Sunday, December 23, 2018

अलविदा शायर अख़लाक सागरी ! - डॉ. वर्षा सिंह

बायें से : डॉ. आचार्य, डॉ. मुस्तफा , डॉ. वर्षा सिंह, शायर अख़लाक़ सागरी और डॉ. विष्णु पाठक

       मेरे शहर सागर ने दुनिया भर में मशहूर अपने अजीज़ शायर अख़लाक़ सागरी को हमेशा के लिए चिरविदाई दे दी है। कल दि. 22.12.2018 को लम्बी बीमारी के बाद उनके शुक्रवारी, सागर स्थित निवास में उनका निधन हो गया। आज स्थानीय समाचारपत्र "आचरण" एवं "दैनिक भास्कर" के माध्यम से व्यक्त स्व.अख़लाक़ सागरी जी को मेरी अश्रुपूरित  श्रद्धांजलि !!




अलविदा शायर अख़लाक सागरी !
                           - डॉ. वर्षा सिंह
                     
         इश्क में चोट खाने की बात पर दिल छू लेने वाली शायरी करने वाले मशहूर शायर अख़लाक सागरी का शनिवार 22.12.2018 का उनके निवास स्थान शुक्रवारी वार्ड में निधन होने पर शायरी जगत ने अपना एक महत्वपूर्ण हीरा खो दिया। उनके निधन का समाचार पा कर दुख हुआ। वे लंबे समय से बीमार थे। वे 88 वर्ष के थे। उन्होंने उर्दू शायरी को एक अलग ही जमीन दी। उनकी शायरी की ख़ूबसूरती सीधे दिलों को छूने वाली है। अपने समय में मुशायरों में जान डालने वाले अख़लाक सागरी की ग़ज़लों के कई कैसेट जारी हुए। जैसे - बेवफा सनम, आजा मेरी जान, अफसाना, ये इश्क़-इश्क है, रात सुहानी, आ भी जा रात ढलने लगी, इश्क में क्या बताएं, लाइव इन फिजी आदि। अनेक फिल्मों में भी अख़लाक की शायरी को गानों के रूप में रखा गया। तीन बार लाल किले में मुशायरा पढ़ने का गौरव प्राप्त करने वाले अख़लाक सागरी अपने सहज स्वभाव के कारण वे साहित्य समाज में भी लोकप्रिय थे। मुझे भी उनके साथ अनेक मंच साझा करने का अवसर मिला था। 
इश्क में हम तुम्हें क्या बताएं, किस कदर चोट खाये हुए हैं।
मौत ने उनको मारा है और हम, ज़िन्दगी के सताये हुए हैं।
ऐ लहद अपनी मिट्टी से कह दे, दाग़ लगने न पाये कफ़न को ,
आज ही हमने बदले हैं कपड़े, आज ही हम नहाये हुए हैं।



                  इस ग़ज़ल से दुनिया भर में छा जाने वाले सागर नगर के शायर अख़लाक सागरी यूं तो किसी परिचय के मोहताज़ नहीं थे। अपनी मशहूर ग़ज़ल ‘‘ इश्क में हम तुम्हें क्या बताएं’’ कैसे बनी इसके बारे में अख़लाक सागरी ने एक अन्य साक्षात्कार में बताया था कि जब वे कक्षा 11वीं में पढ़ते , तब उन्हें एक लड़की से प्रेम हो गया था। यह प्रेम 2 साल तक परवान चढ़ा, फिर अचानक कुछ ऐसा हुआ कि लड़की ने उन्हें धोखा दे दिया। इससे उनके दिल को चोट पहुंची और यह ग़ज़ल बन गई।
     अख़लाक सागरी ने पुरस्कारों की राजनीति पर टिप्पणी की थी कि - ‘‘मेरा नाम तीन बार पद्म भूषण पुरस्कार के लिए भेजा गया लेकिन राजनीति के चलते मुझे यह अवार्ड नहीं मिल सका। इस बात का मलाल मुझे मरते दम तक रहेगा।’’
        पुरस्कारों के मामले में अख़लाक सागरी भले ही राजनीति के शिकार हो गए हों, लेकिन शायरी पसन्द करने वालों के दिलों में उनकी सत्ता आज भी कायम है। सागर शहर की जानी मानी संस्था श्यामलम् ने साहित्य परिक्रमा के अंतर्गत 26 जनवरी 2014 को अख़लाक सागरी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर केन्द्रित भव्य आयोजन करते हुए उन्हें सम्मानित भी किया था। उर्दू शायरी की मशहूर वेबसाइट ‘‘रेख्ता’’ और ‘‘वर्ड प्रेस’’ पर अख़लाक की शायरी आज भी रुचि से पढ़ी जाती है। अमेरिका के रेडियो चैनलस पर अख़लाक की शायरी को प्रसारित किया जाता है। उनकी शायरी की ख़ूबसूरती सीधे दिलों को छूती है। ये उदाहरण देखें -
बिगड़ो तो दमकती है जबीं और जियादा
तुम तैश में लगते हो हसीं  और जियादा
निकलोगे आप भर के जहां मांग में अफशां
झेंपेंगे सितारे तो वहीं और जियादा
आ जाओं कि होठों पे अभी जान है वरना
फिर वक़्त मेरे पास नहीं और जियादा
दैनिक आचरण 23.12.2018
     
