Saturday, October 26, 2019

यम चतुर्दशी पर दीपदान - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

     यम चतुर्दशी की हार्दिक शुभकामनाएं !
.... और यह है यम चौदस पर परम्परा अनुसार आटे के चौदह दीपकों का यम देव को हमारे द्वारा किया गया दीपदान ... जी हां, दीपावली से एक दिन पूर्व कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी तिथि को नरक चतुर्दशी मनाई जाती है। इस दिन को छोटी दिवाली, रूप चतुर्दशी और यम दीपावली के नाम से भी पहचाना जाता है। इस दिन सायंकाल धर्मराज यमराज के नाम से भी दक्षिण दिशा की ओर मुख करके प्रज्वलित दीपक समर्पित करने की परंपरा है।
   
मृत्युना पाशदण्डाभ्यां कालेन च मया सह ।
चतुर्दश्यां दीपदानात् सूर्यजः प्रीयतामिति ।।

अर्थ - चतुर्दशी को दीपदान करने से मृत्यु, पाश, दण्ड, काल और लक्ष्मी के साथ सूर्यनन्दन यम प्रसन्न हों ।

यही है हिन्दू धर्म की विशेषता... जिसमें जगतजननी माता दुर्गा के नौ रूपों की आराधना से ले कर मृत्यु के देवता यम की भी अर्चना की जाती है।



        एक पौराणिक कथा के अनुसार
ऋषि वाज्रस्रवा ने यज्ञ में आहुतियां देने के बाद यजमानों को दी जाने वाली दक्षिणा देते समय अपना संकल्प स्मरण नहीं रखा और यथोचित दान नहीं देते हुए बूढ़ी और जर्जर गौओं का दान दे दिया तब उनके पुत्र नचिकेता ने उन्हें टोकना शुरू कर दिया कि, पिताजी ! आपने यह कहा था कि मैं अपनी प्रिय से प्रिय वस्तु भी दान दे दूंगा, तब यह बूढ़ी गायें क्यों दान कर रहे हैं।
    यह सुनकर वाज्रस्रवा क्रोधित हो उठे। तब नचिकेता ने कहा कि मुझे ही दे दीजिये तब ऋषि ने गुस्से में आकर उसे श्राप दे दिया कि जा, तुझे यमराज को देता हूं।
     पिता की आज्ञा का पालन कर नचिकेता यमराज के पास जा पहुंचे। नचिकेता ने संसार की किसी भी वस्तु से मोह न रखते हुए यमराज से यमलोक व ब्रह्मलोक का ज्ञान पूछना चाहा तो यमराज ने इस गूढ़ रहस्य को उजागर नहीं किया और नचिकेता से कहा, ज्ञानी मनुष्य अपनी बुद्धि और मन के द्वारा इन्द्रियों को वश में रखता है, वही व्यक्ति आत्मज्ञान प्राप्त कर सकता है, तो पुत्र नचिकेता उठो, जागो और श्रेष्ठ व्यक्तियों के पास जाकर उनसे ज्ञान प्राप्त करो।
नचिकेता यमराज के उपदेश मानकर व बताया गया आचरण कर जब पृथ्वीलोक पर ऋषि बनकर लौटा तो उसके आगमन की खुशी में कार्तिक चतुर्दशी को मृत्युलोक में सर्वत्र दीप जलाये गये, तब से ही प्रकाशोत्सव का शुभारम्भ हुआ।







Tuesday, October 15, 2019

आत्मशुद्धि का माह कार्तिक - डॉ. वर्षा सिंह

   
Dr. Varsha Singh
 हिंदू कलैंडर के अनुसार कार्तिक मास का प्रारंभ हो चुका है। कार्तिक मास में शिव पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर राक्षस का वध किया था, इसलिए इसका नाम कार्तिक पड़ा, जो विजय देने वाला है। कार्तिक महीने का माहात्म्य स्कन्द पुराण, नारद पुराण, पद्म पुराण में भी मिलता है।
कार्तिक मास के लगभग बीस दिन मनुष्य को देव आराधना द्वारा स्वयं को पुष्ट करने के लिए प्रेरित करते हैं। इसलिए इस महीने को मोक्ष का द्वार भी कहा गया है। शास्त्रों में कहा गया है कि कार्तिक मास में मनुष्य की सभी आवश्यकताओं, जैसे- उत्तम स्वास्थ्य, पारिवारिक उन्नति, देव कृपा आदि का आध्यात्मिक समाधान बड़ी आसानी से हो जाता है।
       

