Thursday, November 21, 2019

सागर: साहित्य एवं चिंतन 67 : सामाजिक सरोकारों के कवि राधाकृष्ण व्यास ‘‘अनुज’’ - डाॅ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

                  स्थानीय दैनिक समाचार पत्र "आचरण" में प्रकाशित मेरा कॉलम "सागर साहित्य एवं चिंतन " । जिसमें इस बार मैंने लिखा है मेरे शहर सागर के कवि राधाकृष्ण व्यास 'अनुज' पर आलेख। पढ़िए और जानिए मेरे शहर के वर्तमान साहित्यिक परिवेश को ....

   
सागर: साहित्य एवं चिंतन

सामाजिक सरोकारों के कवि राधाकृष्ण व्यास ‘‘अनुज’’
        - डाॅ. वर्षा सिंह
   
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नाम: राधाकृष्ण व्यास ‘‘अनुज’’
जन्म: 01 अप्रेल 1956
जन्म स्थान: मौलवी चिरागउद्दीन का फर्श, परकोटा सागर (म. प्र.)
माता-पिता:स्व. श्रीमती रमाकांति व्यास एवं स्व. नन्हूराम व्यास
शिक्षा : बी. काम,  एल. एल. बी
लेखन विधा: गद्य एवं पद्य
प्रकाशित पुस्तक: पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं
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          सागर नगर के परकोटा क्षेत्र में मौलवी चिरागउद्दीन के फर्श में निवासरत श्री नन्हूराम व्यास एंव श्रीमती रमाकांति व्यास के पुत्र के रूप में 01 अप्रेल 1956 को जन्मे राण्धाकृष्ण व्यास को जन्म से ही देशभक्ति एवं देशप्रेम का वातावरण मिला। उनके पिता श्री नन्हूराम व्यास स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। वे गरम दल विचारधारा के थे। उनके पास अन्य सेनानियों का भी आना-जाना लगा रहता था। घर में वैचारिक चर्चाएं होती रहती थीं जिनका बाल्यावस्था से ही राधाकृष्ण व्यास के मानस पर प्रभाव पड़ा। स्कूली शिक्षा पूर्ण करने के बाद उन्होंने बी काॅम किया तथा इसके बाद कानून की पढ़ाई में रूचि जाग्रत होने से एल.एल.बी. किया। अपने पिता से मिला नेतृत्व का गुण उनके छात्र जीवन में उभर कर सामने आया और सर हरीसिंह गौर महाविद्यालय (नाईट कालेज) सागर म. प्र. में सन् 1979 में छात्रसंघ के सचिव बने। इसके बाद छात्रों के बीच लोकप्रियता के चलते सन् 1980 में छात्रसंघ के अध्यक्ष बने। एल.एल बी. करने के उपरांत अधिवक्ता संघ सागर म. प्र. के सन् 1997 से 1999 तक सह सचिव रहे।
           राधाकृष्ण व्यास रंगकर्म एवं पत्रकारिता के क्षेत्र रुचि रखने के साथ ही सामाजिक कार्यों में संलग्न रहते हैं। वे हिन्दू मुस्लिम समन्वय समिति के संयोजक भी हैं। वे ‘‘दैनिक गोलदुनिया’’ में लेखन करते रहे हैं। ‘‘साप्ताहिक सागर सत्ता’’ का संपादन किया तथा ‘‘साप्ताहिक बेलिहाज’’ के प्रकाशक एवं प्रधान सम्पादक रहे हैं। वर्तमान में कम्पनी बाग के पास गोपालगंज में निवास करते हुए वे अधिवक्ता का कार्य करने के साथ ही साहित्य सृजन में संलग्न हैं। सन् 1974 से लेखन कार्य में संलग्न रहते हुए सम-सामयिक समस्याओं पर लेख, कविता, नाटक व व्यंग आदि लिखते रहते हैं। अपने लेखन के संबंध में राधाकृष्ण व्यास बताते हैं कि- ‘‘पहली कविता कक्षा पांचवी में पूर्व प्रधान मंत्री श्रद्धेय लाल बहादुर शास्त्री जी की शोक सभा के लिये स्लेट पर लिख कर पढ़ी थी जिसे सुरक्षित रखने का ज्ञान नही था। सन 1975 में मेरी प्रथम कविता ने दिमाग पर दस्तक दी ‘‘घिसा अधन्ना’’। उस समय मैं ढोलक बीड़ी में छोटे से पद पर सेवारत् था। उस कविता को स्व. सेठ श्री मोतीलाल जी, जो स्वयं बहुत बड़े साहित्यकार रहे है, ने बहुत सराहा और लिखने  को प्रोत्साहित किया।ं फिर क्या था कलम ने रुकने का नाम नहीं लिया।’’
अपने उपनाम ‘‘अनुज’’ के संबंध में राधाकृष्ण व्यास बताते हैं कि-‘‘सन 1978 में देश के ख्यातिप्राप्त साहित्यकार एवं हमारे शहर के सभी के प्यारे भाई शिवकुमार श्रीवास्तव जी ने मुझे उपनाम ‘‘अनुज’’ दिया।’’
सागर : साहित्य एवं चिंतन - डॉ.

