Friday, May 31, 2019

काउंसलिंग, सम्मान औैर विश्व माहवारी दिवस पर केंद्रित क्षत्रिय समाज का कार्यक्रम

Dr. Varsha Singh

         मंगलवार दिनांक 28.05.2019 को मैंने यानी इस ब्लॉग की लेखिका डॉ. वर्षा सिंह ने रवींद्र भवन, सागर में क्षत्रिय नवचेतना मंच के तत्वावधान में भाई वीनू राणा की अध्यक्षता में आयोजित काउसंलिंग, सम्मान औैर विश्व माहवारी दिवस पर केंद्रित कार्यक्रम में सहभागिता की। जिसमें मुख्य अतिथि डॉ. (सुश्री) शरद सिंह थीं। कार्यक्रम का सफल संचालन गजेंद्र सिंह ने किया।
    इस  कार्यक्रम में बच्चों की काउंसिलिंग  तथा क्षत्रिय समाज के 450 मेधावी विद्यार्थियों का भी सम्मान किया गया। मंचासीन अतिथियों एवं समाज की उपस्थित  हम सभी महिलाओं ने यह संकल्प लिया कि कमजोर आर्थिक वर्ग की महिलाओं और युवतियों के लिए निःशुल्क सेनेटरी पेड की उपलब्ध कराने की व्यवस्था करेंगी।









http://epaper.patrika.com/c/39951300






जनसंख्या पर रोक लगाएं : एक जरूरी सा काव्य संग्रह - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

    शनिवार दिनांक 25.05.2019 को मैंने यानी इस ब्लॉग की लेखिका  डॉ. वर्षा सिंह ने "जनसंख्या पर रोक लगाएं " पुस्तक पर समीक्षात्मक व्यक्तव्य दिया। अवसर था श्यामलम् एवं आईएमए के संयुक्त तत्वावधान में स्थानीय म्यूनिसिपल स्कूल सभागार, सागर में आयोजित कवि एवं चिकित्सक डॉ. श्याम मनोहर सिरोठिया के दो नवीन काव्य संग्रह "आरोग्य संजीवनी" एवं "जनसंख्या पर रोक लगाएं "का लोकार्पण समारोह। जिसमें मुख्य अतिथि बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज, सागर के डीन डॉ. जीएस पटेल थे, सारस्वत अतिथि डॉ. जीवनलाल जैन थे, विशिष्ट अतिथि डॉ. नीना गिडियन थीं और अध्यक्ष डॉ. सुरेश आचार्य थे। समारोह में मुझे एवं बहन डॉ. (सुश्री) शरद सिंह को भी सम्मानित  किया गया।
   








 "जनसंख्या पर रोक लगाएं " पुस्तक पर मेरे द्वारा दिया गया समीक्षात्मक व्यक्तव्य यहां प्रस्तुत है....

