Thursday, November 22, 2018

डॉ. हरी सिंह गौर और सागर

Dr. Varsha Singh

26 नवंबर का दिन सागर नगर के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण दिन है।
26 नवंबर को प्रति वर्ष मध्यप्रदेश के हृदय स्थल सागर में गौर जयंती समारोहपूर्वक मनायी जाती है। डॉ. हरी सिंह गौर का जन्मदिन मनाने के लिए सुबह 7.45 बजे से कार्यक्रमों का आयोजन शुरू हो जाता है। इस दौरान सबसे पहले सागर विश्वविद्यालय के कुलपति तीनबत्ती पहुंचकर यहां स्थित हनुमान मंदिर में पूजन करते हैं।
इसके बाद शहर के गणमान्य नागरिकों से भेंट और फिर डॉ. गौर की मूर्ति पर माल्यार्पण किया जाता है। इसके बाद म.प्र. औद्योगिक सुरक्षा बल के जवान कुलपति को गार्ड ऑफ आनर देते हैं। तत्पश्चात कुलपति का उद्बोधन और फिर आभार प्रदर्शन कार्यक्रम संयोजक द्वारा किया जाता है। इसके बाद एक भव्य शोभायात्रा शहर के विभिन्न मार्गों से होती हुई विश्वविद्यालय के गौर स्मारक पर समाप्त होती है। डॉ. हरीसिंह गौर के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में पूरे  परिसर को आकर्षक लाइटों से सजाया जाता है। विश्वविद्यालय परिसर में स्थित  जवाहर लाल नेहरू लाइब्रेरी भवन पर विद्युत सज्जा की जाती है।
वहीं दूसरी ओर सागर मुख्यालय के मध्य में स्थित तीनबत्ती नाम से प्रसिद्ध तिराहे पर स्थापित डॉ. हरी सिंह गौर की  धातु से निर्मित कदआदम प्रतिमा यानी स्टेच्यू पर माल्यार्पण कर नगरवासी अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं। नगर में स्थानीय अवकाश रखा जाता है।

डॉ. हरीसिंह गौर का जन्म 26 नवम्बर  1870 को हुआ था।  वे सागर विश्वविद्यालय के संस्थापक होने के साथ ही महान शिक्षाशास्त्री, ख्याति प्राप्त विधिवेत्ता और न्यायविद् थे। उन्होंने समाज सुधार के कार्य किये। डॉ. गौर एक उत्कृष्ट साहित्यकार, कवि एवं उपन्यासकार भी थे। उन्हें महान दानी एवं देशभक्त के रूप में जाना जाता है।
उन्होने सागर के ही गवर्नमेंट हाईस्कूल से मिडिल शिक्षा प्रथम श्रेणी में हासिल की। उन्हे छात्रवृत्ति भी मिली, जिसके सहारे उन्होंने पढ़ाई का क्रम जारी रखा, मिडिल से आगे की पढ़ाई के लिए जबलपुर गए फिर महाविद्यालयीन शिक्षा के लिए नागपुर के हिसलप कॉलेज (Hislop College) में दाखिला ले लिया, जहां से उन्होंने इंटरमीडिएट की परीक्षा भी प्रथम श्रेणी में की थी। वे प्रांत में प्रथम रहे तथा पुरस्कारों से सम्मानित किए गए।
सन् 1889 में उच्च शिक्षा लेने इंग्लैंड गए। सन् 1892 में दर्शनशास्त्र व अर्थशास्त्र में ऑनर्स की उपाधि प्राप्त की। फिर 1896 में एम.ए., सन 1902 में एल.एल.एम. और अन्ततः सन 1908 में एल.एल.डी. की उपाधि हासिल किया। कैम्ब्रिज में पढाई से जो समय बचता था उसमें वे ट्रिनिटी कालेज में डी लिट्, तथा एल एल डी की पढ़ाई करते थे।
तीन बत्ती, सागर में स्थापित गौर प्रतिमा
 उन्होंने अंतर-विश्वविद्यालयीन शिक्षा समिति में कैंब्रिज विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व किया, जो उस समय किसी भारतीय के लिये गौरव की बात थी। डॉ. हरीसिंह गौर ने छात्र जीवन में ही दो काव्य संग्रह "दी स्टेपिंग वेस्टवर्ड एण्ड अदर पोएम्स" एवं "रेमंड टाइम" की रचना की, जिससे सुप्रसिद्ध रायल सोसायटी ऑफ लिटरेचर द्वारा उन्हें स्वर्ण पदक प्रदान किया गया।
सन् 1912 में वे बैरिस्टर होकर स्वदेश आ गये। उनकी नियुक्ति सेंट्रल प्रॉविंस कमीशन में एक्स्ट्रा `सहायक आयुक्त´ के रूप में भंडारा में हो गई। उन्होंने तीन माह में ही पद छोड़कर अखिल भारतीय स्तर पर वकालत प्रारंभ कर दी।
   मध्यप्रदेश, रायपुर, लाहौर, कलकत्ता, रंगून
तथा चार वर्ष तक इंग्लैंड की प्रिवी काउंसिल मे वकालत की ।उन्हें एलएलडी एवं डी. लिट् की सर्वोच्च उपाधि से भी विभूषित किया गया।
1902 में उनकी "द लॉ ऑफ ट्रांसफर इन ब्रिटिश इंडिया" पुस्तक प्रकाशित हुई। वर्ष 1909 में "दी पेनल ला ऑफ ब्रिटिश इंडिया" (वाल्यूम 2) भी प्रकाशित हुई जो देश व विदेश में मान्यता प्राप्त पुस्तक है। प्रसिद्ध विधिवेत्ता सर फेडरिक पैलाक ने भी उनके ग्रंथ की प्रशंसा की थी। इसके अतिरिक्त डॉ. गौर ने बौद्ध धर्म पर "दी स्पिरिट ऑफ बुद्धिज्म" नामक पुस्तक भी लिखी। उन्होंने कई उपन्यासों की भी रचना की।
वे बीसवीं शताब्दी के सर्वश्रेष्ठ शिक्षा मनीषियों में से एक थे। डॉ. गौर दिल्ली विश्वविद्यालय तथा नागपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति रहे। उन्होंने भारतीय संविधान सभा के उपसभापति, साइमन कमीशन के सदस्य तथा रायल सोसायटी फार लिटरेचर फेलो के पदों को भी सुशोभित किया।  साथ ही डॉ. गौर ने कानून शिक्षा, साहित्य, समाज सुधार, संस्कृति, राष्ट्रीय आंदोलन, संविधान निर्माण आदि में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।
डॉ. हरीसिंह गौर की समाधि
डॉ. गौर ने अपनी गाढ़ी कमाई से 20 लाख रुपये की धनराशि का व्यय कर 18 जुलाई 1946 को अपनी जन्मभूमि सागर में सागर विश्वविद्यालय की स्थापना की तथा वसीयत द्वारा अपनी पैतृक सपत्ति से 2 करोड़ रुपये दान भी दिया था। सागर विश्वविद्यालय के संस्थापक, उपकुलपति तो वे थे ही, उन्होंने अपने जीवन के आखिरी समय 25 दिसम्बर 1949 तक विश्वविद्यालय का विकास करने और इसे सहेजने के प्रति संकल्पित रहे। उनका स्वप्न था कि सागर विश्वविद्यालय, कैम्ब्रिज तथा ऑक्सफोर्ड जैसी मान्यता हासिल करे।

