Friday, March 29, 2019

प्रगट भये रघुरैया, अवध में बाजे बधैया ....

Dr. Varsha Singh

बुंदेलखंड के प्रसिद्ध बधाई गीतों पर मैंने यानी आपकी इस मित्र डॉ. वर्षा सिंह और बहन डॉ. (सुश्री) शरद सिंह ने अन्य श्रद्धालुओं सहित भावपूर्ण नृत्य किया।अवसर था श्रीराम जन्म प्रसंग का .... सागर नगर में झंडा चौक, गोपालगंज स्थित श्री नृत्यगोपाल मंदिर परिसर में आयोजित, विदुषी कथा वाचक पुष्पा शास्त्री द्वारा की जा रही सात दिवसीय श्रीराम दिव्य संगीतमय कथा का वाचन किया जा रहा है।

डॉ. वर्षा सिंह

Dr. (Miss) Sharad Singh

      इतनी सुंदर रामकथा सुन कर , अलौकिक संगीतमय धार्मिक वातावरण में स्वयंमेव हमारे पैर थिरक उठे ।
 





🙏भाई उमाकांत मिश्र, रमाकांत शास्त्री, डॉ. सुरेश आचार्य, ऋषिकुल संस्कृत विद्यालय के आचार्य व बटुकों सहित श्रद्धालु महिलाएं एवं पुरुष बड़ी संख्या में उपस्थित थे।

🌹तस्वीरें उसी अवसर की...
🗓दिनांक 28.03.2018 कथा वाचन का तीसरा दिन।





बुंदेली बधाई गीत....
जो बंदनवारो कहां लये जातीं,
सखी री किते लये जाती। जो...
नगर अयोध्या में सुत भये सजनी,
राजा महीपत के नाती। उतईं लये जातीं...
राजा दशरथ के पुत्र भये हैं
रघुकुल वंश उजाराई बाती।उतईं लये जातीं ..
रानी कौशिल्या की कोख जुड़ानी
राजा दशरथ की छाती। उतई लये जातीं...
सब सखियन खों दान दये हैं
फूली नाहिं समाती। उतईं लये जातीं...





Monday, March 25, 2019

रंगपंचमी पर सागर में काव्य की वर्षा

Dr. Varsha Singh

रंगपंचमी की पूर्व संध्या पर सागर नगर में आयोजित कविसम्मेलन में लगभग 06 घंटे काव्य वर्षा होती रही।
संगीत श्रोता समाज संस्था द्वारा रविवार को पोद्दार कॉलोनी स्थित कार्यालय में विराट कवि सम्मेलन का आयोजन किया। इस दौरान 30 कवि और कवयित्रियों ने अपनी एक से बढ़कर रचनाओं से सभी को हंसाया। होली का त्योहार होने के चलते कवियों की रचनाएं होली पर ही केंद्रित रहीं। जिनमें सभी ने हास्य रचनाएं ही पढ़ीं। मुख्य अतिथि शुकदेव प्रसाद तिवारी थे। अध्यक्षता कवि निर्मल चंद निर्मल ने की। विशिष्ट अतिथि मैं स्वयं ब्लॉगर यानी डॉ.वर्षा सिंह थीं।









कवियों ने हास्य और व्यंग्य से भरपूर रचनाओं का पाठ कर उपस्थित श्रोताओं को होली के रंग में डुबो सा दिया।  करीब 6 घंटे तक चले आयोजन में प्रमुख रूप से डॉ.(सुश्री) शरद सिंह, डॉ.कुसुम अवस्थी, वृंदावन राय सरल, पुष्पदंत हितकर, मुकेश निराला, शिखर चंद शिखर, एम शरीफ, आशीष ज्योतिषी, अक्षय अनुग्रह, पुष्पेंद्र दुबे आदि ने काव्य पाठ किया। इस मौके पर संयोजक उमाकांत मिश्र मौजूद थे।











