Wednesday, April 29, 2020

लॉकडाउन में घरेलू हिंसा से सुरक्षा हेतु हेल्पलाइन - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

      आज web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 28.04.2020 में मेरे आलेख "लॉकडाउन में घरेलू हिंसा से सुरक्षा हेतु हेल्पलाइन" को स्थान मिला है।
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
मित्रों, यदि आप चाहें तो पत्रिका में इसे इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ...

लॉकडाउन में घरेलू हिंसा से सुरक्षा हेतु हेल्पलाइन
           - डॉ. वर्षा सिंह
         देश में पिछले माह 24 मार्च से शुरू  लॉकडाउन का आज 36 वां दिन है। लाॅकडाउन के कारण पुरुषों का घर से बाहर निकलना बंद हो गया है। जिन पुरुषों को शराब, जुआ, अड्डेबाजी आदि की बुरी आदतें थीं उनकी सभी बुरी आदतों पर अंकुश लग गया है। वे अब लाॅकडाउन की पाबंदियों की खीझ अपने घर की महिलाओं पर निकालने लगे हैं। कुछ ऐसे भी हैं जो रोजगार थम जाने के कारण तनाव में आ गए और अपने क्रोध को निकालने के लिए  घरेलू हिंसा का रास्ता अपना रहे हैं। लेकिन अधिक हिंसात्मक वे लोग हैं जो बुरी आदतों के शिकार रहे हैं। यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस ने भी महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा के मामलों में ‘भयावह बढ़ोत्तरी’ दर्ज किए जाने पर चिंता जताई है।
         दरअसल, कोरोना महामारी की वजह से उपजी आर्थिक व सामाजिक चुनौतियों की वजह से घरेलू हिंसा और महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार के मामलों में चिंताजनक वृद्धि हुई है। इसका प्रमुख कारण आर्थिक गतिविधि का बंद होना और आवाजाही बंद होने की वजह से व्यवहार में आई चिड़चिड़ाहट भी मानी जा रही है।
      महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों में एकाएक वृध्दि होने पर समाजसेवी महिला कार्यकर्ताओं ने भी इस तथ्य को गंभीरता से लिया है। ऐसी महिलाओं का कहना है कि इस दौरान छोटे-छोटे घरों में रहने वाली महिलायें, पति द्वारा हिंसा की शिकार महिलायें, लॉकडाउन के चलते असंगठित क्षेत्रों में काम करने वाली महिलाओं का नौकरी पर न जा पाना और अस्वस्थ्य महिलाओं को उचित वक्त पर मेडिकल सुविधा न मिलना जैसे कारणों के चलते महिलाओं में चिंता और तनाव के लक्षण पैदा होते जा रहे हैं। इन्हीं सब मुद्दों को देखते हुए लॉकडाउन में घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओें के लिए एक हेल्प लाइन सेवा शुरू की गई है। इस हेल्प लाइन सेवा के साथ दिल्ली की महिला अधिवक्ता, डॉक्टर, कारोबारी, प्रोफेसर, शिक्षाविद, सामाजिक कार्यकर्ता और दूसरे क्षेत्रों में काम करने वाली वह महिलाएं बड़ी संख्या में जुड़ी है। अभी शुरू की गई हेल्प लाइन के माध्यम से महिलाओं की समस्या का निदान किया जाएगा और उनकी टेलीफोन के माध्यम से ही कॉउसलिंग भी की जाएगी। लॉकडाउन के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए समाजसेवा से जुड़ी महिलायें पीड़ित महिलाओं की समस्याओं का निदान करेंगी। हेल्प लाइन के लिए 817-817-1234 नंबर जारी किया गया है। इस नंबर पर महिलाएं अपनी समस्याओं के बारे में फोन कर सुझाव और निदान मांग सकती है। इस हेल्प लाइन पर महिलाएं परामर्श और समस्या- समाधान दोनों के लिए कॉल कर सकती हैं और काउंसलर के समक्ष अपनी समस्या भी रख सकती है। महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा, पारिवारिक प्रताड़ना, पति द्वारा मारपीट, अन्य हिंसा के मामलों को महिलाएं इस हेल्प लाइन के माध्यम से व्यक्त कर सकती हैं। यह हेल्पलाइन जाति, धर्म, राजनीति से परे सिर्फ़ महिलाओं की घरेलू हिंसा संबंधी समस्या निवारण के लिए ही है।
       पारिवारिक रिश्तों को आईना दिखा दिया है कोरोना लाॅकडाउन ने। यही समय है जब बिगड़े हुए चेहरों की कमियों को पहचान कर सुधारा जा सकता है। इसे कोरोना लाॅकडाउन का सकारात्मक पक्ष मानना चाहिए। घरेलू हिंसा रोकने और रिश्तों को सुधारने का एक सुनहरा अवसर है यह।
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Tuesday, April 28, 2020

