Saturday, November 24, 2018

गुरु नानक जयंती की शुभकामनाएं - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh
"नानक चिंता मत करो ,चिंता तिसहि हे|”

ज्ञान, आलोक रूपी मार्गदर्शक गुरु नानक देव जयंती पर शत-शत नमन।

प्रकाश पर्व की सभी को हार्दिक बधाई।


          सिख पंथ के प्रथम गुरू नानक  देव जी की  जंयती पूरे देश के साथ ही सागर में भी बड़े स्तर पर मनाई गई। इस अवसर पर सागर शहर के भगवानगंज में स्थित गुरुद्वारा को आकर्षक ढंग से सजाया गया। मध्यप्रदेश के  सागर शहर के भगवान गंज गुरुद्वारे में सिख समाज द्वारा प्रकाश पर्व से शुरू किया गया धार्मिक कार्यक्रमों का सिलसिला शुक्रवार 23.11.2018 को गुरुनानक देव जयंती पर देर रात थमा। वाहे गुरू के जयकारों से गुरुद्वारा परिसर गूंज उठा। इससे पहले गुरुद्वारे मेें सुबह 9 बजे भजन कीर्तन से कार्यक्रम की शुरूआत हुई। गुरूद्वारा में श्रद्धालुओं का तांता देर शाम तक लगा रहा। सभी ने बारी बारी से मत्था टेका, गुरू का अटूट लंगर बरता, जिसे लोगों ने चखा। शाम होते ही गुरूद्वारा रंगीन बल्बों की झालरों से बिखरी रोशनी से और भी आकर्षक नजर आया।
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         गुरूग्रंथ साहब के सामने सिख समाज सहित अन्य श्रद्धालुओं ने मत्था टेका और समाज के लोगों को हर्षपूर्वक गुरुनानक जयंती की बधाई दी। सागर में ही भैंसा नामक स्थान पर  स्थित सिखों की अमरदास कालोनी के गुरुद्वारा और महार रेजीमेंट सेंटर के गुरुद्वारा में प्रकाश पर्व पर कई कार्यक्रम हुए। वर्तमान में श्री गुरु सिंघसभा के अध्यक्ष सतिंदर सिंह होरा हैं। हुजूरी रागी जत्था प्रमुख भाई कुलविंदर सिंह, जसवीर कौर, सुखबीर सिंह ने गुरूनानक देव पर केंद्रित भजन-कीर्तन किया। संकीर्तन के पश्चात ज्ञानीजी के मार्गदर्शन में निशान साहिब की सेवा की गई। सिख समाज के लोगों द्वारा की गई पुष्प वर्षा के समय पूरा वातावरण वाहे गुरू, वाहे गुरू की ध्वनि से गुंजायमान हो गया।

            गुरु नानक देव सिख धर्म के प्रथम गुरु हैं। इन्होंने ही सिख धर्म की स्थापना की थी। समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने के लिए उन्होंने अपने पारिवारिक जीवन और सुख का ध्यान न करते हुए दूर-दूर तक यात्राएं की और लोगों के मन में बस चुकी कुरीतियों को दूर करने की दिशा में काम किया। इस साल 23 नवंबर, शुक्रवार को इनका जन्मदिन है। हर साल कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को इनका जन्मदिन प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है। क्योंकि नानक देवजी ने कुरीतियों और बुराइयों को दूर कर लोगों के जीवन में नया प्रकाश भरने का कार्य किया।
गुरु नानक देव

           नानकजी का जन्म रावी नदी के किनारे स्थित तलवंडी नामक गांव में कार्तिक पूर्णिमा के दिन खत्रीकुल में हुआ था। कुछ विद्वान इनकी जन्मतिथि 15 अप्रैल, 1469 मानते हैं। किंतु प्रचलित तिथि कार्तिक पूर्णिमा ही है, जो अक्टूबर-नवंबर में दीवाली के 15 दिन बाद पड़ती है। इनके पिता का नाम कल्याणचंद या मेहता कालूजी था, माता का नाम तृप्ता देवी था। तलवंडी का नाम आगे चलकर नानक के नाम पर ननकाना पड़ गया। इनकी बहन का नाम नानकी था।