         राधाकृष्ण व्यास मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य संम्मेलन एवं बज़्मे दाग के सदस्य हैं तथा वे बुन्देलखण्ड हिंदी साहित्य संस्कृति विकास मंच की काव्य गोष्ठी का नियमित संचालन करते हैं। वे नगर की अग्रणी साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था श्यामलम से भी संम्बद्ध हैं। राधाकृष्ण व्यास ‘अनुज’ की कविताओं में सामाजिक सरोकार अपने अनूठे अंदाज़़ में मुखर होते हैं। उनकी चर्चित कविता ‘‘मैं घिसा अधन्ना हूं’’ देखिए -
कल के इतिहास का -
फटा हुआ पन्ना हूं........!
भूत रहा गर्दिश में मेरा,
है वर्तमान संघर्षशील
सुख की अनुभूति पाने को
मैं हूं प्रयत्नशील,
मैं भविष्य के प्रति चैकन्ना हूं...!
जीवन के जंगल से-
अरमानों के हरे दरख्त
लोगो ने -
मेरी इच्छा के विरुद्ध
काटे वक्त बेवक्त
मैं आहांे की किताब का
अनफटा  रमन्ना  हूं
जो चाहा मिला नहीं
हृदय कमल खिला नहीं
दर्द बने यार मेरे
संघर्ष से हमें गिला नहीं
एक अधूरी अनबूझी
अतृप्त तमन्ना हूं...!
मेरी शिराओं में हैं मधुरस
किस्मत में लिखा नही जस
चोकर फेंका गया गन्ना हूं...!
मैं घिसा अधन्ना हूं
कल के इतिहास का
फटा हुआ पन्ना हूं.....!

         जब जीवन के प्रति चिंतन हो और सामाजिक दायित्वों से जुड़ाव हो तो काव्य में दार्शनिक तत्व शामिल होना स्वाभाविक है। इंसान उन्नति के कोई भी आयाम छू ले किन्तु उसे यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि उसने जो कुछ पाया है उसके बदले कुछ खोया भी है। इसी तरह जो जमीन को छोड़ कर ऊंचाइयों की ओर बढ़ता है उसे एक न एक दिन ज़मीन पर वापस आना पड़ता हैं। कुछ यही दार्शनिक भाव है राधाकृष्ण व्यास ‘अनुज’ की इस कविता में -
उड़ान कितनी भी ऊची हो
नीचे तो आना होगा।
कुछ पाने की चाह हैं-मन में
कुछ तो खोना होगा।।
प्रीत की रीत बड़ी निराली
कहीं मुर्हरम कही दिवाली
होठों पर जब लगते ताले
फिर कैसा हंसना कैसा रोना।
अरमानों की लुटती डोली
अपने खेले खून की होली
तू क्या है तेरी हस्ती क्या
तू तो है सिर्फ एक खिलौेना।
मधुमास सी बीती जवानी
शेष नही अब कोई कहानी
पतझर सा जब आया बुढ़ापा
बचा नही कोई देने को पानी
उम्र के अन्तिम पड़ाव पर-सोचो
हमने क्या पाया क्या खोया
उड़ान कितनी भी ऊंची हो
नीचे तो आना होगा
कुछ पाने की चाह है मन मे
कुछ तो खोना होगा।
कवि राधाकृष्ण व्यास

         आज एकल परिवार का चलन इस कदर बढ़ गया है कि संयुक्त परिवार की संकल्पना टूटती दिखाई देती है। जब भाई-भाई परस्पर अलग होते हैं तो ज़मीन-जायदाद को ले कर विवाद भी खड़े हो जाते है। परस्पर कटुताएं बढ़ने लगती हैं। यह घर-घर का किस्सा हो चला है। संयुक्त परिवार की परम्परा रखने वाली भारतीय संस्कृति में पारिवारिक विखंडन का दृश्य देख कर ‘‘अनुज’’ जैसे कवि का विचलित होना स्वाभाविक है। इस विषय केन्द्रित उनकी यह कविता ध्यान दिए जाने योग्य है-
दिल रोता, लब हंसते हैं
अपने अपने घर के
अपने अपने
अलग अलग किस्से हैं।
नगरी-नगरी, द्वारे-द्वारे
खुले घूम रहे हत्यारे
सुरक्षित कोई नहीं यहां पर
पूछो तो कहते- अच्छे हैं
घर घर में है नागों का डेरा
ये मेरा है, और ये है तेरा
घर में ही शेर बने हैं
औरों को समझते भुने चने हैं
झूठा है संसार सारा
एक यही सच्चे हैं
दिल रोता, लब हंसते हैं
अपने अपने घर के
अलग अलग
अपने अपने किस्से हैं।