Friday, March 22, 2019

विश्व जल संरक्षण दिवस पर बुंदेली लेख -पानी बचाओ, झिन पानी बचाओ - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh
बुंदेली लेख     
     पानी बचाओ, झिन पानी बचाओ
                      
             - डॉ. वर्षा सिंह

एक दिना बे हते  जब हमई ओरें शान से कहत ते के -
बुंदेलन की सुनो कहानी, बुंदेलन की बानी में ....
पानीदार इते हैं सबरे,  आग इते के पानी में ।
अब जे दिना आ गए हैं के पानीदार तो सबई हैं, पर पानी खों तरस रए। ताल, तलैया, कुआ, बावड़ी, बंधा-बंधान सबई सूखत जा रये। अपने बुंदेलखण्ड में पानी की कमी कभऊ ने रही। बो कहो जात है न, के -
इते ताल हैं,  उते तलैया, इते कुआ, तो उते झिरैया।।
खेती कर लो, सपर खोंर लो, पानी कम न हुइये भैया।।


मगर पानी तो मानो रूठ गओ है। औ रूठहे काए न, हमने ऊकी कदर भुला दई। हमें नल औ बंधान से पानी मिलन लगो, सो हमने कुआ, बावड़ी में कचरा डालबो शुरू कर दओ। हम जेई भूल गए के जे बेई कुआ आएं जिनखों पूजन करे बगैर कोनऊ धरम को काम नई करो जात हतो। कुआ पूजबे के बादई यज्ञ-हवन होत ते। नई बहू को बिदा की बेरा में कुआ में तांबे को सिक्का डालो जात रहो और रस्ते में पड़बे वारी नदी की पूजा करी जात हती। जो सब जे लाने करो जात हतो के सबई जल के स्रोतन की इज्ज्त करें, उनको खयाल रखें। पानी से नाता जोड़बे के लाने जचकी भई नई-नई मां याने प्रसूता को कुआ के पास ले जाओ जात है औ कहूं-कहूं मां के दूध की बूंदें कुआ के पानी में डरवाई जात हैं। काए से के जैसे मां अपने दूध से बच्चे को जिनगी देत है, ऊंसई कुआ अपने पानी से सबई को जिनगी देत है। सो, प्रसूता औ कुआ में बहनापो सो बन जात है। पर हमने तो मानो जे सब भुला दओ है। लेकिन वो कहो जात है न, सुबह को भूलो, संझा घरे आ जाए तो भुलो ने कहात आए। हमें पानी को मोल समझनई परहे। पानी नईं सो जिंदगानी नईं। सो भैया, जे गनीमत आए के अब पानी बचाबे के लाने  सबई ने कमर कस लई है। कुआ, बावड़ी, ताल, तलैया, चौपड़ा सबई की सफाई होन लगी है। जो अब लों आगे नई आए उनखों सोई आगे बढ़ के पानी बचाबे में हाथ बंटाओ चाइए। वाटर हार्वेस्टिंग से बारिश में छत को पानी जमीन में पोंचाओ, नलों में टोटियां लगाओ, कुआ, बावड़ी गंदी ने करो औ पानी फालतू ने बहाओ फेर मजे से जे गीत गाओ-
पानी बचाओ, झिन पानी बचाओ ।
कुंइया तलैया खों फेर के जगाओ।।
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- डॉ. वर्षा सिंह




विश्व कविता दिवस 21.03.2019 पर शुभकामनाएं

Dr. Varsha Singh
लहलहाते हुए ये पेड़
याद दिलाते हैं मुझे
मेरे बचपन वाले गांव की
दादी के आंचल की छांव की
आम, नीम, पीपल, बरगद
मन रहता था गदगद.
सुबह से परिन्दों का चहचहाना,
रात के पहले पहर में चांद का
पेड़ की शाख़ों में अटक जाना.
लहलहाते हुए ये पेड़
और इनसे जुड़ी बचपन की यादें
रहेंगी ताउम्र मेरे साथ
क्योंकि सिर्फ़ स्वप्न नहीं कविता है
इनमें रचा बसा है मेरा ख़ालिस यथार्थ.
       -डॉ. वर्षा सिंह