           एक जरूरी सा काव्य संग्रह
                         - डॉ. वर्षा सिंह
      कविता साहित्य की एक ऐसी विधा है, जिसे आम तौर पर कोमल भावनाओं से जोड़ कर देखा जाता है। इसीलिए कविता में सबसे पहला स्थान प्रेम भावना को दिया जाता है। निश्चित रूप से प्रेम मानवीय अस्मिता की पहली पहचान है। यह प्रेम अपने आप में असीमित व्यापकता लिए हुए होता है। प्रेम का अर्थ सिर्फ वह प्रेम नहीं जो किसी प्रेमी जोड़े के मध्य हो। प्रेम परिवार के प्रति भी होता है, समाज के प्रति भी और देश के प्रति भी। प्रेम अतीत से भी हो सकता है, वर्तमान से भी और भविष्य से भी। यही प्रेम जब लोक सापेक्ष हो कर सामने आता है तो ‘‘जनसंख्या पर रोक लगाएं’’ जैसी कृति सामने आती है। डॉ. श्याम मनोहर सीरोठिया का काव्य संग्रह ‘‘जनसंख्या पर रोक लगाएं’’ एक ऐसे विषय पर केन्द्रित है, जिसमें उनकी काव्यात्मक चिंता का केन्द्र बिन्दु यह सकल समाज है।
      आज हम देखते हैं कि सरकार के अथक प्रयास करने के बाद भी गरीबी, बेरोजगारी और भुखमरी की समस्याएं मिट नहीं पा रही हैं। किसान घबरा कर आत्महत्या कर बैठते हैं और लगभग प्रत्येक युवा अपने भविष्य को ले कर सशंकित दिखाई देता है। परिस्थितियां विकट हैं। यदि नौकरी का एक रिक्त पद विज्ञापित किया जाता है तो उसके लिए हजारों आवेदन प्रस्तुत हो जाते हैं। यदि एक छोटा किसान दस बोरा गेंहूं उगाता है तो उसके घर के ही पंद्रह से बीस सदस्य उसे अपनें आगे हाथ फैलाए दिखते है।
        हम सोचते हैं कि मंहगाई तेजी से बढ़ रही है। हम उपभोक्तावादी हो कर बाजारवाद के शिकार बनते जा रहे हैं। यह दोनों बातें अपनी-अपनी जगह सही हैं किन्तु यदि मंहगाई बढ़ रही है तो इसलिए कि उपभोक्ता की तुलना में उत्पादन की उपलब्धता कम होती जा रही है। बेरोजगारी बढ़ रही है तो इसलिए कि रोजगार के अवसरों की अपेक्षा बेरोजगारों की संख्या बहुत अधिक है। कहने का आशय यही है कि अब समय है कि जब हम प्रत्यक्ष दिखाई देने वाले कारणों को हाशिए पर रख कर उस कारण की ओर अपना ध्यान केन्द्रित करें जो इन सभी समस्याओं के मूल में मौजूद है। यह मूल कारण है हमारे देश में विस्फोटक होती जनसंख्या। डॉ. सीरोठिया ने इसी मूल कारण को अपने काव्यात्मक पदों का आधार बनाया है, जो काव्य संग्रह में संग्रहीत हैं। लगभग 40 वर्षां तक विभिन्न पदों पर चिकित्सीय कार्य करने के दौरान उन्होंने जो अनुभव पाए वही अनुभव उनके इस संग्रह की प्रेरणा बने। डॉ. सीरोठिया ने पाया कि आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में तथा कम पढ़े-लिखे या अशिक्षित तबके में जनसंख्या नियंत्रण के प्रति जागरूकता का सर्वथा अभाव है। वे अपनी आर्थिक स्थिति, अपने संसाधन और अपने स्वास्थ्य को अनदेखा करते हुए संतानों को जन्म देते रहते हैं।  भले ही उन संतानों का लालन-पालन कर पाना उनके लिए संभव नही हो पाता है। यही संतानें अभावों के बीच भी जब किसी तरह पल-बढ़ जाती हैं तो अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए अपराध की दुनिया से जुड़ जाती है। यदि आज देश में अपराध की दर बढ़ रही है तो उसके मूल में भी असीमित जनसंख्या ही है। इसीलिए डॉ. सीरोठिया अपनी कविता के माध्यम से आग्रह करते हैं कि -
    अनचाही सब विपदाओं की,
     इन सामाजिक विषमताओं की ।
     जड़ में बढ़ती आबादी है,
     गला घोंटती ममताओं की ।।
     वातावरण बदलना होगा,
     फिसला कदम सम्हलना होगा।
     जनसंख्या के भस्मासुर से,
     आप बचें, यह देश बचाएं।।
     आओ मिल कर कदम बढ़ाएं,         
     जनसंख्या पर रोक लगाएं।।