            नानक बचपन से ही प्रखर बुद्धि के लक्षण दिखाई देने लगे थे। बचपन से ही इनमें सांसारिक विषयों के प्रति कोई खास लगाव नहीं था। पढ़ने लिखने में इनका मन नहीं लगा और मात्र 8 साल की उम्र में स्कूल छूट गया क्योंकि भगवत्प्रापति के संबंध में इनके प्रश्नों के आगे अध्यापक ने हार मान ली। इनके प्रश्नों के आगे खुद को निरुत्तर जानकर इनके शिक्षक इन्हें लेकर इनके घर पहुंचे तथा वे इन्हें ससम्मान घर छोड़कर चले गए। इसके बाद नानक का सारा समय आध्यात्मिक चिंतन और सत्संग में व्यतीत होने लगा। छोटे बच्चे की ईश्वर में इतनी आस्था देखकर गांव के लोग इन्हें दिव्य मानने लगे क्योंकि नानक ने बचपन में ही कुछ ऐसे संकेत दिए थे।
       इनके जीवन से जुड़ी एक घटना इस प्रकार है कि एक बार बालक नानकजी खेत में पशु चराने गए, जहां थककर वह लेट गए और उन्हें नींद आ गई। जब वह सो रहे थे उस समय सूरज की छाया उनके मुख पर पड़ रही थी। सूरज की तपिश से उनकी नींद न टूटे इसलिए पास ही बने बिल में रहनेवाले एक सांप ने अपने फन से इनके सिर पर अपनी छाया कर ली। उस समय ग्राम प्रमुख बुलारजी जंगल में शिकार के लिए गए हुए थे और रास्ते में उन्होंने नानक के सिर पर सांप को छाया करते हुए देखा। तब से वह इन्हें बहुत मानने लगे। नानक का विवाह सोलह वर्ष की आयु में गुरदासपुर जिले के अंतर्गत लाखौकी नामक स्थान के रहनेवाले श्री मूला जी की कन्या सुलक्खनी (सुलक्षणा) से हुआ था। फिर 32 वर्ष की अवस्था में इनके प्रथम पुत्र श्रीचंद का जन्म हुआ। चार वर्ष पश्चात् दूसरे पुत्र लखमीदास का जन्म हुआ।
         दोनों बेटों के जन्म के उपरांत 1507 में नानक अपने परिवार का भार अपने श्वसुर पर छोड़कर मरदाना, लहना, बाला और रामदास इन चार साथियों को लेकर तीर्थयात्रा पर निकल गए। इन्होंने न केवल भारत वर्ष में बल्कि अरब, फारस और अफगानिस्तान के कुछ क्षेत्रों की यात्राएं भी कीं। गुरु नानक देव ने समाज में फैले अंधविश्वास और जातिवाद को मिटाने के लिए बहुत से कार्य किए। यही कारण है कि हर धर्म के लोग उन्हें सम्मान के साथ याद करते हैं और उनके जन्मदिन को पर्व के रूप में मनाते हैं। इसलिए कार्तिक पूर्णिमा को गुरु पर्व और प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है।
गुरु नानक देव के जीवन से जुड़े मुख्य गुरुद्वारे निम्नलिखित हैं-

गुरुद्वारा कंध साहिब- बटाला (गुरुदासपुर) गुरु नानक का यहां बीबी सुलक्षणा से 18 वर्ष की आयु में संवत्‌ 1544 की 24वीं जेठ को विवाह हुआ था। यहां गुरु नानक की विवाह वर्षगांठ पर प्रतिवर्ष उत्सव का आयोजन होता है।

गुरुद्वारा हाट साहिब- गुरु द्वारा हाट साहिब, सुल्तानपुर लोधी (कपूरथला) में है। गुरु नानक ने बहनोई जैराम के माध्यम से सुल्तानपुर के नवाब के यहां शाही भंडार के देख-रेख की नौकरी प्रारंभ की। वह यहां पर मोदी बना दिए गए। नवाब युवा नानक से काफी प्रभावित थे। यहीं से नानक को ‘तेरा’ शब्द के माध्यम से अपनी मंजिल का आभास हुआ था।