प्रतिवर्ष 21 मार्च को विश्व कविता दिवस मनाया जाता है। यूनेस्को ने इस दिन को विश्व कविता दिवस के रूप में मनाने की घोषणा वर्ष 1999 में की थी जिसका उद्देश्य को कवियों और कविता की सृजनात्मक महिमा को सम्मान देने के लिए था।

काव्य, कविता या पद्य, साहित्य की वह विधा है जिसमें किसी कहानी या मनोभाव को कलात्मक रूप से किसी भाषा के द्वारा अभिव्यक्त किया जाता है। भारत में कविता का इतिहास और कविता का दर्शन बहुत पुराना है। इसका प्रारंभ भरतमुनि से समझा जा सकता है। कविता का शाब्दिक अर्थ है काव्यात्मक रचना या कवि की कृति, जो छन्दों की शृंखलाओं में विधिवत बांधी जाती है।

काव्य वह वाक्य रचना है जिससे चित्त किसी रस या मनोवेग से पूर्ण हो। अर्थात् वहजिसमें चुने हुए शब्दों के द्वारा कल्पना और मनोवेगों का प्रभाव डाला जाता है। रसगंगाधर में 'रमणीय' अर्थ के प्रतिपादक शब्द को 'काव्य' कहा है। 'अर्थ की रमणीयता' के अंतर्गत शब्द की रमणीयता (शब्दलंकार) भी समझकर लोग इस लक्षण को स्वीकार करते हैं। पर 'अर्थ' की 'रमणीयता' कई प्रकार की हो सकती है। इससे यह लक्षण बहुत स्पष्ट नहीं है। साहित्य दर्पणाकार विश्वनाथ का लक्षण ही सबसे ठीक जँचता है। उसके अनुसार 'रसात्मक वाक्य ही काव्य है'। रस अर्थात् मनोवेगों का सुखद संचार की काव्य की आत्मा है।

फ़िराक गोरखपुरी का कथन ह ै...
 "  विश्व-साहित्य का सबसे बड़ा और महत्त्वपूर्ण हिस्सा मानवीय है, जातीय या साप्रदायिक नहीं है. हिंदू होने के नाते विश्व का महान साहित्य पढ़ते हुए हम यह अनुभव कर ही नहीं सकते कि लेखक अहिंदू है- चाहे वह लेखक होमर हो, वर्जिल हो, फिरदौसी हो, शेक्सपियर हो या कोई दूसरा ही लोकप्रिय कवि या साहित्यकार हो. कविता का लक्षण या उद्देश्य है- हमें मानवीय संस्कृति देना. कविता मानव-राष्ट्र की स्थापना है।
     प्रेम को साहित्य का स्वेच्छाचारी, क्रूर या सर्वशक्तिमान् शासक कहा गया है. मेरा पहला काम तो इस देव या दैत्य से समझौता करना था. इस जालिम ने मेरे जीवन पर जो-जो चोटें की थी या करता जा रहा था, उन्हें मरहम में बदल देना था.
     मनुष्य की अंतरात्मा जब भीष्म पितामह की तरह घायल हो जाती है, तब शांतिपर्व की बारी आती है. कविता के संसार में धीरे-धीरे मेरा प्रेम-काव्य शांति और सांत्वना प्रदान करने का साधन माना जाने लगा.

