Thursday, February 28, 2019

सागर : साहित्य एवं चिंतन 44 - ऊंचाइयां छूने को तत्पर युवा शायर मुकेश सोनी रहबर - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh
     स्थानीय दैनिक समाचार पत्र "आचरण" में प्रकाशित मेरा कॉलम "सागर साहित्य एवं चिंतन " । जिसमें इस बार मैंने लिखा है मेरे शहर सागर के शायर मुकेश सोनी रहबर पर आलेख। पढ़िए और जानिए मेरे शहर के साहित्यिक परिवेश को ....
सागर : साहित्य एवं चिंतन

ऊंचाइयां छूने को तत्पर युवा शायर मुकेश सोनी रहबर
                     - डॉ. वर्षा सिंह
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परिचय :
नाम  : मुकेश सोनी रहबर
जन्म : 07 जून 1980
जन्म स्थान : ग्राम बरखेड़ी ( जबलपुर )
शिक्षाः बी.ए.
विधा : शायरी
पुस्तकें : पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित
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             जबलपुर जिले के ग्राम बरखेड़ी में 07 जून 1980 को जन्मे युवा कवि मुकेश सोनी रहबर 10 वर्ष की उम्र में अपने पिता श्री पूरन लाल सोनी तथा माता श्रीमती पार्वती सोनी के साथ सागर में आकर बस गए। उनकी  आरंभिक शिक्षा ग्राम बरखेडी में हुई, जबकि आगे की पढ़ाई सागर में रहकर पूरी की। कवि रहबर डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय,सागर से स्नातक उपाधि प्राप्त करने के बाद निजी व्यवसाय में संलग्न हो गए। इस दौरान उन्हें लेखन कार्य तथा साहित्य से लगाव हो गया। विशेष रूप से गजल विधा ने उनका ध्यान आकृष्ट किया। वे गोष्ठियों में ग़ज़लें पढ़ने लगे और शीघ्र ही कवि सम्मेलनों में भी उनकी सहभागिता होने लगी। उनकी रचनाएं पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं तथा आकाशवाणी से भी वे अपनी रचनाओं का पाठ कर चुके हैं।
               अपनी ग़ज़लों से सागर नगर के साहित्य समाज में अपनी पहचान बनाने वाले मुकेश सोनी रहबर को महिमा प्रकाशन, दुर्ग (छग) द्वारा उनके सृजन कार्य पर “मन की आवाज साहित्य सम्मान 2012“  से सम्मानित किया जा चुका है। इसी प्रकार हिंदी साहित्य में योगदान के लिए जीपी प्रकाशन जालंधर (पंजाब) द्वारा “काव्य कलश कालिदास सम्मान“ उन्हें प्रदान किया था। कवि रहबर मानते हैं कि ग़ज़ल वह विधा है जो दिल को गहराई से छू जाती है और इसीलिए यह विधा उन्हें विशेष रूप से पसंद है। रहबर की ग़ज़लों में एक सादगी है जो पाठकों ओर श्रोताओं के मन-मस्तिष्क पर अपना अलग ही प्रभाव डालती है। उनकी ग़ज़लों में आमजन जीवन की समस्याओं के साथ ही भावनात्मक रागात्मकता खुलकर मुखर होती है। उदाहरण के लिए यह ग़ज़ल देखें -
दिल दहल जाता है मेरा पढ़कर अब ये सुर्खियां।
गिर रही हैं क्यों हवस की हर तरफ ये बिजलियां।
मोमबत्ती ही जलाकर शोक ही करते हो तुम
मत करो बरबाद अपनी माचिसों की तीलियां।
गर जलाना है तो अब जिंदा जला दो तुम उन्हें
जिनके कारण हो रही बदनाम अपनी बेटियां।
अपने ही गुलशन में अब महफूज रह पाती नहीं
सहमी सहमी सी, डरी सी उड़ रही हैं तितलियां।
सो रहा है चैन से अब भी प्रशासन देखिए
लग रहा है हाथ में पहने हुए हो चूड़ियां।