     राधाकृष्ण व्यास ‘अनुज’ की कविताएं उनके समाज के प्रति चिंतन को दर्शाने के साथ ही उनकी काव्य प्रतिभा को भी रेखांकित करती है। वे निश्चितरूप से सामाजिक सरोकारों के कवि कहे जा सकते हैं।

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( दैनिक, आचरण  दि. 15.11.2019)
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Tuesday, November 19, 2019

डॉ. विद्यावती "मालविका" का साहित्यिक भ्रमण - डॉ. वर्षा सिंह


     आज मेरी माता जी डॉ. विद्यावती "मालविका" जी, जो स्वयं भी वरिष्ठ साहित्यसेवी, कवयित्री एवं कथालेखिका हैं, ने इच्छा प्रकट की नगर के श्रेष्ठ गीतकारों में उच्चतम स्थान रखने वाले वरिष्ठ कवि श्री निर्मल चंद "निर्मल" एवं डॉ. श्याम मनोहर सीरोठिया तथा उनके परिवारजनों से भेंट करने की...।
   .... और उनकी इस इच्छा पूर्ति हेतु माता जी सहित मैं और बहन शरद पहुंच गए दादा निर्मल चंद जी एवं डॉ. सीरोठिया जी के निवास पर 😊 ... और फिर ख़ूब चर्चाएं हुईं साहित्यिक... पारिवारिक... युवा कवि भाई नलिन जैन की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।

बाल दिवस पर काव्य पाठ - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

     बाल दिवस यानी देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू जी के जन्म दिवस 14 नवम्बर को नोबल कॉलेज, सागर में जवहरलाल नेहरू- आधुनिक भारत के प्रणेता विषय पर एक दिवसीय संगोष्ठी संपन्न हुई। जिसमें विशिष्ट अतिथिद्वय के रूप में मुझे यानी इस ब्लॉग की लेखिका डॉ. वर्षा सिंह को काव्य पाठ हेतु एवं मेरी बहन लेखिका डॉ. (सुश्री) शरद सिंह को व्याख्यान देने हेतु आमंत्रित किया गया था। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि थे शासकीय कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय, सागर के जनभागीदारी समिति अध्यक्ष अमित रामजी दुबे। इस संगोष्ठी की संकल्पनाकार थीं नोबल कॉलेज की प्राचार्य सुश्री पूर्वा जैन।
       कॉलेज के शिक्षकों, विद्यार्थियों और गणमान्य नागरिकों की उपस्थित में सम्पन्न इस कार्यक्रम की अध्यक्षता नोबल कॉलेज के डायरेक्टर अवनीश देवलिया ने की एवं संचालन किया डॉ. कमलेश अहिरवार ने।












पुनश्चर्या पाठ्यक्रम मेंं ग़ज़ल पाठ - डॉ. वर्षा सिंह


        भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय के  सहयोग से "समकालीन भारतीय साहित्य : प्रवृत्ति और प्रयोग " विषय पर दो सप्ताह के पुनश्चर्या पाठ्यक्रम का आयोजन डॉ. हरीसिंह गौर केन्द्रीय विश्वविद्यालय के ह्युमन रिसोर्स डेवलपमेंट सेंटर  द्वारा आयोजित  किया गया था। जिसमें दिनांक 12.11.2019 रविवार को बहन डॉ. (सुश्री) शरद सिंह ने समकालीन कथा साहित्य पर व्याख्यान दिया और मुझे यानी इस ब्लॉग की लेखिका डॉ. वर्षा सिंह को  ग़ज़ल पाठ करने का अवसर मिला। इस आयोजन के समन्वयक डॉ. आनंद प्रकाश त्रिपाठी, अध्यक्ष, हिन्दी एवं संस्कृत विभाग।
      इस सत्र में डॉ. शशि कुमार सिंह ने संस्कृत में तथा डॉ. फिदाउल मुस्तफ़ा ने उर्दू ग़ज़ल का पाठ किया। इस अवसर पर डॉ. कन्हैया त्रिपाठी, पी आर मलैया, डॉ. पुनीत बिसारिया तथा पुनश्चर्या कार्यक्रम में देश भर से पधारे प्राध्यापकों की उल्लेखनीय उपस्थिति रही।
 सत्रों का संचालन क्रमशः डॉ नौनिहाल गौतम और डॉ शशि कुमार सिंह ने किया।
