समीक्ष्य कृति

           अशिक्षा के कारण लोग धर्म के मर्म को भी ठीक ढ़ंग से समझ नहीं पाते हैं। इसका एक ज्वलंत उदाहरण आफ्रीकी देश सूडान है। जहां जनसंख्या की विस्फोटक स्थिति के कारण संसाधन इतने कम पड़ गए हैं कि पीने का पानी मिलना भी वहां कठिन हो चला है। हमारे देश में अभी स्थिति फिर भी नियंत्रण में है। फिर भी विगत वर्ष 9 राज्यों को जल संकटग्रस्त घोषित किया गया था। महाराष्ट्र के लातूर में बाहर से पेयजल पहुंचाया गया। यह सारी परेशानियां जनसंख्या के बढ़ते हुए दबाव के कारण उत्पन्न हुईं। पढ़ा- लिखा तबका तो जनसंख्या नियंत्रण के महत्व को समझने लगा है। लेकिन अशिक्षित वर्ग संतान के पैदा होने को ईश्वर की इच्छा मान कर स्वीकार करता चला जाता है। अशिक्षा के कारण उसका इस ओर ध्यान ही नहीं जात कि जिस ईश्वर ने प्रजनन क्षमता दी है उसी ईश्वर ने प्रजनन क्षमता को नियंत्रित करने की बुद्धि भी प्रदान की है। धर्म ग्रंथ भी यही कहते हैं कि कार्य वही किए जाएं जिनसे सबका भला हो। इस तथ्य को डॉ. सीरोठिया ने अपनी इस कविता में बड़े सुंदर ढ़ंग से सामने रखा है -
    सब धर्मों का धर्म यही है,
    सब ग्रंथों का मर्म यही है।
    भला हो जिसमें मानवता का ,
    जीवन में सद्कर्म वही है।।
    बिना विचारे काम जो करते,
     धर्मों को बदनाम जो करते ।
     जीवन में सच को स्वीकारें,
     झूठी मान्यताएं ठुकराएं।।
     आओ मिल कर कदम बढ़ाएं,     
     जनसंख्या पर रोक लगाएं।।
              डॉ. सीरोठिया बाल विवाह के विरुद्ध भी आवाज उठाते हैं और कहते हैं -
रुक सकती है हर बरबादी,
कम कर लें बढ़ती आबादी।
लड़की की हो उमर अठारह,
लड़के की इक्कीस में शादी।।
          एक चिकित्सक होने के नाते डॉ. सीरोठिया ने जनसंख्या नियंत्रण के लिए अपनाए जाने वाले साधनों को भी अपने काव्य में प्रमुखता से स्थान दिया है। जैसे -
जब चाहें तब बच्चा पाएं,
अनहोनी पर ना झल्लाएं।।
खाने की गोली लें या फिर,
कॉपर टी, कंडोम लगाएं।।
आओ मिल कर कदम बढ़ाएं,
जनसंख्या पर रोक लगाएं।।
            वस्तुतः जनसंख्या नियंत्रण एक ऐसा मुद्दा है जिस पर समय रहते विचार करना और कदम उठाना अति आवश्यक है। इसके लिए जनसंख्या नियंत्रण अभियान को एक बार फिर जमीनी स्तर तक ले जाने की जरूरत है। यह सुखद पक्ष है कि जब डॉ. श्याम मनोहर सीरोठिया जैसे चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े हुए कवि, गीतकार जनसंख्या नियंत्रण को अपनी कविता का विषय बनाते हैं तो इससे जुड़े अभियान के सफल होने की सम्भावना प्रबल हो जाती है। क्योंकि यह कहा जाता है कि-
 जब कवि हाथ में उठा लेता है मशाल।
 तो बदल जाता है दुनिया का हाल ।।

   जनसंख्या नियंत्रण रूपी जागरूकता की मशाल ले कर डॉ. सीरोठिया अपने कदम बढ़ा चुके हैं और वे अपनी कविताओं के माध्यम से आमजनता से आग्रह करते हैं कि अब ‘‘हम दो हमारे दो’’ से काम नहीं चलने वाला है। अब समय आ गया है कि हम दो हमारा एक होना चाहिए। उनकी ये पंक्तियां देखें -
हम दो हों पर एक हमारा!
नई सदी का हो यह नारा !
इसी मंत्र की शक्ति में ही -
मुस्काता कल छिपा हमारा।।
         अपने मधुर गीतों एवं दोहों के लिए सुविख्यात डॉ. श्याम मनोहर सीरोठिया अपने इस नवीन संग्रह ‘ जनसंख्या पर रोक लगाएं’’ के द्वारा भी जनमानस में अपना विशेष स्थान बनाएं यही कामना है। साथ ही यह अपेक्षा है कि यह अत्यंत जरूरी काव्य संग्रह जन-जन तक पहुंचे, क्योंकि इतिहास गवाह है कि वैदिक काल से आज तक ज्ञान एवं नीति की बातें जनामानस ने पद्य के रूप में ही आत्मसात की हैं। वेद- महाकाव्य और रामचरित मानस जैसे ग्रंथ इसके उत्तम उदाहरण हैं। इसीलिए आशा की जा सकती है कि डॉ. श्याम मनोहर सीरोठिया ने जनसंख्या नियंत्रण के लिए जिस काव्य शक्ति को चुना है और  ‘ जनसंख्या पर रोक लगाएं’’ काव्य संग्रह प्रस्तुत किया है वह अपने उद्देश्य में सफलता प्राप्त करेगा।
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Monday, May 20, 2019

