डॉ. वर्षा सिंह |
सागर : साहित्य एवं चिंतन
सुनीला सराफ : एक संभावनाशील साहित्यकार
- डॉ. वर्षा सिंह
सामाजिक कार्यों से जुड़ना किसी भी व्यक्ति की दृष्टि और समझ को एक अलग ही धरातल पर विस्तार प्रदान करता है। समाज के जिन तथ्यों को तटस्थ रह कर जाना नहीं जा सकता है समाजसेवा द्वारा उन तथ्यों से भी स्वतः सरोकार जुड़ जाता है। मध्यप्रदेश के दमोह जिले के ग्राम पथरिया में 10 मई 1962 को जन्मीं सुनीला सराफ एक समाज सेवी होने के साथ ही साहित्यकार भी हैं। विवाह के उपरांत सागर नगर में निवास करते हुए बी.ए. तथा एल.एल.बी. उत्तीर्ण सुनीला सराफ ने अपने पारिवारिक दायित्वों का कुशलतापूर्वक निर्वहन किया और समाज में व्याप्त समस्याओं को समझने का प्रयास किया। उनकी कहानियों एवं कविताओं में समाज में व्याप्त कुरीतियों एवं अव्यवस्थाओं का विरोध स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। वे लायनेस क्लब सागर गोल्ड की अध्यक्ष रह चुकी हैं तथा वैश्य महिला सभा सागर की सचिव हैं। मद्यनिषेध में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए लायंस क्लब विदिशा द्वारा तथा गरीबों की सहायता करने के तारतम्य में लायनेस क्लब सागर द्वारा पुरस्कृत किया जा चुका है। वे नगर की विभिन्न सामाजिक गतिविधियों में अपनी सक्रियता बनाए रखती हैं।
कविता, कहानी एवं ललित निबंध के द्वारा अपने मनोभावों एवं अपने विचारों अभिव्यक्त करने वाली साहित्यकार सुनीला सराफ हिंदी लेखिका संघ मध्यप्रदेश भोपाल की सागर शाखा की अध्यक्ष भी हैं। उनका एक कहानी संग्रह ‘‘सौगात’’ प्रकाशित हो चुका है। सुनीला सराफ की कहानियों में पारिवारिक संबंधों में तेजी से आती गिरावट के प्रति चिंता दिखाई देती है। उनका कथन है कि -‘‘सामाजिक परिवेश ने मेरी कलम को आकर्षित किया है।’’ अपने कहानी संग्रह ‘सौगात’ की भूमिका स्वरूप लिखे गए ‘आत्मालाप’ में वे अपनी कहानियों के बारे में कहती हैं कि -‘‘मैंने अपनी कहानियों के माध्यम से समाज में फैली कुरीतियों, विषमताओं को दूर करने की कोशिश की है।सभी कहानियां जीवन को साक्षी मान कर लिखी हैं।’’
सुनीला सराफ की कहानियों की यह विशेषता है कि वे समाज एवं परिवार की समस्याओं को बड़ी बारीकी से उठाती हैं, व्याख्यायित करती हैं तदोपरांत कहानी का अंत सुखांत ही रखती हैं। यह उनकी उस प्रवृत्ति को दर्शाता है जो प्रत्येक विसंगति को दूर कर के सब कुछ ठीक-ठाक कर देने की भावना के रूप में उनके भीतर मौजूद है। वे परिवार के सदस्यों के बीच सौहार्द्यपूर्ण संबंधों को देखने की आकांक्षा रखती हैं। बच्चों का अपने माता-पिता के प्रति मात्र संपत्ति के लालच का रिश्ता उन्हें खटकता है। वे ऐसी संतान को सबक सिखाने की पैरवी करती हैं। उनकी एक कहानी है ‘रिश्तों का रिसाव’ जिसमें एक बेटा अपने सुख के लिए अपने पिता का घर बेच कर उन्हें वृद्धाश्रम में रखने की योजना बनाता है। किन्तु नौकर के सजग रहने के कारण बेटे की योजना विफल हो जाती है। इस कहानी में सुनीला बताती हैं कि खून के यदि लोभ-लालच में डूबे हुए हों तो कोई अर्थ नहीं रखते हैं जबकि निस्वार्थ भाव से बने हुए रिश्ते जीवन को न केवल अर्थ प्रदान करते हैं अपितु सुरक्षित और सुखमय भी बनाते हैं।
