Dr. Varsha Singh |
प्रिय मित्रों,
स्थानीय दैनिक समाचार पत्र "आचरण" में प्रकाशित मेरा कॉलम "सागर साहित्य एवं चिंतन " । जिसमें इस बार मैंने लिखा है मेरे शहर सागर के वरिष्ठ कवि मणिकांत चौबे 'बेलिहाज' पर आलेख। पढ़िए और जानिए मेरे शहर के साहित्यिक परिवेश को ....
सागर : साहित्य एवं चिंतन
विशिष्ट व्यक्तित्व के धनी : कवि मणिकांत चौबे बेलिहाज
- डॉ. वर्षा सिंह
परिचय :- मणिकांत चौबे
जन्म :- 02 अक्टूबर 1946
जन्म स्थान :- सागर (म.प्र.)
शिक्षा :- मैट्रिक एवं हिन्दी साहित्य सम्मेलन की परीक्षाएं उत्तीर्ण
लेखन विधा :- गद्य एवं पद्य
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सागर नगर में स्व.श्री जे.पी. चौबे एवं श्रीमती भगवती चौबे के पुत्र मणिकांत चौबे स्पष्टवादी व्यक्ति के रूप में जाने जाते हैं। संभवतः अपने इसी स्वाभाव के कारण उन्होंने अपना उपनाम रखा ‘बेलिहाज बुन्देलखंडी’। मित्रों और परिचितों के बीच वे ‘बेलिहाज’ उपनाम से ही पुकारे जाते हैं। एक कहावत है कि जो स्पष्टवक्ता होता है, वह दिल का भी साफ होता है। यह कहावत मणिकांत बेलिहाज पर खरी उतरती है। उनके बारे में यह प्रचलित है कि वे राजनीति में भी रुचि रखते हैं किन्तु किसी सं झूठे वादे नहीं करते हैं। जो काम उनके वश में होता है उसी के लिए वे हामी भरते हैं, अन्यथा तत्काल साफ मना कर देते हैं। उनके इस तरह काम करने से मना करने पर सामने वाले व्यक्ति को भले ही दो पल के लिए बुरा लगे किन्तु बाद में वह इस बात के लिए उन्हें धन्यवाद देता है कि उन्होंने उसे भुलावे में नहीं रखा। उनका यह स्वभाव कवि मणिकांत चौबे को एक विशिष्ट व्यक्ति बनाता है। जिंदादिल, हंसमुंख और कर्मठता - ये तीनों गुण भी उनमें मौजूद हैं।
मणिकांत चौबे ‘बेलिहाज’ नगर की विभिन्न साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। वे मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन की सागर जिला इकाई के महामंत्री हैं। बुंदेलखंड हिन्दी साहित्य संस्कृति विकास मंच के संयोजक महामंत्री हैं तथा हिन्दी उर्दू साहित्यकार मंच के भी संयोजक हैं। तरुण साहित्य एवं सांस्कृतिक मिलन संस्था जबलपुर की सागर इकाई के महासचिव हैं। इन संस्थाओं के अतिरिक्त बज़्में दाग़, नगर साहित्यकार समिति, कलमकार परिषद् भोपाल की सागर इकाई, सरस्वती नाट्यमंच, विद्यापुरम साहित्यकार समिति के भी सक्रिय पदाधिकारी हैं। मणिकांत चौबे वरिष्ठ नागरिक मंडल, सागर के सचिव तथा संस्कृत महाविद्यालय, धर्मश्री सागर के उपाध्यक्ष हैं।
बायें से :- डॉ. वर्षा सिंह, भावुक जी, पूरन सिंह राजपूत एवं मणिकांत चौबे 'बेलिहाज' |
साहित्य एवं चिंतन - डॉ. वर्षा सिंह |
कवि बेलिहाज की रचनाओं का प्रसारण आकाशवाणी केंद्र सागर एवं छतरपुर से होता रहता है तथा दूरदर्शन भोपाल से भी उनकी कविताओं का प्रसारण हुआ है। सामाजिक सरोकारों से ओतप्रोत उनकी यह कविता देखिए -
सुबह की कोमल सी /भुर-भूरी धूप आती है
कर्म का, संघर्ष का /संदेश लाती है
हमें काम से लगाती है /फिर चढ़े हुए दिन की
तपी हुई धूप याद कराती है