             एक युवा मन का आक्रोश रहबर की गजलों में दिखाई देता है। यह आक्रोश जब निहायत व्यक्तिगत हो जाता है तो वे आत्मविवेचना की मुद्रा में दिखाई देते हैं और तब जो ग़ज़ल उनकी कलम से निकलती है वह इस प्रकार की होती है -
शोलों से भी हंस के निकल जाता हूं मैं
मां की दुआ है गिर के संभल जाता हूं मैं
कैसे भी हालात हो जाए डरता नहीं
दरिया हूं हर रूप में ढल जाता हूं मैं
देने लगी है मज़ा मुझे यह तकलीफें
रंज़ोग़म को हंसकर निगल जाता हूं मैं
दिल को आती है जब याद बुजुर्गों की
तन्हा कहीं फिर दूर निकल जाता हूं मैं

Sagar Sahitya awam Chintan - Dr. Varsha Singh

             अपने आपसपास के वातावरण का विवेचन करते हुए मुकेश सोनी रहबर बड़ी ही सरल ढंग से अपने गहराई पूर्ण विचारों को अपनी ग़ज़लों में पिरो देते हैं जैसे -
कितनी रातों को गंवाया हमने
तब हुनर आज ये पाया हमने
नफरतों की इन आंधियों में भी
दीप उल्फत का जलाया हमने
ये खबर भी है कि वो दुश्मन है
फिर भी सीने से लगाया हमने
हर तरफ अपने ही अपने हैं मगर
खुद को तन्हा यहां पाया हमने
बन के दीवार वहीं बैठे हैं
रास्ता जिनको दिखाया हमने

               रहबर की कई ग़ज़लें समय और व्यक्ति के द्वंद्व को उकेरती हुई स्वयं से संवाद और संघर्ष करती दिखाई देती हैं। इन ग़ज़लों में आशा, निराशा, चुनौतियां, संवेदनाएं, जैसी तमाम भावनाएं अभिव्यक्ति के मर्म में उतरने का आग्रह करती है -
हमने कभी किसी को भी धोखा नहीं दिया।
उठ जाए हम पे उंगली यह मौका नहीं दिया।
मेहनत के पसीने से कमाई है रोटियां
ज़िल्लत का हमने मुंह में निवाला नहीं दिया।
वह तो अदब वफ़ा की हक़दार थी मगर
क्यों हमने ज़िंदगी कोई तोहफा नहीं दिया।
इस बात का अफसोस है मुझको तो आज भी
गिरते हुए लोगों को सहारा नहीं दिया।

              अपनी ग़ज़लों में ज़िन्दगी के आम मसाइल पर ख़ूबसूरत अशआर पिरोता यह युवा शायर एक ही ग़ज़ल में संवेदनाओं के अनेक रंग पिरो देता है। आसानी से जेहन तक पहुंचती भाषा, सादगी भरी कहन और वज़नदार अशआर की त्रिवेणी इनकी ग़ज़ल-गोई की ख़ासियत है। लिहाज़ा, एक और ग़ज़ल देखें -
कब आओगे हम आज भी घर को सजाएं हैं
आंखों में अपनी यादों का सागर छुपाए हैं
मेरा गरीबखाना भी मंदिर से कम नहीं
इसमें तो बुजुर्गों की दुआओं के साए हैं
जब भी मिले वो हमसे हंस हंस के ही मिले
हमको थी क्या खबर की वह खंजर भी लाए हैं
तुरबत पे मेरी आज भी आते हैं वो आशिक
जो इश्क़ का अभी दिया दिल में जलाए हैं
हम मुफ़लिसों की बस्तियों को मत उजाड़िये
जिन महलों में रहते हो वह हम ने बनाए हैं
बायें से ...मुकेश सोनी रहबर, आदर्श दुबे एवं डॉ. वर्षा सिंह

                    प्रेम के विभिन्न पक्षों, संबंधों, विसंगतियों, व्यक्त और अव्यक्त उद्वेगों की अभिव्यक्तियों का सुंदर चित्रण रहबर की ग़जत्रलों में है। उनकी ग़ज़लें एक तरफ प्रेम का संदेश देती हैं, व्यष्टि से समष्टि की ओर जाते हुए प्रेम की व्याख्या करती हैं। उस विशेषता यह कि युवा कवि रहबर ने जिस खूबसूरती से ग़ज़लें कही हैं उतनी ही कलात्मकता से मुक्तक भी लिखे हैं -
मोहब्बत तुम भी करते हो मोहब्बत हम भी करते हैं
खुशी में हो या हो गम में, ये आंखें नम भी करते हैं
चलो एक बार फिर से क्यों ना अपने दिल मिला ले हम
वहां से तुम करो कोशिश यहां से हम भी करते हैं