पारिवारिक रिश्तों को आईना दिखा रहा कोरोना लाॅकडाउन : यही समय है रिश्तों को सुधारने का - डाॅ वर्षा सिंह

   
Dr. Varsha Singh
    आज दिनांक 28.04.2020 को दैनिक "स्वदेश ज्योति" में प्रकाशित हुआ मेरा लेख यहां प्रस्तुत है... कृपया पढ़ कर प्रतिक्रिया से अवगत कराएं।
हार्दिक आभार स्वदेश ज्योति 🙏



पारिवारिक रिश्तों को आईना दिखा  रहा कोरोना लाॅकडाउन

यही समय है रिश्तों को सुधारने का
- डाॅ वर्षा सिंह,  वरिष्ठ लेखिका

      कोरोना लाॅकडाउन ने पारिवारिक रिश्तों के चेहरे से नक़ाब हटा दिए हैं। कहीं बंधन सुदृढ़ हुए हैं तो कहीं घरेलू हिंसा में वृद्धि हो गई है। कोरोना संकट के कारण देश व्यापी लॉकडॉउन चल रहा है। जिसके कारण सभी को पूरे समय घर पर ही रहना पड़ रहा है। ऐसे वक्त में पारिवारिक झगड़े होने लगे हैं। लॉकडॉउन के दौरान राष्ट्रीय महिला आयोग के पास अब तक बड़ी संख्या में शिकायतें घरेलू हिंसा को लेकर आ चुकी है। महिलाओं के प्रति होने वाले इन अपराधों की संख्या आम दिनों की अपेक्षा अधिक हैं, जो परिवार में महिलाओं की स्थिति को सामने लाती हैं। देखा जाए तो लाॅकडाउन ने महिलाओं की स्थिति का आकलन कर के उनका पारिवारिक जीवन सुधारने का एक मौका दिया है।
      भारतीय पारिवारिक संरचना मूलरूप से संयुक्त परिवार की रही है।’मनुस्मृति’ (3/56) में कहा गया है कि
‘‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः ।।   
      अर्थात जहां स्त्रियों की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं और जहां स्त्रियों की पूजा नही होती है, उनका सम्मान नही होता है वहां पूर्व में किए गए समस्त अच्छे कर्म भी निष्फल हो जाते हैं। किन्तु आज महिलाओं का मान-सम्मान आए दिन धूल में मिलता रहता है। इसका सबसे बड़ा कारण है कि पाश्चात्य प्रभाव के कारण ये संयुक्त परिवार न्यूक्लियर फैमली में ढलते जा रहे हैं जिनमें बुर्जुगों के लिए कोई स्थान नहीं है। युवा माता-पिता और स्कूल की आयु तक के बच्चे। स्कूल आयु पूरी करते ही बच्चे दूसरे शहरों के कोचिंग  सेंटर्स में चले जाते हैं और माता-पिता अपनी-अपनी महत्वाकांक्षाओं के पीछे भागते रहते हैं। परिवार का भारतीय कंसेप्ट यह कभी नहीं रहा। ऐसे परिवारों में बच्चों में संस्कारों के बीज पनप ही नहीं पाते हैं। जब संस्कार नहीं होंगे तो महलिाओं के पगहत सम्मान की भावना कहां से आएगी? दरअसल जब सामाजिक संरचना के स्वस्थ नियमों को तोड़ा जाता है तो अस्वस्थ स्थितियां सामने आने लगती हैं। यही हो रहा है लाॅकडाउन के दौरान।
         पति-पत्नी जो चौबीस घंटे में छः-सात घंटे ही साथ में व्यतीत करते थे वे अब पूरे चौैबीस घंटे एक ही छत के नीचे साथ-साथ रह रहे हैं। इस स्थिति से अनेक परिवार अत्यंत प्रसन्न हैं क्योंकि वे जिस साथ के लिए तरसते थे वह उन्हें मिल रहा है। बच्चे अपने माता-पिता का भरपूर प्यार पा रहे हैं। माता-पिता भी अपने बच्चों का साथ पा कर उनकी इच्छाओं एवं उनके सपनों को समझ पा रहे हैं। इन सबके दौरान सबसे खुश है वे बुजुर्ग जो अकेलेपन से त्रस्त थे। ऐसे बुजुर्गों को अपने बच्चों, अपने नाती-पोतों सभी का साथ मिल रहा है। वे जिस भरे-पूरे घर का सपना देखते थे, उसे अपनी जागती आंखों से देख पा रहे हैं। लेकिन जैसे हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, लाॅकडाउन के दौरान पारिवारिक रिश्तों के भी दो पहलू हैं। एक पहलू खुशहाली का है तो दूसरा मार-पीट और हिंसा का।
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स्वदेश ज्योति - पारिवारिक रिश्तों को आईना दिखा  रहा कोरोना लाॅकडाउन यही समय है रिश्तों को सुधारने का- डाॅ वर्षा सिंह