       कार्तिक महीने में भगवान लक्ष्मीनारायण की पूजा का विशेष महत्व होता है। यह मान्यता है कि कार्तिक महीने में सूर्योदय से पहले शीतल जल का स्नान करना सबसे उत्तम है। कार्तिक माह में ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करने से धरती के जितने तीर्थ स्थान है, उनका पुण्य एक साथ प्राप्त हो जाता है। यह माह बहुत पवित्र माना जाता है और यह कार्तिकेय और भगवान विष्णु जी को समर्पित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार शरद पूर्णिमा की रात्रि में मां श्रीमहालक्ष्मी पृथ्वी पर आकर सम्पूर्ण कार्तिक माह में भगवान विष्णु के निद्रा त्यागने से पहले सम्पूर्ण सृष्टि की व्यवस्था देखती हैं। सभी ऋषि, मुनि, योगी और सन्यासियों का चातुर्मास्य व्रत भी इसी माह में कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी को जगतगुरु विष्णु के पूजन के साथ संपन्न होता है।


         कार्तिक माह की त्रयोदशी, चतुर्दशी और पूर्णिमा को शास्त्रों ने अति पुष्करिणी कहा है। स्कन्द पुराण के अनुसार जो प्राणी कार्तिक मास में प्रतिदिन स्नान करता है वह इन्हीं तीन तिथियों की प्रातः स्नान करने से पूर्ण फल का भागी हो जाता है। त्रयोदशी को स्नानोपरांत समस्त वेद प्राणियों समीप जाकर उन्हें पवित्र करते हैं। चतुर्दशी में समस्त देवता एवं यज्ञ सभी जीवों को पावन बनाते हैं, और पूर्णिमा को स्नान अर्घ्य, तर्पण, जप, तप, पूजन, कीर्तन दान-पुण्य करने से स्वयं भगवान विष्णु प्राणियों को ब्रह्मघात और अन्य कृत्या-कृत्य पापों से मुक्त करके जीव को शुद्ध कर देते हैं। इन तीन दिनों में भगवत गीता एवं श्रीसत्यनारायण व्रत की कथा का श्रवण, गीतापाठ विष्णु सहस्त्र नाम का पाठ, 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' का जप करने से प्राणी पापमुक्त-कर्ज मुक्त होकर भगवान श्रीविष्णु जी की कृपा पाता है।

      यह भी कहा जाता है कि कार्तिक में झूठ बोलना, चोरी-ठगी करना, धोखा देना, जीव हत्या करना, गुरु की निंदा करने व मदिरापान करने से बचना चाहिए। एकादशी से पूर्णिमा तक के मध्य भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए खुले आसमान में दीप जलाते हुए इस मंत्र का उच्चारण करने से शुभ फल प्राप्त होता है-           दामोदराय विश्वाय विश्वरूपधराय च !
         नमस्कृत्वा प्रदास्यामि व्योमदीपं हरिप्रियम् !!

अर्थात -मै सर्वस्वरूप एवं विश्वरूपधारी भगवान दामोदर को नमस्कार करके यह आकाशदीप अर्पित करता हूँ जो भगवान को अतिप्रिय है।

         साथ ही इस मंत्र का उच्चारण करते हुए आकाशदीप जलाने से शुभफल प्राप्त होता है :--
         नमः पितृभ्यः प्रेतेभ्यो नमो धर्माय विष्णवे !
         नमो यमाय रुद्राय कान्तारपतये नमः !!

