Dr. Varsha Singh |
स्थानीय दैनिक समाचार पत्र "आचरण" में प्रकाशित मेरा कॉलम "सागर साहित्य एवं चिंतन " । जिसमें इस बार मैंने लिखा है मेरे शहर सागर के साहित्यकार डॉ. श्याम मनोहर पचौरी पर आलेख। पढ़िए और जानिए मेरे शहर के साहित्यिक परिवेश को ....
सागर : साहित्य एवं चिंतन
इतिहासबद्धता के साहित्यकार : डॉ. श्याम मनोहर पचौरी
- डॉ. वर्षा सिंह
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परिचय :- डॉ. श्याम मनोहर पचौरी
जन्म :- 06 मार्च 1956
जन्म स्थान :- गढ़ाकोटा, सागर (म.प्र.)
शिक्षा :- एम.ए., पीएच. डी. (इतिहास)
लेखन विधा :- गद्य
प्रकाशन :- एक पुस्तक तथा विभिन्न शोध पत्रिकाओं में आलेखों का प्रकाशन।
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सागर की यह विशेषता है कि यहां के साहित्यकारों के लेखन में पर्याप्त विविधता है। कोई काव्य की सर्जना करता है तो कोई कथा साहित्य की। कोई छंदबद्ध कविता लिखता है तो कोई ललित निबंध। कुछ रचनाकार ऐसे हैं जिन्होंने इतिहास को आधार के रूप में ग्रहण कर के पुस्तकलेखन का कार्य किया है। ऐसे कृतिकारों में एक नाम है डॉ. श्याम मनोहर पचौरी का।
सागर के गढ़ाकोटा में 6 मार्च 1956 को जन्में डॉ. श्याम मनोहर पचौरी सागर नगर के निवासी हैं तथा वर्तमान में गढ़ाकोटा के शासकीय महाविद्यालय में प्राचार्य के पद पर पदस्थ हैं। धार्मिक प्रवृति एवं सरल स्वभाव के डॉ. पचौरी का साहित्यकर्म स्वांतःसुखाय है। जिसके संबंध में वे कहते हैं कि ‘‘साहित्य मुझे आनन्द प्रदान करता है। प्रशासनिक व्यस्तताओं के कारण मैं अपने लेखक के प्रति उतना समर्पित नहीं हो पाता हूं जितनी कि मुझे अभिलाषा है किन्तु मानता हूं कि साहित्यिक अभिव्यक्ति से बढ़ कर और कोई माध्यम नहीं होता है जो मन को शांति प्रदान कर सके।’’ गढ़ाकोटा महाविद्यालय में सन् 2018 के 23-24 अप्रैल को ‘रामकथा’ पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय शोधसंगोष्ठी में अपने विचार व्यक्त करते हुए डॉ. पचौरी ने कहा था कि -‘‘श्रीराम जैसे आदर्श चरित्रों पर लिखा गया साहित्य सम्पूर्ण समाज को सही दिशा देने का कार्य करता है। इस संदर्भ में रामायण या रामचरित मानस की महत्ता और अधिक बढ़ जाती है। क्योंकि ऐसे ग्रंथ जीवन जीने का उचित ढंग सिखाते हैं। ’’
डॉ. श्याम मनोहर पचौरी को धार्मिक संस्कार अपनी माताश्री प्रेमाबाई पचौरी से मिले जो एक गृहणी का दायित्व निभाने के साथ ही घर में धार्मिक वातावरण बनाए रखने का विशेष ध्यान रखती रहीं। डॉ. पचौरी को अपने बाल्यकाल से जहां एक ओर धार्मिक रुझान अपनी माताश्री से मिला वहीं दूसरी ओर राष्ट्रभक्ति की प्रेरणा अपने पिताश्री से मिली। वस्तुतः डॉ. पचौरी के पिताश्री शिवदयाल पचौरी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। उन्होंने गांधीजी के अहिंसावादी मूल्यों को न केवल अपनाया वरन् उन्हें जिया भी। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़ कर भाग लिया। वे सन् 1930 के दांडी आंदोलन तथा 1942 भारत छोड़ो आंदोलन के समर्थन में बुंदेलखंड में अलख जगाते रहे। अंग्रेज सरकार के विरोध करने पर उन्हें जेल यात्राएं भी करनी पड़ीं। देश के स्वतंत्र हो जाने के बाद भी उन्होंने छुआछूत और नशा उन्मूलन का अपना अभियान जारी रखा। वे रहली ब्लॉक के कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी रहे। अपने पिता से विरासत में मिली राष्ट्रसेवा की भावनाएं डॉ. पचौरी को सदैव प्रेरणा देती रहती हैं।
