Sunday, August 19, 2018

सागर : साहित्य एवं चिंतन -19 राष्ट्र एवं समाज के प्रति सजग कवयित्री डॉ. छाया चौकसे - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

स्थानीय दैनिक समाचार पत्र "आचरण" में प्रकाशित मेरा कॉलम "सागर साहित्य एवं चिंतन " । जिसमें इस बार मैंने लिखा है मेरे शहर सागर की कवयित्री डॉ. छाया चौकसे पर आलेख। पढ़िए और जानिए मेरे शहर के साहित्यिक परिवेश को ....

सागर : साहित्य एवं चिंतन

राष्ट्र एवं समाज के प्रति सजग कवयित्री डॉ. छाया चौकसे
- डॉ. वर्षा सिंह

सागर नगर का साहित्यिक परिदृश्य बहुरंगी है। इस शहर के रचनाधर्मी राष्ट्र एवं समाज के प्रति अपने दायित्वों को भलीभांति समझते हैं तथा सामाजिक चेतना को स्फूर्त्त रखने में विश्वास रखते हैं। राष्ट्र एवं समाज से सरोकारित साहित्यकार डॉ. छाया चौकसे का जन्म 1 जून 1959 को जबलपुर (म.प्र.) में हुआ किन्तु आरम्भ से ही उनका कर्मक्षेत्र सागर नगर रहा है। यहीं उन्होंने महाविद्यालय में अध्यापन कार्य एवं पारिवारिक जीवन की व्यस्तताओं के बीच तालमेल बिठाते हुए साहित्य से अपना सघन संबंध बनाए रखा। डॉ. चौकसे ने गजानन माधव मुक्तिबोध के गद्य साहित्य पर विशेष शोधकार्य किया है। जिस पर आधारित उनकी पुस्तक ‘मुक्तिबोध का गद्य साहित्य : एक अध्ययन’ सन् 1090 में प्रकाशित हुई। इसके बाद सन् 2015 में ‘हमारा बुंदेलखण्ड’ प्रकाशित हुई। देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में डॉ. छाया चौकसे के अब तक अनेक लेख एवं समीक्षाएं प्रकाशित हो चुकी हैं। ‘लोक साहित्य में सांस्कृतिक चेतना’ पुस्तक के संपादक मंडल में डॉ. सरोज गुप्ता, डॉ. रंजना मिश्र एवं डॉ. विनय शर्मा के साथ डॉ. छाया चौकसे ने भी सफलतापूर्वक संपादन कार्य किया। ‘समसामयिक शोध निबंध एवं समीक्षा’, ‘साम्प्रदायिक सद्भाव और भारतीय सांस्कृति एकता’, ‘वैश्विक भाषा साहित्य एवं रामकथा’, भारतीय वांगमय एवं रामकथा का भी संपादन कर चुकी हैं।
Sagar Sahitya Chintan -19 Rashtra Evam Samaj Ke Prati Sajag Kaviyatri Dr Chhaya Choukse  - Dr Varsha Singh

डॉ. छाया चौकसे एक मेधावी छात्रा रहीं। उन्होंने अपनी मेहनत से मेरिट छात्रवृत्ति प्राप्त की थी तथा स्नातक स्तर पर हिन्दी विषय में सर्वाधिक अंक प्राप्त करने पर उन्हें रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर की ओर से तत्कालीन राज्यपाल महामहिम बी.एम.पुनाचा द्वारा उषादेवी मैत्रा स्वर्ण पदक प्रदान किया गया था। शोध के क्षेत्र में डॉ. छाया चौकसे को लघु शोध परियोजना के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय के संस्कृति विभाग शिक्षा प्रोत्साहन पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया। साहित्य सेवा के लिए भी डॉ. छाया चौकसे को विभिन्न संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित किया जा चुका है। जिनमें प्रमुख हैं- मध्यप्रदेश राष्ट्र भाषा प्रचार समिति भोपाल द्वारा हिन्दी प्रसार सहयोग हेतु सम्मान, सन 2013 में सागर नगर विधायक शैलेन्द्र जैन द्वारा विशेष महिला सम्मान, जे.डी.एम. पब्लिकेशन दिल्ली द्वारा वर्ष 2014 का विशिष्ट हिन्दी सेवी सम्मान एवं वर्ष 2013,14,15 का शिक्षक सम्मान, सन् 2014 में सर्वोदय विद्यापीठ पिपरिया द्वारा काव्यश्री सम्मान, लायंस क्लब सागर झील द्वारा सहयोग सम्मान तथा म.प्र. कल्चुरी महासभा द्वारा सम्मान। राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में भी सहभागिता कर चुकीं डॉ. चौकसे विभिन्न सामाजिक एवं साहित्यिक संस्थाओं की आजीवन सदस्य भी हैं। जैसे- मध्यप्रदेश राष्ट्रभाषा प्रचार समिति भोपाल, विश्व हिन्दी परिषद् इलाहाबाद, अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य परिषद्, राष्ट्रीय कल्चुरी महासभा एवं मध्यप्रदेश कल्चुरी महिला समिति आदि। डॉ. चौकसे वर्तमान में पं. दीनदयाल उपाध्याय शासकीय कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय सागर में प्राध्यापक के पद पर कार्यरत हैं।
डॉ. छाया चौकसे