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Sunday, April 26, 2020

विशेष लेख - कोरोना लाॅकडाउन और सागर का काव्यजगत - डॉ. वर्षा सिंह

   
Dr. Varsha Singh
   
      स्थानीय दैनिक समाचार पत्र "आचरण" में कल दिनांक 25.04.2020 को प्रकाशित मेरा विशेष आलेख - " कोरोना लॉकडाउन और सागर का काव्य जगत "। 

विशेष लेख -

कोरोना लाॅकडाउन और सागर का काव्यजगत

             - डॉ. वर्षा सिंह

         सागर शहर अपनी अनूठी विशेषताओं का शहर है। यहां झील के रूप में प्राकृतिक छटा है तो काव्य के रूप में प्रतिभाएं मुखर हैं। कोरोना आपदा के विश्वव्यापी संकट के कारण सागर शहर में लाॅकडाउन का सन्नाटा पसरा हुआ है लेकिन सागर के साहित्यकारों की लेखनी थमी नहीं है। वे निरंतर सृजन कर रहे हैं। जहां एक ओर वे आमजनता को लाॅकडाउन के नियमों का पालन करने की समझाइश दे रहे हैं वहीं दूसरी ओर कोरोना वारियर्स का हौलसा बढ़ा रहे हैं। तो यहां प्रस्तुत है सागर शहर के कुछ कवियों की वे कविताएं जो कोरोना संकट पर केन्द्रित हैं।

प्रो. आनंद प्रकाश त्रिपाठी 
         तो आरम्भ प्रो. आनंद प्रकाश त्रिपाठी की कविता के इस अंश से जो कोरोना की भयावह स्थिति का दृश्य प्रस्तुत करती है-

लाकडाउन काल
सड़कों पर डंसता  सन्नाटा  देखा है

हंसता जीवन
सहमा सहमा और डरावना देखा है

महामारी कोरोना
लोगों के दिल की धड़कन  बढ़ते देखा है

जान है तो जहान है
इस सच  को जीते देखा है

कोरोना का भयावह संक्रमण
लोगों को अति बेबस  होते देखा है

Dr. Sharad Singh
      कोरोना की ये भयावहता ही है जिसने हर व्यक्ति को अपने घर के भीतर क़ैद कर दिया है क्योंकि इस क़ैद में ही जीवन की सुरक्षा है। इसीलिए कवयित्री डॉ (सुश्री) शरद सिंह अपनी बुंदेली गीत के द्वारा हर व्यक्ति से निवेदन करती हैं कि -

लॉकडाउन को पालन कर लेओ
सुन लेओ, भैया मोरे।

जेई सबई खों बचा सकत है
हाथ तुमाए जोरे।

पूरो लॉक करा दओ सागर
ऐसी करी घुमाई
बचो रहे अब सागर सगरो
कर लेओ जेई दुहाई

सबई के प्रानन पे बन जेहे
कोऊ किवरिया खोरे
हाथ तुमाए जोरे।।

 
कपिल बैसाखिया
   संकट के दिन कितने भी लम्बे क्यों न लगें किन्तु यदि धैर्य से बिताए जाएं तो आसानी से व्यतीत हो जाते हैं। कुछ यही बात कवि कपिल बैसाखिया अपने इन दोहों के माध्यम से सभी को समझाना चाहते हैं-                       

