Dr. Varsha Singh |
स्थानीय दैनिक समाचार पत्र "आचरण" में प्रकाशित मेरा कॉलम "सागर साहित्य एवं चिंतन " । जिसमें इस बार मैंने लिखा है मेरे शहर सागर के युवा साहित्यकार नलिन जैन पर आलेख। पढ़िए और जानिए मेरे शहर के साहित्यिक परिवेश को ....
सागर : साहित्य एवं चिंतन
परम्परा को आगे बढ़ाने वाले कवि डॉ. नलिन जैन
- डॉ. वर्षा सिंह
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परिचय - डॉ. नलिन जैन
जन्मस्थान - सागर, मध्य प्रदेश
जन्मतिथि - 22 नवंबर 1966
शिक्षा - एमएससी (गणित), एम ए पूर्वार्द्ध (हिंदी), बी.ए.एम.एस.(आयुर्वेद),
डिप्लोमा इन लेब टेक्निशियन
व्यवसाय - थायरो केयर पैथोलॉजी फ्रेंचाइजी, थोक दवा विक्रेता
लेखनविधा - गद्य एवं पद्य
प्रकाशन - विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन
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सागर की साहित्यिक परिदृश्य में उन कवियों का अपना एक विशेष स्थान है, जो सतत् साहित्य सेवा में संलग्न है और अपनी पारिवारिक साहित्यिक परम्परा को आगे बढ़ा रहे हैं, उनमें डॉ. नलिन जैन का नाम विश्वासपूर्वक लिया जा सकता है। डॉ. नलिन जैन का जन्म 22 नवंबर 1966 को सागर नगर के चकरा घाट में हुआ था। उनके पिता वरिष्ठ साहित्यकार श्री निर्मल चंद ‘निर्मल’ स्वयं एक ख्यातनाम कवि हैं। अपने पिता से मिले साहित्यिक संस्कारों को आगे बढ़ाते हुए नलिन जैन ने साहित्य क्षेत्र में कदम रखा और छंदबद्ध, छंदमुक्त तथा नई कविताओं में अपनी कलम चलाई। उनकी कविताओं में सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक व आध्यात्मिक विषय देखे जा सकते हैं।
नलिन जैन ने गणित विषय में एम.एस.सी. तथा हिंदी में एम. ए. (पूर्वार्द्ध) तक शिक्षा प्राप्त करने के साथ ही आयुर्वेद में बी.ए.एम.एस. एवं डिप्लोमा इन लेब टेक्निशियन की उपाधि प्राप्त की है। व्यवसाय से थायरो केयर पैथोलॉजी फ्रेंचाइजी हैं तथा थोक दवा विक्रेता हैं। स्नेहवश लोग उन्हें ‘बिट्टी’ के नाम से भी पुकारते हैं। कवि नलिन जैन कविगोष्ठियों, कवि सम्मेलनों के साथ ही आकाशवाणी के विभिन्न केंद्रों से भी अपनी रचनाओं का प्रसारण करते आ रहे हैं। नलिन जैन की कविताओं में आमजन से जुड़ी समस्याओं के साथ ही शैलीगत स्तर पर छायावादी प्रभाव को स्पष्ट देखा जा सकता है। डॉ.नलिन के अनुसार उनका साहित्यिक सफ़र वर्ष 1985 से आरम्भ हुआ। वे मानते हैं कि उनके लेखन पर कवि ज्वालाप्रसाद ज्योतिषी एवं शिव कुमार श्रीवास्तव का गहरा प्रभाव है। नलिन जैन का एक काव्यसंग्रह ‘‘नलिन गीतिका’’ प्रकाशनाधीन है।
डॉ.नलिन जैन धर्म के श्रावक होने के कारण उनके विचारों पर जैन धर्म के दर्शन का गहरा प्रभाव है जो कि उनकी धर्म संबंधी रचनाओं में प्रकट होता है।
हम जैन धर्म श्रावक, संयम का मार्ग चलते
श्री जी की साधना कर आतम के गुण बदलते
मन में विचार शुभ हो हर पल प्रयत्न रहता
सच्चा चरित्र होवे शीतल स्वभाव कहता
जिन प्रभु की अर्चना संग निर्माण पथ को गढ़ते।
प्रत्येक प्राणी के जीवन में मां का महत्व सबसे अधिक होता है। मनुष्य भी अपनी जन्मदात्री के प्रति विनयशीलता के साथ स्वयं को मां के प्रति ऋणी अनुभव करता है। मां की उपस्थिति घर को पूर्णता और समग्रता प्रदान करती है। डॉ. नलिन जैन मां के प्रति अपनी संवेदनात्मक अभिव्यक्ति देते हुए इस प्रकार लिखते हैं-
मां का होना बड़ा सुहाना घर आंगन में
गौरैया भी फुदक फुदक मां के संग बैठे
तपी समीर घर द्वारे आकर हो शीतल
उसको भी मां लगे सुहानी जितनी मुझको
देह राग के रूपक भी मां खुद कर रचती
खाना खाया, जल्दी खा लो, कम क्यों खाते,
आम पुदीने की चटनी, अमरुद, सिंघाड़े
सभी बचाकर रखती वह मेरे आने तक।
Sagar: Sahitya ewam Chintan- Dr. Varsha Singh |