डॉ. छाया चौकसे की कविताओं में कोमल भावनाओं एवं संवेदनाओं को विशेष मुखरता मिली है। वे जहां बेटी के प्रति कविता लिखती हैं तो वहीं मां के प्रति भी अपनी काव्यमय भावनाएं प्रकट करती हैं। बेटी का गुनगुनाना सुन प्रसन्न तो होती है मां, किन्तु सहज नहीं रह पाती है। वह समझ जाती है कि अब बेटी अपने भावी जीवन के सलोने सपने सजाने लगी है और कुछ समय बाद वह घड़ी भी आ जाएगी जब बेटी घर से विदा हो जाएगी। यह विचार करना भी एक मां के लिए विचित्र अनुभव होता है क्योंकि उसमें सुख भी होता है और दुख भी। एक मां अपनी वयस्क होती बेटी के प्रति किस तरह भावुक हो उठती है इसका बड़ा सुंदर वर्णन उन्होंने अपनी कविता ‘प्यारी बिटिया’ में किया है। कविता का यह अंश देखें -
ऋतु प्रीत की, पिया मीत की
मेरी वयस्क होती बिटिया
प्रीत गीत गुनगुना रही है
पर यह क्या, इसे सुन मेरी छाती
किस कम्पन से घबरा रही है?
अगले सावन, मनभावन के घर हो शायद
इसके परिणय के भावी स्वप्न क्यों
मेरी आंखें सजा रही हैं...
मां पारिवारिक रिश्तों की धुरी होती है। परिवार के प्रत्येक सदस्य का जीवन उसी के इर्दगिर्द घूमता है। क्योंकि प्रत्येक सदस्य जानता है कि परिवार में मां ही वह व्यक्ति है जो दुख-सुख, भले-बुरे सभी में दृढ़तापूर्वक साथ खड़ी रहती है। मां के अद्वितीय होने की अनुभूति डॉ. छाया की कविता ‘मां सा कोई नहीं’ में देखी जा सकती है-
धरती देखा, अम्बर देखा
जगती का श्रृंगार भी देखा
पर मां के दुलार के जैसा
कोई आभास नहीं।
भैया देखा, बहना देखी
रिश्तों का त्यौहार भी देखा
पर मां के ममत्व के रिश्ते सा
कोई सरोकार नहीं।
युवा शक्ति समय की धारा को मोड़ने की क्षमता रखती है। युवा ही भविष्य के निर्माता होते हैं। इसलिए राष्ट्र के प्रति युवाओं का दायित्व गुरुतम होता है। इसीलिए जरूरी हो जाता है कि युवा अपनी शक्ति को पहचाने और उसका दुरुपयोग न होने दें। डॉ. छाया चौकसे अपनी कविता ‘युवाओं से’ में युवाशक्ति को संबोधित करते हुए कहती हैं कि -
इस धरा का मान तुम, इस धरा की शान तुम
राष्ट्र की पहचान तुम, राष्ट्र स्वाभिमान तुम
देश, वेशभूषा, भाषा तुम्हीं से जीवंत है
देश गौरवगान, गरिमा ज्ञान फैला दिगदिगंत है
देश का स्पंदन तुम, तुम्हीं तो इसके प्राण हो
देश के जवान हाथ जागृति की मशाल लो।
युवाओं के संदर्भ में आज देश अनेक संकट झेल रहा है। विशेष रूप से युवतियों एवं बालिकाओं के साथ किए जा रहे दुर्व्यवहार ने सभी के मन को आहत कर रखा है। ‘निर्भया कांड’ की पीड़ा आज भी समूचे देश के हृदय को कचोटती रहती है। डॉ. चौकसे ‘निर्भया : एक चिन्तन’ के रूप् में अपने भावों को इन शब्दों में व्यक्त करती हैं -
संस्कारों की बयार बहने दो
आज लज्जित है देश दुनिया में
देश रोए तो उसे जार-जार रोने दो
आज कुछ इस तरह सिखाएं बच्चों को
उनमें रिश्तों की आन-बान रहने दो
आज विज्ञापन की नारी को देख हैरत है
मीडिया में भी नारी का सम्मान रहने दो
एक गुजारिश भी है फिल्मकारों से
नायिका को खलनायिका न बनने दो
वेश-परिवेश में देश कहां है देखो
एक निवेदन है कि देश को भारत देश रहने दो।
अपनी कविताओं में डॉ. छाया चौकसे जीवन के प्रति कभी-कभी दार्शनिक हो उठती हैं और तब वे मानव जीवन को एक सतत् संघर्ष के रूप में देखती हैं। अपनी कविता ‘जीवन एक संघर्ष’ में जीवन के संघर्षों का कुछ इस प्रकार वर्णन किया है -
जन्मना संघर्ष, बढ़ना संघर्ष
जीना संघर्ष, जीते जाना संघर्ष....
डॉ. छाया चौकसे के विचारों में राष्ट्र के प्रति चिन्तन एवं पारिवारिक संबंधों के प्रति सौहार्यपूएार् आस्था स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। उनकी रचनात्मकता की यही विशेषता सागर नगर के साहित्य-संसार में उन्हें रेखांकित करती है।
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( दैनिक, आचरण दि. 01.08.2018)
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