वे स्वयं शिक्षाविद् भी थे।  सन् 1921 में केंद्रीय सरकार ने जब दिल्ली विश्वविद्यालय की स्थापना की तब डॉ. सर हरीसिंह गौर को विश्वविद्यालय का संस्थापक कुलपति नियुक्त किया गया। 9 जनवरी 1925 को शिक्षा के क्षेत्र में `सर´ की उपाधि से विभूषित किया गया, तत्पश्चात डॉ. सर हरीसिंह गौर को दो बार नागपुर विश्वविद्यालय का कुलपति नियुक्त किया गया।
डॉ. सर हरीसिंह गौर ने 20 वर्षों तक वकालत की तथा प्रिवी काउंसिल के अधिवक्ता के रूप में शोहरत अर्जित की। वे कांग्रेस पार्टी के सदस्य रहे, लेकिन 1920 में महात्मा गांधी से मतभेद के कारण कांग्रेस छोड़ दी। वे 1935 तक विधान परिषद् के सदस्य रहे। वे भारतीय संसदीय समिति के भी सदस्य रहे, भारतीय संविधान परिषद् के सदस्य रूप में संविधान निर्माण में अपने दायित्वों का निर्वहन किया।ए.वी.आर.सी सरीखे रिसर्च सेंटर प्रमुख हैं। यह इतना बड़ा कैम्पस है कि एक बार जब विद्यार्थी इस विश्वविद्यालय में पहुंच जाता है तो उसे शहर नहीं जाना पड़ता है। उसके सारे कार्य विश्वविद्यालय कैम्पस में ही सम्पन्न हो जाते हैं चाहे बैंक का कार्य हो, कैंटीन का कार्य हो या लायब्रेरी का कार्य हो।
विश्वविद्यालय में स्थापित डॉ. हरीसिंह गौर की प्रतिमा
विश्वविद्यालय के संस्थापक डॉ. हरीसिंह गौर ने विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद नागरिकों से अपील कर कहा था कि सागर के नागरिकों को सागर विश्वविद्यालय के रूप में एक शिक्षा का महान अवसर मिला है, वे अपने नगर को आदर्श विद्यापीठ के रूप में स्मरणीय बना सकते हैं।
गौर मूर्ति, तीनबत्ती, सागर, मध्यप्रदेश
विश्व प्रसिद्ध डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय एक ऐसा विश्वस्तरीय अनूठा विश्वविद्यालय है, जिसकी स्थापना एक शिक्षाविद् के द्वारा दान द्वारा की गई थी।इस विश्वविद्यालय में सबसे बड़ी विशेषता यह भी है कि सारा का सारा शैक्षणिक कार्य इस विश्वविद्यालय के कैम्पस में ही कराया जाता है, जबकि दूसरे विश्वविद्यालयों में यह कार्य उनके महाविद्यालयों में कराया जाता है। इस विश्वविद्यालयों में अनेक विषयों का अध्ययन कराया जाता है जिसमें मानव विज्ञान, अपराध शास्त्र, भूगर्भ विज्ञान और
यह भी एक संयोग ही है कि स्वतंत्र भारत व इस विश्वविद्यालय का जन्म एक ही समय हुआ। डॉ. हरीसिंह गौर को अपनी जन्मभूमि सागर में उच्च शिक्षा की व्यवस्था न होने का दर्द हमेशा रहा। इसी कारण द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात ही इंग्लैंड से लौट कर उन्होंने अपने जीवन भर की गाढ़ी कमाई से इसकी स्थापना करायी। वे कहते थे कि राष्ट्र का धन न उसके कल-कारखाने में सुरक्षित रहता है न सोने-चांदी की खदानों में, वह राष्ट्र के स्त्री-पुरुषों के मन और देह में समाया रहता है। डॉ. हरीसिंह गौर की सेवाओं के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए भारतीय डाक व तार विभाग ने 1976 में एक डाकटिकट जारी किया जिस पर उनके चित्र को प्रदर्शित किया गया है।
तीनबत्ती, सागर में डॉ. गौर की स्टेच्यू
डॉ॰ हरि सिंह गौर ने 'सेवेन लाईव्ज' (Seven Lives) शीर्षक से अपनी आत्मकथा लिखी है। मूलत: अंग्रेजी भाषा मे लिखी गई। एक युवा पत्रकार ने इस आत्मकथा का हिन्दी भाषा मेंं अनुवाद किया है। डॉ॰ गौर ने अपनी आत्मकथा मेंं अपने जीवन के सभी पहलुओं पर बड़ी बेबाकी से लिखा है।
Gour Murti, Teen Batti, Sagar, M.P.