मन से हों मजबूत हम, रहे तन सावधान।
दूरी में  ही निकटता, अपने पन का भान।।

कुछही दिन की बात है, लाना है बदलाव।
घर में हों गर कैद  हम, होगा तभी बचाव।।

 
डॉ. वर्षा सिंह
     लेकिन कुछ लोग जो स्थिति की गंभीरता को अनदेखा कर के लाॅकडाउन के नियमों को तोड़ते रहते हैं वे स्वयं को संकट में तो डालते ही हैं, साथ ही अपने परिचितों, मित्रों और रिश्तेदारों के लिए भी प्राणघातक बन बैठते हैं। ऐसे लोगों के कारण ही लाॅकडाउन की अवधि बढ़ाने की नौबत आई है। तो कवयित्री डॉ. वर्षा सिंह यानी मैं भी बुंदेली में ऐसे लोगों से निरंतर प्रार्थना करती रहती हूं कि-

तीन पांच लों लॉकडाउन है, तीन पांच ने करियो।
तारा डारे हम घर बैठे, तुम अपने घर  रहियो।।

पुलिस, कलक्टर संगे हमरे, संगे पीएम, सीएम,
सात बचन खों पालन करबै में तनकऊ ने डरियो।।

ढाल बने से खड़े वारियर, देत सुरक्छा हमखों,
उन ओरन की सच्चे मन से जयकारे सब करियो।।

 
डॉ नलिन जैन
     सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क पहनना और बार-बार हाथ धोना बचा सकता है कोरोना के खतरे से। इस तथ्य को कवि नलिन जैन अपनी काव्य रचना में कुछ इस प्रकार कहते हैं-

स्टे  एट  होम  ही,  हुआ  जरूरी  आज
क्षुद्र  वायरस  देखिये,  संक्रमण  है काज

करिये  कसरत रोज ही, आधा  घंटे  रोज
कफ इससे पिघले स्वयं, ठहरे ना ये नोज

कुछ भी ना पकड़े अभी,सतह जो भी अंजान
सेनिटेशन  कीजिये, बार - बार  यह  काम

अशोक मिज़ाज बद्र
     ऐसे लोग जो सुरक्षा के लिए लगाए गए लाॅकडाउन के महत्व को समझ नहीं रहे हैं और संक्रमण का एक भी केस सामने आने पर ढिठाई ओढ़ कर सारी जिम्मेदारी सरकार पर मढ़ने लगते हैं, उन्हें उलाहना देते हुए शायर अशोक मिजाज कहते हैं-

मौतों के आंकड़ों से खबरदार नहीं है।
क्या अपनी जिंदगी से तुझे प्यार नहीं है।

खुद अपनी देखरेख हमें करनी पड़ेगी,
हर शय की जिम्मेदार तो सरकार नहीं है।

 
सतीश पाण्डेय
  जिस तरह हमारा देश और हम कोरोना संकट से लोहा ले रहे हैं आज पूरा विश्व उसकी प्रशंसा कर रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने भी ‘रामायण’ का संदर्भ उद्धृत करते हुए ‘लक्ष्मणरेखा’ का स्मरण कराया कि यदि हम सुरक्षा की लक्ष्मणरेखा नहीं लांघे तो कोराना हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता है। यही बात कवि डाॅ. सतीश पाण्डेय अपने इन दोहों में समझाते हुए कुछ इस प्रकार कहते हैं-

लक्ष्मण रेखा खीच कर , कोरोना से जंग ।
बात सभी ने मान ली , फिर होंगें रसरंग ।

करें सहन थोड़े दिवस , कठिनाई यदि देश।
संयम नियम विवेक से होगा शुभ परिवेश।।

जप तप पूजा पाठ भी , तभी करेंगे काम ।
लॉकडाउन के नियम का,पालन हो अभिराम।।

     कोरोना आपदा और लाॅकडाउन ने सागर शहर के विविध विषयों पर कविता करने वाले कवियों को जिस प्रकार कोरोना आपदा रूपी एक विषय में सूत्रबद्ध कर दिया है, उसी प्रकार प्रत्येक नागरिक को एकसूत्रीय होते हुए आपदा के नियमों का पालन करते हुए धैर्य और संयम का परिचय देना चाहिए तभी हम कोरोना रूपी राक्षस का विनाश कर सकेंगे। 