         30 जनवरी 1930 को मोहम्मद इस्माइल हाज़िक़ एवं बशीरन बी के घर जन्में अख़लाक सागरी का पूरा नाम था - अख़लाक अहमद खान। यूं तो अख़लाक सागरी की औपचारिक शिक्षा मैट्रिक तक ही हो सकी थी लेकिन शायरी के प्रति उनके रुझान ने उन्हें उर्दू भाषा और साहित्य से जोड़े रखा। अख़लाक सागरी ने अपने एक साक्षात्कार में बताया था कि -‘‘ मैं अपने परिवार में तीसरी पीढ़ी का शायर हूं। बचपन से ही उर्दू और फारसी की शिक्षा मिली। लगभग 13 साल की उम्र में पहली बार ग़ज़ल की कुछ पंक्तियां लिखीं। खुश हो कर पिता जी को दिखायीं। पिता जी हंस कर बोले- अख़लाक, ग़ज़ल लिखी नहीं पढ़ी जाती है। इसके बाद ग़ज़ल पढ़ने में मेरा ऐसा मन लगा कि मैंने इसे अपनी ज़िन्दगी का मकसद बना लिया।’’
        अख़लाक सागरी की ग़ज़लों को बालीवुड गायक सोनू निगम, अनुराधा पौडवाल से ले कर गुरदास मान, जानी बाबू कव्वाल, पंकज उधास, मनहर उधास, मुन्नी बाई, अयाज़ अली, पिनाज़ मसानी, साबरी ब्रदर्स, मज़ीद शोला और देश की सीमा-पार के अताउल्ला खां जैसे प्रसिद्ध गायकों ने अपनी आवाज़ दी।
        उर्दू शायरी की परम्परागत शैली अख़लाक की शायरी में देखी जा सकती है, विशेष रूप से मुहब्बत पर कही गई उनकी ग़ज़लों में।- 
मुहब्बत करने वाले इस कदर मजबूर ही देखे।
कि दिल गमगीं हों लेकिन शक्ल से मसरूर ही देखे।
हंसी माना लबों पर थी मगर जब गौर से देखा,
तो दिल में आशिकों के सैंकड़ों नासूर ही देखे।
गिला इक तुझसे क्या, तेरे तकब्बुर का कि हमने तो,
हसीं जितने भी देखे हैं, बड़े मगरूर ही देखे।
         अख़लाक सागरी दीनहीन, लाचार इंसानों को देख कर द्रवित हो उठते थे। मुझे याद है कि एक बार जबलपुर से लौटते समय कटनी स्टेशन पर एक दिव्यांग भिखारी को देख कर उनकी आंखों में आंसू आ गए थे और उन्होंने कहा था कि- ‘‘हमारे देश से ये गरीबी और लाचारी क्यों नहीं जाती।’’ उनके यही भाव उनके अनेक शेरों में उतर कर आये हैं, जैसे उनकी एक मशहूर गजल है, जिसमें उन्होंने देश की दशा पर तीखा कटाक्ष किया है-
फुटपाथ पर पड़ा था वो कौन था बेचारा।
भूखा था कई दिन का दुनिया से जब सिधारा।
कुर्ता उठा के देखा, तो पेट पर लिखा था
सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा।
दैनिक भास्कर दिनांक 23.12.2018

        अख़लाक जी की हमेशा यही इच्छा रहती थी कि सभी परस्पर मिल-जुल कर चैन और अमन से रहें। ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम्’’ के शाश्वत विचार रखने वाले वरिष्ठ शायर अखलाक सागरी ने हमेशा यही दुआ की, कि लोग धार्मिक संकीर्णता से ऊपर उठ कर आपसी सद्भाव के माहौल में रहें -
अब दिवाली में दिये ऐसे जलाना चाहिये।
ईद की खुशियां भी जिनमें जगमगाना चाहिये।
सौंप कर मुस्लिम के हाथों में दशहरे का जुलूस,
ताजिया हिन्दू के कंधे पर उठाना चाहिये।
      अखलाक सागरी ने आत्मसम्मान के साथ जीवन जिया। यदि वे चाहते तो बालीवुड की चकाचौंध में अपनी शायरी को गिरवी रख कर अपार धन कमा सकते थे, किन्तु उन्होंने अपने शहर, अपने आत्मीय जन और अपने आत्मसम्मान को चुना तथा सागर में ही अपनी अंतिम सांस ली। आज उनका एक शेर बार - बार याद आ रहा है -
‘अखलाक’ सिर्फ नाम का अखलाक ही नहीं,
दुश्मन से भी मिलेगा तो इक यार की तरह।“
   अख़लाक सागरी को मेरी अश्रुपूरित विनम्र श्रद्धांजलि ! अलविदा शायर अखलाक सागरी !!
दैनिक भास्कर दिनांक 23.12.2018


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दिनांक 23.12.2018, #आचरण , #दैनिक_भास्कर , #अखलाक_सागरी

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