Dr. Varsha Singh |
दैनिक भास्कर सागर संस्करण ने आज दिनांक 14.10.2018 को अपनी 12 वीं वर्षगांठ पर नवरात्रि पर्व के मद्देनज़र एक विशेष परिशिष्ट "नारी तू नारायणी " प्रकाशित किया। जिसमें मेरी बहन डॉ. (सुश्री) शरद सिंह, जो कि सागर में निवास करती हैं और बहुचर्चित साहित्यिक पत्रिका "सामयिक सरस्वती" (नई दिल्ली से प्रकाशित) की कार्यकारी संपादक हैं , उन्हें दैनिक भास्कर सागर ने अपने इस विशेष परिशिष्ट "नारी तू नारायणी " में गेस्ट एडिटर बनाया ।
दैनिक भास्कर, सागर संस्करण दिनांक 14.10.2018 |
चूंकि शरद स्त्री विमर्श की जानी- मानी विशेषज्ञ हैं, ख़ास तौर पर बुंदेलखंड की स्त्रियों पर उनकी किताबें मील का पत्थर के समान कालजयी कृतियां हैं। एक स्त्री और साहित्यकार होने के नाते शरद सिंह ने परिशिष्ट सम्पादन में सहयोग प्रदान करते हुए दैनिक भास्कर को महत्वपूर्ण सुझाव दिए।
डॉ. शरद ने कहा कि “साहित्य समाज का पथ प्रदर्शक होता है। यह सर्वमान्य तथ्य है कि साहित्य समाज का दर्पण होता है, यह समाज का प्रतिबिम्ब और समाज का मार्गदर्शक होता है । यदि यह कहा जाये कि साहित्य और लोकजीवन दोनों एक दूसरे के पूरक हैं तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। यह साहित्य ही है जो हमें हमारे संस्कारों और शिक्षा से जोड़ता है। यदि समाज साहित्य को प्रभावित करता है तो साहित्य भी समाज पर प्रभाव डालता है। इन दोनों का संबंध आत्मा और शरीर की तरह है।
शरद ने यह भी कहा कि “साहित्य समाज का दर्पण ही नहीं निर्माता भी है। दर्पण केवल प्रतिकृति दर्शाता है जबकि साहित्य तो समाज का मार्गदर्शन करता रहा है। यह सच्चे अर्थों में समाज का निर्माता है। जैसाकि साहित्य संस्कृत के ’सहित’ शब्द से बना है, जिसका अर्थ है- “हितेन सह सहित तस्य भवः” अर्थात कल्याणकारी भाव। साहित्य लोककल्याण के उद्देश्य से सृजित किये जाने पर रामचरित मानस की भांति पूज्यनीय हो जाता है। साहित्य का उद्देश्य मनोरंजन करने के साथ समाज का मार्गदर्शन भी करना है । आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने साहित्य को ज्ञानराशि का संचित कोश कहा है और आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार साहित्य को जनता की चित्तवृत्ति का संचित प्रतिबिंब है ।”
डॉ. शरद सिंह आगे कहती हैं कि “साहित्य समाज का मार्ग प्रशस्त करने में अपनी अहम भूमिका निभाता है । आजकल समाज में जो संवेदनशीलता और असहिष्णुता बढ़ती जा रही है उसे साहित्य के द्वारा दूर किया जा सकता है साहित्य परंपराओं और संस्कृति को सहेज कर वर्तमान से होते हुए अतीत से भविष्य तक पहुंचाता है । इसलिए जरूरी है कि समाज का प्रत्येक व्यक्ति साहित्य से जुड़े साहित्य का पाठक बनी और अपनी संस्कृति को सहजता चली इस दिशा में समाचार पत्रों की भूमिका अहम है। आज हम देख रहे हैं की बाजार में पश्चिम से अनूदित साहित्य की भरमार है जबकि देश में और देश के अंचल में अच्छे से अच्छा साहित्य सृजन किया जा रहा है। यदि देशज साहित्य अर्थात आंचलिक साहित्य को पर्याप्त प्रश्रय दिया जाए बढ़ावा दिया जाए और मंच प्रदान किया जाए तो यह समाज में विशेष रूप से युवाओं में और महिलाओं में पठन-पाठन की रुचि बढ़ाएगा और संवेनशीलता में भी वृद्धि करेगा। जिसके परिणामस्वरूप आपराधिक मनोवृति में कमी आएगी और अपनी संस्कृति के प्रति लगाव बढ़ेगा। साहित्य समाज को संस्कारित भी करता है। प्रेरक और सद्साहित्य समाज में बढ़ते अपराधों के प्रति एक सकारात्मक क़दम के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है, जो समाज में उत्पन्न हो रही मानसिक विकृति का हनन करने में सक्षम है।”
Dr. (Miss) Sharad Singh |
“नारी तू नारायणी” - डॉ. शरद सिंह |
दैनिक भास्कर, सागर विशेष परिशिष्ट नारी तू नारायणी |
Dr. (Miss) Sharad Singh |
डॉ. शरद सिंह रामेश्वर गुरु पत्रकारिता पुरस्कार ग्रहण करते हुए |
यहां यह बताना मैं ज़रूरी समझती हूं कि दैनिक भास्कर का सागर संस्करण वर्ष 1995-96 में सागर मुख्यालय से जब प्रकाशित होना प्रारम्भ हुआ था तब उसके ब्यूरो चीफ प्रहलाद नायक थे। उस समय सागर संस्करण के मात्र 04 पृष्ठ सागर में छपते थे बाकी सारे पृष्ठ भोपाल से बन कर आते थे। उन चार पृष्ठों में भी 'साहित्य सागर' के शीर्षक से पाक्षिक रूप से प्रकाशित एक पूरे पृष्ठ में स्थानीय साहित्यकारों को भरपूर स्थान दिया जाता था। तब मेरे और शरद के अनेक साहित्यिक आलेख , कविताएं आदि उसमें प्रकाशित हुए थे। मेरी माता जी, जो वरिष्ठ लेखिका एवं कवयित्री हैं, श्रीमती डॉ. विद्यावती मालविका के " बुंदेलखंड की महिला साहित्यकार " विषय पर शोधात्मक धारावाहिक लेख उसमें लगातार प्रकाशित हुए थे। पाठकों द्वारा उस साहित्यिक पृष्ठ को बेहद पसंद किया जाता था। 05-06 साल नियमित प्रकाशन.के बाद " साहित्य सागर " का प्रकाशन बंद हो गया। बाद में वर्ष 2006 से दैनिक भास्कर सागर के सम्पूर्ण पृष्ठ सागर में ही बनने और प्रिंट होने लगे।
Dainik Bhaskar News Paper |
विगत वर्ष 2017 से अत्याधुनिक संयंत्र की औद्योगिक क्षेत्र चनाटौरिया, सागर में स्थापना के बाद से दैनिक भास्कर ने बेहतरीन प्रिंटिंग के ज़रिए सागर के पाठकोंं के बीच अपना अनन्यतम स्थान बना लिया है। किन्तु स्थानीय साहित्य के लिए "साहित्य सागर" जैसा कोई स्थान नहीं रहा है। वर्तमान में इसका अभाव साहित्य प्रेमियों को खलता है।
प्रहलाद नायक के बाद नरेन्द्र सिंह’अकेला’, विपुल गुप्ता के कार्यकाल में साहित्य समाचारों को दैनिक भास्कर में प्रमुखता से स्थान दिया जाता रहा है। वर्तमान में संस्करण के स्थानीय सम्पादक अनिल कर्मा बख़ूबी यह दायित्व निभा रहे हैं।दैनिक भास्कर, सागर |
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