Tuesday, October 23, 2018

सागर : साहित्य एवं चिंतन 31- विपुल संभावनाओं के युवा कवि अक्षय अनुग्रह - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh
       स्थानीय दैनिक समाचार पत्र "आचरण" में प्रकाशित मेरा कॉलम "सागर साहित्य एवं चिंतन " । जिसमें इस बार मैंने लिखा है मेरे शहर सागर के युवा कवि अक्षय अनुग्रह पर आलेख। पढ़िए और जानिए मेरे शहर के साहित्यिक परिवेश को ....

सागर : साहित्य एवं चिंतन

विपुल संभावनाओं के युवा कवि अक्षय अनुग्रह
             - डॉ. वर्षा सिंह
                                 
परिचय :- अक्षय अनुग्रह
जन्म :- 27 अप्रैल 1990
जन्म स्थान :- सागर
शिक्षा :- एम.ए.(पॉलिटिकल साइंस)
लेखन विधा :- गद्य एवं पद्य
प्रकाशन :- पत्र-पत्रिकाओं में ।
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             हिन्दी साहित्य जगत में इस समय सबसे बड़ी चिन्ता जिस बात को ले कर है वह है युवाओं में साहित्य के पठन- पाठन और लेखन के प्रति रुझान में कमी। किन्तु सागर नगर के युवा कवि अक्षय अनुग्रह के साहित्यिक सरोकारों को देखते हुए यह चिन्ता धुंधली पड़ती दिखाई देती है। अपनी मां विमला जैन एवं पिता शीलचंद जैन से प्राप्त संस्कारों ने अक्षय अनुग्रह (जैन) को शिक्षा के प्रति समर्पण की भावना प्रदान की। हमेशा पढ़ाई में अव्वल रहने वाले अक्षय अनुग्रह ने बारहवीं कक्षा में प्रदेश की मेरिट लिस्ट में प्रथम स्थान प्राप्त किया। अपनी शिक्षा के प्रति ध्यान केन्द्रित रखते हुए राजनीति विज्ञान में एम.ए. करने के बाद यूनीवर्सिटी ग्रांट कमीशन की जूनियर रिसर्च फोलोशिप प्राप्त की। अक्षय को राजनीतिक विषयों के साथ ही साहित्य और मनोवि़ज्ञान से भी लगाव है। उन्होंने सन् 2016 में योकोहामा, जापान में आयोजित 31वें इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस ऑफ साइकालॉजी ऑन डायवर्सिटी इन हार्मानी- इनसाइट फ्रॉम साइकालॉजी में ‘‘ट्रांसजेंडर इन इंडिया : सीकिंग पॉलिटिकल इनक्लूजन एण्ड एट्टीट्यूड ऑफ प्यूपिल टूवर्डस् इट’’ विषय का अपना पेपर पढ़ा था। अक्षय राष्ट्रीय सेमीनारों में भी अपने पेपरस् प्रस्तुत कर चुके हैं। श्यामलम् संस्था, सागर द्वारा श्रेष्ठ युवा सम्मान तथा सर्वांगीण विकास संस्थान, सागर द्वारा स्व. सुमि अनामिका स्मृति बहुमुखी प्रतिभा सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है।
            अक्षय अनुग्रह की कविताओं में उत्तर आधुनिकता और वैयक्तिकता एक ऐसा समुच्चय दिखाई देता है जो जन और व्यक्ति को एक साथ सम्बोधित करता है। इन कविताओं में गहरी रूमानी भाव ऊर्जा जीवन के अनुभवों एवं अवस्थाओं के विभिन्न स्तरों को रेखांकित करती चलती हैं। अक्षय की कम शब्दों की छोटी कविताओं में भी विचारों और भावनाओं का विस्तार देखा जा सकता है, जैसे एक कविता है ‘अस्तित्व’ -
अपनी अंतिम बूंदों से
एक झिर ने पूछा
क्या तुम अब भी संजोये हो
मेरे नदी होने की स्मृति।
         परम्पराओं का बोध और सृजनशीलता परस्पर मिल कर साहित्य की नवीन अभिव्यक्तियां गढ़ते हैं। अक्षय अनुग्रह ने अपनी कविता ‘ऋणमुक्ति’ लिखते हुए ऐसी ही एक नई इकाई गढ़ने का सुन्दर प्रयास किया है-
फल तोड़ने के लिए फेंका गया पत्थर
जब बुद्ध को लगा था
तब बच्चों को उसके बदले
कुछ न दे पाने के अपराधबोध से
बुद्ध भर गए थे।
मेरे घर के बगीचे में
मिट्टी का एक पहाड़ है
जिस पर अमरूद का एक पेड़ लगा है
और उसके नीचे
ध्यानमग्न बुद्ध की मूर्ति बैठी है
मेरी बेटी अपने दोस्तों के साथ
बुद्ध के कंधों पर चढ़ कर अमरूद तोड़ती है।