औरत तीन तस्वीरें : स्त्री विमर्श पर एक ज़रूरी किताब - डॉ. वर्षा सिंह


Dr. Varsha Singh

सागर नगर की प्रतिष्ठित राष्ट्रीय स्तर पर ख्यातिलब्ध  साहित्यकार, कथालेखिका एवं उपन्यासकार (सुश्री) शरद सिंह की स्त्री विमर्श पर केन्द्रित पुस्तक “ औरत : तीन तस्वीरें “ पर विदुषी समीक्षक आरती लम्ब द्वारा लिखी गई समीक्षा (सौजन्य दैनिक ट्रिब्यून, चंडीगढ़) यहां प्रस्तुत कर रही हूं। 
डॉ.(सुश्री) शरद सिंह
यह उन सबके लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगी जो स्त्री विमर्श को नारी की दुर्दशा का विवरण मात्र समझते हैं, जबकि स्त्रियों के उत्थान का पक्ष, स्त्रियों की उपलब्धियों का आख्यान भी स्त्री विमर्श के इस प्रखर स्वर में निहित है।


औरत तीन तस्वीरें : डॉ (सुश्री) शरद सिंह

औरत तीन तस्वीरें : लेखिका डॉ. (सुश्री) शरद सिंह - समीक्षा आरती लम्ब

Friday, May 17, 2019

सागर : साहित्य एवं चिंतन 50 ....मंचों पर धूम मचाने वाले कवि शिखरचंद जैन ‘शिखर’ - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

       स्थानीय दैनिक समाचार पत्र "आचरण" में प्रकाशित मेरा कॉलम "सागर साहित्य एवं चिंतन " । जिसमें इस बार मैंने लिखा है मेरे शहर सागर के कवि शिखरचंद जैन "शिखर" पर आलेख। पढ़िए और जानिए मेरे शहर के साहित्यिक परिवेश को ....

सागर : साहित्य एवं चिंतन

          मंचों पर धूम मचाने वाले कवि शिखरचंद जैन ‘शिखर’
                                - डॉ. वर्षा सिंह
                             
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परिचय :- शिखरचंद जैन ‘शिखर’
जन्म :-  24 नवम्बर 1954
जन्म स्थान :- ग्राम बीजरी, सागर (म.प्र.)
पिता एवं माताः- श्री होतीलाल जैन एवं श्रीमती चम्पा बाई जैन
शिक्षा :- विद्यालयीन
लेखन विधा :- गीत, गजल
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            काव्य विधा ने जितना स्थायीत्व मुद्रण के द्वारा प्राप्त किया, उतनी ही ख्याति मंच पर मुखर हो कर भी पाई। मंचीय काव्य की गरिमा को सोम ठाकुर, गोपालदास ‘नीरज’, माया गोविंद, प्रभा ठाकुर ने श्रंगारिक सरसता की ऊंचाईयों तक पहुंचाया, वहीं प्रदीप चौबे, शैल चतुर्वेदी, काका हाथरसी ने हास्य और व्यंग्य को शालीनता की सीमा में रखते हुए प्रस्तुत करने की एक परम्परा गढ़ी। सागर नगर के कवियों ने भी मंच से अपना नाता रखा। नगर के वरिष्ठ कवि निर्मलचंद ‘निर्मल’ आज भी नीरज के साथ पढ़े गए मंचों की स्म्ृतियों को सहेजे हुए हैं तथा मंचीय कविता से साहित्यिकता को विलोपित होते देख दुखी होते हैं। किन्तु यह सागर नगर के साहित्कारों की काव्य के प्रति प्रतिबद्धता है कि जहां देश में मंचीय स्तर पर कविता अपनी गरिमा खोती जा रही है, वहां सागर के मंचीय कवि कविता की गरिमा को यथासम्भव बचाए हुए हैं। इस क्रम में एक उल्लेखनीय नाम है- कवि शिखरचंद जैन ‘शिखर’ का।
             सागर जिले की खुरई तहसील के ग्राम बीजरी में श्री होतीलाल जैन एवं श्रीमती चम्पा बाई के पुत्र के रूप में 24 नवम्बर 1954 को शिखरचंद जैन का जन्म हुआ। शिखरचंद के पिता व्यवसायी थे तथा रेडीमेड कपड़ों का व्यवसाय करते थे। इस पारिवारिक व्यवसाय को शिखरचंद जैन ने बड़ी कुशलता से आज भी सम्हाला हुआ है। उन दिनों शिखरचंद की आयु 13 वर्ष थी जब वे सागर आ कर निवास करने लगे। सागर में ही उनकी स्कूली शिक्षा हुई। बाल्यावस्था से ही शास्त्ऱीय गायन में रुचि होने के कारण प्रयाग संगीत समिति, इलाहाबाद से गायन विधा में विशारद की उपाधि प्राप्त की। अपने पिता के व्यवसाय में हाथ बंटाने की व्यस्तता के कारण उनकी औपचारिक शिक्षा सीमित रह गई। किन्तु साहित्य और संगीत से उनका लगाव असीमित बना रहा। शिखरचंद जैन का रुझान गीत और गजल लेखन की ओर बढ़ा। वे नगर में होने वाली काव्य गोष्ठियों में काव्यपाठ करने लगे। इस दौरान वे नगर के वरिष्ठ गीतकार निर्मलचंद ‘निर्मल’ के सम्पर्क में आए। शिखरचंद जैन बताते हैं कि - ‘‘सन् 1982 में निर्मल दादा ने मुझे अपना शिष्य बना लिया। इसके बाद मेरे मंचीय काव्य प्रस्तुति को सही दिशा मिली। मैं अखिल भारतीय कविसम्मोलनों में आमंत्रित किया जाने लगा।’’
 