         इसी तारतम्य में एक और मुक्तक देखें -
मैं वासी हिंद का हूं बस यही पहचान लिख देना
वतन के नाम ए मालिक मेरी यह जान लिख देना
मेरे दिल में सिवा इसके कोई ख्व़ाहिश नहीं बाकी
कफ़न में तुम मेरे इक दिन ये हिंदुस्तान लिख देना

                यूं तो सागर नगर में अनेक युवा साहित्य सृजन से जुड़े हुए हैं लेकिन मुकेश सोनी रहबर में सृजन के प्रति जो प्रतिबद्धता दिखाई देती है, उससे प्रतीत होता कि कि यह युवा कवि सृजन की ऊंचाइयों को छूने के लिए तत्पर है। यदि उनकी यह प्रतिबद्धता इसी प्रकार बनी रही तो वे एक न एक दिन ग़ज़ल विधा को अवश्य समृद्ध करेंगे।
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( दैनिक, आचरण  दि. 22.02.2019)
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Friday, February 22, 2019

शहीदों को श्रद्धांजलि

Dr. Varsha Singh
प्रिय मित्रों,
           प्रगतिशील लेखक संघ की मकरोनिया ईकाई की पाक्षिक गोष्ठी कल शाम रविवार दिनांक 17 फरवरी 2019 को सम्पन्न हुई, जिसकी अध्यक्षता मैंने यानी आपकी इस मित्र डॉ. वर्षा सिंह ने की। प्रथम सत्र में पुलवामा में शहीद हुए जवानों को श्रद्धांजलि दी गयी तथा द्वितीय सत्र में काव्य गोष्ठी आयोजित की गयी जिसमें उपस्थित कवियों सहित मैंने पुलवामा के शहीदों को समर्पित अपनी रचनाओं का पाठ किया।













पुलवामा में शहीद हुए जवानों के प्रति श्रद्धांजलि


उरी, कारगिल औ' पुलवामा, आख़िर कब तक झेलेंगे !
इस हमले को अब सह पाना, इतना भी आसान नहीं।
प्रिय मित्रों,
      दिनांक 16.02.2019 को पुलवामा में शहीद हुए जवानों को सागर नगर के साहित्य - सांस्कृतिक समाज द्वारा श्रद्धांजलि दी गई। जिसमें मैंने भी अपनी ग़ज़ल के माध्यम से अपनी श्रद्धांजलि व्यक्त की। आयोजक थे श्यामलम्  संस्था तथा बुंदेलखंड हिन्दी साहित्य एवं संस्कृति विकास मंच, सागर।










वसंतकाव्योत्सव

Dr. Varsha Singh
जहां पे ”वर्षा” हो रही है, गोलियों की इन दिनों
वहां पे अम्नो-चैन की, बजेगी  बांसुरी  कभी ।
    प्रिय मित्रों, पिछले सप्ताह दिनांक 12 फरवरी 2019 को नर्मदा जयन्ती के पावन पर्व पर मकरोनिया, सागर स्थित बी.टी. इंस्टीट्यूट ऑफ एक्सीलेंस में वसंतकाव्योत्सव का आयोजन किया गया था, जिसमें आमंत्रित कवयित्री के रूप में मैंने अपनी ग़ज़लें/कविताएं प्रस्तुत की थीं।
तस्वीरें उसी अवसर की....










Friday, February 15, 2019

सागर : साहित्य एवं चिंतन 43 ... काव्यात्मक विविधता के कवि गोविंददास नगरिया - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

       स्थानीय दैनिक समाचार पत्र "आचरण" में प्रकाशित मेरा कॉलम "सागर साहित्य एवं चिंतन " । जिसमें इस बार मैंने लिखा है मेरे शहर सागर के कवि गोविंददास नगरिया पर आलेख। पढ़िए और जानिए मेरे शहर के साहित्यिक परिवेश को ....

