Dr. Varsha Singh |
मध्यप्रदेश के सागर संभाग का एक जिला है पन्ना, जिसके जिला मुख्यालय में स्थित हिरण बाग़ नामक स्थान में रहते हुए मेरा बचपन और युवावस्था के प्रारंभिक दिन व्यतीत हुए हैं। मेरी शिक्षा-दीक्षा भी पन्ना मुख्यालय में ही हुई । शासकीय मनहर कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय एवं महाराजा छत्रसाल शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय मेरी शिक्षा के केंद्र रहे हैं । अब पन्ना से लगभग 186 कि.मी. दूर यहां सागर मुख्यालय के मकरोनिया उपनगर में रहते हुए पन्ना में व्यतीत किए हुए दिनों की स्मृतियां आज भी ताज़ा प्रतीत होती हैं। पन्ना के मंदिर मेरी स्मृतियों को हमेशा ही जागृत करते रहते हैं... कितने सुंदर और भव्य मंदिर! माना कि सागर में भी एक से एक सुंदर मंदिर स्थापित हैं किंतु पन्ना के मंदिरों का तो जवाब ही नहीं।
पन्ना में स्थापित भव्य मंदिरों की महिमा लोकगीतों में भी गाई जाती है, जैसे जुगलकिशोर मंदिर में स्थापित राधा -कृष्ण की प्रतिमा के लिए विख्यात लोकगीत है …
"पन्ना के जुगल किशोर मुरलिया में हीरा जड़े हैं…."
पन्ना….जैसा कि नाम है "पन्ना", वास्तव में यह पन्ना नामक रत्न से कम नहीं है । यह क्षेत्र विंध्याचल के अंचल में स्थित है और इसीलिये पन्ना में जंगल है हरियाली है और प्राकृतिक सौंदर्य की अनुपम छटा है । केन, किलकिला,बेरमा आदि नदियां यहां अपने कलकल निनाद से क्षेत्र को गुंजायमान करती हैं। जितने सुंदर प्राकृतिक दृश्य पन्ना में मौजूद हैं वैसे ही इसकी दुर्लभ हीरे की खदानें विश्व प्रसिद्ध हैं। पन्ना का सर्वाधिक विकास बुंदेलखंड केसरी महाराज छत्रसाल के समय में हुआ था। पन्ना में अनेक सुंदर मंदिर हैं जो पर्यटन की दृष्टि से दर्शनीय तो हैं ही साथ ही धार्मिक स्थलों के रूप में इनकी अपनी मान्यताएं हैं।
पद्मावती मंदिर
माई तोहरे रूप हजार, मातु जागदम्बिके
मोरी सुनियो अरज पुकार, मातु जागदम्बिके
पद्मावती देवी का मंदिर किलकिला नदी के तट पर स्थित यहां का सबसे प्राचीन मंदिर है देवी दुर्गा के नौ रूपों की यहां पर प्रतिमाएं विद्यमान हैं। पद्मावती देवी पन्ना नरेश की कुलदेवी थीं। इस अत्यंत सुंदर मंदिर के चारों ओर का दृश्य अत्यंत मनोहारी है।
तोरे द्वार पड़े हम आज, भवानी दरसन दो दरसन दो मैया रानी, भवानी दरसन दो
मैहर में तू मातु शारदे, पद्मावती पन्ना में भवानी दरसन दो
दरसन दो, हे विंध्यवासिनी दरसन दो
बलदेव मंदिर