बाएं से : डॉ. वर्षा सिंह, डॉ. (सुश्री) शरद सिंह एवं कवि शिखरचंद जैन "शिखर"

         शिखरचंद जैन ने ‘शिखर’ उपनाम रखा और वे देश के विभिन्न शहरों जैसे - मुम्बई, दिल्ली, जयपुर, लखनऊ, विजयनगर, गोहाटी, नागपुर, बनारस, जौनपुर, कोटा से ले कर अमरकंटक तक अनेक मंचों पर काव्यपाठ किया। उन्होंने सुप्रसिद्ध जैन तीर्थ कुण्डलपुर, महावीर जी तथा शिखर जी में भी मानवतापूर्ण धर्मप्रवण कविताएं पढ़ीं। आकाशवाणी तथा दूरदर्शन से भी इनके गीतों का प्रसारण होता रहता है।
           कवि सम्मेलनों के गिरते स्तर पर चिंता व्यक्त करते हुए शिखरचंद जैन ‘शिखर’ कहते हैं कि - ‘‘पहले जो कविसम्मेलन होते थे उनमें फूहड़ता नहीं होती थी, लेकिन वर्तमान में कवि सम्मेलनों का स्तर निरंतर गिरता जा रहा है। हम केवल श्रोताओं को दोष दें, यह ठीक नहीं। दोषी तो वे कवि हैं जो वाह -वाही लूटने के लिए स्तरहीन रचनाएं पढ़ते हैं। जबकि श्रोता मंचों से आज भी अच्छे गीत, गजल, हास्य-व्यंग्य सुनने की चाह रखते हैं।’’
उर्दू साहित्य की भांति हिन्दी साहित्य में गुरु-शिष्य परम्परा प्रखर नहीं रही। किन्तु हिन्दी साहित्य में भी जो कवि गुरु-शिष्य परम्परा को मानते आए हैं, उन्होंने अपने गुरु को अपनी सफलता का केन्द्र बिन्दु इंगित किया है। कवि शिखरचंद जैन ‘शिखर’ भी मंचों पर अपनी सफलता का श्रेय अपने गुरु कवि निर्मलचंद ‘निर्मल’ को देते हैं। कवि शिखर मानते हैं कि - ‘‘मेरे काव्य जीवन को ऊंचाईयों तक पहुंचाने में मेरे गुरु निर्मलचंद जी का योगदान है ही, साथ ही मेरे परिवार के सदस्यों ने मेरे हिस्से का भी दायित्व सम्हालते हुए जो मुझे सहयोग दिया वह भी उल्लेखनीय है। मेरे बड़े भाई मास्टर सुरेशचंद जैन, मेरी पत्नी सुषमा, पुत्र सिद्धार्थ, पुत्रियां सारिका, सपना, शालिनी, शिखा के साथ ही मेरे दामादों ने भी मेरे मंचों पर जा कर काव्यपाठ को प्रोत्साहन दिया।’’
           शिखरचंद जैन की कविताओं में सादगी और सरलता की विशेषता है। यही कारण है कि उनकी कविताएं मंचों से सम्प्रेषणीय रहीं। एक बानगी देखिए-
मिल के सोचें जरा किस तौर गुजर जाती है।
जिन्दगी नाम की जो एक लहर आती है।
कहीं बारिश कहीं पे धुंध कहीं कोहरा,
कहीं विकराल हो आतप सी बिखर जाती है।
लगे जो जोड़ने टूटे दिलों की तकदीरें
उनके किरदार से फूलों की महक आती है।
कब तलक डाल पे पंछी का बसेरा होगा
एक दिन उड़ना है, पदचाप ठहर जाती है।
आंख ऊंची का तो सम्मान हुआ करता है
आंख नीची भी कभी खूब कहर ढाती है।
हस्तियां खास क्या शमशान निगल पाएगा
याद वीरों को तो यादों का शिखर पाती हैं।