सागर : साहित्य एवं चिंतन

काव्यात्मक विविधता के कवि गोविंददास नगरिया
                                 - डॉ. वर्षा सिंह-

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परिचय    :- गोविंददास नगरिया
जन्म      :- 30 अक्टूबर 1932
जन्म स्थान :- सागर नगर
लेखन विधा :- पद्य एवं गद्य
प्रकाशन :- एक काव्य संग्रह प्रकाशित
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जन्म 30 अक्टूबर 1932 को सागर के एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मे गोविंददास नगरिया को अपने पिता श्री नन्हेंलाल नगरिया से अपार स्नेह मिला। बी.ए. साहित्य रत्न करने के साथ ही इंटर ड्राइंग तथा बीटीआई किया। पढ़ाई के उपरांत वे शिक्षक बने और लगभग 34 वर्ष शासकीय सेवा करके ‘‘आदर्श शिक्षक’’ का सम्मान अर्जित किया। सेवानिवृत्त के बाद वे साहित्यसेवा से और अधिक जुड़ गए। सागर पेंशनर समाज द्वारा “80 वर्षीय आयु वरिष्ठ शिक्षक“ का सम्मान प्रदान किया गया।
कवि नगरिया को नवीं कक्षा से ही काव्य सृजन से लगाव हो गया था। वे निरंतर साहित्य साधना करते रहे। सन् 1992 से वे साहित्यिक क्षेत्र में अधिक सक्रिय हुए। वर्तमान में वे हिंदी साहित्य सम्मेलन सागर शाखा, हिंदी उर्दू मजलिस, प्रगतिशील लेखक संघ आदि अनेक साहित्यिक संस्थाओं एवं आकाशवाणी के सागर केन्द्र से जुड़े हुए हैं। वे गीत, ग़ज़ल, क्षणिकाएं, मुक्तक के साथ ही कहानियां भी लिखते हैं। उनकी रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती है ।
“आदमी सुधरा नहीं है“ नामक काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुका है। जबकि “स्मृति के छींटे“ गीत संग्रह तथा “गीता सार“ लेख संग्रह प्रकाशनाधीन है। लेखन के अतिरिक्त अभिनय एवं चित्रकला में भी अभिरुचि है। साहित्यिक पत्रिकाओं का संपादन एवं निर्देशन भी कर चुके हैं।
गोविंददास नगरिया जी को कई साहित्य संस्थानों द्वारा सम्मान प्राप्त हो चुके हैं । जैसे- रंग खोज परिषद सागर, ईद दिवाली मिलन एकता समारोह सागर, गहोई वैश्य मिलन समारोह सागर, विधायक श्री शैलेंद्र जैन सागर विधायक द्वारा, श्री गोविंद सिंह राजपूत सुरखी द्वारा, गुप्त जयंती समारोह सागर, मनवानी फिल्म्स एवं सिंधु संस्कार सागर, जेजे फाउंडेशन सागर, श्यामलम संस्था सागर, शंकर दत्त चतुर्वेदी स्मरण पर्व तथा पेंशनर समाज सागर द्वारा सम्मानित कवि।
सहज, सरल  स्वभाव की नगरिया जी के नाम के बारे में डॉक्टर सुरेश आचार्य ने बहुत ही रोचक व्याख्या की है उनके अनुसार नगरिया जी के मित्र उन्हें वह “गोदान“ के नाम से पुकारते हैं डॉ सुरेश आचार्य ने लिखा है कि “श्री गोविंददास नगरिया अपनी साहित्यिक मित्र मंडली में गोदान जी कहे जाते हैं। गो से गोविंददास  और न से नगरिया वे रंगमंच से जुड़े रहे और चित्रकला उनकी रुचि का विषय रहा है। गीत गजल मुक्तक और क्षणिकाओं के लिए उनकी अच्छी ख्याति है, मगर उनकी कहानियां भी हमें मुग्ध करती है।“
“आदमी सुधरा नहीं है“ काव्य संग्रह  के संबंध में वरिष्ठ कवि निर्मल चंद ’निर्मल’ का कहना है कि -“यह काव्य संग्रह भारतीय परिवेश की सुलक्षण और सांस्कृतिक अवधारणा का मान बढ़ाता है । काव्य सलिला चार खंडों में विभाजित है। विषयानुसार भाषाई बिंबों में प्रवाहित है। ...बचपन का शौक समयांतर में परिपक्व हुआ। देश और सामाजिक चिंतन ने कलम को गति दी। संपूर्ण काव्यधारा देशवासियों से उत्तम और श्रेष्ठ चरित्र की मांग करती है ताकि देश सुदृढ़ और जो सोपानों में जड़ा जा सके।“
Sagar Sahitya awam Chintan - Dr. Varsha Singh