अर्थात 'पितरों को नमस्कार है, प्रेतों को नमस्कार है, धर्म स्वरूप श्रीविष्णु को नमस्कार है, यमदेव को नमस्कार है तथा जीवन यात्रा के दुर्गम पथ में रक्षा करने वाले भगवान रूद्र को नमस्कार है।

भगवान विष्णु  का स्मरण इस मंत्र के जाप के साथ किया जाता है :-
       शांताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशम् ,     
       विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम् ।
       लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम् ,
       वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ।

    इस मंत्र का अर्थ है कि जिस हरि का रूप अति शांतिमय है जो शेष नाग की शय्या पर शयन करते हैं। इनकी नाभि से जो कमल निकल रहा है वो समस्त जगत का आधार है। जो गगन के समान हर जगह व्याप्त है , जो नील बादलो के रंग के समान रंग वाले हैं। जो योगियों द्वारा ध्यान करने पर मिल जाते है , जो समस्त जगत के स्वामी है , जो भय का नाश करने वाले हैं। धन की देवी लक्ष्मी जी के पति है इसे प्रभु हरि को मैं शीश झुकाकर प्रणाम करता हूँ।


         कार्तिक माह में पूर्ण निष्ठा और भक्ति भाव से पूजा अर्चना करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं। कार्तिक महीने में बड़े और मुख्य तीज-त्योहार पड़ते हैं।कार्तिक महीने की शुरुआत शरद पूर्णिमा से हो जाती है। इसके बाद करवा चौथ, धनतेरस, रूप चौदस, दीपावली, गोवर्धन पूजा, भैया दूज, देव उठनी एकादशी आदि पर्व मनाए जाएंगे। कार्तिक महीने का समापन कार्तिक पूर्णिमा पर होता है। कार्तिक महीने में देवउठनी एकादशी के अवसर पर एक बार फिर शुभ एवं मांगलिक कार्यों की शुरुआत होगी। विवाह, शादी, गृह प्रवेश, मुहूर्त आदि का प्रारंभ हो जाते हैं।

         इस महीने में तुलसी पूजन करने तथा सेवन करने का विशेष महत्व बताया गया है। वैसे तो हर मास में तुलसी का सेवन व आराधना करना श्रेयस्कर होता है, लेकिन कार्तिक में तुलसी पूजा का महत्व कई गुना माना गया है।

सागर सहित समूचे बुंदेलखंड में कार्तिक मास में स्त्रियां ब्रह्म मुहूर्त में जलाशयों में स्नान कर श्री कृष्ण की पूजा अर्चना करती हैं।  बुंदेली लोकगीतों में कार्तिक गीतों का विशेष महत्व है। एक बहुचर्चित गीत है :-

भई ने बिरज की मोर सखी री
मैं तो भई ने बिरज की मोर।
कहां रहती कहां चुनती
कहां करती किलोल सखी री। भई...
गोकुल रहती वृन्दावन चुगती
मथुरा करती किलोल। सखी...
गोवर्धन पे लेत बसेरो,
नचती पंख मरोर। सखी...
उड़-उड़ पंख गिरे धरनी पे
बीनत जुगल किशोर। सखी...
वृन्दावन की महिमा न्यारी,
जाको ओर न छोर। सखी...


Monday, October 14, 2019

सागर: साहित्य एवं चिंतन 66 ... एक संवेदनशील लेखिका देवकी भट्ट नायक दीपा - डाॅ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

                  स्थानीय दैनिक समाचार पत्र "आचरण" में प्रकाशित मेरा कॉलम "सागर साहित्य एवं चिंतन " । जिसमें इस बार मैंने लिखा है मेरे शहर सागर की लेखिका देवकी नायक भट्ट दीपा पर आलेख। पढ़िए और जानिए मेरे शहर के वर्तमान साहित्यिक परिवेश को ....

सागर: साहित्य एवं चिंतन

      एक संवेदनशील लेखिका  देवकी भट्ट नायक दीपा
                            - डाॅ. वर्षा सिंह