Kavi Shikharchand Jain "Shikhar"


           शिखर चंद जैन शिखर की कविताओं में दार्शनिक भाव देखने को मिलते हैं। जैसे इन पंक्तियों को देखें....
भटके हैं जन्म जन्म तुम्हारी ही आस में
सदियां गुजर गई है क्षणों की तलाश में
आनंद की हिलोरें तो तट के करीब हों
सागर का रूप मिलता है लघु के विनाश में
मजहब के नाम पर यही पाया है आजकल
बस चाहता है आदमी आ जाना प्रकाश में

         जहां तक गीतों में कथ्य की सादगी का प्रश्न है तो कवि शिखर  के गीतों में एक अलग ही सादगी होती है। जैसे, उनका एक गीत है- “मैं कविता लिखना क्या जानूं“। इस गीत में  भुने अपने उन्होंने अपने गीत सृजन के उद्देश्य को बखूबी वर्णित किया है। पंक्तियां इस प्रकार हैं-
 मैं कविता लिखना क्या जानूं केवल तुकतान भिड़ाता  हूं
 शब्दों के खेल खेलता हूं भावों के पेंच लड़ाता हूं .....

उलझावा छंद व्याकरण का  मुझको तो नहीं सुहाता है
जनमानस को भा जाए जो मुझको वह लिखना आता है
मैं गीत ग़ज़ल की नाड़ी को हर धड़कन में धड़काता हूं
मैं कविता लिखना क्या जानूं केवल तुकतान भिड़ाता हूं

जीना सीखो इस जीवन को यह कहकर मैं मुस्काता हूं
थोड़े दिन के सब मेहमां हैं मेहमानी ही जतलाता हूं
क्यों करें गुलामी आदत की संकट को नहीं बुलाता हूं
जितनी चादर अपने हक में उतने ही पैर बढ़ाता हूं
जीवन पथ में जो हार गए उनको समझाने जाता हूं
मैं कविता लिखना क्या जानूं केवल तुकतान भिड़ाता हूं

          शिखर चंद जैन शिखर बुंदेली बोली में भी गीत लिखते हैं उनके बुंदेली गीत मधुर और सरस होते हैं बुंदेली में उन्होंने रितु और प्रकृति का सुंदर वर्णन किया है, वहीं वर्तमान समाज में व्याप्त स्वार्थपरता पर भी दिखा कटाक्ष किया है-
रस के मेघा बरसे हम बूंद-बूंद को तरसे
अपनी विपत कौन से केवें नाहक निकले घर से .....
मतलब के सब दोस्त यार हैं संग चाय तक पीवो
मोरी हालत कोऊ ने पूछे दिन दिन कैसो जीवो
ऐसे ऐसे दिन गुजरे हैं मन उखरे है जड़ से, रस के मेघा बरसे....
कोऊ कोऊ को किलब बने हैं कोऊ खों महल अटारी
इते किराए की मिली झुपड़िया ऐसी दुनियादारी
हम उसईं के ऊंसईं रे गए बे नारायण नर से, रस के मेघा बरसे...

