Wednesday, July 17, 2019

सागर : साहित्य एवं चिंतन 58 .... एक विविध शिल्पी कवि सी.एल. कंवल - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

       स्थानीय दैनिक समाचार पत्र "आचरण" में प्रकाशित मेरा कॉलम "सागर साहित्य एवं चिंतन " । जिसमें इस बार मैंने लिखा है मेरे शहर सागर के कवि सी.एल.कंवल पर आलेख। पढ़िए और जानिए मेरे शहर के साहित्यिक परिवेश को ....

सागर : साहित्य एवं चिंतन

एक विविध शिल्पी कवि सी.एल. कंवल

                   - डॉ. वर्षा सिंह

-------------------------
परिचय :
नाम  :- सी. एल. कंवल
जन्म :-  01 फरवरी 1953
जन्म स्थान :- खुरई, जिला सागर, म.प्र,
माता-पिता :- श्रीमती सरजू एवं श्री कुंजीलाल
शिक्षा  :- बी.ए., बी.टी.
लेखन विधा :- काव्य।
------------------------------

काव्य एक ऐसी विधा है जिसने संवेदनशील व्यक्तियों का हमेशा मनमोहा है। सागर नगर में कवियों की एक समृद्ध परम्परा चली आ रही है। उर्दू के साथ ही हिन्दी (खड़ी बोली) के कवियों ने सागर नगर की साहित्यधारा को सदैव ऊर्जावान बनाए रखा है। इसी क्रम में तेजी से उभरता हुआ नाम है कवि सी.एल. कंवल का । सागर जिले की खुरई तहसील में श्री कुंजीलाल एवं श्रीमती सरजू के घर 01 फरवरी 1953 को जन्मे सी.एल. कंवल को अपने माता-पिता से जो संस्कार मिले उन संस्कारों ने उनके भीतर साहित्य के प्रति रुझान को न केवल जन्म दिया अपितु सृजनधर्मिता में भी प्रवृत्त किया। अपनी औपचारिक शिक्षा के अंतर्गत स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने बी.टी. किया। भारतीय स्टेट बैंक से शाखा प्रबंधक के पद से सेवानिवृत्त सी.एल. कंवल ने औपचारिक शिक्षा के अतिरिक्त जैन धर्म एवं गांधी दर्शन का अध्ययन किया। उन्होंने अखिल भारतीय दिगम्बर जैन परिषद् परीक्षा बोर्ड दिल्ली से जैन धर्म परीक्षा उत्तीर्ण की।  सन् 1984 में डॉ. सोहनपाल सुमनाक्षर द्वारा दिल्ली में आयोजित दलित साहित्य अकादमी  द्वारा फैलोशिप प्राप्त की। सन् 1984 से सागर नगर में निवासरत सी.एल. कंवल बैंक की अपनी व्यस्त दिनचर्या से समय निकाल कर काव्यसृजन करते रहे। सेवानिवृत्ति के उपरांत साहित्यक्षेत्र में उनकी सक्रियता बढ़ गई है।

कवि सी.एल. कंवल मानते हैं कि साहित्यसृजन विचार क्षमता बढ़ाता है तथा जीवन को समझने में और अधिक सहायता करता है। संभवतः इसीलिए उनकी ग़ज़लों में जीवन की सरसता और विडम्बनाओं के प्रति विचारों की समान भाव से  सहज अभिव्यक्ति मिलती है। उनकी ग़ज़लों में श्रृंगार रस की मधुरता भी है, आस्था एवं विश्वास भी और अव्यवस्थाओं के विरुद्ध ललकार भी। वे उन लोगों से भी मुख़ातिब होते हैं जो जरा-जरा सी बात पर हिम्मत हारने लगते हैं और यह मान बैठते हैं कि बातचीत अथवा सहजता से कोई मसला हल नहीं हो सकता है। ऐसे लोगों को सम्बोधित करते हुए वे कहते हैं-

विश्वास को बुनियाद बना कर तो देखिए
उन दुश्मनों से हाथ मिला कर तो देखिए
टूटेंगी अपने-आप ही नफरत की दीवारें
इंसानियत को दिल में जगाकर तो देखिए
हम और तुम का फासला मिट जाएगा खुद ही
ये मज़हबों की होड़ मिटा कर तो देखिए
आनन्द स्वर्ग का यदि लेना है आपको
रोते हुए बच्चे को उठाकर तो देखिए
Sagar Sahitya Avam Chintan - Dr. Varsha Singh # Sahitya Varsha

धर्म के नाम पर वैमनस्य फैलाने वाले न तो कभी समाज का भला कर सकते हैं और न कभी अपनों की भला कर सकते हैं। कवि कंवल मानते हैं कि यदि गंभीरता से प्रयास किया जाए तो बड़ी से बड़ी समस्या का हल निकाला जा सकता है और तमाम वैमनस्य को मिटाया जा सकता है। यह बानगी देखिए जिसमें वे फिरकापरस्तों से प्रश्न कर रहे हैं-

