Wednesday, March 20, 2019

कलागुरु विष्णु पाठक को श्रद्धांजलि

Dr. Varsha Singh

      दिनांक 10.03.2019 को स्थानीय आदर्श संगीत महाविद्यालय के प्रांगण में सागर नगर की अग्रणी संस्था श्यामलम् के संयोजकत्व में आयोजित श्रद्धांजलि सभा में हम सभी नगर के साहित्यकारों, संस्कृतिकर्मियों, कलाकारों आदि ने कलागुरु श्रद्धेय विष्णु पाठक जी को अपनी भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित की।










        स्मृतियों में अभी वे पल ताज़ा हैं जब 19 जून 2016 को बरियाघाट स्थित लोक कला अकादमी  पद्माकर भवन में कला गुरू विष्णु पाठक का 81 वां जन्मदिन मनाया गया था। इस अवसर पर सभी कलाकारो एवं नगर के प्रतिष्ठित नागरिक कला गुरू का सम्मान किया था ।
       तब पाठक सर ने सभी कलाकारों को संबोधित करते हुए कहा था कि युवा पीढ़ी को बुंदेलखण्ड की संस्कृति का संरक्षण कर देश और विदेश में सम्मान बढ़ाना है। उन्होंने देश विदेश फिल्म, टेलीविजन पर युवाओं द्वारा प्रस्तुत तथा राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय कामनवेल्थ लोक समारोह, अंतरराष्ट्रीय कलाओं में युवा कलाकारों द्वारा ५० से अधिक पुरूस्कार लेकर डॉ. हरीसिंह गौर विवि लोक कला अकादमी तथा बुंदेलखण्ड के लोक नृत्यों में स्वयं अपना कीर्तिमान स्थापित किया। आज भी फिल्मों में हमारे कलाकार कार्यरत है और अपनी सशक्त भूमिका निभा रहे है और आने वाली युवा पीढ़ी को इस परंपरा निभा रहे है। पाठक सर ने याद दिलाया था कि देश का पहला परफारर्मिंग आर्टस का हमारे विश्वविद्यालय ने खोला और सागर की प्रतिभाओं को देश और देश के बाहर श्रेष्ठ पद प्रदर्शन का अवसर और अनेक कीर्तिमान स्थापित किये। युवाओं को नि:शुल्क कला का प्रशिक्षण देने वाली एकमात्र संस्था है। बुंदेलखण्ड के बधाई लोक नृÞत्य जो १९८७ में सोवियत रूस गया था उसके बाद सागर में बधाई के २५ से अधिक सांस्कृतिक दल बन गये है और ये बुंदेलखण्ड के राजदूत के तरह हमारा गौरव बढ़ा रहे है।
               गुरू विष्णु पाठक ने १९५८ में दिल्ली में प्रथम पुरूस्कार लेकर बधाई लोक नृत्य की संरचना की। और उसके बाद आज की युवा पीढ़ी उसी परंपरा को निभा रही है। सागर की संस्कृति और कला के लिए संग्राहालय का भवन ‘स्मृति’ बनकर तैयार हो गया है। जिसमें हमारी कला और संस्कृति का संरक्षण हमारी युवा  पीढ़ी को प्रेरणा देता रहेगा।





        जिस तरह श्रद्धेय स्व. विष्णु पाठक जी हमारी स्मृतियों में सदैव विद्यमान रहेंगे, उसी तरह उनकी स्मृति में श्यामलम् द्वारा आयोजित श्रद्धांजलि सभा अविस्मरणीय रहेगी।






         06 मार्च 2019 के प्रथम पहर में सागर नगर ही नहीं वरन् देश के जानेमाने कलाविद् विष्णु पाठक जी ने हमसे सदा के लिए विदा ले ली थी। सागर को संस्कृति एवं कला जगत में विशेष पहचान दिलाने वाले सहज, सरल और सहृदयतापूर्ण व्यक्तित्व के धनी कलागुरु श्रद्धेय विष्णु पाठक जी के निधन का समाचार स्तब्ध करने वाला था।  उनके निधन से उत्पन्न हुई क्षति की पूर्ति संभव नहीं है। विष्णु पाठक जी का पितातुल्य स्नेह सदैव मुझे और बहन डॉ. सुश्री शरद सिंह को मिलता रहा है। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे। मेरी इन चार पंक्तियों के साथ उन्हें अश्रुपूरित कोटिशः नमन....

आंखों में आंसू की अविरल धारा है।
सागर का इक अतुल सपूत सिधारा है।
विष्णु नाम को किया सार्थक था जिसने
कला जगत का निश्चय वह ध्रुव तारा है।

     ईश्वर से उनकी आत्मा की शांति हेतु प्रार्थना है। उन्हें मेरी भावपूर्ण विनम्र श्रद्धांजलि !





19 जून 1935 को जन्मे पाठकजी 84 साल के थे। सागर ही नहीं प्रदेश और उच्च शिक्षा जगत में सांस्कृतिक क्षेत्र में विशेष पहचान रखने वाले विष्णु पाठक को देश-दुनिया में कई मंचों पर सम्मान मिला।
लगभग 83 वर्षीय विष्णु पाठक डॉ. हरीसिंह गौर विवि सागर के खेल एवं युवा कल्याण विभाग में लंबे समय तक अध्यक्ष रहे। उनके कार्यकाल में विवि की लोक नृत्य की टीम ने लगातार 35 वर्ष राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में प्रथम स्थान प्राप्त किया। विवि की सेवाओं से सेवानिवृत होने के बाद वे स्वयं की लोककला अकादमी संचालित कर युवाओं को लोक नृत्य का प्रशिक्षण दे रहे थे। पाठक ने लोक नृत्य की विवि की टीमों को लेकर रूस सहित कई अन्य देशों की यात्रायें की। भारत के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री सहित अन्य जनप्रतिनिधियों ने उन्हें सम्मानित किया।

कलागुरु विष्णु पाठक जी का निधन सागर ही नहीं वरन् देश-दुनिया के लोककला जगत के लिए अपूरणीय क्षति है। उन्होंने बुंदेली लोककला से सारी दुनिया को परिचित कराया और कलाकारों को सम्मानित स्थान दिलाया। मेरा सौभाग्य रहा कि मुझे पाठक जी का स्नेह-वात्सल्य मिला। उनका अब न होना मेरे मन के लिए स्वीकार करना अत्यंत पीड़ादायी है। मेरी आत्मिक विनम्र श्रद्धांजलि।
- डॉ. शरद सिंह, लेखिका एवं समाजसेवी
कलागुरु विष्णु पाठक जी के निधन के समाचार ने शोक संतप्त कर दिया है। सागर की कला संस्कृति के क्षेत्र में उनके निधन से उत्पन्न हुई रिक्तता की पूतिज़् संभव नहीं है। विष्णु पाठक जी का पितातुल्य स्नेह सदैव मुझे और बहन डॉ. सुश्री शरद सिंह को मिलता रहा है। ईश्वर उनकी आत्मा को
शांति प्रदान करे।
- डॉ. वर्षा सिंह, कवियत्री






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