       आज सागर नगर अनेक युवा कवि मंच की ओर निरंतर अपने कदम बढ़ा रहे हैं ऐसे युवा कवि शिखर चंद जैन शिखर की मंचीय अनुभवों एवं साहित्यिकता के भावों को ग्रहण कर सकते हैं तथा अपने साहित्य और मंच के बीच कवि शिखर की भांति एक शालीन एवं सम्मानित संबंध स्थापित कर सकते हैं।
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( दैनिक, आचरण  दि. 17.05.2019)
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Wednesday, May 15, 2019

विश्व परिवार दिवस और बुंदेलखंड - डॉ. वर्षा सिंह


Dr. Varsha Singh
आज विश्व परिवार दिवस है...
प्रत्येक वर्ष 15 मई को विश्व परिवार दिवस मनाया जाता है।
सम्पूर्ण प्राणी जगत एवं समाज में परिवार सबसे छोटी इकाई है। इसे सामाजिक संगठन की मौलिक इकाई भी कहा जा सकता है। सच तो यह है कि परिवार को एक सूत्र में बांधे रखना एक बड़ी चुनौती है। वर्तमान समय में परिवार के रिश्ते टूट रहे हैं असहिष्णुता के कारण  रिश्ते मज़बूत नहीं रह गए हैं।  विश्व परिवार दिवस को संयुक्त राष्ट्र अमेरिका ने 1994 को अंतरराष्ट्रीय परिवार वर्ष घोषित किया था। तब से विश्व में लोगों के बीच परिवार की अहमियत बताने के लिए हर साल 15 मई को अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस मनाया जाने लगा और 1995 से अभी तक यह सिलसिला जारी है।

 हमारे देश में भी परिवार के महत्व को समझाने के लिए अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस विभिन्न संस्थाओं द्वारा अनेक प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस हेतु जिस प्रतीक चिह्न को चुना गया है, उसमें हरे रंग के एक गोल घेरे के बीचों बीच एक दिल और घर अंकित किया गया है, जो यह बताता है कि किसी भी समाज का केंद्र परिवार ही होता है। परिवार ही हर उम्र के लोगों को शांति से जीना सिखाता है।

 उपभोक्तावादी संस्कृति के कारण आपसी मतभेद और पारिवारिक कलह के कारण  समाज में जहां अपनत्व की भावना क्षीण होते जा रही है, वहीं रिश्ते भी तार-तार हो रहे हैं।  परिवार को साथ जोड़ने का मौका है परिवार दिवस । आज विश्व भर में एकल परिवार की मानो लहर सी फैल गयी है।

बुंदेलखंड में संयुक्त परिवार की परम्परा अब टूटती जा रही है। एकल परिवार यहां बुंदेलखंड के हृदय स्थल सागर में भी बढ़ते जा रहे हैं। ख़ास वज़ह यह भी है कि बुंदेलखंड में रोजगार के अवसर बेहद सीमित हैं। रोजगार के लिए युवा बड़े शहरों में जाने को विवश हैं। लगभग हर दूसरे परिवार में बच्चे बड़े होकर बड़े शहरों में नौकरी करने लगते हैं, तब मां-बाप अकेले रह जाते हैं और परिवार से अलग रहने पर बच्चों को बड़ों का साथ नहीं मिल पाता। जिसकी वजह से नैतिक संस्कार दिन ब दिन गिरते ही जा रहे हैं और इससे समाज में बिखराव भी होने लगा है।
अपने रीत रिवाज़, भाईचारे की भावना, मिलजुल कर रहने की आदत.... सबकुछ बहुत पीछे छूट गया है।

इसके लिए हमें एकल परिवार की पद्धति पर विराम लगाना होगा, ताकि समाज में बिखराव की स्थिति उत्पन्न न हो सके। रोजगार के साधन मुहैया कराने होंगे। ताकि युवा घरबार, परिवार छोड़ कर अंजाने शहरों में जा कर संघर्ष करने से छुटकारा पा सकें और तब मिलजुल कर एक साथ रहें। संयुक्त परिवार से हमारी संस्कृति सुरक्षित रहेगी।

मेरी यानी इस ब्लॉग लेखिका डॉ. वर्षा सिंह की एक ग़ज़ल है, जो अंतरराष्ट्रीय/ विश्व परिवार दिवस पर सभी सुधीजनों को समर्पित है....