गुरुद्वारा गुरु का बाग- सुल्तानपुर लोधी (कपूरथला) में स्थित गुरुद्वारा गुरु का बाग में गुरु नानक देव जी का घर था, जहां उनके दो बेटों बाबा श्रीचंद और बाबा लक्ष्मीदास का जन्म हुआ था।

गुरुद्वारा कोठी साहिब- गुरुद्वारा कोठी साहिब, सुल्तानपुर लोधी (कपूरथला) में है जहां नवाब दौलतखान लोधी ने हिसाब-किताब में गड़बड़ी की आशंका में नानक देव जी को जेल भिजवा दिया। लेकिन जब नवाब को अपनी गलती का पता चला तो उन्होंने नानक देव जी को छोड़ कर माफी ही नहीं मांगी, बल्कि प्रधानमंत्री बनाने का प्रस्ताव भी रखा, लेकिन गुरु नानक ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया।

गुरुद्वारा बेर साहिब- सुल्तानपुर लोधी (कपूरथला) में गुरुद्वारा बेर साहिब वो जगह है जहां नानक देव का ईश्वर से साक्षात्कार हुआ था। जब एक बार गुरु नानक अपने सखा मर्दाना के साथ वैन नदी के किनारे बैठे थे, तो अचानक उन्होंने नदी में डुबकी लगा दी और तीन दिनों तक लापता हो गए, जहां पर कि उन्होंने ईश्वर से साक्षात्कार किया। सभी लोग उन्हें डूबा हुआ समझ रहे थे लेकिन वह वापस लौटे तो उन्होंने कहा- एक ओंकार सतनाम। गुरु नानक ने वहां एक बेर का बीज बोया, जो आज बहुत बड़ा वृक्ष बन चुका है।

गुरुद्वारा अचल साहिब- गुरुदासपुर में स्थित गुरुद्वारा अचल साहिब वह जगह है जहां अपनी यात्राओं के दौरान नानक देव रुके थे। यहीं पर नाथपंथी योगियों के प्रमुख योगी भांगर नाथ के साथ उनका धार्मिक वाद-विवाद भी हुआ था। योगी सभी प्रकार से परास्त होने पर जादुई प्रदर्शन करने लगे। यहीं नानक देव जी ने उन्हें बताया था कि ईश्वर तक प्रेम के माध्यम से ही पहुंचा जा सकता है।

गुरुद्वारा डेरा बाबा नानक- गुरुद्वारा डेरा बाबा नानक, गुरुदासपुर में स्थित है। जीवनभर धार्मिक यात्राओं के बाद नानक देव जी ने रावी नदी के तट पर स्थित अपने फार्म पर अपना डेरा जमाया। सन् 1539 ई. में वह परम ज्योति में विलीन हुए।
Dr. Miss Sharad Singh


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श्रेष्ठ सिख कथाएं- लेखिका डॉ. शरद सिंंह


नानक देव जी के दोहे

मेरो मेरो सभी कहत हैं, हित सों बाध्यौ चीत।
अंतकाल संगी नहिं कोऊ, यह अचरज की रीत॥

मन मूरख अजहूं नहिं समुझत, सिख दै हारयो नीत।
नानक भव-जल-पार परै जो गावै प्रभु के गीत।।

एक ओंकार सतिनाम, करता पुरखु निरभऊ।
निरबैर, अकाल मूरति, अजूनी, सैभं गुर प्रसादि ।।

हुकमी उत्तम नीचु हुकमि लिखित दुखसुख पाई अहि।
इकना हुकमी बक्शीस इकि हुकमी सदा भवाई अहि ॥

सालाही सालाही एती सुरति न पाइया।
नदिआ अते वाह पवहि समुंदि न जाणी अहि ॥

पवणु गुरु पानी पिता माता धरति महतु।
दिवस रात दुई दाई दाइआ खेले सगलु जगतु ॥

धनु धरनी अरु संपति सगरी जो मानिओ अपनाई।
तन छूटै कुछ संग न चालै, कहा ताहि लपटाई॥

दीन दयाल सदा दु:ख-भंजन, ता सिउ रुचि न बढाई।
नानक कहत जगत सभ मिथिआ, ज्यों सुपना रैनाई॥


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