कवि नगरिया के काव्य सृजन के बारे में साहित्यकार एवं कवि टीकाराम त्रिपाठी का कहना है कि- “श्री नगरिया की काव्य शैली राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त के कालखंड के काव्य की तरह नपीतुली, ऋजुता और सादगी से संश्लिष्ट है।“
 नगरिया जी उस पीढ़ी के कवि हैं जिन्होंने देश की आजादी के संघर्ष को अपनी आंखों से देखा और अनुभूत किया है इसीलिए उनकी कविताओं में आजादी की महत्ता विशेष रूप से रेखांकित होती है उनकी यह पंक्तियां देखें -
सदियों तक देश गुलाम रहा, तब यह आजादी पाई है
धरती को मुक्त कराने में, लाखों ने जान गवाई है
अप जन जन को नवजीवन दे, मां का यह तुझे इशारा है
उठ भारत के लाल तुझे, धरती ने आज पुकारा है
सदियों से धरती देख रही, अपने लालों की बर्बादी
भर रही तिजोरी एक तरफ, है एक तरफ रोटी आधी
भूखे अधनंगे लोगों का, बस तू ही एक सहारा है
उठ भारत के लाल तुझे धरती ने आज पुकारा है।

 देश की आजादी का महत्व समझने वाली कवि नगरिया अपनी एक अन्य कविता में लोगों को सचेत करते हैं कि यह तो भ्रष्टाचार का क्रम इसी तरह जारी रहा तो एक दिन यह आजादी फिर छीन सकती है-
सदाचार का मूल्य न समझा
सब पर कालिख पुत जाएगी
अगर ना संभले लोग देश के
यह आजादी छिन जाएगी
कर्तव्य को भूल रहे जन
अधिकारों को लूट रहे हैं
भारत माता और मनुज से
सारे रिश्ते टूट रहे हैं
अगर प्रेम का मूल्य न समझा
सारी इज्जत धुल जाएगी
अगर ना संभले लोग देश के
यह आजादी छिन जाएगी।

 गोविंददास नगरिया ने जितनी गंभीरता से देश भक्ति की रचनाएं लिखी है उतनी ही सरसता के साथ श्रृंगार रस की कविताओं का सृजन किया है। छायावादी बिम्ब शैली उनकी रचनाओं के सौंदर्य को बढ़ा देती है। उनकी श्रृंगार रस की रचनाओं में प्रकृति की सुंदरता भी देखने को मिलती है। एक उदाहरण देखें-
घुमड़ते मेघ जब नभ में
धरा पर बरस जाने को
चमकती दामिनी सुंदर
मेघ का मन लुभाने को
उसी क्षण बूंद को पाने
पपीही बोल जब जाती
तुम्हारी याद तब आती।

प्रेम एक शाश्वत भावना है जो मनुष्य के हृदय को सरस बनाए रखती है। यही वह भावना है जो संवेदनाओं को जीवित रखती है। प्रेम की भावनाओं को कविता में कोमलता से पिरोना भी एक कला है और कवि नगरिया इस कला में निपुण हैं। उनकी कविताओं को पढ़ने के बाद यह बात स्वतः सिद्ध हो जाती है-
दिन तो कट जाता कैसे भी
रात बिताना कठिन बात है
प्यार तो बरसों से है उनसे
प्यार जताना कठिन बात है
साथ किसी के भी हो जाओ
साथ निभाना कठिन बात है