     हर प्रेम-कथा एक दुखांत नाटक होती है. प्रेम की पीड़ाओं को एक ऐसी हालत में बदल देना, जो पीड़ा और दुख की गाथा से ऊपर चला जाये और उसे झुठलाया भी न जाये, भौतिक प्रेम को स्वर्गीय प्रेम बनाना बड़ी कठिन चढ़ाइयों का चढ़ना है. ऐसा करने में लोहे गल जाते हैं. अशांति की सीमाएं पार करने पर ही शांति की सीमाएं आरम्भ होती हैं. धर्मराज युधिष्ठिर को भी देवदूत ने पहले नरक के ही दर्शन कराये थे.
     प्रकृति, बाल-जीवन, नारीत्व, घरेलू जीवन, समाजिक जीवन और जीवन के मर्म धीरे-धीरे मेरी कविता के विषय बनते गये. मानव की गाथा, सभ्यता की कहानी, इतिहास की महान क्रांतियां भी मेरी कविता में वाणी पाने लगीं और मुखरित होने लगीं. इतिहास की शक्तियां मेरी रचनात्मक शक्तियों को तेज़ी से अपनी ओर खींचने लगी.

      काव्य-रचना व्यक्तित्व दुख-सुख की सूची तैयार करना नहीं है, बल्कि मानवीय दुख-सुख की व्याख्या है."


होली की हार्दिक शुभकामनाएं !!!

Dr. Varsha Singh

फागु की भीर ,अहीरिन ने गहि, गोविन्द लै गई भीतर गोरी।
हाय करी मन की पद्माकर, उपर नाई अबीर की झोरी ।
छीने पीतांबर कम्मर तैं, सु बिदा कर दई मीडि कपोलन रोरी।
नैन नचाय,कही मुसकाय,लला फिर आइयो खेलन होरी ।
 - कवि पद्माकर
सागर शहर अपनी अनेक मौलिकताओं से जाना जाता है । उनमे से एक है यहाँ के साहित्यकारों की होली । रीति काल के महाकवि पद्माकर का जन्म स्थान सागर है। उनकी जन्मस्थली के निकट सागर झील के तट पर स्थथित चकराघाट पर उनकी आदमकद मूर्ति स्थापित है।
        होली के दिन सागर नगर के साहित्यकार  सबसे पहले चकराघाट पर एकत्रित होकर महाकवि पद्माकर की मूर्ति तालाब के जल से स्नान कराते  है जिसमें कभी वे स्वयं नहाते थे, फिर पद्माकर की मूर्ति को तिलक लगाकर उस पर माल्यार्पण करते हैं और इसके बाद ही  आपस में तिलक लगाकर  होली खेलते हैं।


....ऐसे अनूठे अंदाज में बुंदेलखंड में सतरंगी छटा के त्यौहार होली पर सांस्कृतिक परंपराओं की छटा देखते बनती है.
होली पर मेरे यानी इस ब्लॉग लेखिका डॉ. वर्षा सिंह के कुछ बुंदेली छंद यहां प्रस्तुत हैं....

बुंदेली छंद

पीर मोसे मन की कही न जाए मोरी बिन्ना, बिरहा की अगन में जिया जरो जाए है ।।
जाने कैसे निठुर से नैना भये चार मोरे,
देख दशा मोरी मंद मंद मुस्काए है ।।
फागुनी बयार चली खेत गांव गली गली,
रंग की उमंग में तरंग चढ़ी जाए है ।।
टेरू तो सुनत नइयां बतियां मोरी कछु
दूर दूर भाग रये मों सो बिचकाय है।।

मोहे ना सजाओ मोरे माथे ना लगाओ बेंदी पिया मोसे रूठे मोहे कछु नहीं भाये है ।।
ऐसी कौन भूल गई मोसे मैं विचारूं भौत
बेर बेर सोचूं कछु समझ न आए है ।।
द्वार सारे बंद भये सखी सुख की गैल के
दुख ने किवरिया पे तारे चटकाए हैं ।।
जिया को उबारे कौन तारन की कुची धरे
पिया इत उत फिरें अब लौं रिसाए हैं।।

मैंने तो मनाओ बहुत चार बेर दस बेर
कहां लौं मनाऊं मोरे होंठाई पिराने हैं।।
सुने ना सुनाएं कछु मनई मगन रहें,
जाने की की बातन में सुध बिसराने हैं।।
मोरे तो जिया में जेई उपजत बेर बेर ,
नैनवा पिया के कहीं और उरझाने हैं ।।
मोहे जा बतारी बिन्ना तोहे है कसम मोरी,
मोसे नोनी को है,जा पे पिया जी रिझाने हैं।।
- डॉ. वर्षा सिंह

   होली पर्व पर मंगलकामनाएं.