पन्ना में स्थित बलदेव मंदिर में भगवान कृष्ण के अग्रज बलराम की प्रतिमा स्थपित है। इस मंदिर का निर्माण 140 साल पहले तत्कालीन पन्ना नरेश रुद्र प्रताप सिंह ने कराया था । कहा जाता है कि कृषि कार्य में उनकी विशेष रुचि थी, जिसकी वजह से उन्होंने हल धारण किए बलदाऊ के भव्य मंदिर का निर्माण कराया। मंदिर कई विशेषताओं से परिपूर्ण है। इसकी वास्तु शैली पूर्व और पश्चिम के धर्म का संगम कराती प्रतीत होती है। बाहर से देखने पर मंदिर किसी शानदार और विशाल चर्च की तरह नजर आता है जबकि अंदर से एक भव्य मंदिर का रूप लिए है। इस मंदिर के निर्माण में भगवान श्रीकृष्ण की सोलह कलाओं का विशेष ध्यान रखा गया है। मंदिर में प्रवेश करने के लिए 16 सीढिय़ां हैं अंदर 16 मंडप और 16 झरोखे हैं। मंदिर 16 विशाल स्तंभों पर टिका है।
इस मंदिर के स्थापत्य की विशेषता यह है कि यह लंदन के सेंट कैथेड्रल गिरजाघर की अनुकृति के रूप में निर्मित किया गया है। इस मंदिर में गर्भगृह में बलदेव की काले पत्थर की अत्यंत आकर्षक प्रतिमा मौजूद है। विशाल सभा कक्ष है, ऊपर गुंबद है और सभाकक्ष में अनेक गोल स्तंभ हैं। हल षष्ठी अर्थात भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को देव बलराम के जन्मोत्सव को बड़े ही समारोह पूर्वक मनाया जाता है। बुंदेलखंड में यह अपनी तरह का एकमात्र मंदिर है जो दर्शनीय है और साथ ही श्रद्धालुओं की श्रद्धा का केंद्र बिंदु भी है।
प्राणनाथ मंदिर
पन्ना प्राणनाथ मंदिर के लिए भी जाना जाता है। पूरे भारत में इस तरह का यह अपनी तरह का मंदिर है । महामति प्राणनाथ, मध्ययुगीन भारत के अंतिम संत-कवि थे। उन्होंने अपना समस्त जीवन धार्मिक एकता के लिए समर्पित किया था। इसके लिए प्रणामी नामक एक नए पंथ की स्थापना की जिसमे सभी धर्म के लोग सम्मिलित हुए। उनकी वाणी का सार 'तारतम सागर' ग्रंथ में संकलित है जिसमे सभी धर्मों के दिव्य ज्ञान का निचोड़ प्रस्तुत किया गया है। अब यह प्रणामी संप्रदाय का प्रमुख और पवित्रतम ग्रंथ है। महामति प्राणनाथ महाराजा छत्रसाल के गुरु कहे जाते हैं । महाराजा छत्रसाल प्राणनाथ के समर्पित शिष्य थे। छत्रसाल बुंदेलखंड में औरंगजेब के अत्याचारी शासन के खिलाफ लड़ना चाहते थे। लेकिन उनके पास सेना व शस्त्रागार के निर्माण के लिए धन नहीं था। उन्होंने प्राणनाथ से सहायता मांगी। प्राणनाथ ने छत्रसाल को आशीर्वाद दिया। कहा जाता है कि महाराज छत्रसाल को उनके गुरु प्राणनाथ ने यह कहते हुए हीरे का पता बताया था कि
"छत्ता तेरे राज में धक-धक धरती होय।
जित जित घोड़ा पग धरे उत-उत हीरा होय।।"
इस मंदिर का निर्माण महाराजा छत्रसाल ने कराया था । मंदिर के गर्भगृह में गुंबद के ठीक नीचे भगवान कृष्ण के मुरली और मुकुट विराजमान हैं। यहां किसी मूर्ति की स्थापना नहीं की गई है क्योंकि प्राणनाथ ने भगवान कृष्ण की सखी भाव से उपासना की थी इसलिए मंदिर में कृष्ण के प्रतीक स्वरूप मुकुट जिसमें मयूर पंख लगा हुआ है और मुरली स्थापित है, जिसकी विधि विधान पूर्वक पूजा अर्चना की जाती है। स्वयं महामति की वाणी देखें….
"प्रेमें गम अगम की करी, प्रेम करी अलख की लाख ! कहें श्री महामति प्रेम समान, तुम दूजा जिन कोई जान !!
