Saturday, April 27, 2019

National Tell a Story Day नेशनल टेल ए स्टोरी डे (राष्ट्रीय कथा कहन दिवस ) पर डॉ. विद्यावती "मालविका" के विचार

Dr. Varsha Singh
आज नेशनल टेल ए स्टोरी डे है। बचपन में दादा-दादी और नाना-नानी से कहानियां हम सभी ने अक्सर सुनीं होंगी। लेकिन अब यह आधुनिक और डिजिटल होती दुनियां में गुम हो गई हैं। इनकी जगह कार्टून और मोबाइल वीडियो ने ले ली है। यही कारण है कि न अब वो कहानियां सुनाने वाले दादा-दादी और नाना-नानी रहे। न ही इनको सुनने वाले बच्चे। इसका असर बच्चों के बचपन पर भी दिख रहा है। दादी-नानी की कहानियांं पौराणिक संदर्भों पर केंद्रित होती थी। ये कहानियां बहुत ज्ञानवर्धक थीं। स्कूल जाने के पहले ही बच्चों को ये कहांनियां कंठस्थ हो जाती थीं, जो उसे स्कूल में शिक्षा के दौरान बहुत सहायक होती थीं।

बचपन की कहानियों में मनोरंजन के साथ संस्कारों की पाठशाला भी होती थी, इनके गुम होने से बच्चे संस्कारों से दूर होते जा रहे हैं। दरअसल यह किस्से कहानियां बच्चों में संस्कारों और आदर्शों को विकसित करती हैं। जो अब गुम हो रहे हैं। कहानियां बंद होने के पीछ एक बडा़ कारण संयुक्त परिवार खत्म होना भी है। जिस कारण बच्चे दादा-दादी और नाना-नानी से दूर हो गए है।
National Tell a Story Day नेशनल टेल ए स्टोरी डे (राष्ट्रीय कथा कहन दिवस ) संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रत्येक वर्ष 27 अप्रैल को मनाया जाता है।  सभी उम्र के लोगों को नेशनल टेल ए स्टोरी डे पर सभी प्रकार की कहानियों को साझा करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।  चाहे वह किसी पुस्तक से पढ़ा गया हो, आपकी कल्पना से या बचपन की याद से एक वास्तविक कहानी। 27 अप्रैल की तारीख दोस्तों और परिवार को इकट्ठा करने और उन कहानियों को साझा करने का दिन है।

 भारत में भी बच्चों के लिए विशेष कहानी कहने के साथ देश भर के पुस्तकालय नेशनल टेल ए स्टोरी डे में भाग लेते हैं।

 कहानी सुनाना एक प्राचीन प्रथा है जिसका उपयोग एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक ज्ञान को सौंपने के लिए किया जाता है।  परिवार की परंपराओं, इतिहास और लंबे समय से सुनाई जा रही अन्य ज्ञानवर्धक कहानियों को  साझा करने पर शैक्षिक के साथ-साथ मनोरंजक हो सकता है। वास्तव में बहुत ही बेहतरीन कहानियों में से कुछ वास्तविक जीवन के अनुभव से आती हैं।

 कई लोग अपने दादा-दादी को सुनने का आनंद लेते हैं । जब बचपन से किशोरावस्था तक की यात्रा के  बारे में अपनी कहानियों को साझा करते हैं।  परिवार, दोस्तों और प्रियजनों के साथ कहानियां कहने में समय बिताना सभी के लिए एक-दूसरे से सीखने, याद रखने और साथ-साथ बढ़ने के लिए एक बहुत अच्छा जरिया है।

 नेशनल टेल ए स्टोरी डे पर, यह मायने नहीं रखता कि कहानी एक छोटी कहानी है या लंबी कहानी, कल्पना या गैर-कहानी, एक लंबी कहानी या लोककथा।  यह उन सभी के लिए एक ऐसा दिन है जब हम परस्पर अपनी कहानियों को बताने के लिए प्रोत्साहित करते हैं और यहां तक ​​कि #NationalTellAStoryDay का उपयोग करके उन्हें सोशल मीडिया पर साझा करते हैं।
http://epaper.patrika.com/c/38879359

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पत्रिका (राजस्थान पत्रिका समूह का मध्यप्रदेश संस्करण) समाचारपत्र सदैव नये नये विषयों के साथ साथ परम्परागत विषयों को भी प्राथमिकता देता है।
आज दिनांक 27.04.2019 को "पत्रिका" समाचारपत्र के सागर संस्करण में ' नेशनल टेल ए स्टोरी डे ' पर मेरी माताश्री डॉ. विद्यावती "मालविका" के विचार प्रकाशित हुए हैं....
डॉ. श्रीमती विद्यावती ‘मालविका’ के विचार

वरिष्ठ साहित्यकार एवं सेवानिवृत्त व्याख्याता डॉ. श्रीमती विद्यावती ‘मालविका’ मानती हैं कि बच्चों में संस्कारों के प्रवाह और कल्पनाशक्ति के विकास में नानी-दादी की कहानियों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। मेरी दोनों बेटियां वर्षा सिंह और शरद सिंह यदि आज ख्यातिनाम साहित्यकार हैं तो इसमें उनके नानाजी द्वारा उन्हें सुनाई गईं उन कहानियों का सुपरिणाम है जिन्होंने इन दोनों बच्चियों में कल्पनाशीलता का विकास किया। नानी-दादी की कहानियां ही हैं जो बच्चों में उनके बालपन से ही उनके भीतर संवेदनाएं जगाती हैं और रोचक ढंग से परहित का पाठ पढ़ाती हैं। किन्तु मुझे आजकल का वातावरण देख कर दुख होता है कि आज के बच्चे पल भर के लिए भी अपनी नानी-दादी के पास नहीं बैठना चाहते हैं। वे या तो पढ़ाई में जुटे रहते हैं या फिर मोबाईल में डूबे रहते हैं। कहानियां बच्चों को संस्कार देती हैं।हमें याद रखना चाहिए कि जो संस्कार बच्चों को अपने बुजुर्गों से मिलते हैं, वही उनके जीवन में स्थाई प्रभाव डालते हैं। यह परम्परा बनी रहनी चाहिए।"
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