तुमने उठाए हाथ में हथियार किस लिए
अपनों पे कर रहे हो भला वार किस लिए
मंदिर कहीं बना है तो मस्जिद कहीं बनी
इन दोनों के दरमियान ये दीवार किस लिए
खुद की ख़बर नहीं है न औरों की ख़बर है
पढ़ रहे हो फिर यहां अखबार किस लिए
हद से गज़र रहे हो सरहदों के वास्ते
गैर की जमीन पर है अधिकार किस लिए
मुद्दा बड़ा है देश का मिट जाएगा ‘कंवल’
हल करने को बैठे हैं हम चार किस लिए

किसी भी व्यक्ति को उसकी अच्छाईयां ही बड़ा बनाती हैं। आर्थिक सम्पन्नता नहीं अपितु मिलनसारिता, नेकनीयत और एकता की भावना व्यक्ति में बुनियादी गुण होने चाहिए, तभी वह दूसरों की सहायता करने में सक्षम हो सकता है। सी.एल. कंवल की यह रचना इसी भावना को सामने रखती है-

रुतबा, गुरुर, हैसियत, ये शान किस लिए
नेकियां न  हों  जहां,  ईमान  किस लिए
बांटा नहीं किसी को कमाने के बाद भी
घटता ही जा रहा है ये ज्ञान किस लिए
सोने की थालियों में हों चांदी की रोटियां
भूखे ने मांगा रब से वरदान किस लिए

कवि कंवल ने ग़ज़लों के साथ ही अतुकांत कविताएं, दोहे और मुक्तक भी लिखे हैं। उनकी छंदमुक्त कविताएं सामाजिक सरोकार के और अधिक निकट हैं। इन कविताओं में बिम्ब योजना भी अधिक प्रभावी दिखाई देती है। उदाहरण के लिए ‘रोज देखता हूं’ शीर्षक कविता देखिए -

रोज देखता हूं
एक असहाय दीपक को
अंधेरा निगल रहा है
हम चारपाई पर पड़े
हाथों का सहारा देने में असमर्थ
पलकें मूंद लेते हैं
अत्याचार के नाम पर
अज्ञात भय से सहमें हम
गलियारे में झाड़ू की आवाज ले-ले कर
सुबह होने का अंदाजा भांपते हैं
फिर रह-रह कर आता है ख्याल
दीपक की असहाय अवस्था का
अंधेरे से जूझते रहने की व्यवस्था का
सो रहा हूं
और जाग रहा हूं
उठ-उठकर, कर रहा हूं प्रतीक्षा
नए भोर की
कवि सी.एल. कंवल # साहित्य वर्षा

छंदमुक्त कविताओं में सी.एल. कंवल की एक और कविता है, जिसका शीर्षक है- गंध। इस कविता में गंध को आधार बना कर छूटे हुए गांव की स्म्तियों का गहन आत्मीयतापूर्ण वर्णन किया गया है-

गंध मिट्टी की
पानी के साथ मिल कर
सोंधी हो जाती है।
तब मुझे मेरे गांव की खेती याद आती है।
गंध फूलों की
सुबह-शाम बाग में टहलती है
हौले-होले मेरे मस्तिष्क में
घुल जाती है
एक शंखनाद मन को
झकझोरता है
तब मुझे मदिर की याद आती है।
गंध जली रोटी की
मुझे बहुत भाती है
मेरी भूख और बढ़़ाती है
तब चौके में बैठी
रोटियां बेलती हुई
मुझे मेरी मां की याद आती है।

सी.एल. कंवल के दोहों में प्रकृति के बिम्बों में समाज ओर पारिवारिक संबंधों को संतुलित ढंग से पिरोया गया है। वे अपने दोहों में महुआ, कचनार, कोयल के साथ ही बेटी के महत्व, मां की ममता और महाजन की बदनियती की सहजता से चर्चा करते हैं। गजलों की अपेक्षा दोहों में उनकी पकड़ अपेक्षाकृत मजबूत दिखाई देती है। ये दोहे इस तथ्य का साक्ष्य हैं -

महुआ महके मेढ़ पर, अंगना में कचनार।
गोरी महके सेज पर , कर सोलह सिंगार।।
कोयल कुहुके बाग में, आम रहे गदराय।
दूर देश के सूअना, चख-चख कर उड़ जाए।।
बेटों से बेटी भली , रखे सभी का ख्याल।
बेटों के मन डोलते, भली लगे ससुराल।।
नजर महाजन की गड़ी, खड़ी फसल पर यार।
पहले सूद वसूल के, राखे असल संवार।।
मां की ममता है बड़ी, बड़ा बाप का प्यार।
जीवन की इस नाव के दोनों खेवनहार।।

एक विविध शिल्पी कवि के रूप में सी.एल. कंवल अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हुए सागर नगर की साहित्य सम्पदा में अपना उल्लेखनीय योगदान दे रहे है।
                   --------------
( दैनिक, आचरण  दि. 17.07.2019)
#आचरण #सागर_साहित्य_एवं_चिंतन #वर्षासिंह #मेरा_कॉलम #MyColumn #Varsha_Singh #Sagar_Sahitya_Evam_Chintan #Sagar #Aacharan #Daily

No comments:

Post a Comment