माता-पिता और संतान के बीच असंवेदनशील हो चले संबंधों पर ही आधारित सुनीला की बहुत एक छोटी-सी कहानी है ‘दिनचर्या’। इस छोटी-सी कहानी में बहुत बड़े सच को बड़ी ही संवेदना के साथ उन्होंने सामने रखा है। आज का खुरदरा सच यह है कि जिन बेटों पर माता-पिता अपनी जान छिड़कते हैं, वही बेटे अपने माता-पिता की वृद्धावस्था में उनसे नाता तोड़ने को उतावले हो उठते हैं। यहां तक कि वे अपने बूढ़े मां-बाप को अपने साथ रखना पसन्द नहीं करते हैं। यदि साथ रखना पड़े तो घर के सबसे उपेक्षित कोने में ही उन्हें जगह दी जाती है। इसी सच को अपनी कहानी में पिरोते हुए सुनीला सराफ ने वर्णित किया है कि जिन बच्चों को अपने बूढ़े माता-पिता का सहारा बनना चाहिए जब वही बच्चे माता-पिता को दो समय की रोटी के लिए भिखारियों की तरह भटकाने लगते हैं तब उन बूढ़े माता-पिता का जीवन अत्यंत कठिन हो जाता है। माता-पिता का ममत्व अपने बच्चों के बुरे व्यवहार की शिक़ायत करने से रोकता रहता है और वे अपने बच्चों के हाथों ही उपेक्षित एवं दलित जीवन जीने को विवश रहते हैं।
बायें से:- डॉ वर्षा सिंह, डॉ (सुश्री) शरद सिंह, सुनीला सराफ एवं पिंकी |
गरीबी बेबसी के झंझावात
उसे निगलने को आतुर
सतरंगी सपनों को पूरा
करने की खातिर
प्रतियोगी परीक्षाएं प्रश्न बन कर
खड़ीं गरीबी के वितान पर
जीवन की सुनामी पार करने के लिए
पिता की नौकरी वापिस
दिलाने के लिए
अदालत के चक्कर लगाता वो।
Sagar Sahitya Chintan -24 Sunila Saraf- Ek Sambhavnashil Sahityakar - Dr Varsha Singh |
बेटी के प्रति समाज का नजरिया भले ही विपरीत रहा हो किन्तु एक मां के लिए उसकी बेटी हमेशा उसके कलेजे का टुकड़ा होती है। वह जितना ममत्व अपने बेटे पर उंडेलती है, उतनी ही ममता अपनी बेटी पर भी निछावर करती है। इस भाव को सुनीला सराफ ने अपनी कविता में इस प्रकार निबद्ध किया है-
तेरा पहला रोना सुन कर
मेरी ममता जाग उठी
छाती से जब तुझे लगाया
जीवन भर की प्यास बुझी
प्यारी सूरत भोली-भाली
लगती तू तो स्वर्ग परी
देख तुझे क्यों रोई दादी
आंखें मेरी भर आईं
तुझमें अपना बचपन देखा
तू तो मेरा सपना थी।
ऋतुएं काव्यात्मक हृदय को प्रभावित करती ही हैं और तब बनती हैं ऋतुओं पर आधारित कविताएं। सुनीला सराफ ने शीत ऋतु को अपने दोहों में कुछ इस प्रकार गूंथा है, बानगी देखिए -
सर्द हवाएं जो चलीं, हुआ हाल-बेहाल।
तपन कहीं पर सो गई, ओढ़ के जूड़ी शाल।।
शीतल तन और मन हुआ, कोहरा में चहुं ओर।
बन में ठिठुरन बढ़ गई, अब न नाचे मोर।।
शीत ऋतु के इसी भाव को सुनीला सराफ की इस कविता में भी देखिए-
अब के ठिठुरा बड़ा बसंत
शीत ऋतु ने रौब जमाया
मौसम को हैरान कर दिया
बारिश ने भी रंग जमाया
और बसंत को बड़ा रुलाया।
सुनीला सराफ सागर नगर की एक संभावनाशील साहित्यकार हैं। अपनी कहानियों एवं कविताओं के माध्यम से वे नगर की साहित्यिकता को समृद्ध करने की दिशा में निरंतर अग्रसर हैं।
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( दैनिक, आचरण दि. 14.08.2018)
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