डॉ. वर्षा सिंह |
स्थानीय
दैनिक समाचार पत्र "आचरण" में प्रकाशित मेरा कॉलम "सागर साहित्य एवं चिंतन
" । जिसमें इस बार मैंने लिखा है मेरे शहर सागर के मशहूर शायर अख़लाक़ सागरी
पर आलेख। पढ़िए और जानिए मेरे शहर के साहित्यिक परिवेश को ....
सागर : साहित्य एवं चिंतन
अख़लाक सागरी : दुनिया भर में पढ़ी जाती हैं जिनकी ग़ज़लें
- डॉ. वर्षा सिंह
इश्क में हम तुम्हें क्या बताएं, किस कदर चोट खाये हुए हैं।
मौत ने उनको मारा है और हम, ज़िन्दगी के सताये हुए हैं।
ऐ लहद अपनी मिट्टी से कह दे, दाग़ लगने न पाये कफ़न को ,
आज ही हमने बदले हैं कपड़े, आज ही हम नहाये हुए हैं।
इस ग़ज़ल से दुनिया भर में छा जाने वाले सागर नगर के शायर अख़लाक सागरी यूं तो किसी परिचय के मोहताज़ नहीं हैं, लेकिन पिछले लगभग एक दशक से उम्र की मुश्किलों को झेलते हुए मानों दुनिया से कट कर जी रहे हैं। मोहम्मद इस्माइल हाज़िक़ एवं बशीरन बी के घर 30 जनवरी 1930 को एक पुत्र ने जन्म लिया, जिसका नाम रखा गया अख़लाक अहमद खान। उस समय शायद बालक के माता-पिता को भी इस बात का अंदाज़ा नहीं रहा होगा कि उनका पुत्र एक दिन शायरी की दुनिया का नामचीन शायर अख़लाक सागरी बन कर न केवल उनका बल्कि पूरे सागर शहर का नाम रोशन करेगा।
यूं तो अख़लाक सागरी की औपचारिक शिक्षा मैट्रिक तक ही हो सकी थी लेकिन शायरी के प्रति उनके रुझान ने उन्हें उर्दू भाषा और साहित्य से जोड़े रखा। अख़लाक सागरी ने अपने एक साक्षात्कार में बताया था कि -‘‘ मैं अपने परिवार में तीसरी पीढ़ी का शायर हूं। बचपन से ही उर्दू और फारसी की शिक्षा मिली। लगभग 13 साल की उम्र में पहली बार ग़ज़ल की कुछ पंक्तियां लिखीं। खुश हो कर पिता जी को दिखायीं। पिता जी हंस कर बोले- अख़लाक, ग़ज़ल लिखी नहीं पढ़ी जाती है। इसके बाद ग़ज़ल पढ़ने में मेरा ऐसा मन लगा कि मैंने इसे अपनी ज़िन्दगी का मकसद बना लिया।’’
अपनी मशहूर ग़ज़ल ‘‘ इश्क में हम तुम्हें क्या बताएं’’ कैसे बनी इसके बारे में अख़लाक सागरी ने एक अन्य साक्षात्कार में बताया था कि जब वे कक्षा 11वीं में पढ़ते , तब उन्हें एक लड़की से प्रेम हो गया था। यह प्रेम 2 साल तक परवान चढ़ा, फिर अचानक कुछ ऐसा हुआ कि लड़की ने उन्हें धोखा दे दिया। इससे उनके दिल को चोट पहुंची और यह ग़ज़ल बन गई।
अख़लाक सागरी की ग़ज़लों को बालीवुड गायक सोनू निगम, अनुराधा पौडवाल से ले कर गुरदास मान, जानी बाबू कव्वाल, पंकज उधास, मनहर उधास, मुन्नी बाई, अयाज़ अली, पिनाज़ मसानी, साबरी ब्रदर्स, मज़ीद शोला और देश की सीमा-पार के अताउल्ला खां जैसे प्रसिद्ध गायकों ने अपनी आवाज़ दी। अपने समय में मुशायरों में जान डालने वाले अख़लाक सागरी की ग़ज़लों के कई कैसेट जारी हुए। जैसे - बेवफा सनम, आजा मेरी जान, अफसाना, ये इश्क़-इश्क है, रात सुहानी, आ भी जा रात ढलने लगी, इश्क में बताएं लाइव इन फिजी आदि। अनेक फिल्मों में भी अख़लाक की शायरी को गानों के रूप में रखा गया। तीन बार लाल किले में मुशायरा पढ़ने का गौरव प्राप्त करने वाले अख़लाक सागरी ने पुरस्कारों की राजनीति पर टिप्पणी की थी कि - ‘‘मेरा नाम तीन बार पद्म भूषण पुरस्कार के लिए भेजा गया लेकिन राजनीति के चलते मुझे यह अवार्ड नहीं मिल सका। इस बात का मलाल मुझे मरते दम तक रहेगा।’’