जो समझ पाते नहीं घरबार की भाषा।
जान वो पाते नहीं परिवार की भाषा।

ज़िन्दगी तन्हा गुज़ारी शौक से लेकिन,
पढ़ न पाये वो यहां त्यौहार की भाषा।

हो न नफ़रत तब दिलों के दरमियां बेशक़,
एक हो जाये अगर संसार की भाषा।

दोस्ती जिसने कलम के साथ कर ली हो
रास कब आई उसे तलवार की भाषा !

द्वेष से हासिल कभी ख़ुशियां नहीं होतीं
क्लेश देती है सदा प्रतिकार की भाषा!

रूठ जाये कोई गर अपना कभी हमसे,
याद तब कर लीजिये मनुहार की भाषा।

है गुज़ारिश आपसे "वर्षा" की इतनी सी,
सीख लीजे आप भी अब प्यार की भाषा।

       - डॉ. वर्षा सिंह
परिवार... # साहित्य वर्षा

Sunday, May 12, 2019

लोकसभा चुनाव मतदान दिनांक 12 मई 2019

बायें से :- सुश्री नीतू लारिया, डॉ. (सुश्री) शरद सिंह एवं डॉ. वर्षा सिंह

      मैंने यानी इस ब्लॉग की लेखिका डॉ. वर्षा सिंह ने भी मतदान किया.... यहां का तापमान 44℃ होने के बावजूद हम सभी उत्साहित थे सागर लोकसभा क्षेत्र से अपना प्रतिनिधि चुनने और लोकतंत्र के इस महात्यौहार को मनाने के लिए 😊





Dr. (Miss) Sharad Singh # Sahitya Varsha
Dr. Varsha Singh # Sahitya Varsha






चुनाव का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य होता है कि देश का लोकतंत्र मजबूत हो और संसद में अच्छी स्वच्छ छवि वाले लोग पहुंचे। मताधिकार का प्रयोग हमारा अधिकार ही नहीं हमारा कर्तव्य है। देश में सबसे अहम मतदाताओं को मतदान के लिए जागरूक करना है। जागरूकता के अभाव बड़ी संख्या में लोग अपने मतों का प्रयोग नहीं करते हैं। विशेष रूप से ग्रामीण अंचलों में अभी भी मतदाताओं को जागरूक करने की अत्यंत आवश्यकता है। यदि हर व्यक्ति अपने आसपास के कुछ लोगों को मतदान का महत्व समझाकर उन्हें मत देने के लिए प्रेरित करें तो इससे बड़ी जागरूकता कोई नहीं हो सकती।

साहित्यकार संवेदनशील होता है। चुनाव और मतदान का प्रभाव उसके मानस पर सामान्यजन से कहीं ज़्यादा गहराई से पड़ता है। मुझे याद आ रहा है कवि केदारनाथ सिंह का आखिरी काव्य-संग्रह  - "मतदान केन्द्र पर झपकी’'
कवि केदारनाथ सिंह का काव्यसंग्रह # साहित्य वर्षा


आज मैं इस संग्रह की शीर्षक कविता ‘मतदान केन्द्र पर झपकी’ का एक अंश यहां प्रस्तुत कर रही हूं....

अबकी वोट देने पहुंचा
तो अचानक पता चला
मतदाता सूची में
मेरा नाम ही नहीं है
किसी से पूछूं कि मेरे भीतर से
आवाज़ आई -
उज़बक की तरह ताकते क्या हो
न सही मतदाता सूची में
उस विशाल सूची में तो हो ही
जिसमें वे सारे नाम हैं
जो छूट जाते हैं बाहर
बाहर निकला
तो निगाह पड़ी सामने खड़े पेड़ पर
सोचा -
वह भी तो नागरिक है इसी मिट्टी का
और देखो न मरजीवे को
खड़ा है कैसा मस्त मलंग!
मैं पेड़ के पास गया
और उसकी छांह में बैठे-बैठे
आ गई झपकी
देखा - पेड़ के नेतृत्व में चले जा रहे हैं बहुत पेड़ और लोग...
मसान काली का दमकता सिन्दूर
चला जा रहा था आगे-आगे
कि सहसा एक पत्ती के गिरने का
धमाका हुआ
और टूट गई नींद
मैंने देखा
अब मेरी जेब में मेरा अनदिया वोट है
एक नागरिक का अन्तिम हथियार

     जी हां, वोट यानी मत लोकतंत्र में एक नागरिक का हथियार है। इसे व्यर्थ नहीं जाने दें और मतदान अवश्य करें।