Friday, May 31, 2019

जनसंख्या पर रोक लगाएं : एक जरूरी सा काव्य संग्रह - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

    शनिवार दिनांक 25.05.2019 को मैंने यानी इस ब्लॉग की लेखिका  डॉ. वर्षा सिंह ने "जनसंख्या पर रोक लगाएं " पुस्तक पर समीक्षात्मक व्यक्तव्य दिया। अवसर था श्यामलम् एवं आईएमए के संयुक्त तत्वावधान में स्थानीय म्यूनिसिपल स्कूल सभागार, सागर में आयोजित कवि एवं चिकित्सक डॉ. श्याम मनोहर सिरोठिया के दो नवीन काव्य संग्रह "आरोग्य संजीवनी" एवं "जनसंख्या पर रोक लगाएं "का लोकार्पण समारोह। जिसमें मुख्य अतिथि बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज, सागर के डीन डॉ. जीएस पटेल थे, सारस्वत अतिथि डॉ. जीवनलाल जैन थे, विशिष्ट अतिथि डॉ. नीना गिडियन थीं और अध्यक्ष डॉ. सुरेश आचार्य थे। समारोह में मुझे एवं बहन डॉ. (सुश्री) शरद सिंह को भी सम्मानित  किया गया।
   








 "जनसंख्या पर रोक लगाएं " पुस्तक पर मेरे द्वारा दिया गया समीक्षात्मक व्यक्तव्य यहां प्रस्तुत है....

           एक जरूरी सा काव्य संग्रह
                         - डॉ. वर्षा सिंह
      कविता साहित्य की एक ऐसी विधा है, जिसे आम तौर पर कोमल भावनाओं से जोड़ कर देखा जाता है। इसीलिए कविता में सबसे पहला स्थान प्रेम भावना को दिया जाता है। निश्चित रूप से प्रेम मानवीय अस्मिता की पहली पहचान है। यह प्रेम अपने आप में असीमित व्यापकता लिए हुए होता है। प्रेम का अर्थ सिर्फ वह प्रेम नहीं जो किसी प्रेमी जोड़े के मध्य हो। प्रेम परिवार के प्रति भी होता है, समाज के प्रति भी और देश के प्रति भी। प्रेम अतीत से भी हो सकता है, वर्तमान से भी और भविष्य से भी। यही प्रेम जब लोक सापेक्ष हो कर सामने आता है तो ‘‘जनसंख्या पर रोक लगाएं’’ जैसी कृति सामने आती है। डॉ. श्याम मनोहर सीरोठिया का काव्य संग्रह ‘‘जनसंख्या पर रोक लगाएं’’ एक ऐसे विषय पर केन्द्रित है, जिसमें उनकी काव्यात्मक चिंता का केन्द्र बिन्दु यह सकल समाज है।
      आज हम देखते हैं कि सरकार के अथक प्रयास करने के बाद भी गरीबी, बेरोजगारी और भुखमरी की समस्याएं मिट नहीं पा रही हैं। किसान घबरा कर आत्महत्या कर बैठते हैं और लगभग प्रत्येक युवा अपने भविष्य को ले कर सशंकित दिखाई देता है। परिस्थितियां विकट हैं। यदि नौकरी का एक रिक्त पद विज्ञापित किया जाता है तो उसके लिए हजारों आवेदन प्रस्तुत हो जाते हैं। यदि एक छोटा किसान दस बोरा गेंहूं उगाता है तो उसके घर के ही पंद्रह से बीस सदस्य उसे अपनें आगे हाथ फैलाए दिखते है।