डॉ. पचौरी ने उच्चशिक्षा डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर से प्राप्त की। इतिहास विषय में एम.एम. करने के उपरान्त उन्होंने डॉ. बैजनाथ शर्मा के निर्देशन में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। वे इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस कोलकाता, मदन मोहन मालवीय फाउंडेशन बनारस, बीएचयू तथा मध्य प्रदेश इतिहास परिषद भोपाल के आजीवन सदस्य हैं। इसके साथ ही उन्हें डॉ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर की शोध पत्रिका ‘मध्य भारती’ की आजीवन सदस्यता प्राप्त है। वैसे वे मध्य प्रदेश अध्यापक संघ भोपाल के भी सदस्य हैं। सन् 1983 में प्राध्यापक के रूप में नियुक्ति के उपरांत 13 वर्षों का प्रशासनिक अनुभव प्रभारी प्राचार्य के रूप में प्राप्त है।
Sagar Sahitya Avam Chintan - Dr. Varsha Singh |
‘‘रहली तहसील का ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक परिदृश्य :प्राचीन से अर्वाचीन’’ नामक पुस्तक के लेखक डॉ श्याम मनोहर पचौरी के अब तक राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय शोध पत्रिकाओं में लगभग 25 शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं। लगभग 10 पुस्तकों में आपके लिखे हुए अध्याय संकलित हैं। प्रशासनिक दायित्वों के अंतर्गत पाठ्यक्रम निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहते हैं। केंद्रीय पाठ्यक्रम निर्माण समिति उच्च शिक्षा विभाग भोपाल, महाराजा छत्रसाल विश्वविद्यालय छतरपुर के पाठ्यक्रम निर्माण समिति एवं परीक्षा समिति के सदस्य, शासकीय स्वशासी कन्या उत्कृष्टता महाविद्यालय सागर के पाठ्यक्रम निर्माण समिति में सदस्य के रूप में उन्हेंने विद्यार्थियों के लिए ज्ञानवर्द्धक सामग्री का चयन करने में अपना योगदान दिया है।
डॉ. श्याम मनोहर पचौरी के संरक्षण एवं मार्गदर्शन में कई उल्लेखनीय पुस्तकों का प्रकाशन हुआ है। जैसे- ‘‘ग्रामीण विकास समस्याएं चुनौतियां एवं समाधान’’ (सं. एसके सिन्हा), ‘‘व्यक्तित्व भाषा मीडिया : एक अनुशीलन’’ (सं. डॉ. घनश्याम भारती), ‘‘लोकजीवन में राम कथा’’ (सं. डॉ. घनश्याम भारती), ‘‘वैश्विक जीवन मूल्य और राम कथा’’ (सं. डॉ. घनश्याम भारती),‘‘रामकथा का वैश्विक परिदृश्य’’ (सं. डॉ. घनश्याम भारती) आदि। डॉ. पचौरी लघु शोध योजना के अंतर्गत ‘‘मराठा कालीन सांस्कृतिक विरासत : एक सर्वेक्षण’’ जैसे विषय पर सर्वेक्षण कार्य कर चुके हैं।
डॉ. पचौरी को कई सम्मानों से विभूषित किया जा चुका है। जिनमें प्रमुख हैं- इंडियन इंटरनेशनल फ्रेंडशिप सोसायटी नई दिल्ली द्वारा ‘राष्ट्रीय गौरव सम्मान’ , रायबरेली उत्तर प्रदेश द्वारा ‘राष्ट्रीय गौरव सम्मान’, महामाया प्रकाशन द्वारा ‘अहिंसा सम्मान’, राम कथा के व्यापक प्रसार प्रचार हेतु अमेरिका की विदुषी डॉक्टर नीलम जैन द्वारा भी उन्हें सम्मानित किया जा चुका है।
अकादमी स्तर पर शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय गढ़ाकोटा के प्राचार्य के रूप में डॉ. पचौरी ने कई राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों के संरक्षक एवं आयोजक का दायित्व निभाया है। जिनमें ग्रामीण विकास पर आधारित राष्ट्रीय संगोष्ठी उल्लेखनीय है। इसके अतिरिक्त अंतरराष्ट्रीय शोध संगोष्ठी जिसका विषय था- ‘‘वैश्विक जीवन मूल्य ओर राम कथा’’। सन् 2018 में 23-24 अप्रैल को आयोजित की गई इस राष्ट्रीय कार्यशाला में भी संरक्षक का दायित्व निभाया था। डॉ. पचौरी ‘‘व्यक्तित्व, भाषा और मीडिया’’ पर राष्ट्रीय कार्यशाला करवा चुके हैं। उन्हें स्वयं राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय शोधसंगोष्ठियों में व्याख्यान देने का भी गहन अनुभव है। वह अब तक देश के अनेक शिक्षाकेन्द्रों में व्याख्यान दे चुके हैं। उनके लिखे शोध पत्र संगोष्ठियोंं में बड़े चाव से सुने जाते हैं।
