Saturday, February 9, 2019

सागर : साहित्य एवं चिंतन 42 .... भक्तिरस के कवि बिहारी सागर - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh
 स्थानीय दैनिक समाचार पत्र "आचरण" में प्रकाशित मेरा कॉलम "सागर साहित्य एवं चिंतन " । जिसमें इस बार मैंने लिखा है मेरे शहर सागर के कवि बिहारी सागर पर आलेख। पढ़िए और जानिए मेरे शहर के साहित्यिक परिवेश को ....

सागर : साहित्य एवं चिंतन

          भक्तिरस के कवि बिहारी सागर
                             - डॉ. वर्षा सिंह
                                         
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परिचय :- बिहारी सागर
जन्म :- 04 अप्रैल 1952
जन्म स्थान :- सागर नगर
पिता एवं माताः- स्व. रामप्रसाद सकवार एवं स्व. रामबाई सकवार
लेखन विधा :- पद्य
प्रकाशन :- पांच काव्य संग्रह प्रकाशित
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          सागर के काव्यजगत् में अनेक कवि ऐसे हैं जो हिन्दी और बुंदेली में भक्ति रचनाएं लिखते हैं। ये रचनाएं लोक के धर्मप्रवण मानस को न केवल प्रभावित करती हैं अपितु इनमें निहित शब्दों की सादगी इन्हें लोकरुचि में ढाल देता है। ऐसी पद्य रचनाओं की परम्परा में  कवि बिहारी सागर का नाम उललेखनीय है। सागर नगर के केशव गंज वार्ड में 04 अप्रैल 1952 को जन्मे बिहारी सागर को धार्मिक रुचि अपनी माता स्व.रमाबाई सकवार से मिली। अपने पिता स्व. रामप्रसाद सकवार से उन्होंने सादा जीवन जीने की शिक्षा पाई। अपने उसूलों पर चलते हुए जीवन व्यतीत करने की प्रतिबद्धता में उनकी पत्नी रामप्यारी सकवार का सदा सहयोग रहा है। बिहारी सागर की बड़े भाई स्व. बालमुकुंद ‘नक्श’ एक अच्छे संगीतकार थे। उनके गीत ग्रामोफोन रिकॉर्ड में भी रिकॉर्ड हुए थे। बालमुकुंद ‘नक्श’ लोकगीत गायन में भी विशेष दखल रखते थे तथा उन्हें शायरी का भी शौक था। बिहारी सागर मानते हैं कि अपने बड़े भाई की साहित्यिक अभिरुचि को देख कर ही साहित्य के प्रति उनका प्रेम  जागा। कवि डॉ सीताराम श्रीवास्तव ‘भावुक’ भी यह मानते हैं कि “कविवर बिहारी सागर को अपने बड़े भाई स्वर्गीय बालमुकुंद जो बुंदेलखंड के बहुत बड़े शायर थे, उनसे लिखने की प्रेरणा मिली है।“
बिहारी सागर के अब तक पांच काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। जिनके नाम हैं- ‘टेसू के फूल’, ‘फुलवारी’, ‘मधुसूदन’,‘बुंदेली बहार’ और ‘बुंदेली गूंज’। उनकी रचनाएं पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। साथ ही आकाशवाणी के सागर एवं छतरपुर केन्द्रों से वे अनेक बार काव्यपाठ कर चुके हैं। साहित्यिक मंचों तथा गोष्ठियों में सदैव भागीदार रहते हैं। इसके साथ ही वे साहित्य एवं सामाजिक संस्थाओं में सक्रिय योगदान देते रहते हैं।
           बिहारी सागर मूलतः गीतकार हैं। हिंदी और बुंदेली दोनों में ही गीत और भजन लिखते हैं। उनके लिखे हुए भजनों में गेयता के तत्व प्रचुर मात्रा में होते हैं। भक्ति पर आधारित काव्य संग्रह ‘‘बुंदेली गूंज’’ में लोक धुनों में बंधे हुए वे गीत हैं जो पाठकों के मन-मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव छोड़ते हैं। जैसे, बुंदेलखंड अंचल में नर्मदा का विशेष महत्व है। नर्मदा को यहां माता के समान पूज्य माना जाता है तथा नर्मदा स्नान एक पुण्य कार्य की तरह किया जाता है नर्मदा पर आधारित उनका गीत जिस दर्शन और नदी के प्रति आत्मीयता को व्यक्त करता है, उसे उनकी इन पंक्तियों में देखा जा सकता है-
चलो नर्मदा धाम बावरे
चलो नर्मदा धाम....
अमर कंठ से निकरी नर्मदा
पग पग बने पुण्य धाम....बावरे चलो
लहंगा फरिया पान सुपारी
भक्त चढ़ाए सुबह शाम....बावरे चलो
आरती वंदना निशदिन गावे
जपत माई को नाम....बावरे चलो
माई के पर कम्मा कर लो
छोड़ो मोह तमाम....बावरे चलो
माई नर्मदा उल्टी बहत हैं
महिमा अजब तमाम....बावरे चलो
शरण तुम्हारी आए बिहारी
स्वर्ग के मिलहें धाम....बावरे चलो