18 जुलाई 1946 को दानवीर सर डॉ. हरीसिंह गौर ने अपना सर्वस्व अर्पण कर इस विश्वविद्यालय की स्थापना की थी। यह देश का 16 एवं मध्यप्रदेश का पहला विश्वविद्यालय बना। डॉ. गौर ने विश्वविद्यालय की स्थापना कर इसका नाम सागर विश्वविद्यालय रखा था। मकरोनिया चौराहा , सागर  में बटालियन गेट पर डॉ हरीसिंह गौर स्मृति द्वार इसलिये निर्मित किया गया है क्योंकि शुरुआत में सागर विश्वविद्यालय मकरोनिया स्थित आर्मी की बैरक में लगता था। मकरोनिया में निर्मित इस गौर द्वार का लोकार्पण गणतंत्र दिवस 2018 को किया गया। 
बटालियन गेट, मकरोनिया, सागर में गौर द्वार का लोकार्पण

इसके बाद गौर साहब ने वर्तमान विश्वविद्यालय परिसर की जगह खरीदी। 15 अगस्त 1948 को सागर विवि के नए परिसर की आधारशिला गौर साहब की मौजूदगी में पथरिया हिल्स पर रखी गई। वर्ष 1956-57 में विश्वविद्यालय वर्तमान परिसर में पूरी तरह से शिफ्ट हो गया।
बटालियन गेट, मकरोनिया, सागर में गौर द्वार का लोकार्पण

बटालियन गेट, मकरोनिया, सागर में गौर द्वार का लोकार्पण


डॉ. हरीसिंह गौर को समर्पित है मेरी यह कविता....

गौर नाम है जिनका

हरीसिंह गौर नाम है जिनका
सबके दिल में रहते हैं
बच्चे बूढ़े गांव शहर सब
उनकी गाथा कहते हैं… बच्चे बूढ़े


रोक न पाई निर्धनता भी
बैरिस्टर बन ही ठहरे
उनका चिंतन उनका दर्शन
उनके भाव बहुत गहरे
ऐसे मानव सारे दुख को
हंसते हंसते सहते हैं ...बच्चे बूढ़े


शिक्षा ज्योति जलाने को ही
अपना सब कुछ दान दिया
इस धरती पर सरस्वती को
तन,मन,धन से मान दिया
उनकी गरिमा की लहरों में
ज्ञानदीप अब बहते हैं.. बच्चे बूढ़े


ऋणी सदा बुंदेली धरती
ऋणी रहेगा युवा जगत
युगों युगों तक गौर भूमि पर
शिक्षा का होगा स्वागत
ये है गौर प्रकाश कि जिसमें
अंधियारे सब ढहते हैं.. बच्चे बूढ़े
  - डॉ. वर्षा सिंह


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