विश्व पुस्तक दिवस (23 अप्रैल 2019) पर विशेष ग़ज़ल
किताबें
- डॉ. वर्षा सिंह
- डॉ. वर्षा सिंह
दुख- सुख की हैं सखी किताबें।
लगती कितनी सगी किताबें।
लगती कितनी सगी किताबें।
जब-जब उभरे घाव हृदय के,
मरहम जैसी लगी किताबें।
मरहम जैसी लगी किताबें।
असमंजस की स्थितियों में
सदा रहनुमा बनी किताबें।
सदा रहनुमा बनी किताबें।
जीवन की दुर्गम राहों में,
फूलों वाली गली किताबें।
फूलों वाली गली किताबें।
मैं, तुम, सारी दुनिया सोये,
हरदम रहती जगी किताबें।
हरदम रहती जगी किताबें।
फ़ुरसत हो तो तुम पढ़ लेना
मैंने भी कुछ लिखी किताबें ।
मैंने भी कुछ लिखी किताबें ।
"वर्षा" की हमसफ़र हमेशा
ख़्वाबों में भी बसी किताबें।
ख़्वाबों में भी बसी किताबें।
वाह !बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteसादर
बहुत बहुत धन्यवाद
Deleteवाह!! सुन्दर ग़ज़ल।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद
Deleteहार्दिक आभार
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