Sahitya avam Chintan - Dr. Varsha Singh

           धार्मिक जीवन में राधा और कृष्ण का दार्शनिक महत्व भी है। राधा की कल्पना प्रेम, अपनत्व और कृष्ण की महत्ता को रेखांकित करने वाली स्त्री के रूप में की जाती है। ऐसी राधारानी के प्रति अपने भावों को व्यक्त करते हुए बिहारी सागर ने यह भजन लिखा है-
जगत महारानी राधा रानी
इनकी अमर कहानी.....
मधुबन में जे चले झकोरा
चुनर उड़त है धानी.....जगत महारानी
वंशी श्याम की जब-जब बाजी
हृदय में जा समानी.....जगत महारानी
भूल गई पनघट की डगरिया
भर ने पाई पानी.....जगत महारानी
देव तुम्हारी महिमा गावे
तुम जग की कल्याणी.....जगत महारानी
कहत बिहारी प्रीत न्यारी
मन में राधा समानी.....जगत महारानी

             बुंदेली समाज में हास्य-व्यंग का विशेष स्थान है। जीवनयापन के लिए कठोर रम करने वाले मजदूर, किसान और दिन-रात घर के कामों में जुटी रहने वाली गृहणियां हास्य-व्यंग्य के माध्यम से ही अपने मन की थकान दूर करती हैं। बुंदेल के परिवेश के इसी परिवेश को ध्यान में रखते हुए बिहारी सागर ने हास्य गीत भी लिखे हैं। उदाहरण के लिए यह गीत देखिए-
डार के कौसें बना दई कड़ी
मोसे ननदिया खूबई लड़ी।
पुरा परोस में दए जा हल्ला
सुन रई परोसन खड़ी खड़ी.....मोसे ननदिया
मोसे के रई खूबई निछोई
अपनी बात पे खूबई अड़ी.....मोसे ननदिया
दुफर की बेरा जा रोटी ने खावे
सुनियो मोरी जिठानी बड़ी.....मोसे ननदिया
सास नदिया मोसे भुखरी
बिछोना डारके वे तो पड़ी.....मोसे ननदिया
आए ‘बिहारी’ लुवावे उनखां
देख के धना अटा पे चढ़ी.....मोसे ननदिया

               बिहारी सागर ने ऋतु पर आधारित गीत भी लिखे हैं जिनमें बुंदेली बोली की छटा और भी सुंदर ढंग से उभर कर आई है क्योंकि इनमें ऋतुवर्णन के साथ भक्तिभावना को भी पिरोया गया है। यह गीत देखें-
भादों की छाई घटा काली
भगवन की महिमा निराली।
पहरेदार सबरे सो रहे
बरसे बदरिया काली....भगवन की
बादल तड़के बिजली चमके
झूमे हवा डाली डाली....भगवन की
बेड़ीं खुल गईं तारे खुल गए
खुल गई जाली जाली....भगवन की
ले कै वसुदेव उनखों चले हैं
जमुना की बाढ़ है निराली....भगवन की
देखत पूर वसुदेव घबराने
प्रभु के चरण संभाली....भगवन की
नंद बाबा कैं आए ‘बिहारी’
हो रही बात अब निराली....भगवन की

                 आज जब व्यक्ति अपने जीवन में बहुत अधिक व्यस्त हो चला है और उसके पास इतना भी समय नहीं रहता है कि वह दो घड़ी के लिए दीन-दुनिया भुला कर भक्तिरस में डूब सके तब साहित्य में भक्ति की कविताओं का कम लिखा जाना स्वाभाविक है। यथार्थवादी युग में यथार्थ कलेवर वाली कविताओं के प्रति कवियों का रुझान अधिक रहता है। भक्तिकाव्य के लिए कठिन हो चले इस समय में बिहारी सागर जैसे कवियों का भजन और प्रभुवंदना लिखना इस बात की ओर संकेत करता है कि जीवन में लोकाचारी धार्मिक परम्पराओं की भांति साहित्य में भी भक्तिकाव्य अभी गतिमान है। यूं तो बिहारी सागर अन्य विषयों पर भी गीत रचते हैं किन्तु उनका भक्ति काव्य ही उन्हें स्थाई पहचान देगा।
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( दैनिक, आचरण  दि. 06.02.2019)
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