       बुंदेलखंड में होली की हर जगह पर धूम रहती है। बुंदेलखंड में फागुन के महीने में गांव की चौपालों में 'फाग' की अनोखी महफिलें जमती हैं, जिनमें रंगों की बौछार के बीच गुलाल-अबीर से सने चेहरों वाले फगुआरों के होली गीत (फाग) जब फिजा में गूंजते हैं तो ऐसा लगता है कि श्रृंगार रस की बारिश हो रही है।
फाग के बोल सुनकर बच्चे, जवान व बूढ़ों के साथ महिलाएं भी झूम उठती हैं। 
फाग-सी मस्ती का नजारा कहीं और देखने को नहीं मिलता है। सुबह हो या शाम गांव की चौपालों में सजने वाली फाग की महफिलों में ढोलक की थाप और मंजीरे की झंकार के साथ उड़ते हुए अबीर-गुलाल के साथ मदमस्त किसानों बुंदेलखंडी होली गीत (फाग) गाने का अंदाज-ए-बयां इतना अनोखा और जोशीला होता है कि श्रोता मस्ती में चूर होकर थिरकने, नाचने पर मजबूर हो जाते हैं।
फाग सुनकर उनकी दिनभर की थकावट एक झटके में दूर हो जाती है और व मस्ती से भर उठते हैं।  कवि ईसुरी की फाग के बोल किसानों के दिल की आवाज है। फाग किसानों के दिल दिमाग में छा जाती है।
बुंदेलखंड में मध्यप्रदेश सहित उत्तरप्रदेश के भी कई जिले व गांव आते हैं। जिनमें फागुन के महीनों में ऋतुराज बसंत के आते ही जब टेसू के पेड़ लाल सुर्ख फूलों से लद जाते हैं, तब वातावरण में मादकता छा जाती है और पूरा महौल रोमांच से भर जाता है तब शुरू होती है फाग की महफिलें। गांव-गांव की चौपालों में बुंदेलखंड के मशहूर लोक कवि ईसुरी के बोल फाग की शक्ल में फिजा में गूंजकर किसानों को मदमस्त कर देते हैं।

 कवि ईसुरी के फागों में जादू है। दिनभर की मेहनत-मजदूरी करके शाम को जब थका-हारा किसान वापस आता है, तब फाग की महफिलों की मस्ती उसकी पूरी थकान दूर कर उसे तरो-ताजा कर देती है।
बुंदेलखंड में फागुन को महोत्सव के तौर पर मनाने की पुरानी रवायत है। बसंत से लेकर होली तक इस इलाके के हर गांव की चौपालों में फागों की धूम मची रहती है जिससे हर जगह मस्ती छाई रहती है।


        मौज का यह आलम होता है कि कहीं 80 साल का बूढ़ा बाबा बांसुरी से फाग की धुन निकालता नजर आता है तो कहीं 12 साल का छोटा बच्चा नगाड़ा बजाकर फाग शुरू होने का ऐलान करता दिखाई देता है तो महिलाएं भी इस मस्ती में पीछे नहीं रहती हैं। वे भी एक-दूसरे को रंग-अबीर लगाती हुईं फाग के विरह गीत गाकर माहौल को और भी रोमांचक बना देती हैं।
     फाग में विरह, श्रृंगार, ठिठोली और वीर रस भरे गीत गाए जाते हैं इसलिए फाग का जादू बुंदेली किसानों के सिर चढ़कर बोलता है।

           बसंत से लेकर होली तक फाग की फुहारों से पूरा बुंदेलखंड सराबोर हो जाता है। ऐसा लगता है कि जैसे यहां श्रृंगार का देवता उतर आया हो। इस इलाके में सभी उम्र के लोग फाग में इतना मदमस्त हो जाते हैं कि यहां पर 'फागुना में बाबा देवर लागे' की कहावत सच लगने लगती है।