        हम सोचते हैं कि मंहगाई तेजी से बढ़ रही है। हम उपभोक्तावादी हो कर बाजारवाद के शिकार बनते जा रहे हैं। यह दोनों बातें अपनी-अपनी जगह सही हैं किन्तु यदि मंहगाई बढ़ रही है तो इसलिए कि उपभोक्ता की तुलना में उत्पादन की उपलब्धता कम होती जा रही है। बेरोजगारी बढ़ रही है तो इसलिए कि रोजगार के अवसरों की अपेक्षा बेरोजगारों की संख्या बहुत अधिक है। कहने का आशय यही है कि अब समय है कि जब हम प्रत्यक्ष दिखाई देने वाले कारणों को हाशिए पर रख कर उस कारण की ओर अपना ध्यान केन्द्रित करें जो इन सभी समस्याओं के मूल में मौजूद है। यह मूल कारण है हमारे देश में विस्फोटक होती जनसंख्या। डॉ. सीरोठिया ने इसी मूल कारण को अपने काव्यात्मक पदों का आधार बनाया है, जो काव्य संग्रह में संग्रहीत हैं। लगभग 40 वर्षां तक विभिन्न पदों पर चिकित्सीय कार्य करने के दौरान उन्होंने जो अनुभव पाए वही अनुभव उनके इस संग्रह की प्रेरणा बने। डॉ. सीरोठिया ने पाया कि आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में तथा कम पढ़े-लिखे या अशिक्षित तबके में जनसंख्या नियंत्रण के प्रति जागरूकता का सर्वथा अभाव है। वे अपनी आर्थिक स्थिति, अपने संसाधन और अपने स्वास्थ्य को अनदेखा करते हुए संतानों को जन्म देते रहते हैं।  भले ही उन संतानों का लालन-पालन कर पाना उनके लिए संभव नही हो पाता है। यही संतानें अभावों के बीच भी जब किसी तरह पल-बढ़ जाती हैं तो अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए अपराध की दुनिया से जुड़ जाती है। यदि आज देश में अपराध की दर बढ़ रही है तो उसके मूल में भी असीमित जनसंख्या ही है। इसीलिए डॉ. सीरोठिया अपनी कविता के माध्यम से आग्रह करते हैं कि -
    अनचाही सब विपदाओं की,
     इन सामाजिक विषमताओं की ।
     जड़ में बढ़ती आबादी है,
     गला घोंटती ममताओं की ।।
     वातावरण बदलना होगा,
     फिसला कदम सम्हलना होगा।
     जनसंख्या के भस्मासुर से,
     आप बचें, यह देश बचाएं।।
     आओ मिल कर कदम बढ़ाएं,         
     जनसंख्या पर रोक लगाएं।।