समाज तभी उन्नति करता है जब बेटों और बेटियों को एक समान समझा जाता है। जिस समाज में बेटियों को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है वह समाज तेजी से उन्नति करता है। इसी भावना को कवि नगरिया ने अपनी इस रचना में बखूबी पिरोया है -
बेटी पढ़ेगी तो अच्छा समाज गढ़ेगी
समाज की बुराइयों से हिम्मत से लड़ेगी
आज समाज का नैतिक पतन हो रहा है
वह समाज के उत्थान की राह पर बढ़ेगी
उसका जीवन चूल्हा चौका तक ही नहीं
वह अब हर क्षेत्र की ऊंचाइयों तक चढ़ेगी
आज का पुरुष किसी भी दिशा में जाए
उसे सुशिक्षित नारी की जरूरत पड़ेगी
हमारी नारी का इतिहास गौरवशाली है
उससे देश में पुनः सुखों की झड़ी झड़ेगी

गोविंददास नगरिया सागर नगर के एक ऐसे वरिष्ठ कवि एवं साहित्यकार हैं जिन्होंने अपनी सीधी, सरल, सहज रचनाओं से सागर के साहित्य जगत को समृद्ध किया है। उनकी कविताओं में शैली एवं विषयगत काव्यात्मक विविधता पाई जाती है जो उनकी सृजनधर्मिता को विशेष बनाती है। कवि नगरिया की सृजनात्मक सक्रियता एवं साहित्यिक संस्थाओं में सहभागिता आज के युवा साहित्यकारों के लिए प्रेरणास्पद है।
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( दैनिक, आचरण  दि. 14.02.2019)
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Saturday, February 9, 2019

सागर : साहित्य एवं चिंतन 42 .... भक्तिरस के कवि बिहारी सागर - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh
 स्थानीय दैनिक समाचार पत्र "आचरण" में प्रकाशित मेरा कॉलम "सागर साहित्य एवं चिंतन " । जिसमें इस बार मैंने लिखा है मेरे शहर सागर के कवि बिहारी सागर पर आलेख। पढ़िए और जानिए मेरे शहर के साहित्यिक परिवेश को ....