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       परिचय:- देवकी भट्ट नायक दीपा
       जन्म:-   27 दिसंबर 1964
       जन्म स्थान:- पिथौरागढ़ (उत्तराखंड)
       माता-पिता:- स्व. कमला देवी भट्ट एवं स्व.रूद्र दत्त भट्ट
      शिक्षा:- हिंदी साहित्य, अंग्रेजी साहित्य तथा अर्थशास्त्र में एम.ए. पत्रकारिता में डिप्लोमा
लेखन विधा:- गद्य, पद्य
प्रकाशन:- पत्र, पत्रिकाओं में
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        लेखन के क्षेत्र में महिलाओं की दस्तक पिछली सदी से ही पड़नी शुरू हो गई थी। वे साहित्य में अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराने लगी थीं। सागर में भी लेखिकाओं ने अपनी लेखनी को साबित करने का हरसंभव प्रयास किया है। देवकी भट्ट नायक दीपा सागर नगर की एक ऐसी लेखिका हैं जिन्होंने प्रचुरता से तो नहीं लिखा है किन्तु उनका लेखन अनदेखा नहीं किया जा सकता है। देवकी भट्ट नायक दीपा का जन्म 27 दिसंबर 1964 को उत्तराखंड के पिथौरागढ़ नामक जिले में हुआ था। वे अपने नाम के संबंध में बताती हैं कि विवाह पूर्व उनका नाम देवकी भट्ट था तथा विवाहोपरांत ‘नायक’ सरनेम जुड़ा। जब वे लेखन के क्षेत्र में प्रविष्ट हुईं तो उन्होंने ‘दीपा भट्ट’ के नाम से भी रचनाएं लिखीं। देवकी भट्ट नायक दीपा के पिता स्वर्गीय रूद्रदत्त भट्ट  भारतीय सेना में आनरेरी कैप्टन थे एवं माता स्वर्गीय कमला देवी गृहणी थीं। देवकी भट्ट ने और हिंदी साहित्य अंग्रेजी साहित्य तथा अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की है उन्होंने पत्रकारिता मे डिप्लोमा कोर्स भी किया। उनकी रचनाओं का प्रकाशन दैनिक नवदुनिया, नारी संबल, आचरण, नाइस डे, अबला नहीं नारी, साहित्य सरस्वती आदि पत्र-पत्रिकाओं में हो चुका है। इनकी कविताओं और कहानियों का प्रसारण आकाशवाणी सागर तथा भोपाल दूरदर्शन से भी हुआ है। साहित्यिक गोष्ठियों में कहानी एवं कविता का पाठ कर चुकी हैं। महिला सशक्तिकरण में विश्वास रखने वाली देवकी भट्ट नायक ने रुद्र कमला महिला एवं बाल विकास समिति के माध्यम से गरीब और श्रमिक महिलाओं के बीच कई कार्य किए हैं। भारतीय महिला फेडरेशन की संयोजक होने के साथ ही महारानी लक्ष्मीबाई शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय सागर मध्य प्रदेश में शिक्षक हैं। उल्लेखनीय है कि जहां उत्कृष्ट सेवा कार्यों के लिए राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत किया जा चुका है।
         देवकी भट्ट नायक दीपा ने कहानियां भी लिखी हैं और कविताएं भी। उनकी कविता में स्त्री के रोजमर्रा के जीवन के अनेक दृश्य दिखाई देते हैं। जैसे उनकी एक कविता है-‘औरत जात’। इस कविता का एक अंश देखिए-
बात चलती है
तो कह देते हैं लोग मुझसे
कि अब सबसे ज्यादा धर्म
औरतों में बचा है
मैं घुसती हूं बातों के तालाब की
गहराई में
जहां मर्द से पहले उठकर
झाड़ू बुहारी करती
घर लिपती, बर्तन धोती, खाना बनाती
गर्म-गर्म औरों को खिलाकर
बचा-खुचा खुद खाती
बच्चे जनती
Sagar Sahitya Avam Chintan - Dr. Varsha Singh # Sahitya Varsha

        इसी कविता का एक और अंश स्त्रियों की पारिवारिक एवं सामाजिक दशा के परिप्रेक्ष्य में चिंतन करने योग्य हैः-
रक्ताल्पता की शिकार होती
हड़बड़ा कर, बच्चों को तैयार करती
नाश्ता कराती, स्कूल भेजती
पति की तमाम तैयारियों के बाद
स्वयं जल्दी-जल्दी तैयार होकर
दफ्तर जाती स्त्रियों का समूह है
तमगा लटकाए मंगलसूत्र का
भोगती अमंगल
एक पूरी की पूरी जमात है।