समीक्ष्य कृति

           अशिक्षा के कारण लोग धर्म के मर्म को भी ठीक ढ़ंग से समझ नहीं पाते हैं। इसका एक ज्वलंत उदाहरण आफ्रीकी देश सूडान है। जहां जनसंख्या की विस्फोटक स्थिति के कारण संसाधन इतने कम पड़ गए हैं कि पीने का पानी मिलना भी वहां कठिन हो चला है। हमारे देश में अभी स्थिति फिर भी नियंत्रण में है। फिर भी विगत वर्ष 9 राज्यों को जल संकटग्रस्त घोषित किया गया था। महाराष्ट्र के लातूर में बाहर से पेयजल पहुंचाया गया। यह सारी परेशानियां जनसंख्या के बढ़ते हुए दबाव के कारण उत्पन्न हुईं। पढ़ा- लिखा तबका तो जनसंख्या नियंत्रण के महत्व को समझने लगा है। लेकिन अशिक्षित वर्ग संतान के पैदा होने को ईश्वर की इच्छा मान कर स्वीकार करता चला जाता है। अशिक्षा के कारण उसका इस ओर ध्यान ही नहीं जात कि जिस ईश्वर ने प्रजनन क्षमता दी है उसी ईश्वर ने प्रजनन क्षमता को नियंत्रित करने की बुद्धि भी प्रदान की है। धर्म ग्रंथ भी यही कहते हैं कि कार्य वही किए जाएं जिनसे सबका भला हो। इस तथ्य को डॉ. सीरोठिया ने अपनी इस कविता में बड़े सुंदर ढ़ंग से सामने रखा है -
    सब धर्मों का धर्म यही है,
    सब ग्रंथों का मर्म यही है।
    भला हो जिसमें मानवता का ,
    जीवन में सद्कर्म वही है।।
    बिना विचारे काम जो करते,
     धर्मों को बदनाम जो करते ।
     जीवन में सच को स्वीकारें,
     झूठी मान्यताएं ठुकराएं।।
     आओ मिल कर कदम बढ़ाएं,     
     जनसंख्या पर रोक लगाएं।।
              डॉ. सीरोठिया बाल विवाह के विरुद्ध भी आवाज उठाते हैं और कहते हैं -
रुक सकती है हर बरबादी,
कम कर लें बढ़ती आबादी।
लड़की की हो उमर अठारह,
लड़के की इक्कीस में शादी।।
          एक चिकित्सक होने के नाते डॉ. सीरोठिया ने जनसंख्या नियंत्रण के लिए अपनाए जाने वाले साधनों को भी अपने काव्य में प्रमुखता से स्थान दिया है। जैसे -
जब चाहें तब बच्चा पाएं,
अनहोनी पर ना झल्लाएं।।
खाने की गोली लें या फिर,
कॉपर टी, कंडोम लगाएं।।
आओ मिल कर कदम बढ़ाएं,
जनसंख्या पर रोक लगाएं।।
            वस्तुतः जनसंख्या नियंत्रण एक ऐसा मुद्दा है जिस पर समय रहते विचार करना और कदम उठाना अति आवश्यक है। इसके लिए जनसंख्या नियंत्रण अभियान को एक बार फिर जमीनी स्तर तक ले जाने की जरूरत है। यह सुखद पक्ष है कि जब डॉ. श्याम मनोहर सीरोठिया जैसे चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े हुए कवि, गीतकार जनसंख्या नियंत्रण को अपनी कविता का विषय बनाते हैं तो इससे जुड़े अभियान के सफल होने की सम्भावना प्रबल हो जाती है। क्योंकि यह कहा जाता है कि-
 जब कवि हाथ में उठा लेता है मशाल।
 तो बदल जाता है दुनिया का हाल ।।

   जनसंख्या नियंत्रण रूपी जागरूकता की मशाल ले कर डॉ. सीरोठिया अपने कदम बढ़ा चुके हैं और वे अपनी कविताओं के माध्यम से आमजनता से आग्रह करते हैं कि अब ‘‘हम दो हमारे दो’’ से काम नहीं चलने वाला है। अब समय आ गया है कि हम दो हमारा एक होना चाहिए। उनकी ये पंक्तियां देखें -
हम दो हों पर एक हमारा!
नई सदी का हो यह नारा !
इसी मंत्र की शक्ति में ही -
मुस्काता कल छिपा हमारा।।
         अपने मधुर गीतों एवं दोहों के लिए सुविख्यात डॉ. श्याम मनोहर सीरोठिया अपने इस नवीन संग्रह ‘ जनसंख्या पर रोक लगाएं’’ के द्वारा भी जनमानस में अपना विशेष स्थान बनाएं यही कामना है। साथ ही यह अपेक्षा है कि यह अत्यंत जरूरी काव्य संग्रह जन-जन तक पहुंचे, क्योंकि इतिहास गवाह है कि वैदिक काल से आज तक ज्ञान एवं नीति की बातें जनामानस ने पद्य के रूप में ही आत्मसात की हैं। वेद- महाकाव्य और रामचरित मानस जैसे ग्रंथ इसके उत्तम उदाहरण हैं। इसीलिए आशा की जा सकती है कि डॉ. श्याम मनोहर सीरोठिया ने जनसंख्या नियंत्रण के लिए जिस काव्य शक्ति को चुना है और  ‘ जनसंख्या पर रोक लगाएं’’ काव्य संग्रह प्रस्तुत किया है वह अपने उद्देश्य में सफलता प्राप्त करेगा।
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1 comment:

  1. बहुत बहुत आभार शिवम मिश्रा जी 🙏

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