सागर : साहित्य एवं चिंतन

          भक्तिरस के कवि बिहारी सागर
                             - डॉ. वर्षा सिंह
                                         
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परिचय :- बिहारी सागर
जन्म :- 04 अप्रैल 1952
जन्म स्थान :- सागर नगर
पिता एवं माताः- स्व. रामप्रसाद सकवार एवं स्व. रामबाई सकवार
लेखन विधा :- पद्य
प्रकाशन :- पांच काव्य संग्रह प्रकाशित
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          सागर के काव्यजगत् में अनेक कवि ऐसे हैं जो हिन्दी और बुंदेली में भक्ति रचनाएं लिखते हैं। ये रचनाएं लोक के धर्मप्रवण मानस को न केवल प्रभावित करती हैं अपितु इनमें निहित शब्दों की सादगी इन्हें लोकरुचि में ढाल देता है। ऐसी पद्य रचनाओं की परम्परा में  कवि बिहारी सागर का नाम उललेखनीय है। सागर नगर के केशव गंज वार्ड में 04 अप्रैल 1952 को जन्मे बिहारी सागर को धार्मिक रुचि अपनी माता स्व.रमाबाई सकवार से मिली। अपने पिता स्व. रामप्रसाद सकवार से उन्होंने सादा जीवन जीने की शिक्षा पाई। अपने उसूलों पर चलते हुए जीवन व्यतीत करने की प्रतिबद्धता में उनकी पत्नी रामप्यारी सकवार का सदा सहयोग रहा है। बिहारी सागर की बड़े भाई स्व. बालमुकुंद ‘नक्श’ एक अच्छे संगीतकार थे। उनके गीत ग्रामोफोन रिकॉर्ड में भी रिकॉर्ड हुए थे। बालमुकुंद ‘नक्श’ लोकगीत गायन में भी विशेष दखल रखते थे तथा उन्हें शायरी का भी शौक था। बिहारी सागर मानते हैं कि अपने बड़े भाई की साहित्यिक अभिरुचि को देख कर ही साहित्य के प्रति उनका प्रेम  जागा। कवि डॉ सीताराम श्रीवास्तव ‘भावुक’ भी यह मानते हैं कि “कविवर बिहारी सागर को अपने बड़े भाई स्वर्गीय बालमुकुंद जो बुंदेलखंड के बहुत बड़े शायर थे, उनसे लिखने की प्रेरणा मिली है।“
बिहारी सागर के अब तक पांच काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। जिनके नाम हैं- ‘टेसू के फूल’, ‘फुलवारी’, ‘मधुसूदन’,‘बुंदेली बहार’ और ‘बुंदेली गूंज’। उनकी रचनाएं पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। साथ ही आकाशवाणी के सागर एवं छतरपुर केन्द्रों से वे अनेक बार काव्यपाठ कर चुके हैं। साहित्यिक मंचों तथा गोष्ठियों में सदैव भागीदार रहते हैं। इसके साथ ही वे साहित्य एवं सामाजिक संस्थाओं में सक्रिय योगदान देते रहते हैं।
           बिहारी सागर मूलतः गीतकार हैं। हिंदी और बुंदेली दोनों में ही गीत और भजन लिखते हैं। उनके लिखे हुए भजनों में गेयता के तत्व प्रचुर मात्रा में होते हैं। भक्ति पर आधारित काव्य संग्रह ‘‘बुंदेली गूंज’’ में लोक धुनों में बंधे हुए वे गीत हैं जो पाठकों के मन-मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव छोड़ते हैं। जैसे, बुंदेलखंड अंचल में नर्मदा का विशेष महत्व है। नर्मदा को यहां माता के समान पूज्य माना जाता है तथा नर्मदा स्नान एक पुण्य कार्य की तरह किया जाता है नर्मदा पर आधारित उनका गीत जिस दर्शन और नदी के प्रति आत्मीयता को व्यक्त करता है, उसे उनकी इन पंक्तियों में देखा जा सकता है-
चलो नर्मदा धाम बावरे
चलो नर्मदा धाम....
अमर कंठ से निकरी नर्मदा
पग पग बने पुण्य धाम....बावरे चलो
लहंगा फरिया पान सुपारी
भक्त चढ़ाए सुबह शाम....बावरे चलो
आरती वंदना निशदिन गावे
जपत माई को नाम....बावरे चलो
माई के पर कम्मा कर लो
छोड़ो मोह तमाम....बावरे चलो
माई नर्मदा उल्टी बहत हैं
महिमा अजब तमाम....बावरे चलो
शरण तुम्हारी आए बिहारी
स्वर्ग के मिलहें धाम....बावरे चलो

Sahitya avam Chintan - Dr. Varsha Singh

           धार्मिक जीवन में राधा और कृष्ण का दार्शनिक महत्व भी है। राधा की कल्पना प्रेम, अपनत्व और कृष्ण की महत्ता को रेखांकित करने वाली स्त्री के रूप में की जाती है। ऐसी राधारानी के प्रति अपने भावों को व्यक्त करते हुए बिहारी सागर ने यह भजन लिखा है-
जगत महारानी राधा रानी
इनकी अमर कहानी.....
मधुबन में जे चले झकोरा
चुनर उड़त है धानी.....जगत महारानी
वंशी श्याम की जब-जब बाजी
हृदय में जा समानी.....जगत महारानी
भूल गई पनघट की डगरिया
भर ने पाई पानी.....जगत महारानी
देव तुम्हारी महिमा गावे
तुम जग की कल्याणी.....जगत महारानी
कहत बिहारी प्रीत न्यारी
मन में राधा समानी.....जगत महारानी