     ईसुरी ने रजऊ के माध्यम से बुंदेलखंड की गरिमामयी नारी जीवन के विविध चरणों का चित्रण किया है। बुन्देली माटी के यशस्वी कवि ईसुरी की फागें कालजयी हैं।नारी चित्रण की सहजता, स्वाभाविकता, जीवन्तता, मुखरता तथा सात्विकता के पञ्चतत्वों से ईसुरी ने अपनी फागों का श्रृंगार किया है। ईसुरी ने अपनी प्रेरणास्रोत ‘रजऊ’ को केंद्र में रखकर नारी-छवियों के मनोहर शब्द-चित्र अंकित किये हैं। किशोरी रजऊ चंचलतावश आते-जाते समय घूँघट उठा-उठाकर कनखियों से ईसुरी को देखते हुए भी अनदेखा करना प्रदर्शित करते हुए उन्हें अपनी रूप राशि के दर्शन सुअवसर देती है:-
चलती कर खोल खें मुइयाँ रजऊ वयस लरकइयाँ
हेरत जात उँगरियन में हो तकती हैं परछइयाँ
लचकें तीन परें करया में फरकें डेरी बइयाँ
बातन मुख झर परत फूल से जो बागन में नइयाँ
धन्य भाग वे सैयाँ ईसुर जिनकी आयँ मुनइयाँ

बुंदेली लोक कवियों ने फाग गीतों पर कुछ ज्यादा ही कलम चलाई है। लोक कवि ईसुरी की फागों के रंग हर चौपाल व मंदिरों में बिखरते हैं। ब्रज एवं अवध क्षेत्र के मंदिरों में भी इन फागों की धूम रहती है।

भींजी फिरे राधिका रंग में, मन मोहन के संग में,
रंग की धूमल धाम मचा दई ब्रज की सब गलियन में,
कोऊ माजूम धतूरा फांके, कोई छक दई भंग में,
तन कपड़ा गए ऊंघर ईसुरी करी ढाक सब रंग में।’
      - ईसुरी
               ईसुरी द्वारा रचित यह फाग जहां राधिका एवं श्रीकृष्ण के प्रेम को दर्शाती है, वहीं होली के हुल्लड़ को भी अभिव्यक्त करती है। इसी प्रकार संत कवि चंद्रसखी का फाग गीत ‘होरी खेलन आयो श्याम आज जाए रंग में बोरो री’ को भी ब्रज एवं बुंदेलखंड के मंदिरों में संगीतज्ञों एवं फाग कलाकारों द्वारा गया जाता है।
'नईयाँ रजऊ तुमारी सानी सब दुनियाँ हम छानी।
सिंघल दीप छान लओ घर-घर, ना पदमिनी दिखानी।
पूरब पच्छिम उत्तर दक्खिन, खोज लई रजधानी।
रूपवंत जो तिरियाँ जग में, ते भर सकतीं पानी।
बड़ भागी हैं ओई ‘ईसुरी’ तिनकी तुम ठकुरानी।।
      - ईसुरी

           कवि प्रकाश का फाग गीत ‘मौं पर जो रंग जिते निहारों, उते बोई रंग डारो’ भी खूब पसंद किया जाता है। कई बुंदेली कवियों के फाग गीत हिंदी फिल्मों में भी गाए गए हैं। बुंदेलखंड के भक्ति कालीन युग के बुंदेली कवि पद्माकर व्यास, हरीराम व्यास, मदनेश एवं वर्तमान में महाकवि अवधेश ने कई बेमिसाल फाग गीत लिखे हैं, जो आज बुंदेलखंड की फाग गायकी की शान हैं।