पुरस्कारों के मामले में अख़लाक सागरी भले ही राजनीति के शिकार हो गए हों, लेकिन शायरी पसन्द करने वालों के दिलों में उनकी सत्ता आज भी कायम है। सागर शहर की जानी मानी संस्था श्यामलम् ने साहित्य परिक्रमा के अंतर्गत 26 जनवरी 2014 को अख़लाक सागरी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर केन्द्रित भव्य आयोजन करते हुए उन्हें सम्मानित भी किया था। उर्दू शायरी की मशहूर वेबसाइट ‘‘रेख्ता’’ और ‘‘वर्ड प्रेस’’ पर अख़लाक की शायरी आज भी रुचि से पढ़ी जाती है। अमेरिका के रेडियो चैनलस पर अख़लाक की शायरी को प्रसारित किया जाता है। उनकी शायरी की ख़ूबसूरती सीधे दिलों को छूती है। ये उदाहरण देखें -
बिगड़ो तो दमकती है जबीं और जियादा
तुम तैश में लगते हो हसीं और जियादा
निकलोगे आप भर के जहां मांग में अफशां
झेंपेंगे सितारे तो वहीं और जियादा
आ जाओं कि होठों पे अभी जान है वरना
फिर वक़्त मेरे पास नहीं और जियादा
उनकी एक और मशहूर ग़ज़ल देखिये-
बाम पे उनको लेते देखा, जब अंगड़ाई लोगों ने।
चांद समझ कर बस्ती भर में, ईद मनाई लोगों ने।
आजादी तो देखी लेकिन, उसके पर भी छू न सके,
बस ये कहिये उड़ती चिड़िया, मार गिराई लोगों ने।
अख़लाक की शायरी में उर्दू शायरी की परम्परागत शैली भी देखी जा सकती है, जो विशेष रूप से मुहब्बत पर कही गई उनकी ग़ज़लों में उभर कर सामने आती है। ये उदाहरण देखें -
मुहब्बत करने वाले इस कदर मजबूर ही देखे।
कि दिल गमगीं हों लेकिन शक्ल से मसरूर ही देखे।
हंसी माना लबों पर थी मगर जब गौर से देखा,
तो दिल में आशिकों के सैंकड़ों नासूर ही देखे।
गिला इक तुझसे क्या, तेरे तकब्बुर का कि हमने तो,
हसीं जितने भी देखे हैं, बड़े मगरूर ही देखे।
इश्क मुहब्बत की शायरी के साथ ही अख़लाक सागरी ने देश में व्याप्त गरीबी पर कटाक्ष करते हुए बेहतरीन अशआर कहे हैं। बानगी देखिए -
फुटपाथ पर पड़ा था वो कौन था बेचारा।
भूखा था कई दिन का दुनिया से जब सिधारा।
कुर्ता उठा के देखा, तो पेट पर लिखा था
सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा।
एक शायर हमेशा चैन और अमन की ही बात करता है। सभी परस्पर मिल-जुल कर रहें यही उसकी सबसे बड़ी इच्छा रहती है। अख़लाक सागरी ने भी हमेशा यही इच्छा की, ये शेर देखें -
अब दिवाली में दिये ऐसे जलाना चाहिये।
ईद की खुशियां भी जिनमें जगमगाना चाहिये।
सौंप कर मुस्लिम के हाथों में दशहरे का जुलूस,
ताजिया हिन्दू के कंधे पर उठाना चाहिये।
अख़लाक सागरी की शायरी में जहो मुहब्बत की बातें हैं, वहीं आम जनता की पीड़ा भी है और इन सब के साथ उनका अपना शायराना व्यक्तित्व भी उनके शब्दों में पिरोया मिलता है -
टूटा हूं मैं तो आंसुओं के तार की तरह।
बिखरा पड़ा हूं मोतियों के हार की तरह।
ज़िन्दा ही दफ्न करके मैं खुद अपने आप को
बैठा हूं इक मुज़ाविर-ए-मज़ार की तरह।
हमे ही अपने खून से सींचा ये गुलिंस्ता,
हम ही खटक रहें हैं यहां खार की तरह।
‘अखलाक’ सिर्फ नाम का अखलाक ही नहीं
दुश्मन से भी मिलेगा तो इक यार की तरह।
मशहूर शायर अख़लाक सागरी ने उर्दू शायरी को एक अलग ही जमीन दी। आज उनके पुत्र अयाज सागरी अपने पिता की इस विरासत को न केवल सहेज रहे हैं बल्कि अपनी शायरी से समृद्ध कर रहे हैं।
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( दैनिक, आचरण दि. 25.07.2018)
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— in Sagar, Madhya Pradesh.सागर : साहित्य एवं चिंतन