        दहेज भारतीय समाज में एक ऐसा कलंक है जो आज भी पूरी तरह नहीं मिट सका है।  दहेज की बलिवेदी पर प्रति वर्ष अनेक नववधू मृत्यु की भेंट चढ़ा दी जाती हैं। यह कलंक समाज के प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति के मन को कचोटता है। ‘‘दहेज’’ शीर्षक रचना में देवकी भट्ट नायक दीपा लिखती हैं-
मैंने आत्मा को नहीं मारा
गला घोंटा नहीं जमीर का
इसीलिए आज बेचैन हूं
आज जब मेरी सहेली की
शादी की पक्यिात की बात हो रही है
उसमें हो रही है खुल कर सौदेबाजी
कितनी बरेक्षा, कितना फलदान
और कितना दहेज
किस-किस जिंस में दिया जाएगा
बता रहे हैं वरपक्ष की ओर से
आए हुए मध्यस्थ
एक-एक रेशा उधाड़ा जा रहा है
इज्जत की सीवन का
और मैं विवश खड़ी हूं

लेखिका देवकी भट्ट नायक दीपा

       दीपा रुद्र भट्ट के नाम से प्रकाशित देवकी भट्ट नायक दीपा की कहानी ‘‘उनसे पूछ लो’’ में उन बंधनों का विवरण है जिसमें एक आम स्त्री बंधी रहती है। ये बंधन पारिवारिक रिश्तों में संतुलन बनाए रखने में भी कभी-कभी कठिनाइयां पैदा करने लगते हैं और तब स्थितियां जटिल हो जाती हैं। मन संत्रास के झंझावात से गुजरने लगता है। इस कहानी का एक अंश यहां प्रस्तुत है -
‘‘इंतिजार की घड़ियां कितनी लम्बी होती हैं। एक-एक पल युगों सा प्रतीत होता है। जैसे घड़ी रुक गई हो। उस दिन कम्मू का बुरा हाल था। वह बेसब्री से पति के घर आने का इंतिजार कर रही थी। दोपहर का एक बजा था। उसने बिना चबाए ही खाना गटक लिया ताकि देर न हो जाए। फिर बाहर निकल कर देखा तो वहां कोई न था। वह वापस अंदर गई। घड़ी देखी तो एक बज कर पांच मिनट ही हुए थे। पांच मिनट में वह खाना खा कर तैयार हो गई थी। प्रतिदिन एक से दो बजे के बीच उसके पति परेश दुकान बंद करके घर खाना खाने आते थे। जो अभी तक प्रकट नहीं हुए थे। कम्मू को मां की याद बहुत सता रही थी। रह-रह कर उनका चेहरा जेहन में आ जाता था। सूचना मिली थी कि उनका स्वास्थ्य खराब है। मां इसी शहर में रहती थी।’’
     देवकी भट्ट नायक दीपा सागर शहर की एक ऐसी संवेदनशील लेखिका हैं जिनमें गम्भीर साहित्य सृजन की सम्भावनाएं हैं।

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( दैनिक, आचरण  दि. 14.10.2019)
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Sunday, October 13, 2019

शरद पूर्णिमा एक, मान्यताएं अनेक - डॉ. वर्षा सिंह

Dr Varsha Singh
          वर्ष भर में पड़ने वाली समस्त पूर्णिमा में शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व है। शारदीय नवरात्रि के समाप्त होने के बाद शरद पूर्णिमा आती है। हिंदू पंचांग के अनुसार आश्विन माह यानी क्वांर मास की पूर्णिमा तिथि पर शरद पूर्णिमा मनाई जाती है। इस बार वर्ष 2019 में यह आज 13 अक्टूबर को है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से पूर्ण होकर रात भर अपनी किरणों से अमृत की वर्षा करता है। माना जाता है कि इस दिन दूध और चावल से बनाई गई खीर को खुले आसमान के नीचेे रखने से ओस के कण के रूप में अमृत बूंदें खीर के पात्र में भी गिरती हैं जिसके फलस्वरूप यह खीर अमृत तुल्य हो जाती है, जिसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करने से आरोग्य तथा कांति में श्रीवृद्धि होती है। मान्यता है कि चंद्रमा कि किरणें उस पर पड़ने से यह खीर औषधियुक्त हो जाती है।

शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा की किरणों को अवशोषित करती खीर