हम पे नाहक रंग न डारो, घरे न प्रीतम प्यारो ।
फीकी फाग लगत बलम बिन, मन मे तुमई बिचारो ।
अतर गुलाल अबीर न छिरको, पिचकारी न मारो ।
ईसुर सूझत प्रान पति बिन, मोय जग मे अधियारो ।।
              - कवि  ईसुरी
 डॉ. (सुश्री) शरद सिंह का बुंदेली बोली में लिखा आलेख बहुत रोचक है -
http://epaper.patrika.com/c/8957514

Wednesday, March 20, 2019

🔥होलिका दहन पर हार्दिक शुभकामनाएं 🔥

🔥 होलिका दहन पर शुभकामनाएं 🔥



हृदय के क्लेश मिट जायें, जला दी होलिका हमने।
चलो अब रंग बिखरायें, जला दी होलिका हमने।
आपसी द्वेष की बातों से रहना दूर है हमको,
परस्पर बैर बिसरायें, जला दी होलिका हमने।
            - डॉ. वर्षा सिंह

कलागुरु विष्णु पाठक को श्रद्धांजलि

Dr. Varsha Singh

      दिनांक 10.03.2019 को स्थानीय आदर्श संगीत महाविद्यालय के प्रांगण में सागर नगर की अग्रणी संस्था श्यामलम् के संयोजकत्व में आयोजित श्रद्धांजलि सभा में हम सभी नगर के साहित्यकारों, संस्कृतिकर्मियों, कलाकारों आदि ने कलागुरु श्रद्धेय विष्णु पाठक जी को अपनी भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित की।










        स्मृतियों में अभी वे पल ताज़ा हैं जब 19 जून 2016 को बरियाघाट स्थित लोक कला अकादमी  पद्माकर भवन में कला गुरू विष्णु पाठक का 81 वां जन्मदिन मनाया गया था। इस अवसर पर सभी कलाकारो एवं नगर के प्रतिष्ठित नागरिक कला गुरू का सम्मान किया था ।
       तब पाठक सर ने सभी कलाकारों को संबोधित करते हुए कहा था कि युवा पीढ़ी को बुंदेलखण्ड की संस्कृति का संरक्षण कर देश और विदेश में सम्मान बढ़ाना है। उन्होंने देश विदेश फिल्म, टेलीविजन पर युवाओं द्वारा प्रस्तुत तथा राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय कामनवेल्थ लोक समारोह, अंतरराष्ट्रीय कलाओं में युवा कलाकारों द्वारा ५० से अधिक पुरूस्कार लेकर डॉ. हरीसिंह गौर विवि लोक कला अकादमी तथा बुंदेलखण्ड के लोक नृत्यों में स्वयं अपना कीर्तिमान स्थापित किया। आज भी फिल्मों में हमारे कलाकार कार्यरत है और अपनी सशक्त भूमिका निभा रहे है और आने वाली युवा पीढ़ी को इस परंपरा निभा रहे है। पाठक सर ने याद दिलाया था कि देश का पहला परफारर्मिंग आर्टस का हमारे विश्वविद्यालय ने खोला और सागर की प्रतिभाओं को देश और देश के बाहर श्रेष्ठ पद प्रदर्शन का अवसर और अनेक कीर्तिमान स्थापित किये। युवाओं को नि:शुल्क कला का प्रशिक्षण देने वाली एकमात्र संस्था है। बुंदेलखण्ड के बधाई लोक नृÞत्य जो १९८७ में सोवियत रूस गया था उसके बाद सागर में बधाई के २५ से अधिक सांस्कृतिक दल बन गये है और ये बुंदेलखण्ड के राजदूत के तरह हमारा गौरव बढ़ा रहे है।
               गुरू विष्णु पाठक ने १९५८ में दिल्ली में प्रथम पुरूस्कार लेकर बधाई लोक नृत्य की संरचना की। और उसके बाद आज की युवा पीढ़ी उसी परंपरा को निभा रही है। सागर की संस्कृति और कला के लिए संग्राहालय का भवन ‘स्मृति’ बनकर तैयार हो गया है। जिसमें हमारी कला और संस्कृति का संरक्षण हमारी युवा  पीढ़ी को प्रेरणा देता रहेगा।