             बुंदेली समाज में हास्य-व्यंग का विशेष स्थान है। जीवनयापन के लिए कठोर रम करने वाले मजदूर, किसान और दिन-रात घर के कामों में जुटी रहने वाली गृहणियां हास्य-व्यंग्य के माध्यम से ही अपने मन की थकान दूर करती हैं। बुंदेल के परिवेश के इसी परिवेश को ध्यान में रखते हुए बिहारी सागर ने हास्य गीत भी लिखे हैं। उदाहरण के लिए यह गीत देखिए-
डार के कौसें बना दई कड़ी
मोसे ननदिया खूबई लड़ी।
पुरा परोस में दए जा हल्ला
सुन रई परोसन खड़ी खड़ी.....मोसे ननदिया
मोसे के रई खूबई निछोई
अपनी बात पे खूबई अड़ी.....मोसे ननदिया
दुफर की बेरा जा रोटी ने खावे
सुनियो मोरी जिठानी बड़ी.....मोसे ननदिया
सास नदिया मोसे भुखरी
बिछोना डारके वे तो पड़ी.....मोसे ननदिया
आए ‘बिहारी’ लुवावे उनखां
देख के धना अटा पे चढ़ी.....मोसे ननदिया

               बिहारी सागर ने ऋतु पर आधारित गीत भी लिखे हैं जिनमें बुंदेली बोली की छटा और भी सुंदर ढंग से उभर कर आई है क्योंकि इनमें ऋतुवर्णन के साथ भक्तिभावना को भी पिरोया गया है। यह गीत देखें-
भादों की छाई घटा काली
भगवन की महिमा निराली।
पहरेदार सबरे सो रहे
बरसे बदरिया काली....भगवन की
बादल तड़के बिजली चमके
झूमे हवा डाली डाली....भगवन की
बेड़ीं खुल गईं तारे खुल गए
खुल गई जाली जाली....भगवन की
ले कै वसुदेव उनखों चले हैं
जमुना की बाढ़ है निराली....भगवन की
देखत पूर वसुदेव घबराने
प्रभु के चरण संभाली....भगवन की
नंद बाबा कैं आए ‘बिहारी’
हो रही बात अब निराली....भगवन की

                 आज जब व्यक्ति अपने जीवन में बहुत अधिक व्यस्त हो चला है और उसके पास इतना भी समय नहीं रहता है कि वह दो घड़ी के लिए दीन-दुनिया भुला कर भक्तिरस में डूब सके तब साहित्य में भक्ति की कविताओं का कम लिखा जाना स्वाभाविक है। यथार्थवादी युग में यथार्थ कलेवर वाली कविताओं के प्रति कवियों का रुझान अधिक रहता है। भक्तिकाव्य के लिए कठिन हो चले इस समय में बिहारी सागर जैसे कवियों का भजन और प्रभुवंदना लिखना इस बात की ओर संकेत करता है कि जीवन में लोकाचारी धार्मिक परम्पराओं की भांति साहित्य में भी भक्तिकाव्य अभी गतिमान है। यूं तो बिहारी सागर अन्य विषयों पर भी गीत रचते हैं किन्तु उनका भक्ति काव्य ही उन्हें स्थाई पहचान देगा।
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( दैनिक, आचरण  दि. 06.02.2019)
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Monday, February 4, 2019

साहित्यिक चर्चाएं .... डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh
साहित्यिक चर्चाओं का आनन्द ही अनूठा होता है।
अनेक विधाओं पर भिन्न-भिन्न चर्चाएं मनोमस्तिष्क में ऊर्जा का संचार करती हैं।
पिछले दिनों कुछ ऐसी ही चर्चा में शामिल होने का अवसर मिला।
          वसन्तोत्सव के आगमन की आहटें महसूस की जा सकती हैं, इन्हें देख कर..... वसन्तोत्सव यानी शिशिर की ठिठुरन के बाद कुनकुना अहसास...




       जी हां! पिछले दिनों डॉ. हरीसिंह गौर वि.वि. सागर में हिन्दी, संस्कृत विभागों के अधिष्ठाता डॉ. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी, जयपुर वि.वि. में सहायक प्राध्यापक सुन्दरम् शांडिल्य और अनेक चर्चित किताबों की प्रतिष्ठालब्ध लेखिका डॉ. (सुश्री) शरद सिंह और आपकी मित्र मैं डॉ. वर्षा सिंह... हम सभी ने आलोचना, कथा और काव्य के वर्तमान साहित्यिक परिदृश्य पर एक अनौपचारिक लम्बी चर्चा गोष्ठी हुई जिसकी तस्वीरें यहां शेयर कर रही हूं...