अख़लाक सागरी : दुनिया भर में पढ़ी जाती हैं जिनकी ग़ज़लें
- डॉ. वर्षा सिंह
इश्क में हम तुम्हें क्या बताएं, किस कदर चोट खाये हुए हैं।
मौत ने उनको मारा है और हम, ज़िन्दगी के सताये हुए हैं।
ऐ लहद अपनी मिट्टी से कह दे, दाग़ लगने न पाये कफ़न को ,
आज ही हमने बदले हैं कपड़े, आज ही हम नहाये हुए हैं।
इस ग़ज़ल से दुनिया भर में छा जाने वाले सागर नगर के शायर अख़लाक सागरी यूं तो किसी परिचय के मोहताज़ नहीं हैं, लेकिन पिछले लगभग एक दशक से उम्र की मुश्किलों को झेलते हुए मानों दुनिया से कट कर जी रहे हैं। मोहम्मद इस्माइल हाज़िक़ एवं बशीरन बी के घर 30 जनवरी 1930 को एक पुत्र ने जन्म लिया, जिसका नाम रखा गया अख़लाक अहमद खान। उस समय शायद बालक के माता-पिता को भी इस बात का अंदाज़ा नहीं रहा होगा कि उनका पुत्र एक दिन शायरी की दुनिया का नामचीन शायर अख़लाक सागरी बन कर न केवल उनका बल्कि पूरे सागर शहर का नाम रोशन करेगा।
यूं तो अख़लाक सागरी की औपचारिक शिक्षा मैट्रिक तक ही हो सकी थी लेकिन शायरी के प्रति उनके रुझान ने उन्हें उर्दू भाषा और साहित्य से जोड़े रखा। अख़लाक सागरी ने अपने एक साक्षात्कार में बताया था कि -‘‘ मैं अपने परिवार में तीसरी पीढ़ी का शायर हूं। बचपन से ही उर्दू और फारसी की शिक्षा मिली। लगभग 13 साल की उम्र में पहली बार ग़ज़ल की कुछ पंक्तियां लिखीं। खुश हो कर पिता जी को दिखायीं। पिता जी हंस कर बोले- अख़लाक, ग़ज़ल लिखी नहीं पढ़ी जाती है। इसके बाद ग़ज़ल पढ़ने में मेरा ऐसा मन लगा कि मैंने इसे अपनी ज़िन्दगी का मकसद बना लिया।’’
बायें से :- डॉ. मुज्तबा हुसैन, डॉ. वर्षा सिंह एवं अख़लाक़ सागरी |
अपनी मशहूर ग़ज़ल ‘‘ इश्क में हम तुम्हें क्या बताएं’’ कैसे बनी इसके बारे में अख़लाक सागरी ने एक अन्य साक्षात्कार में बताया था कि जब वे कक्षा 11वीं में पढ़ते , तब उन्हें एक लड़की से प्रेम हो गया था। यह प्रेम 2 साल तक परवान चढ़ा, फिर अचानक कुछ ऐसा हुआ कि लड़की ने उन्हें धोखा दे दिया। इससे उनके दिल को चोट पहुंची और यह ग़ज़ल बन गई।
अख़लाक सागरी की ग़ज़लों को बालीवुड गायक सोनू निगम, अनुराधा पौडवाल से ले कर गुरदास मान, जानी बाबू कव्वाल, पंकज उधास, मनहर उधास, मुन्नी बाई, अयाज़ अली, पिनाज़ मसानी, साबरी ब्रदर्स, मज़ीद शोला और देश की सीमा-पार के अताउल्ला खां जैसे प्रसिद्ध गायकों ने अपनी आवाज़ दी। अपने समय में मुशायरों में जान डालने वाले अख़लाक सागरी की ग़ज़लों के कई कैसेट जारी हुए। जैसे - बेवफा सनम, आजा मेरी जान, अफसाना, ये इश्क़-इश्क है, रात सुहानी, आ भी जा रात ढलने लगी, इश्क में बताएं लाइव इन फिजी आदि। अनेक फिल्मों में भी अख़लाक की शायरी को गानों के रूप में रखा गया। तीन बार लाल किले में मुशायरा पढ़ने का गौरव प्राप्त करने वाले अख़लाक सागरी ने पुरस्कारों की राजनीति पर टिप्पणी की थी कि - ‘‘मेरा नाम तीन बार पद्म भूषण पुरस्कार के लिए भेजा गया लेकिन राजनीति के चलते मुझे यह अवार्ड नहीं मिल सका। इस बात का मलाल मुझे मरते दम तक रहेगा।’’
Sagar Sahitya Chintan -21 Akhlakh Sagari - Duniya Bhar Me Parhi Jati Hain Jinki Ghazalen - Dr Varsha Singh |
