Dr. Varsha Singh |
सागर : साहित्य एवं चिंतन
पुनर्पाठ : ‘जनसंख्या पर रोक लगाएं’ काव्य संग्रह
- डॉ. वर्षा सिंह
आज हम सोचते हैं कि मंहगाई तेजी से बढ़ रही है। वस्तुतः मंहगाई बढ़ रही है तो इसलिए कि उपभोक्ता की तुलना में उत्पादन की उपलब्धता कम होती जा रही है। बेरोजगारी बढ़ रही है तो इसलिए कि रोजगार के अवसरों की अपेक्षा बेरोजगारों की संख्या बहुत अधिक है। अब समय है कि जब हम प्रत्यक्ष दिखाई देने वाले कारणों को हाशिए पर रख कर उस कारण की ओर अपना ध्यान केन्द्रित करें जो इन सभी समस्याओं के मूल में मौजूद है। यह मूल कारण है हमारे देश में विस्फोटक होती जनसंख्या। डाॅ. सीरोठिया ने इसी मूल कारण को अपने काव्यात्मक पदों का आधार बनाया है, जो काव्य संग्रह में संग्रहीत हैं। डाॅ. सीरोठिया ने पाया कि आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में तथा कम पढ़े-लिखे या अशिक्षित तबके में जनसंख्या नियंत्रण के प्रति जागरूकता का सर्वथा अभाव है। वे अपनी आर्थिक स्थिति, अपने संसाधन और अपने स्वास्थ्य को अनदेखा करते हुए संतानों को जन्म देते रहते हैं। भले ही उन संतानों का लालन-पालन कर पाना उनके लिए संभव नही हो पाता है। यही संतानें अभावों के बीच भी जब किसी तरह पल-बढ़ जाती हैं तो अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए अपराध की दुनिया से जुड़ जाती है। यदि आज देश में अपराध की दर बढ़ रही है तो उसके मूल में भी असीमित जनसंख्या ही है। इसीलिए डाॅ. सीरोठिया अपनी कविता के माध्यम से आग्रह करते हैं कि -
अनचाही सब विपदाओं की, इन सामाजिक विषमताओं की ।
जड़ में बढ़ती आबादी है, गला घोंटती ममताओं की ।।
वातावरण बदलना होगा, फिसला कदम सम्हलना होगा।
जनसंख्या के भस्मासुर से, आप बचें, यह देश बचाएं।।
आओ मिल कर कदम बढ़ाएं, जनसंख्या पर रोक लगाएं।।
पढ़ा- लिखा तबका तो जनसंख्या नियंत्रण के महत्व को समझने लगा है। लेकिन अशिक्षित वर्ग संतान के पैदा होने को ईश्वर की इच्छा मान कर स्वीकार करता चला जाता है। अशिक्षा के कारण उसका इस ओर ध्यान ही नहीं जात कि जिस ईश्वर ने प्रजनन क्षमता दी है उसी ईश्वर ने प्रजनन क्षमता को नियंत्रित करने की बुद्धि भी प्रदान की है। धर्म ग्रंथ भी यही कहते हैं कि कार्य वही किए जाएं जिनसे सबका भला हो। इस तथ्य को डाॅ. सीरोठिया ने अपनी इस कविता में बड़े सुंदर ढ़ंग से सामने रखा है -
सब धर्माें का धर्म यही है, सब ग्रंथों का मर्म यही है।
भला हो जिसमें मानवता का , जीवन में सद्कर्म वही है।।
बिना विचारे काम जो करते, धर्मों को बदनाम जो करते
जीवन में सच को स्वीकारें, झूठी मान्यताएं ठुकराएं।।
आओ मिल कर कदम बढ़ाएं, जनसंख्या पर रोक लगाएं।।
डाॅ. सीरोठिया बाल विवाह के विरुद्ध भी आवाज उठाते हैं और कहते हैं -
रुक सकती है हर बरबादी, कम कर लें बढ़ती आबादी।
लड़की की हो उमर अठारह, लड़के की इक्कीस में शादी।।
समीक्ष्य कृति |
एक चिकित्सक होने के नाते डाॅ. सीरोठिया ने जनसंख्या नियंत्रण के लिए अपनाए जाने वाले साधनों को भी अपने काव्य में प्रमुखता से स्थान दिया है। जैस -
जब चाहें तब बच्चा पाएं, अनहोनी पर ना झल्लाएं।।
खाने की गोली लें या फिर, काॅपर टी, कंडोम लगाएं।।
आओ मिल कर कदम बढ़ाएं, जनसंख्या पर रोक लगाएं।।
वस्तुतः जनसंख्या नियंत्रण एक ऐसा मुद्दा है जिस पर समय रहते विचार करना और कदम उठाना अति आवश्यक है। इसके लिए जनसंख्या नियंत्रण अभियान को एक बार फिर जमीनी स्तर तक ले जाने की जरूरत है। डाॅ. सीरोठिया अपनी कविताओं के माध्यम से आमजनता से आग्रह करते हैं कि अब ‘‘हम दो हमारे दो’’ से काम नहीं चलने वाला है। अब समय आ गया है कि हम दो हमारा एक होना चाहिए। उनकी ये पंक्तियां देखें -
हम दो हों पर एक हमारा! नई सदी का हो यह नारा !
इसी मंत्र की शक्ति में ही -मुस्काता कल छिपा हमारा।।
अपने मधुर गीतों एवं दोहों के लिए सुविख्यात डाॅ. श्याम मनोहर सीरोठिया अपने इस नवीन संग्रह ‘ जनसंख्या पर रोक लगाएं’’ के द्वारा भी जनमानस में अपना विशेष स्थान बनाएं यही कामना है। साथ ही यह अपेक्षा है कि यह अत्यंत जरूरी काव्य संग्रह जन-जन तक पहुंचे, क्योंकि इतिहास गवाह है कि वैदिक काल से आज तक ज्ञान एवं नीति की बातें जनामानस ने पद्य के रूप में ही आत्मसात की हैं। वेद- महाकाव्य और रामचरित मानस जैसे ग्रंथ इसके उत्तम उदाहरण हैं। इसीलिए पुनर्पाठ करते हुए मुझे डाॅ. श्याम मनोहर सीरोठिया की यह पुस्तक महत्वपूर्ण लगी।
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पुनर्पाठ @ साहित्य वर्षा |
( दैनिक, आचरण दि. 16.07.2020)
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