          बुंदेलखंड के सागर दमोह आदि क्षेत्र में शरद पूर्णिमा पर महिलाएं व्रत रखकर भगवान विष्णु को मावा के लड्डूओं का भोग लगाती हैं। व्रत के दौरान कथा एवं चंद्रदेव, तुलसी और भगवान विष्णु का विशेष पूजन-अर्चन किया जाता है। विशेष तौर पर भगवान को मावा यानी खोबा एवं शक्कर से निर्मित 6 लड्डुओं का भोग लगाया जाता है, जिसमें से एक लड्डू भगवान विष्णु को, दूसरा पंडित को, तीसरा गर्भवती स्त्री को एवं चौथा अपनी सहेली को दिये जाने की परम्परा है।

शरद पूर्णिमा का पूजन

     शरद पूर्णिमा की रात को छत पर खुले आसमान के नीचेे खीर को रखने के पीछे वैज्ञानिक तथ्य भी निहित है। खीर दूध और चावल के मिश्रण को पकाने से बनकर तैयार होती है। दरअसल दूध में लैक्टिक नाम का एक अम्ल होता है। यह एक ऐसा तत्व है जो चंद्रमा की किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति अवशोषित कर लेता है। वहीं चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया सरल हो जाती है। इस खीर का सेवन करना अत्यंत लाभप्रद होता है। शरद पूर्णिमा का दिन कई मायनों में महत्वपू्र्ण है। इस दिन जहां उत्तर भारत में इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और खीर का प्रसाद बनाकर रात को चंद्रमा के नीचे रखा जाता है।

भगवान विष्णु

अश्विन मास के शुक्‍ल पक्ष की इस पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के साथ कोजागर पूर्णिमा भी कहा जाता है।
पूरे साल में 12 पूर्णिमा तिथि आती है जिनमें, आषाढ़, कार्तिक और शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व है। शरद पूर्णिमा के बारे में कहा जाता है कि इस दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से युक्त होकर आसमान से अमृत की वर्षा करता है। इस रात देवी लक्ष्मी भगवान विष्णु के साथ पृथ्वी भ्रमण के लिए आती हैं। इसलिए कहते हैं कि जो इस रात में जागरण करता है मां लक्ष्मी उसकी झोली सुख संपत्ति से भर देती हैं। इसलिए शरद पूर्णिमा की रात को कोजागरा और कोजागरी की रात कहते हैं। कोजागरा व्रत पर इस वर्ष सर्वार्थ सिद्धि और रवि नामक शुभ योग बन रहे हैं जो इस दिन को और भी शुभ बना रहे हैं। इस दिन को देवी लक्ष्मी के जन्मोत्सव के रूप में भी जाना जाता है। कथाओं के अनुसार सागर मंथन के समय देवी लक्ष्मी शरद पूर्णिमा के दिन ही समुद्र से उत्पन्न हुई थीं।

शरद पूर्णिमा पर श्री कृष्ण का महारास

पेंटिंग... महारास में लीन राधा, कृष्ण और गोपिकाएं

    चूंकि महामति प्राणनाथ बुंदेलखंड केसरी  छत्रसाल के गुरु थे और कृष्ण के सखी भाव से उपासक थे अतः मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड के पन्ना जिले के सुप्रसिद्ध मंदिर श्री प्राणनाथ जी मंदिर में शरदऋतु की शरदपूर्णिमा पर हजारों व लाखों देशी व विदेशी श्रद्धालुओं के साथ प्रतिवर्ष अक्टूबर के महिने में श्री 108 प्राणनाथ ट्रस्ट के एवं प्रशासन के सहयोग से बडे ही धूमधाम से आयोजित किया जाता है। महारास की यह link देखें....
      https://youtu.be/jmuO_RVlwS0
        अंतर्राष्ट्रीय शरद पूर्णिमा का मुख्य समारोह पूर्णिमा की रात्रि में होता है । रात्रि में करीब 12 बजे बंगला जी मंदिर में श्रीजी की सवारी ब्रम्हक चबूतरे में लाई जाती है । पूर्णमासी की महारास का उल्लास रात्रि भर चलता है । श्रीजी की सवारी ब्रम्ह‍ चबूतरे पर पांच दिन तक रूकी रहती है । इस दौरान पांच दिन तक गरबा सहित विविध धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन चलता रहता है ।
श्रद्धालुओं द्वारा महारास, गरबा आदि किया जाता है...
https://youtu.be/8VPjMBMIIwE

