Dr. Varsha Singh |
पानी बचाओ, झिन पानी बचाओ
- डॉ. वर्षा सिंह
एक दिना बे हते जब हमई ओरें शान से कहत ते के -
बुंदेलन की सुनो कहानी, बुंदेलन की बानी में
पानीदार इते हैं सबरे, आग इते के पानी में
अब जे दिना आ गए हैं के पानीदार तो सबई हैं, पर पानी खों तरस रए। ताल, तलैया, कुआ, बावड़ी, बंधा-बंधान सबई सूखत जा रये। अपने बुंदेलखण्ड में पानी की कमी कभऊ ने रही। बो कहो जात है न, के -
इते ताल हैं, उते तलैया, इते कुआ, तो उते झिरैया।।
खेती कर लो, सपर खोंर लो, पानी कम न हुइये भैया।।
मगर पानी तो मानो रूठ गओ है। औ रूठहे काए न, हमने ऊकी कदर भुला दई। हमें नल औ बंधान से पानी मिलन लगो, सो हमने कुआ, बावड़ी में कचरा डालबो शुरू कर दओ। हम जेई भूल गए के जे बेई कुआ आएं जिनखों पूजन करे बगैर कोनऊ धरम को काम नई करो जात हतो। कुआ पूजबे के बादई यज्ञ-हवन होत ते। नई बहू को बिदा की बेरा में कुआ में तांबे को सिक्का डालो जात रहो और रस्ते में पड़बे वारी नदी की पूजा करी जात हती। जो सब जे लाने करो जात हतो के सबई जल के स्रोतन की इज्ज्त करें, उनको खयाल रखें।
पानी से नाता जोड़बे के लाने जचकी भई नई-नई मां याने प्रसूता को कुआ के पास ले जाओ जात है औ कहूं-कहूं मां के दूध की बूंदें कुआ के पानी में डरवाई जात हैं। काए से के जैसे मां अपने दूध से बच्चे को जिनगी देत है, ऊंसई कुआ अपने पानी से सबई को जिनगी देत है। सो, प्रसूता औ कुआ में बहनापो सो बन जात है। पर हमने तो मानो जे सब भुला दओ है। लेकिन वो कहो जात है न, सुबह को भूलो, संझा घरे आ जाए तो भुलो ने कहात आए। हमें पानी को मोल समझनई परहे। पानी नईं सो जिंदगानी नईं।
सो भैया, जे गनीमत आए के अब पानी बचाबे के लाने सबई ने कमर कस लई है। कुआ, बावड़ी, ताल, तलैया, चौपड़ा सबई की सफाई होन लगी है। जो अब लों आगे नई आए उनखों सोई आगे बढ़ के पानी बचाबे में हाथ बंटाओ चाइए। वाटर हार्वेस्टिंग से बारिश में छत को पानी जमीन में पोंचाओ, नलों में टोटियां लगाओ, कुआंं, बावड़ी गंदी ने करो औ पानी फालतू ने बहाओ फेर मजे से जे गीत गाओ-
पानी बचाओ, झिन पानी बचाओ ।
कुंइया, तलैया खों फेर के जगाओ।।
मैके ने जइयो भौजी, भैया से रूठ के
भैया जू, भौजी खों अब ल्यौ मनाओ।।
पांच कोस दूर जाके, पानी हैं ल्याई
अब इतइ अंगना में कुंइया खुदवाओ।।
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बुन्देली बोली से अधिक परिचित नहीं हूं किन्तु आपकी यह सरल वार्ता शब्दशः समझ में आ गई । वार्ता और दोहों का समेकित संदेश हृदयंगम करने योग्य है । इसी में भलाई है - व्यष्टि की भी, समष्टि की भी ।
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपको आदरणीय माथुर जी 🙏
ReplyDeleteशहरी बुंदेली बोली हिन्दी के बहुत क़रीब है। ग्रामीण अंचलों में बोली जाने वाली बोली तनिक क्लिष्ट है। मुझे प्रसन्नता हुई यह जान कर कि आपको मेरी बुंदेली समझ में आ गई।
हार्दिक शुभकामनाओं सहित,
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी, हार्दिक आभार आपकी इस सदाशयता के प्रति 🙏
ReplyDeleteबहुत सुन्दर् और सशक्त रचना के साथ
ReplyDeleteआलेख भी जानकारीपरक है।
हार्दिक धन्यवाद आदरणीय शास्त्री जी 🙏
Deleteआपकी प्रशंसा ने मेरे लेख पर सार्थकता की मुहर लगा दी है।
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
बहुत ही सुंदर लिखा है आदरणीय वर्षा दी आपने।
ReplyDeleteपांच कोस दूर जाके, पानी हैं ल्याई
अब इतइ अंगना में कुंइया खुदवाओ।।..वाह!
हार्दिक धन्यवाद प्रिय अनीता जी 🙏
Deleteघर से मीलों दूर जा कर पानी भर कर लाने का काम औरतों के ही जिम्मे रहता है, चाहे वह कोई भी क्षेत्र हो। मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात ... कहीं भी जाइए पानी की समस्या से महिलाओं को ही ज्यादा रूबरू होना पड़ता है।
आपकी टिप्पणी के लिए पुनः बहुत-बहुत धन्यवाद 🙏
शुभकामनाओं सहित,
सस्नेह
डॉ. वर्षा सिंह
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आदरणीय ओंंकार जी 🙏
Deleteआंचलिकता की महक लिए सरस सजन। वर्षा जी! बहुत खूब !!आपके लेख सदैव सीखप्रद होते हैं।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद प्रिय मीना भारद्वाज जी 🙏
Deleteमेरा प्रयास यही रहता है कि अपनी मातृभाषा हिंदी के साथ ही इसमें इस क्षेत्र बुंदेलखंड की आंचलिक बोली बुंदेली को भी अपने साथ लेकर चलूं। आप सबकी शुभकामनाओं से मेरे परिश्रम को नई ऊर्जा, नई दिशा मिलती है। पुनः आप के प्रति बहुत धन्यवाद 🙏
खासी ठेठ अंदाज़ में कही गई पानी की कहानी..वाह डा. वर्षा जी...पानी तो मानो रूठ गओ है। औ रूठहे काए न, हमने ऊकी कदर भुला दई। #बुंदेली
ReplyDeleteसांची कही बिन्ना... आप सोई नोनी बुंदेली समझ-बोल लेत हो।
Deleteबहुत धन्यवाद अलकनंदा जी 🙏
वैसे तो बुंदेली कभी नहीं बांची पर आज आपकी सरल सहज वार्ता काफी समझ आ गई।
ReplyDeleteपानी के साधनों को हमने स्वयं नष्ट किया है
और आज पानी की किल्लत का हर और अलाप है
अब भी संभल जाए तो अच्छा ।
वार्ता के रूप में उपयोगी लेख उतनी ही सुंदर रचना।
सस्नेह।
आदरणीया कुसुम कोठारी जी
Deleteसादर अभिवादन 🙏
मुझे प्रसन्नता हुई यह जान कर कि आपने मेरा बुंदेली लेख पढ़ा और उसे पढ़ कर अपनी प्रतिक्रिया दी । बहुत हार्दिक धन्यवाद आपको 🙏
सादर,
डॉ वर्षा सिंह
बहुत बहुत सुन्दर लेख
ReplyDeleteआपकी इस बहुमूल्य टिप्पणी के लिए हार्दिक धन्यवाद 🙏
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