Friday, March 22, 2019

विश्व कविता दिवस 21.03.2019 पर शुभकामनाएं

Dr. Varsha Singh
लहलहाते हुए ये पेड़
याद दिलाते हैं मुझे
मेरे बचपन वाले गांव की
दादी के आंचल की छांव की
आम, नीम, पीपल, बरगद
मन रहता था गदगद.
सुबह से परिन्दों का चहचहाना,
रात के पहले पहर में चांद का
पेड़ की शाख़ों में अटक जाना.
लहलहाते हुए ये पेड़
और इनसे जुड़ी बचपन की यादें
रहेंगी ताउम्र मेरे साथ
क्योंकि सिर्फ़ स्वप्न नहीं कविता है
इनमें रचा बसा है मेरा ख़ालिस यथार्थ.
       -डॉ. वर्षा सिंह

प्रतिवर्ष 21 मार्च को विश्व कविता दिवस मनाया जाता है। यूनेस्को ने इस दिन को विश्व कविता दिवस के रूप में मनाने की घोषणा वर्ष 1999 में की थी जिसका उद्देश्य को कवियों और कविता की सृजनात्मक महिमा को सम्मान देने के लिए था।

काव्य, कविता या पद्य, साहित्य की वह विधा है जिसमें किसी कहानी या मनोभाव को कलात्मक रूप से किसी भाषा के द्वारा अभिव्यक्त किया जाता है। भारत में कविता का इतिहास और कविता का दर्शन बहुत पुराना है। इसका प्रारंभ भरतमुनि से समझा जा सकता है। कविता का शाब्दिक अर्थ है काव्यात्मक रचना या कवि की कृति, जो छन्दों की शृंखलाओं में विधिवत बांधी जाती है।

काव्य वह वाक्य रचना है जिससे चित्त किसी रस या मनोवेग से पूर्ण हो। अर्थात् वहजिसमें चुने हुए शब्दों के द्वारा कल्पना और मनोवेगों का प्रभाव डाला जाता है। रसगंगाधर में 'रमणीय' अर्थ के प्रतिपादक शब्द को 'काव्य' कहा है। 'अर्थ की रमणीयता' के अंतर्गत शब्द की रमणीयता (शब्दलंकार) भी समझकर लोग इस लक्षण को स्वीकार करते हैं। पर 'अर्थ' की 'रमणीयता' कई प्रकार की हो सकती है। इससे यह लक्षण बहुत स्पष्ट नहीं है। साहित्य दर्पणाकार विश्वनाथ का लक्षण ही सबसे ठीक जँचता है। उसके अनुसार 'रसात्मक वाक्य ही काव्य है'। रस अर्थात् मनोवेगों का सुखद संचार की काव्य की आत्मा है।

फ़िराक गोरखपुरी का कथन ह ै...
 "  विश्व-साहित्य का सबसे बड़ा और महत्त्वपूर्ण हिस्सा मानवीय है, जातीय या साप्रदायिक नहीं है. हिंदू होने के नाते विश्व का महान साहित्य पढ़ते हुए हम यह अनुभव कर ही नहीं सकते कि लेखक अहिंदू है- चाहे वह लेखक होमर हो, वर्जिल हो, फिरदौसी हो, शेक्सपियर हो या कोई दूसरा ही लोकप्रिय कवि या साहित्यकार हो. कविता का लक्षण या उद्देश्य है- हमें मानवीय संस्कृति देना. कविता मानव-राष्ट्र की स्थापना है।
     प्रेम को साहित्य का स्वेच्छाचारी, क्रूर या सर्वशक्तिमान् शासक कहा गया है. मेरा पहला काम तो इस देव या दैत्य से समझौता करना था. इस जालिम ने मेरे जीवन पर जो-जो चोटें की थी या करता जा रहा था, उन्हें मरहम में बदल देना था.
     मनुष्य की अंतरात्मा जब भीष्म पितामह की तरह घायल हो जाती है, तब शांतिपर्व की बारी आती है. कविता के संसार में धीरे-धीरे मेरा प्रेम-काव्य शांति और सांत्वना प्रदान करने का साधन माना जाने लगा.

     हर प्रेम-कथा एक दुखांत नाटक होती है. प्रेम की पीड़ाओं को एक ऐसी हालत में बदल देना, जो पीड़ा और दुख की गाथा से ऊपर चला जाये और उसे झुठलाया भी न जाये, भौतिक प्रेम को स्वर्गीय प्रेम बनाना बड़ी कठिन चढ़ाइयों का चढ़ना है. ऐसा करने में लोहे गल जाते हैं. अशांति की सीमाएं पार करने पर ही शांति की सीमाएं आरम्भ होती हैं. धर्मराज युधिष्ठिर को भी देवदूत ने पहले नरक के ही दर्शन कराये थे.
     प्रकृति, बाल-जीवन, नारीत्व, घरेलू जीवन, समाजिक जीवन और जीवन के मर्म धीरे-धीरे मेरी कविता के विषय बनते गये. मानव की गाथा, सभ्यता की कहानी, इतिहास की महान क्रांतियां भी मेरी कविता में वाणी पाने लगीं और मुखरित होने लगीं. इतिहास की शक्तियां मेरी रचनात्मक शक्तियों को तेज़ी से अपनी ओर खींचने लगी.

      काव्य-रचना व्यक्तित्व दुख-सुख की सूची तैयार करना नहीं है, बल्कि मानवीय दुख-सुख की व्याख्या है."


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