महामति प्राणनाथ मंदिर, पन्ना, मध्यप्रदेश

       पन्ना में शरद पूर्णिमा महोत्स्व का पहला कार्यक्रम संवत 1740 में हुआ था । स्थानीय  प्रणामी धर्माविलंबियों के मतानुसार श्री प्राणनाथ जी बंगला जी मंदिर में अपने पांच हजार सुंदरसाथ के साथ ठहरे थे । पूर्णिमा की चांदनी रात में वे सुंदरसाथ के साथ श्रीकृष्ण द्वारा ग्वांलवालों व सखियों के साथ खेले जाने वाले महारास की चर्चा कर रहे थे । इसी दौरान उनके साथ आए सुंदरसाथ नें महामति प्राणनाथ जी से अखंड महारास का अनुभव कराने का निवेदन किया तब पूर्णिमा की अर्ध रात्रि शुरू होने वाली थी । इस पर महामति प्राणनाथ जी नें पांच हजार सुंदरसाथ के साथ महारास खेलना शुरू किया । यह महारास पांच दिन तक बिना रूके, बिना थके चलता रहा । तभी से यह हर साल मनाया जाता है ।

महामति प्राणनाथ मंदिर, पन्ना, मध्यप्रदेश

        यूं तो अनेक लोककथाएं प्रचलित हैं किन्तु बहुश्रवणीय, जनसामान्य में बहुप्रचलित एक लोककथा के अनुसार एक साहुकार को दो पुत्रियां थीं। दोनो पुत्रियां पूर्णिमा का व्रत रखती थीं। लेकिन बड़ी पुत्री पूरा व्रत करती थी और छोटी पुत्री अधूरा व्रत करती थी। इसका परिणाम यह हुआ कि छोटी पुत्री की संतान पैदा होते ही मर जाती थी। उसने पंडितों से इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया की तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती थी, जिसके कारण तुम्हारी संतान पैदा होते ही मर जाती है। पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक करने से तुम्हारी संतान जीवित रह सकती है।  उसने पंडितों की सलाह पर पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक किया। बाद में उसे एक लड़का पैदा हुआ। जो कुछ दिनों बाद ही फिर से मर गया। उसने लड़के को एक पाटे (पीढ़ा) पर लेटा कर ऊपर से कपड़ा ढंक दिया। फिर बड़ी बहन को बुलाकर लाई और बैठने के लिए वही पाटा दे दिया। बड़ी बहन जब उस पर बैठने लगी जो उसका घाघरा बच्चे का छू गया। बच्चा घाघरा छूते ही रोने लगा। तब बड़ी बहन ने कहा कि तुम मुझे कलंक लगाना चाहती थी। मेरे बैठने से यह मर जाता। तब छोटी बहन बोली कि यह तो पहले से मरा हुआ था। तेरे ही भाग्य से यह जीवित हो गया है। तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है। उसके बाद नगर में उसने पूर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया।

शरद पूर्णिमा व्रत कथा का श्रवण एवं पूजन दृश्य

      चूंकि आश्विन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है इसलिए शरद पूर्णिमा को चंद्रमा पूरा नजर आने से इसे महापूर्णिमा भी कहते हैं। चंद्रमा इस दिन 16 कलाओं से युक्त रहता है। ये कलाएं मनुष्य के लिए सुख, सिद्धि दायक एवं उन्नति कारक मानी जाती है। सर्वार्थसिद्घ और अमृत सिद्ध का संयोग भी इस दिन बना रहता है। शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा भी कहा जाता है। शरद पूर्णिमा की रात को ही भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ रास रचाया था। वैसे ताे हर माह में पूर्णिमा आती है, लेकिन शरद पूर्णिमा का महत्व उन सभी से कहीं अधिक है। शरद पूर्णिमा से ही स्नान और व्रत प्रारंभ हो जाता है। साथ ही माताएं अपनी संतान की मंगल कामना से देवी,देवताओं का पूजन करती है। इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के अत्यंत समीप आ जाता है। कार्तिक का व्रत भी शरद पूर्णिमा से ही प्रारंभ होता है। शरद ऋतु में मौसम एकदम साफ़ रहता है। इस दिन आकाश में न तो बादल होते हैं और न ही धूल-गुबार। इस रात्रि में भ्रमण और चंद्र किरणों का शरीर पर पड़ना बहुत ही शुभ माना गया है। प्रति पूर्णिमा को व्रत करने वाले इस दिन भी चंद्रमा का पूजन करके भोजन करते हैं।