           
Akshay Anugrah
  परिवेश में होने वाले परिवर्तनों से साहित्यकारों का सीधा सरोकार रहता है। वे प्रत्येक परिवर्तन के प्रस्थानबिन्दु से ले कर उसके प्रतिफलन तक अपनी दृष्टि जमाए रहते हैं, क्योंकि वे जानना चाहते हैंसमाज पर पड़ने वाले उसके प्रभावों के बारे में। समय का बदलना परिवेश का बदलना ही तो है। बिम्ब बदलते हैं, मानक बदलते है, उपमा और रूपक भी बदल जाते हैं। इस परिवर्तन को अपनी कविता में पिरोते हुए अक्षय अनुग्रह ने लिखा है-
अब कभी नहीं लिखी जा सकेंगी वे कविताएं
जिनमें निर्मल नदी को छूते हुए
संदेश ले जाते मेघों की कल्पना हो
न ही बुना जाएगा नायिकाओं का सौंदर्य
झरनों से बनते इंद्रधनुष के रंगों से
अब नहीं महकेंगी कविताएं
बेला, रातरानी और रजनीगंधा सी
न ही बरसेंगे शब्द
बरसते हुए हरसिंगार से अब नहीं पैदा होंगे
कालिदास, टौगोर, निराला, पंत
अब प्रकृति को देख कलम
सौंदर्य की कविताएं नहीं लिखती
तनाव की रेखाएं गूद देती हैं,
हमने अपने बच्चों को
प्रकृति से ही वंचित नहीं किया
बल्कि कितनी ही सुन्दर कविताएं
जो वे लिख पाते
उनके गर्भ में ही मार दीं
उस खून से वे लिखते रहेंगे
अदालतों में याचिकाएं
सरकार, बाजार और विकास से
पर्यावरण की रक्षा की गुहार की।
Sagar Sahitya avam Chintan  - Dr. Varsha Singh
               अक्षय अनुग्रह की कविताओं में एक सकारात्मक विद्रोह झलकता है। यह विद्रोह वंचितों को उनके अधिकार दिलाने, सोए हुओं को जगाने तथा आंतरिक अग्नि को प्रज्वलित करने का आह्वान है। अनुग्रह का यह विद्रोह उस बिम्ब को रचता है जिसमें लड़कियां अपने प्रकृतिदत्त स्वरूप में आत्मविश्वास के साथ विकसित होती दिखाई देती हैं। कविता का यह अंश देखिए-
मुझे नहीं सुहाती
तुम्हारी अच्छी और सीधी-सादी लड़कियां
वो जो केवल उन्हीं रास्तों पर चलती रहीं
जिन्हें तुमने तय किया था,
मुझे तो पसन्द हैं वो लड़कियां
जिनके चलने से बनती चली जाती हैं
संकरी और घुमावदार पगडण्डियां
जैसे शास्त्रीय अनुशासनों को तोड़ कर
कोई कलाकार अपने कैनवास पर
एक नए ढंग का चित्र उकेरता है
वो जिनका बचपन मटमैले रंग का होता है
जिनकी फ्राक पर चारकोल के दाग लगे रहते हैं
लड़कियों पर केन्द्रित इस लम्बी कविता की अंतिम पंक्तियों में अनुग्रह स्पष्ट कहते हैं कि- ‘‘ऐसी अनगढ़ और खुद को खुद से/तराशने वाली लड़कियां पसन्द हैं मुझे’’।
             अक्षय अनुग्रह की एक और लम्बी कविता है- ‘रिफ्यूजी परिन्दे’। इस कविता का यह मार्मिक अंश देखिए जिसमें कवि ने वाल्मीकि का रूपक रचते हुए उन व्यक्तियों को धिक्कारा है जो पर्यावरण को चोट पहुंचा कर पक्षियों को भी बेघर कर रहे हैं-
कितना सन्नाटा था
आज इस आसमानी कोलाहल में
जो जमीन खो चुकी थी
मांएं चोंच से दाना झटक कर
चींख भी नहीं पायीं
उम्मीद थी चूंजों के मिलने पर
दाना खिलाने की,
अगर स्तन होते
तो बहने लगता दूध बिना चूसे ही
इनके दर्द पर तुम कहां थे वाल्मीकि!
अपना काव्यमय श्राप क्यों नहीं दिया तुमने
एक क्रोंच जब रोयी तो रामायण लिख दिए
इन बेघरों पर क्यों खामोश रहे तुम।
आज के रोबोटिक युग में सम्वेदनाओं पर यांत्रिकता इस तरह प्रभावी हो चली है कि प्रेम अपने दीर्घकालिक अनुभूति होने का स्थान खाने लगा है। प्रेम में कोमलता का स्तर घटता जा रहा है। ऐसे शुष्क समय में युवा कवि अक्षय अनुग्रह की यह छोटी सी कविता प्रेम के सरस भविष्य के प्रति एक आश्वस्ति प्रदान करती है-
यदि तुम नदी होती तो
बारिश की हर बूंद को
चख कर बरसने देता तुम पर
आंसुओं से जब भी तुम्हें भिगाया
पहले उन्हें उबाला है।
             अक्षय अनुग्रह की साहित्य के प्रति प्रतिबद्धता को देखते हुए यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि वे सागर नगर के युवा साहित्यकारों में विपुल सम्भावनाओं के कवि हैं।
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( दैनिक, आचरण  दि. 23.10.2018)
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