वर्तमान में जिस प्रकार संवादहीनता का फैलाव होता जा रहा है कवि बेलिहाज उसका विरोध करते हुए परस्पर संवाद का अह्वान करते हैं-
आओ साथ साथ बैठे /मन की कहे सुने
जिंदगी के मैदान में /सांसो को चलने दो
उहापोह भागम भाग /निरंतर चलने का क्रम
मिलने बिछड़ने का ढंग /नित्य का उपक्रम
निर्बाध गति से चलने दो /आशा निराशा उपलब्धियां
मन को बांधते तोड़ते /क्रमबद्ध सुख दुख से
काल गति चक्र को चलने दो
उपभोक्तावाद ने स्वार्थपरता का स्तर इतना अधिक बढ़ा दिया है कि मनुष्य अपने वास्तविक चरित्र और गुणों को भूलता जा रहा है। बनावटीपन के मुखौटे ने उसके चेहरे को ढांक लिया हैं। इस दुरावस्था की ओर संकेत करते हुए कवि मणिकांत बेलिहाज कहते हैं-‘अंधेरा बहुत गहरा है‘ -
चिंतन का विषय/कौन करे रखवाली
निःशब्द शून्य का बसेरा है /चरित्र व्यवहार अब
चकित करता परिवर्तन /घटनाओं की निरंतरता
रोज रोज का परिवर्द्धन /हृदय व्यथित करता
अदृश्य पर क्रंदन /किसका नाम ले
धमाके दे दना दन /हर पल डरा सहमा है
’बेलिहाज’ हर कान बहरा है
अंधेरा बहुत गहरा है।
जब अंधेरा गहरा हो तो चिंता के कारण नींद नहीं आना स्वाभाविक है। कवि बेलिहाज की ‘जाग जाता हूं’ शीर्षक कविता की ये पंक्तियां देखिए-
हां, मैं कभी कभी
सोते-सोते जाग जाता हूं
अनगिनत अनसुलझे प्रश्न /अपने सामने पाता हूं
कई बार सोने का यत्न करता /पर हर बार हारा हूं
मणिकांत बेलिहाज ने दोहों के रूप में छंदबद्ध काव्य सृजन भी किया है। ऋतुओं पर केंद्रित उनकी कविताएं मात्र ऋतु वर्णन न होकर पर्यावरण से भी संबंध रखती है। उनकी इस प्रकार की कविताएं पर्यावरण असंतुलन की ओर संकेत करते हुए चिंता प्रकट करती है -
निष्ठुर गर्मी ले गई हरी-भरी सब छांव।
हर प्राणी को चाहिए बरगद जैसी ठांव ।।
बरखा ने आकर किया जीवन का संचार ।
धरती ने भी दे दिया अपना खूब दुलार ।।
डॉ. वर्षा सिंह एवं डॉ. (सुश्री) शरद सिंह के साथ अपने जन्मदिन के अवसर पर कवि मणिकांंत चौबे 'बेलिहाज' |
मणिकांत चौबे की रचनाओं में जो सामाजिक सरोकार उभर कर सामने आते हैं वे सभी समाज और आमजन के जीवन के उन्नयन की आकांक्षा से भरे पूरे हैं। कवि बेलिहाज चाहते हैं की समाज का हर वर्ग, हर तत्व सुख समृद्धि और परस्पर मेलजोल से रहे। यही अभिलाषा उनकी कविताओं में दिखाई देती है। मणिकांत बेलिहाज वर्तमान उपभोक्तावाद का समाज पर जो प्रभाव पड़ रहा है उससे भी चिंतित दिखाई देते हैं उनके अनुसार समाज तभी बहुमुखी विकास कर सकता है जब एक स्वस्थ वातावरण निर्मित हो आतंकवाद व्यभिचार अपराध आदि समाप्त हो जाए तभी एक सुंदर समाज की रचना हो सकती है कवि मणिकांत पर लिहाज ना केवल एक कवि है वरन एक जागरूक नागरिक की भांति समाज और देश का भला चाहते हैं,उनका यही विचार उनकी कविताओं को श्रेष्ठ से श्रेष्ठतम बनाता हैं कवि मणिकांत चौबे ‘बेलिहाज’ ने अपने श्रम से साहित्यिक गतिविधियों को जिस प्रकार संचालित और संगठित किया है वह युवाओं के लिए अनुकरणीय है।
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( दैनिक, आचरण दि. 03.10.2018)
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