शिव-पार्वती

    शरद पूर्णिमा के दिन शिव-पार्वती और कार्तिकेय की भी पूजा की जाती है। यही पूर्णिमा कार्तिक स्नान के साथ राधा-दामोदर पूजन व्रत धारण करने का भी दिन है। 
     
डॉ. (सुश्री) शरद सिंह की बहुचर्चित पेंटिंग "शरद पूर्णिमा"



Tuesday, October 8, 2019

बुंदेलखंड में दशहरा - डॉ. वर्षा सिंह



🚩अधर्म पर धर्म की विजय,
असत्य पर सत्य की विजय,
बुराई पर अच्छाई की विजय,
पाप पर पुण्य की विजय
अत्याचार पर सदाचार की विजय
क्रोध पर दया व क्षमा की विजय
रावण पर श्रीराम की विजय के
प्रतीक पावन पर्व
विजयदशमी की
आपको व आपके परिवार को
हार्दिक शुभकामनाएं।
आज सत्य पर असत्य की विजय का पर्व विजयदशमी पूरे देश में बहुत धूमधाम के साथ मनाया जाता है. आज के दिन अस्त्र-शस्त्र का पूजन और रावण दहन के बाद बड़ों के पैर छूकर आशीर्वाद लेने की परंपरा सदियों से चली आ रही है।
           विजयादशमी पर प्रति वर्ष की भांति इस वर्ष भी पीटीसी ग्राउंड पर 51 फीट का रावण दहन किया गया। जय श्रीराम के जयकारों के साथ रावण के पुतले की नाभी में राम का स्वरूप धारण किए हुए व्यक्ति द्वारा छोड़ा गया तीर लगते ही रावण धूं-धूं कर जलने लगा। रावण दहन  बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। सागर शहर के नागरिकों ने अपने परिवार सहित दशानन रावण का अहंकार पलभर में राख होते देखा।
        समूचे बुंदेलखंड में आज के दिन पान का बीड़ा हनुमानजी के चढ़ाया जाता है। पान हनुमाजी को बहुत पसंद है और इस बार दशहरा मंगलवार को है इसलिए यह दिन और भी खास हो जाता है। पान को जीत का प्रतीक माना गया है। पान का 'बीड़ा' शब्द का एक महत्व यह भी है इस दिन हम सही रास्ते पर चलने का 'बीड़ा' उठाते हैं। पान प्रेम का पर्याय है। दशहरे में रावण दहन के बाद पान का बीड़ा खाने की परम्परा है। ऐसा माना जाता है दशहरे के दिन पान खाकर लोग असत्य पर हुई सत्य की जीत की खुशी मनाते हैं। पान का पत्ता मान और सम्मान का प्रतीक है. इसलिए हर शुभ कार्य में इसका उपयोग किया जाता है. नवरात्रि पूजन के दौरान भी मां को पान-सुपारी चढ़ाने का विधान होता है. इसी के साथ पान के पत्ते का उपयोग विवाह से लेकर कथा पाठ तक हर शुभ काम में किया जाता है.


Monday, October 7, 2019

लेखक हिमांशु राय से डॉ. (सुश्री) शरद सिंह की चर्चा

Dr. Varsha Singh

             दिनांक 29.09.2019 को  My Mute Girl Friend और Am Always Here With You उपन्यासों के लेखक हिमांशु राय की उपस्थिति में उनके लेखन पर सार्थक चर्चा हुई... कला साहित्य संस्कृति और भाषा के विकास व संरक्षण के लिये समर्पित संस्था श्यामलम् के "भाषा विमर्श " श्रृंखला के अंतर्गत, जिसमें लेखक से चर्चा करते हुए डॉ. (सुश्री) शरद सिंह ने महत्वपूर्ण प्रश्न उठाए।

...तस्वीरें उसी अवसर की....