पुरस्कारों के मामले में अख़लाक सागरी भले ही राजनीति के शिकार हो गए हों, लेकिन शायरी पसन्द करने वालों के दिलों में उनकी सत्ता आज भी कायम है। सागर शहर की जानी मानी संस्था श्यामलम् ने साहित्य परिक्रमा के अंतर्गत 26 जनवरी 2014 को अख़लाक सागरी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर केन्द्रित भव्य आयोजन करते हुए उन्हें सम्मानित भी किया था। उर्दू शायरी की मशहूर वेबसाइट ‘‘रेख्ता’’ और ‘‘वर्ड प्रेस’’ पर अख़लाक की शायरी आज भी रुचि से पढ़ी जाती है। अमेरिका के रेडियो चैनलस पर अख़लाक की शायरी को प्रसारित किया जाता है। उनकी शायरी की ख़ूबसूरती सीधे दिलों को छूती है। ये उदाहरण देखें -
बिगड़ो तो दमकती है जबीं और जियादा
तुम तैश में लगते हो हसीं और जियादा
निकलोगे आप भर के जहां मांग में अफशां
झेंपेंगे सितारे तो वहीं और जियादा
आ जाओं कि होठों पे अभी जान है वरना
फिर वक़्त मेरे पास नहीं और जियादा
उनकी एक और मशहूर ग़ज़ल देखिये-
बाम पे उनको लेते देखा, जब अंगड़ाई लोगों ने।
चांद समझ कर बस्ती भर में, ईद मनाई लोगों ने।
आजादी तो देखी लेकिन, उसके पर भी छू न सके,
बस ये कहिये उड़ती चिड़िया, मार गिराई लोगों ने।
अख़लाक की शायरी में उर्दू शायरी की परम्परागत शैली भी देखी जा सकती है, जो विशेष रूप से मुहब्बत पर कही गई उनकी ग़ज़लों में उभर कर सामने आती है। ये उदाहरण देखें -
मुहब्बत करने वाले इस कदर मजबूर ही देखे।
कि दिल गमगीं हों लेकिन शक्ल से मसरूर ही देखे।
हंसी माना लबों पर थी मगर जब गौर से देखा,
तो दिल में आशिकों के सैंकड़ों नासूर ही देखे।
गिला इक तुझसे क्या, तेरे तकब्बुर का कि हमने तो,
हसीं जितने भी देखे हैं, बड़े मगरूर ही देखे।
इश्क मुहब्बत की शायरी के साथ ही अख़लाक सागरी ने देश में व्याप्त गरीबी पर कटाक्ष करते हुए बेहतरीन अशआर कहे हैं। बानगी देखिए -
फुटपाथ पर पड़ा था वो कौन था बेचारा।
भूखा था कई दिन का दुनिया से जब सिधारा।
कुर्ता उठा के देखा, तो पेट पर लिखा था
सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा।
डॉ. वर्षा सिंह की अध्यक्षता में सम्पन्न साहित्य परिक्रमा आयोजन में अख़लाक़ सागरी |
एक शायर हमेशा चैन और अमन की ही बात करता है। सभी परस्पर मिल-जुल कर रहें यही उसकी सबसे बड़ी इच्छा रहती है। अख़लाक सागरी ने भी हमेशा यही इच्छा की, ये शेर देखें -
अब दिवाली में दिये ऐसे जलाना चाहिये।
ईद की खुशियां भी जिनमें जगमगाना चाहिये।
सौंप कर मुस्लिम के हाथों में दशहरे का जुलूस,
ताजिया हिन्दू के कंधे पर उठाना चाहिये।
अख़लाक सागरी की शायरी में जहो मुहब्बत की बातें हैं, वहीं आम जनता की पीड़ा भी है और इन सब के साथ उनका अपना शायराना व्यक्तित्व भी उनके शब्दों में पिरोया मिलता है -
टूटा हूं मैं तो आंसुओं के तार की तरह।
बिखरा पड़ा हूं मोतियों के हार की तरह।
ज़िन्दा ही दफ्न करके मैं खुद अपने आप को
बैठा हूं इक मुज़ाविर-ए-मज़ार की तरह।
हमे ही अपने खून से सींचा ये गुलिंस्ता,
हम ही खटक रहें हैं यहां खार की तरह।
‘अखलाक’ सिर्फ नाम का अखलाक ही नहीं
दुश्मन से भी मिलेगा तो इक यार की तरह।
मशहूर शायर अख़लाक सागरी ने उर्दू शायरी को एक अलग ही जमीन दी। आज उनके पुत्र अयाज सागरी अपने पिता की इस विरासत को न केवल सहेज रहे हैं बल्कि अपनी शायरी से समृद्ध कर रहे हैं।
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( दैनिक, आचरण दि. 25.07.2018)
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