यूं तो डॉ. श्याम मनोहर पचौरी साहित्यिक अभिरुचि के स्वांतःसुखाय साहित्यकार हैं, फिर भी वे इतिहास और साहित्य का सुंदर समन्वय करते हुए रचनाएं लिखते हैं। रहली तहसील के परिप्रेक्ष्य में प्रकाशित डॉ. पचौरी की पुस्तक ‘‘रहली तहसील का ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक परिदृश्य :प्राचीन से अर्वाचीन’’ सागर जिले तथा बुंदेलखंड के इतिहास को जानने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पुस्तक है। इस पुस्तक में डॉ. पचौरी ने रहली के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक परिदृश्य को बखूबी प्रस्तुत किया है। पुस्तक के प्रमुख अध्यायों में से एक है रहली तहसील का संक्षिप्त विवरण। जिसमें उन्होंने यह बताया है कि रहली का नाम ‘‘रहली’’ क्यों पड़ा। रहली के नामकरण के संबंध में एकाधिक मत प्रचलित हैं। इस संबंध में उन्होंने अपनी इस पुस्तक में एक बहुत ही रोचक कथा दी है। कथा के अनुसार राहुल नामक ऋषि ने इस भू-भाग पर वर्षो तपस्या की, जिसके कारण इसका नाम रहली पड़ा। किन्तु वे इस कथा को मात्र कथा ही मानते हैं क्यों कि इस संबंध में कोई इोस प्रमाण प्राप्त नहीं होते हैं। इसी क्रम में वे एक और प्रचलित मत प्रस्तुत करते हैं जिसके अनुसार चंदेल नरेश राहिल के नाम पर इस नगर का नाम रहली रखा गया। फिर वे एक इतिहासवेत्ता होने के नाते इस बात को सामने रखते हैं कि राहिल के समय सागर जिला चंदेल के साम्राज्य के अधीन था इसलिए इस तथ्य पर विश्वास किया जा सकता है। वैसे वे एक किवदंती का भी उललेख करते हैं कि रहली का पूर्व नाम ‘‘रहस्थली’’ था। वे तर्क देते हैं कि गुणाकर जी ने भी ‘‘रहस्थली’’ शब्द का प्रयोग किया है और यह आरम्भ से धार्मिक रहस्यों से परिपूर्ण रहस्य स्थल रही, इसीलिए इसका नाम ‘‘रहस्थली’’ पड़ा और आगे चल कर इसका संक्षिप्त रूप में ‘‘रहली’’ बन गया। इसी पुस्तक में डॉ. पचौरी ने रहली तहसील की भौगोलिक स्थिति ऐतिहासिक रूपरेखा सामाजिक संरचना शिक्षा स्वास्थ्य खेल जगत आदि के बारे में विस्तार से जानकारी दी है। सांस्कृतिक प्रभाव के अंतर्गत उन्होंने रहली क्षेत्र में किए जाने वाले नृत्यों की जानकारी दी है। जैसे- राई नृत्य, बरेदी नृत्य, जवारा नृत्य, बधाई नृत्य, मोनी नृत्य, ढिमरयाई नृत्य, आदि। रहली की साहित्यिक दृष्टि की व्याख्या करते हुए डॉ. पचौरी ने तहसील के महत्वपूर्ण साहित्यकारों की जानकारी दी है। जिसमें प्रमुख हैं- कवि कारे, पंडित सुखराम चौबे, गुणाकर कवि, पंडित पुरुषोत्तम लाल दुबे, डॉ. संतोष कुमार तिवारी, डॉ श्याम मनोहर सिरोठिया, ,जानकी प्रसाद मिश्र, सुखदेव प्रसाद तिवारी, पंडित लक्ष्मी प्रसाद तिवारी, हरीनारायण तिवारी तथा संजय टोनी आदि। रहली के सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में पचौरी ने उन स्थलों का विवरण दिया है जो धार्मिक एवं पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। जैसे- सूर्य मंदिर, अतिशय क्षेत्र पटना गंज, रानगिर का हरसिद्धि मंदिर, पंढरीनाथ मंदिर, टिकीटोरिया मंदिर, रामेश्वर मंदिर, जगदीश मंदिर, गणेश मंदिर, झाड़ी हनुमान मंदिर, बाबा बादल, ऐतिहासिक किला, छिरारी के मराठा कालीन तलाब, देवलिया मंदिर तथा कचहरी (सिविल कोर्ट) स्थित हनुमान मंदिर आदि। उन्होंने अपनी इस पुस्तक में बुंदेलखंड के क्रांतिवीर सदाशिव राव मलकापुरकर सहित स्वतंत्रता सेनानियों की सूची दी है। साथ ही रहली तहसील में पर्यटन विकास की संभावनाएं नौरादेही अभ्यारण मेला रहस्य आदि के संबंध में भी महत्वपूर्ण जानकारियां दी है। इतनी विविध जानकारी के कारण यह पुस्तक मात्र ऐतिहासिक न हो कर एक सारगर्भित साहित्यककृति बन गई है। डॉ. पचौरी स्वयं भी यह मानते हैं कि इतिहास व्यक्ति को संस्कृति से जोड़ता है और संस्कृति साहित्य का सृजन करने की प्रेरणा प्रदान करती है।
डॉ. श्याम मनोहर पचौरी जिस तरह सागर के साहित्यिक-सांस्कृतिक परिवेश में ज्ञानसंपादा का समावेश कर रहे हैं, उससे आशान्वित हुआ जा सकता है कि भविष्य में इंतिहास आधारित साहित्यिक कृतियां भी सृजित करेंगे, जिससे सागर का साहित्यजगत् और भी समृद्ध होगा।
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( दैनिक, आचरण दि. 21.01.2019)
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