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( दैनिक, आचरण  दि. 25.04.2020)
#आचरण

Thursday, April 23, 2020

विश्व पुस्तक दिवस और कोरोना काल - डॉ. वर्षा सिंह

         
Dr. Varsha Singh
        हर साल 23 अप्रैल को विश्व पुस्तक दिवस मनाया जाता है। यूनेस्को हर साल इस मौके पर कार्यक्रमों का आयोजन करता है और विश्व पुस्तक दिवस की थीम तैयार करता है। इसकी मदद से यूनेस्को लोगों के बीच किताब पढ़ने की आदत को बढ़ावा देना चाहता है। चूंकि किताबी दुनिया में कॉपीराइट एक अहम मुद्दा है, इसलिए विश्व पुस्तक दिवस पर इस पर भी जोर दिया जाता है। इसी वजह से दुनिया के कई हिस्सों में इसे विश्व पुस्तक और कॉपीराइट दिवस के तौर पर भी मनाया जाता है। दुनिया भर मे वर्ल्ड बुक डे इसलिए मनाया जाता है जिससे किताबों की अहमियत को समझा जा सके। साथ ही संस्कृातियों और पीढ़‍ियों के बीच में एक सेतु की तरह भी हैं।
         वर्ल्ड बुक डे के जरिए यूनेस्को रचनात्म्कता, विविधता और ज्ञान पर सब के अधिकार के मकसद को बढ़ावा देना चाहता है। यह दिवस विश्व भर के लोगों खासकर लेखकों, शिक्षकों, सरकारी व‍ निजी संस्थानों, एनजीओ और मीडिया को एक प्लैाटफॉर्म मुहैया कराता है, ताकि साक्षरता को बढ़ावा दिया जा सके और सभी लोगो को शिक्षा के संसाधनों तक पहुंचाया जा सके।
    वर्तमान में लॉकडाउन के दौरान किताबें मनोरंजन, सूचना की सबसे बड़ी स्रोत हैं।  पाठकों के लिए कोरोना काल में जहां पुस्तकें टाईम पास का जरिया हैं वहीं लॉकडाउन ने साहित्यकारों को अपनी पुस्तकें पूरा करने भरपूर समय दिया है। कई ने अपनी पुस्तकों का लेखन कार्य पूरा कर लिया है तो कई साहित्यकारों की पुस्तकें पूरी होने को हैं।

Wednesday, April 22, 2020

पृथ्वी दिवस विशेष : पृथ्वी दिवस , लॉकडाउन और पर्यावरण - डॉ वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