नवधा से न्यारा कह्या, चौदे भवन में नाहीं ! सो प्रेम कहाँ से पाइए, जो बसत गोपिका माहिं !!"
प्रणामी संप्रदाय का यह तीर्थ क्षेत्र माना जाता है । महामति प्राणनाथ प्रणामी धर्म के प्रणेता थे। प्रत्येक शरद पूर्णिमा के अवसर पर हर वर्ष इस मंदिर में देश विदेश से प्रणामी धर्म के अनेक अनुयायी उपस्थित होते हैं, महारास रचाते हैं, पूजन- आराधन- अर्चन करते हैं और कृष्ण की भक्ति में लीन हो जाते हैं। अत्यंत अलौकिक दृश्य देखने को मिलता है। अद्भुत छटा रहती है इस मंदिर के प्रांगण की । शरद पूर्णिमा की प्रखर रोशनी में दुग्ध सा श्वेत धवल मंदिर का गुंबद अपनी अलौकिक छटा बिखेरता है और प्रांगण में होने वाला महारास आत्मा- परमात्मा को एकाकार करता हुआ प्रतीत होता है।
जुगलकिशोर मंदिर
बुंदेलखंड में गाया जाने वाला एक प्रसिद्ध लोकगीत है जिसकी प्रथम पंक्ति है -
"पन्ना के जुगल किशोर मुरलिया में हीरा जड़े हैं"
पन्ना का जुगल किशोर मंदिर बुंदेलखंड के अत्यंत प्राचीन मंदिरों में से एक है। इसका निर्माण महाराजा हिंदूपत ने कराया था जो पन्ना नरेश थे। इसका वास्तु उत्तर मध्य कालीन स्थापत्य शैली का है। मंदिर का प्रवेश द्वार अत्यंत भव्य है। गर्भगृह के ऊपर स्थित विशाल गुंबद कमल की पंखुड़ियों से सुसज्जित है। इस जुगल किशोर मंदिर में राधा कृष्ण की प्रतिमाएं स्थापित हैं।
मथुरा के मंदिरों के ही समान पन्ना के जुगल किशोर मंदिर की मान्यता है । इस मंदिर में हर वर्ष जन्माष्टमी का समारोह अत्यंत श्रद्धा पूर्वक मनाया जाता है। भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव देखने के लिए दूर-दूर से अनेक श्रद्धालु यहां आते हैं।
मथुरा के मंदिरों के ही समान पन्ना के जुगल किशोर मंदिर की मान्यता है । इस मंदिर में हर वर्ष जन्माष्टमी का समारोह अत्यंत श्रद्धा पूर्वक मनाया जाता है। भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव देखने के लिए दूर-दूर से अनेक श्रद्धालु यहां आते हैं।
जुगल किशोर की लीला का वर्णन इस लोकगीत में देखें ….
"भई ने बिरज की मोर
सखी री मैं तो भई ने बिरज की मोर ।।
कौन बन उड़ती कौन बन चुनती
कौन बन करती किलोल
भई ने बिरज की मोर ।।
बन में उड़ती, बन में चुनती
बनई में करती किलोल
भई ने बिरज की मोर ।।
उड़-उड़ पंख गिरे धरनी पै
बीनत जुगल किशोर
सखी री मैं तो भई ने बिरज की मोर।।
राम जानकी मंदिर
जी के रामचंद्र रखवारे, को कर सकत दगा रे।
दीपक दया धरम को जारे, सदा रहत उजियारे।।
पन्ना मुख्यालय में स्थापित राम जानकी मंदिर भी अत्यंत भव्य है। इसका निर्माण जुगल किशोर मंदिर की स्थापत्य शैली में ही किया गया है। पन्ना नरेश महाराजा लोकपाल सिंह की पत्नी सुजान कुंवरि ने इस मंदिर का निर्माण कराया था । इसकी वास्तुकला और भव्यता देखने वालों का मन मोह लेती है। इस मंदिर में भगवान राम, लक्ष्मण और सीता की अत्यंत सुंदर प्रतिमाएं स्थापित हैं। रामनवमी का पर्व प्रत्येक वर्ष बड़े ही समारोह पूर्वक यहां मनाया जाता है, जिसमें मौजूदा पन्ना नरेश स्वयं उपस्थित होकर भगवान राम, लक्ष्मण और सीता का पूजन अर्चन करते हैं।
यह सुंदर लोकगीत राम जानकी की महिमा का बखान करने वाला है….