परिवार में मां के समान ही पिता का स्थान महत्वपूर्ण होता है। माता-पिता परिवार रूपी रथ के दो पहिए होते हैं। दोनों के प्रति बच्चों के मन में श्रद्धाभाव रहता है। पिता को भगवान तुल्य मानते हुए कवि नलिन अपनी भावनाओं को इन शब्दों में व्यक्त करते हैं -
भाग्य मेरे खिले यह देख सब हैरान रहते हैं
मेरे संग देखिए मेरे प्रिय भगवान रहते हैं
सभी कहते हैं सेवक हूं मगर यह सच नहीं बिल्कुल
सतत वे प्रीतमय रहकर मुझे वरदान देते हैं
यह एकाकार ऐसा है कि मैं उनमें समाया हूं
फ़क़त बस देखने में लोग दो इंसान कहते हैं ।
समाज को जाति, धर्म जैसे मुद्दों पर बंटते हुए देखना प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति के लिए कष्टप्रद होता है। जब सभी इंसान एक से हैं तो उनमें जाति या धर्म को ले कर मतभेद भी नहीं होना चाहिए क्योंकि मतभेद मनभेद को बढ़ावा देता है। कवि नलिन जातिगत भेदभाव को ले कर अपनी इस कविता में समभाव का आग्रह करते हैं-
स्वर्ण कलश मंदिर पर गढ़ते
श्रद्धा की यह पुष्प बिना सोचे समझे हर रोज चढ़ाते
क्यों हम करते रोज राम का ही अर्चन
जन्म लेते ही क्यों जातिगत हो जाते हैं
आओ मिलकर सोचे हम
युग बदल रहा है
बाएं से: डॉ. वर्षा सिंह, निर्मल चंद 'निर्मल', सीताराम 'भावुक' एवं डॉ. नलिन जैन |
मनुष्य ने समाज की संरचना करते हुए स्वयं के लिए अनेक बंध एवं उपबंध निर्मित किए हैं। ये बंधन कभी-कभी इस प्रकार प्रभावी हो जाते हैं कि मनुष्य स्वयं को डोरियों से बंधा अनुभव करने लगता है। इसी व्यवस्था पर काव्यात्मक टिप्पणी करते हुए डॉ. नलिन जैन लिखते हैं कि -
आदमी एक कठपुतली है
नाचता है डोरियों पर
कभी समाज प्रभावित डोरियां
कभी राजनीति प्रभावित डोरियां
कभी साहित्य प्रभावित डोरियां
और इनमें खो जाता है
नलिन जैन प्रकृति के प्रति कोमल अनुभूतियों से ओतप्रोत कविताओं का सृजन करते हैं। उनका प्रकृति चित्रण एक विशिष्ट दृश्यात्मकता लिए हुए होता है। उनकी यह कविता देखें -
पुरवाई के आह्वान पर
सागर ने यह आवेदन दिया
जलद चल पड़े जीवन देने
वृक्षों ने फट आगोश लिया
जीवन भूतल पर सजा रहे
जीवालय हरदम रहे हरा
रवि की भृकुटी तिरछी लगती
पर जलधारा से भरे धरा
भूतल कृतज्ञ है सागर का
जो जीवन को करता अनुपम
हर तरफ खुशी छा जाती है
जब आता है मेघों का क्रम
प्रज्जवला जेठ की तपती जब
सब दुबके हाहाकार करें
मेघों से प्रीत हरी होती
त्योहारों के व्यवहार बरें
नलिन जैन हिंदी भाषा को अपनी माता के समान मानते हैं। वह मातृभाषा हिंदी के प्रति अपनी भावनाएं इस प्रकार व्यक्त करते हैं-
वाणी मन का तार है जीवन का श्रृंगार
हम सब हिंदी पुत्र हैं मन मानस का सार
पाए हैं गुणगान सब हिंदी मन और माथ
भाषा माता की गुणी पिता सरीखी साख
हिंदी में व्यवहार से सहज बने सब काज
सभी समझे आपके मुख मुद्रा अंदाज
वर्तमान राजनीतिज्ञों को उनके कर्तव्य का स्मरण कराते हुए कवि नलिन उनसे आग्रह करते हैं कि जिन लोगों ने बिना किसी स्वार्थ के देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी, उनके जीवन से शिक्षा लेते हुए राजनीतिज्ञों को भी देशहित ओैर जनहित में कार्य करना चाहिए तथा ऐसे लोगों से दूर रहना चाहिए जो चाटुकार बन कर उन्हें भ्रमित करते हैं। ये कविता देखें -
भूल गए, तुम बलिदानों को भूल गए सारे क्रंदन
लगा के टीका अपने माथे करवाते हो अभिनंदन
झूठे सारे वादे करके खूब दिलासा देते हो
अभिनेताओं से भी ज्यादा कलाकारी कर लेते हो
भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, सर अपना धुनते होंगे
आज का भारत देख देख कर क्या-क्या वे गुनते होंगे
आजादी ये कहां खो गई चारा खाने वालों में
बोगस महंगी ठेके चमचे कलफ लगी दुकानों में
डॉ. नलिन जैन एक ऐसे संभावनाशील कवि हैं जो युवा कवियों के लिए एक आदर्श गढ़ सकते हैं।
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( दैनिक, आचरण दि. 01.12.2018)
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