पृथ्वी दिवस , लॉकडाउन और पर्यावरण
         - डॉ वर्षा सिंह

आज अर्थ डे यानीे पृथ्वी दिवस है।
      ... और अपनी इस 'अर्थ' पर कोरोना वायरस के 'अनर्थ' के बादल छाए हुए हैं। तो आईए हम संकल्प लें कि लॉकडाउन के नियमों का पालन कर हम बचे रहेंगे और पर्यावरण संरक्षण नियमों का पालन कर बचाए रहेंगे अपनी धरती यानी Mother Earth को अर्थ डे यानी पृथ्वी दिवस एक वार्षिक इवेंट है जिसे दुनियाभर में आज यानी की 22 अप्रैल को पर्यावरण संरक्षण के लिए मनाया जाता है। इसे पहली बार साल 1970 में मनाया गया था। इस साल पृथ्वी दिवस के 50 साल पूरे हो रहे हैं जहां इसका थीम 'क्लाइमेट एक्शन' रखा गया है। पर्यावरण की सुरक्षा के लिए "पृथ्वी दिवस या अर्थ डे" मनाया जाता है। इस आंदोलन को यह नाम जुलियन कोनिग द्वारा सन् 1969 को दिया था। इसके साथ ही इसे सेलिब्रेट करने के लिए अप्रैल की 22 तारीख चुनी गई।
       इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य लोगों को पृथ्वी और पर्यावरण के संरक्षण हेतु जागरूक करना है। आधुनिक काल में जिस तरह से मृदा अपरदन हो रहा है, ग्लेशियर पिघल रहे हैं, ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रहा है और प्रदूषण फ़ैल रहा है, इनसे पृथ्वी का ह्वास हो रहा है। ऐसी स्थति में पृथ्वी की गुणवत्ता, उर्वरकता और महत्ता को बनाए रखने के लिए हमें पर्यावरण और पृथ्वी को सुरक्षित रखने की जरूरत है। इन महत्वकांक्षी उद्देश्यों को पूरा करने हेतु हर साल 22 अप्रैल पृथ्वी दिवस मनाया जाता है।
          इस वर्ष वर्तमान समय में कोरोना वायरस  के चलते पूरे देश में लॉकडाउन है। हम सभी जानते हैं कि लॉकडाउन का अर्थ है तालाबंदी ।     
लॉकडाउन एकआपातकालीन व्यवस्था है जो किसी आपदा या महामारी के वक्त लागू की जाती है। जिस इलाके में लॉकडाउन किया गया है उस क्षेत्र के लोगों को घरों से बाहर निकलने की अनुमति नहीं होती है। उन्हें सिर्फ दवा और खाने-पीने जैसी जरूरी चीजों की खरीदारी के लिए ही बाहर आने की इजाजत मिलती है, इस दौरान वे बैंक से पैसे निकालने भी जा सकते हैं.जिस तरह किसी संस्थान या फैक्ट्री को बंद किया जाता है और वहां तालाबंदी हो जाती है उसी तरह लॉक डाउन का अर्थ है कि आप अनावश्यक कार्य के लिए सड़कों पर ना निकलें। अगर लॉकडाउन की वजह से किसी तरह की परेशानी हो तो आप संबंधित पुलिस थाने, जिला कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक अथवा अन्य उच्च अधिकारी को फोन कर सकते हैं। लॉकडाउन जनता की सहूलियत और सुरक्षा के लिए किया जाता है.सभी प्राइवेट और कॉन्ट्रेक्ट वाले दफ्तर बंद रहते हैं, सरकारी दफ्तर जो जरूरी श्रेणी में नहीं आते, वो भी बंद रहते हैं।
       लॉकडाउन कोरोना की जंग से जीतने के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण के लिए भी काफी अहम साबित हो रहा है। इन दिनों हवा एकदम साफ हो गई है, लॉकडाउन खुलने के बाद भी इस समय का अध्ययन भविष्य में प्रदूषण नियंत्रण की राह तैयार करेगा। करीब तीन सप्ताह से चल रहे लॉकडाउन से समूची पृथ्वी पर पर्यावरण में व्यापक स्तर पर बदलाव देखने को मिला है। पेट्रोल और डीजल चालित वाहन बंद होने से हवा की गुणवत्ता ही नहीं सुधरी बल्कि औद्योगिक इकाइयां बंद होने से नदियों के पानी भी काफी साफ दिखाई दे रहा है। हर स्तर के आयोजन बंद होने और जनता के भी घरों में ही रहने के कारण ध्वनि प्रदूषण के स्तर तक में खासी गिरावट दर्ज की गई है। इस बदलाव पर तमाम अध्ययन भी किए जा रहे हैं।
    पृथ्वी दिवस पर यह तथ्य विचारणीय है कि भविष्य में हमें पृथ्वी पर प्रदूषण रोकने की दिशा में सार्थक कार्य करने होंगे।
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सागर, म.प्र.

प्रिय मित्रों, यह है मेरा युवाप्रवर्तक के आज दिनांक 22.04.2020 के अंक में प्रकाशित मेरा लेख " पृथ्वी दिवस , लॉकडाउन और पर्यावरण" ।
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
मित्रों, यदि आप चाहें तो पत्रिका में इसे इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ...
http://yuvapravartak.com/?p=29999







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Saturday, April 11, 2020

स्मृतिशेष साहित्यकार दादा नेमीचन्द्र विनम्र को श्रद्धांजलि - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