मोरी नैया पार लगाओ जानकी मैया जू
राम कृपा मिल जाए मोरी मैया जू
जो जीवन तर जाए मोरी मैया जू
गोविंद मंदिर
पन्ना मुख्यालय में बलदेव मंदिर के ही पार्श्व में कुछ दूरी पर स्थित है गोविंद मंदिर। गोविंद मंदिर में भगवान कृष्ण की अत्यंत सुंदर प्रतिमा स्थापित है । यह मंदिर भी अपनी भव्यता के लिए जाना जाता है। यह मंदिर भी मध्ययुगीन गुंबद शैली की वास्तुकला पर आधारित मंदिर है । इसका प्रांगण काफी बड़ा है । मंदिर के गुंबद में कमल की पंखुड़ियों की आकृति मौजूद है। श्रद्धालु इसके दर्शन हेतु दूर-दूर से यहां आते हैं इसका निर्माण भी तत्कालीन पन्ना नरेश द्वारा कराया गया था।
कृष्ण गोविंद की लीला अपरम्पार है...
अपने वनमाली कों तांसे, कहो जसोदा मां से ।
लै गऔ दूध दही की दौनी, उठा हमारे घर से।
मैं तो बूंद बूंद से जोरत, ऐसो आए कहां से।।
गोविंद मंदिर में भक्तों के द्वारा गाया जाता यह लोकभजन अक्सर ही सुनाई दे जाता है...
भज लो रे गोविंद, भजो घनश्याम
नाम ल्यौ कान्हा को ।।
जाकी माता जसुदा मैया
पिता नंद महाराज, भजो घनश्याम
नाम ल्यौ कान्हा को ।।
जगन्नाथ स्वामी मंदिर
बुंदेलखंड में यह अपनी तरह का अनोखा जगन्नाथ स्वामी मंदिर पन्ना मुख्यालय में पन्ना नरेश के निवास राजमहल "राजमंदिर पैलेस" के निकट स्थित है। कहा जाता है कि पन्ना के तत्कालीन महाराजा किशोर सिंह भगवान जगन्नाथ स्वामी के अनन्य भक्त थे । जब उन्होंने जगन्नाथ पुरी की यात्रा की तो भगवान जगन्नाथ ने स्वप्न में उन्हें यह निर्देश दिया कि वे पन्ना में जगन्नाथ स्वामी का मंदिर निर्मित कराएं । जगन्नाथ स्वामी मंदिर में भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलराम की मूर्तियां स्थापित हैं। ये मूर्तियां पुरी, उड़ीसा स्थित भगवान जगन्नाथ के मंदिर में स्थापित मूर्तियों की ही प्रतिकृति हैं।
मंदिर के द्वार पर दो विशाल सिंह की प्रतिमा मौजूद है। मुख्य मंदिर मध्ययुगीन वास्तुकला पर आधारित गुंबद शैली का है, जिसके शिखर पर स्वर्ण कलश मौजूद है। पुरी की ही भांति इस मंदिर में भी आषाढ़ शुक्ल द्वितीय को रथ यात्रा महोत्सव का आयोजन किया जाता है । भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा एवं बलराम सहित रथ पर सवार हो पन्ना से लगभग 5 किलोमीटर दूर जनकपुर नामक स्थल तक जाते हैं। रथ यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं द्वारा समारोह पूर्वक पूजन-अर्चन किया जाता है।
मंदिर के द्वार पर दो विशाल सिंह की प्रतिमा मौजूद है। मुख्य मंदिर मध्ययुगीन वास्तुकला पर आधारित गुंबद शैली का है, जिसके शिखर पर स्वर्ण कलश मौजूद है। पुरी की ही भांति इस मंदिर में भी आषाढ़ शुक्ल द्वितीय को रथ यात्रा महोत्सव का आयोजन किया जाता है । भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा एवं बलराम सहित रथ पर सवार हो पन्ना से लगभग 5 किलोमीटर दूर जनकपुर नामक स्थल तक जाते हैं। रथ यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं द्वारा समारोह पूर्वक पूजन-अर्चन किया जाता है।
आरती श्री जगन्नाथ मंगलकारी,
परसत चरणारविन्द आपदा हरी।
निरखत मुखारविंद आपदा हरी,
कंचन धूप ध्यान ज्योति जगमगी।
अग्नि कुण्डल घृत पाव सथरी। आरती..