        जिस तरह श्रद्धेय स्व. विष्णु पाठक जी हमारी स्मृतियों में सदैव विद्यमान रहेंगे, उसी तरह उनकी स्मृति में श्यामलम् द्वारा आयोजित श्रद्धांजलि सभा अविस्मरणीय रहेगी।






         06 मार्च 2019 के प्रथम पहर में सागर नगर ही नहीं वरन् देश के जानेमाने कलाविद् विष्णु पाठक जी ने हमसे सदा के लिए विदा ले ली थी। सागर को संस्कृति एवं कला जगत में विशेष पहचान दिलाने वाले सहज, सरल और सहृदयतापूर्ण व्यक्तित्व के धनी कलागुरु श्रद्धेय विष्णु पाठक जी के निधन का समाचार स्तब्ध करने वाला था।  उनके निधन से उत्पन्न हुई क्षति की पूर्ति संभव नहीं है। विष्णु पाठक जी का पितातुल्य स्नेह सदैव मुझे और बहन डॉ. सुश्री शरद सिंह को मिलता रहा है। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे। मेरी इन चार पंक्तियों के साथ उन्हें अश्रुपूरित कोटिशः नमन....

आंखों में आंसू की अविरल धारा है।
सागर का इक अतुल सपूत सिधारा है।
विष्णु नाम को किया सार्थक था जिसने
कला जगत का निश्चय वह ध्रुव तारा है।

     ईश्वर से उनकी आत्मा की शांति हेतु प्रार्थना है। उन्हें मेरी भावपूर्ण विनम्र श्रद्धांजलि !





19 जून 1935 को जन्मे पाठकजी 84 साल के थे। सागर ही नहीं प्रदेश और उच्च शिक्षा जगत में सांस्कृतिक क्षेत्र में विशेष पहचान रखने वाले विष्णु पाठक को देश-दुनिया में कई मंचों पर सम्मान मिला।
लगभग 83 वर्षीय विष्णु पाठक डॉ. हरीसिंह गौर विवि सागर के खेल एवं युवा कल्याण विभाग में लंबे समय तक अध्यक्ष रहे। उनके कार्यकाल में विवि की लोक नृत्य की टीम ने लगातार 35 वर्ष राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में प्रथम स्थान प्राप्त किया। विवि की सेवाओं से सेवानिवृत होने के बाद वे स्वयं की लोककला अकादमी संचालित कर युवाओं को लोक नृत्य का प्रशिक्षण दे रहे थे। पाठक ने लोक नृत्य की विवि की टीमों को लेकर रूस सहित कई अन्य देशों की यात्रायें की। भारत के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री सहित अन्य जनप्रतिनिधियों ने उन्हें सम्मानित किया।

कलागुरु विष्णु पाठक जी का निधन सागर ही नहीं वरन् देश-दुनिया के लोककला जगत के लिए अपूरणीय क्षति है। उन्होंने बुंदेली लोककला से सारी दुनिया को परिचित कराया और कलाकारों को सम्मानित स्थान दिलाया। मेरा सौभाग्य रहा कि मुझे पाठक जी का स्नेह-वात्सल्य मिला। उनका अब न होना मेरे मन के लिए स्वीकार करना अत्यंत पीड़ादायी है। मेरी आत्मिक विनम्र श्रद्धांजलि।
- डॉ. शरद सिंह, लेखिका एवं समाजसेवी
कलागुरु विष्णु पाठक जी के निधन के समाचार ने शोक संतप्त कर दिया है। सागर की कला संस्कृति के क्षेत्र में उनके निधन से उत्पन्न हुई रिक्तता की पूतिज़् संभव नहीं है। विष्णु पाठक जी का पितातुल्य स्नेह सदैव मुझे और बहन डॉ. सुश्री शरद सिंह को मिलता रहा है। ईश्वर उनकी आत्मा को
शांति प्रदान करे।
- डॉ. वर्षा सिंह, कवियत्री