Tuesday, November 12, 2019

डॉ. (सुश्री) शरद सिंह साहित्य आजतक के मंच पर


Dr. Sharad Singh

वेब मैगजीन "युवाप्रवर्तक" के दिनांक 12.11.2019 के अंक में प्रकाशित समाचार...
हार्दिक आभार "युवाप्रवर्तक" 🙏
         साहित्य की बेड़ियां कौन-सी हैं, उन्हें किस तरह काटा जा सकता है, उनसे किस तरह आजाद हुआ जा सकता है? यह विषय था चर्चा का जिसमें सागर निवासी देश की चर्चित साहित्यकार एवं लेखिका डॉ. (सुश्री) शरद सिंह को चर्चाकार के रूप में राष्ट्रीय टी.वी. चैनल ‘आजतक’ द्वारा आमंत्रित किया गया था।         
      ‘‘हल्ला बोल’’ स्टेज नं-3, एम्फी थिएटर के मंच पर आयोजित इस चर्चा में आजतक की ओर से चर्चा के प्रखर सूत्रधार थे नवीन कुमार। पहला प्रश्न उन्होंने डॉ शरद सिंह से ही किया कि उनके उपन्यास ‘‘पिछले पन्ने की औरतें’’ के संदर्भ में  वे कौन-सी बेड़ियां है जिनसे महिलाएं बंधी हुई हैं? उनके प्रश्न का उत्तर देते हुए शरद सिंह ने बेड़िया समाज की स्त्रियों के स्वाभिमान और संघर्ष के बारे में बताया।  समाज, राजनीति और साहित्य के परस्पर संबंध के विषय में प्रश्न पर खुल कर बोलते हुए सुश्री सिंह ने अपने विचार व्यक्त किए कि साहित्य और राजनीति के बीच संतुलित संबंध होना चाहिए। यदि साहित्यकार सरकार के सामने एक भिखारी की तरह खड़ा रहेगा लाभ की आशा में, तो वह कभी निष्पक्ष साहित्य नहीं रच सकेगा। एक अन्य प्रश्न के उत्तर में शरद सिंह ने कहा कि बेड़ियां हमीं ने बनाई हैं किसी एलियन (परग्रही) ने नहीं और हमें ही उन्हें तोड़ना होगा। इस संदर्भ में उन्होंने फ्रांसीसी दार्शनिक रूसो का यह वाक्य याद दिलाया कि ‘हम स्वतंत्र जन्म लेते है फिर सर्वत्र बेड़ियों में जकड़े रहते हैं।’ इस अवसर पर विभिन्न बिन्दुओं पर खुल कर चर्चाएं हुईं । साथ ही चर्चा में सहभागी लेखक भगवानदास मोरवाल की नवीन पुस्तक के लोकार्पण भी किया।

उल्लेखनीय है कि विगत 1 से 3 नवंबर 2019 को देश की राजधानी दिल्ली के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में लगने वाले साहित्य के सबसे बड़े महाकुंभ "आजतक" चैनल के इस प्रतिष्ठित चौथे तीन दिवसीय आयोजन में हिंदी साहित्य जगत के सुनाम दिग्गजों सहित देश- विदेश की कला, साहित्य, संगीत, संस्कृति और किताबों से जुड़ी अंतर्राष्ट्रीय ख्याति की अनेक शख़्सियतों ने शिरकत किया।
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http://yuvapravartak.com/?p=21056

Friday, November 1, 2019

साहित्य आजतक के मंच पर होंगी शरद सिंह

साहित्य आजतक में डॉ. (सुश्री) शरद सिंह # साहित्य वर्षा
       मध्यप्रदेश के सागर नगर में निवासरत देश की जानी-मानी हिन्दी लेखिका डॉ (सुश्री) शरद सिंह दिनांक 1 से 3 नवंबर के बीच  राजधानी दिल्ली के जनपथ स्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में लगने वाले साहित्य के सबसे बड़े महाकुंभ "साहित्य आजतक 2019" के मंच पर "साहित्य की बेड़ियां" विषय पर 3 नवंबर को अपने विचारों को साझा करेंगी।
      "आजतक" चैनल के प्रतिष्ठित लिटरेचर फेस्टिवल के इस चौथे तीन दिवसीय आयोजन में  हिंदी साहित्य जगत के सुनाम दिग्गजों सहित कला, साहित्य, संगीत, संस्कृति और किताबों से जुड़ी अंतर्राष्ट्रीय ख्याति की अनेक शख्सियतें शिरकत कर रही हैं।


     वर्ष 2016 में पहली बार 'साहित्य आजतक' की शुरुआत हुई थी। साहित्य आजतक कार्यक्रम के आयोजन का यह चौथा साल है। इस वर्ष 01 नवंबर 2019 को शुक्रवार सुबह साहित्य आजतक का आगाज सूर्यकांत त्रिपाठी निराली की वाणी वंदना से हुआ, कलाकारों ने '...वर दे वीणावादिनी वर दे' का गायन किया।

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