राधिका रानी मंदिर
किलकिला नदी के तट पर राधिका रानी का मंदिर स्थित है। प्रणामी धर्म के अनुयायी इस मंदिर में विशेष रूप से पूजा अर्चन करते हैं । इस मंदिर का निर्माण भूषण दास धामी द्वारा कराया गया था। इस सुंदर एवं भव्य मंदिर में राधा जी की अत्यंत सुंदर प्रतिमा मौजूद है। इस मंदिर की विशेषता यह है कि इसमें सीढ़ीयुक्त एक कलात्मक प्राचीन बावड़ी है। प्रणामी धर्म के अनुयायी महामति प्राणनाथ के मंदिर दर्शन के उपरांत राधिका रानी के मंदिर का भी दर्शन अवश्य करते हैं। शरद पूर्णिमा महोत्सव के दौरान इस मंदिर की छटा, साज-सज्जा देखने लायक रहती है।
देश-विदेश से श्रद्धालु यहां दर्शन करने आते हैं।
राधिका रानी और कृष्ण कन्हैया का होली खेलने का वर्णन इस लोकगीत में चित्रित हुआ है….
राधा खेले हो, मनमोहन के साथ मोरे रसिया
कै मन केसर गारी हो
कै मन उड़त गुलाल मोरे रसिया
नौ मन केसर गारी हो,
दस मन उड़त गुलाल मोरे रसिया
कौंना की चूनर भींजी हो
कौंना की पंचरंग पाग मोरे रसिया
राधा की चूनर भींजी हो
कान्हा की पंचरंग पाग मोरे रसिया
लोककवि ईसुरी राधिका रानी और गिरधर गोपाल की लीला का वर्णन करते हुए कहते हैं...
नैना श्री वृषभानु कुंवरि के, दरस लेत गिरधर के।
हनुमान मंदिर
पन्ना मुख्यालय में पहाड़ कोठी एवं धर्मसागर तालाब के समीप स्थित हनुमान मंदिर अत्यंत प्राचीन मंदिर है, जहां प्रत्येक मंगलवार एवं शनिवार को श्रद्धालुओं की भीड़ लगती है। अनेक दर्शनार्थियों दूर- दूर से मंदिर में आते हैं और श्री हनुमान का अत्यंत श्रद्धापूर्वक पूजन -अर्चन करते हैं। यह अत्यंत सिद्ध क्षेत्र माना जाता है।
इस लोकगीत में महावीर हनुमान की महिमा का बखान किया गया है...
हे महाबीर हनुमान,
तोरी महिमा न्यारी कलयुग में
तू संकटहारी कलयुग में
पन्ना ज़िले में भी अनेक प्राचीन मंदिर हैं, जैसे ग्राम नचना का शिव मंदिर, भैरव घाटी स्थित काल भैरव मंदिर, मुख्यालय स्थित चोपड़ा मंदिर, बंगला मंदिर, बड़े गणेश मंदिर, भगवान पार्श्वनाथ मंदिर आदि।
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