ‘वेश्या’ में देखा जा सकता है। अखिल की कविता छीजती मनुष्यता और दरकती संवेदनशीलता की पड़ताल करती है-
शर्म आई थी मुझे उस दिन बहुत
जब स्कूल के शिक्षक ने
कक्षा में खिलवाड़ की थी
मेरे अंगों से...
शर्म आई थो उस दिन जब
पड़ोस के चाचा ने
जो मुझे बिटिया कहते थे
नशे में जकड़ा था मुझे...

अखिल जैन की कविताओं में समय का एक बेहद तीखा बोध भी है जो उनके कवित्व के प्रति संभावना जगाता है। मानवीय सरोकारों के निरंतर फैलते हुए क्षितिज को रेखांकित करते हुए बिम्ब उनकी कविताओं की ओर सहज ध्यान आकर्षित करते हैं। ‘गुल्लक’ शीर्षक कविता में यह बिम्ब-वैशिष्ट्य देखा जा सकता है-
Dr. Akhil jain

आओ एक गुल्लक लायें
उस गुल्लक में हम
डालते रहेंगे कुछ स्मृतियां
कुछ पुराने पत्रों के टेढ़े मेढ़े आखर
मुरझाये गुलाबों की
सुखी पंखुरियों का फीका रंग
और कुछ आदान
प्रदान किये उपहारों के
सुनहले रैपर....
काले बालों के कुछ टुकड़े
और किसी सागर के तट
की माटी जहां दोनो
उंगलियों से लिखते थे
एक दूजे का नाम...
प्रेम की चवन्नी, विश्वास की अठन्नी
और हमारे रिश्ते के
सिक्कों से भर जाएगी गुल्लक....

कविता की बहुआयामी दृष्टि ने जीवन की वास्तविकता को सदैव प्रस्तुत किया है। रचनाकार अपने अनुभवों द्वारा जीवन के उद्देश्यों को काव्य रूप देकर संप्रेषणीय आधार प्रदान करता है और यह संप्रेषण काव्यगत सृजनात्मक विचारशीलता से सिद्ध होता है। परंपरागत प्रतीकों के स्थान पर अखिल जैन ने अपने अनुभव को मुखर करने वाले उदाहरण प्रस्तुत किए हैं जिससे उनकी कविता में एक नया सौंदर्य का बोध प्रतिध्वनित होता है। उदाहरण के लिए ‘हाशिया’ कविता का यह अंश देखिए -
बचपन में सिखाते थे मास्टर
लिखते वक्त अपनी पुस्तिका में
छोड़कर रखना हाशिया...
बायें तरफ सदा ही
आदत रही है ये ....
उसी आदत ने सिखाया
मुझे छोड़ कर जोड़ना...

अखिल छंदमुक्त रचनाओं के साथ ही ग़ज़ल जैसी छंदबद्ध रचनाएं भी लिखते हैं। ये बानगी देखें-
गीत कोई भी हो, एहसास से गाया मैने
जो मुझे जैसा मिला, दिल से लगाया मैने
जितनी नफ़रत से उज़ाडा था तुमने दिल मेरा,
उतनी चाहत से तुम्हे दिल में सजाया मैने

अखिल जैन की कविताओं से गुजरने के बाद यह निःसंदेह कहा जा सकता है कि सागर की युवा साहित्यिक पीढ़ी में वे असीम सम्भावनाओं के कवि हैं। आशा है कि वे इसी तरह साहित्य को सामाजिक सरोकारों से जोड़े रखेंगे और अपने काव्यधर्म के प्रति इसी तरह ईमानदार बने रहेंगे।

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( दैनिक, आचरण दि. 13.06.2018)
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