         सागर नगर के वरिष्ठ साहित्यकार, कवि दादा नेमीचन्द्र विनम्र जी का निधन 08.04.2020 को 92 वर्ष की आयु में हो गया। सागर की जागरूक साहित्यिक संस्था श्यामलम् के अध्यक्ष उमाकांत मिश्र जी ने नवाचार करते हुये कोरोना महामारी के संक्रमण को फैलने से रोकने के मद्देनज़र प्रशासन द्वारा सागर ज़िले में घोषित लॉकडाउन के नियमों का कठोरता से पालन करते हुए  श्रद्धांजलि सभा को सोशल मीडिया में करने का निर्णय लिया और संस्था के सचिव कवि कपिल बैसाखिया के सहयोग से Whatsapp Group "पाठक एवं संस्कृति संवाद" को मंच निरूपित करते हुए Whatsapp के माध्यम से कल दिनांक 09.04.2020 को दोपहर 03 बजे से 07 बजे शाम तक की समयावधि में श्रद्धांजलि सभा आयोजित की गई।
      इसमें ऑनलाईन शामिल हो कर मैंने भी स्मृतिशेष दादा नेमीचन्द्र विनम्र जी के प्रति अपनी श्रद्धांजलि निम्नलिखित शब्दों में व्यक्त की...
       
 शोक श्रद्धांजलि 😥
~~~~~~~~~~~~~
     वात्सल्य भाव के धनी सागर नगर के वरिष्ठ कवि नेमीचंद "विनम्"  हंसमुख और ऊर्जावान  व्यक्तित्व के धनी थे। वे 92 वर्ष की आयु में भी सतत सृजनशील रहे तथा उन्होंने अपनी उर्जास्विता बनाए रखा।

    दादा "विनम्र" जी की लिखी यह कविता मुझे याद आ रही है...

मेरे मित्रो, मेरे मन  में मेल नहीं है
अंतरंग में जलधारा है शैल नहीं है
सेवा के संकल्प दीप को अधिक जगाया
मुक्त हृदय पथ टेढ़ी-मेढ़ी गैल नहीं है

    दादा "विनम्र" जी का लेखन तथा साहित्य के प्रति समर्पण युवाओं के लिए हमेशा क्रियाशीलता का एक अनुपम उदाहरण बना रहेगा। उनके निधन का समाचार अत्यंत दुखद है।

     दादा "विनम्र" जी के प्रति मेरी अश्रुपूरित श्रद्धांजलि  🙏💐🙏

             - डॉ. वर्षा सिंह




  साहित्यकार एवं स्तम्भलेखिका डॉ. (सुश्री) शरद सिंह ने भी ऑनलाइन श्रद्धांजलि दी....
*शोक श्रद्धांजलि*
     *स्मृति शेष नेमीचंद "विनम्र" जी उपनाम से 'विनम्र' और स्वभाव से भी 'विनम्र' अर्थात यथा नाम तथा गुण।  दादा "विनम्र" जी जब भी मिलते थे तो सबसे पहले यही प्रश्न करते कि "इनदिनों क्या लिख रही हो?" वे मेरी रचनाएं ध्यान से पढ़ते थे और जब भी मुलाक़ात होती वे उन पर विस्तार से चर्चा करते थे। इस प्रकार मेरी रचनाधर्मिता को प्रोत्साहित करने में उनका जो योगदान रहा, उसके लिए मैं सदा दादा 'विनम्र' जी की कृतज्ञ रहूंगी। सागर साहित्य जगत में उनका नाम सदैव स्वर्णिम अक्षरों में अंकित रहेगा। दादा "विनम्र" जी का आशीर्वाद तथा स्नेह मुझे और मेरी दीदी डॉ. वर्षा सिंह को सदैव मिलता रहा है।*
     *दादा नेमीचंद "विनम्र" जी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए मैं अत्यंत शोकाकुल हूं। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे ।*
       *ऊं शांति, शांति, शांति ।*
    🙏- *डॉ. (सुश्री) शरद सिंह*




Monday, April 6, 2020

डॉ. विद्यावती सिंह "मालविका" का साक्षात्कार..."लॉकडाउन मैंने अपने जीवन में पहली बार देखा" - डॉ. वर्षा सिंह


Dr. Varsha Singh

     मेरी माता जी डॉ. विद्यावती सिंह "मालविका" जो वरिष्ठ साहित्यकार हैं, वे चकित हैं लॉकडाउन पर, चिंतित हैं कोरोना संकट पर और ईश्वर से प्रार्थना किया करती हैं प्रत्येक व्यक्ति के स्वस्थ रहने के लिए।राजस्थान पत्रिका के सागर एडीशन "पत्रिका" द्वारा लिया गया उनका साक्षात्कार आज दि. 06.04.20 को "पत्रिका" में प्रकाशित हुआ है। जिसे आप भी पढ़ें...
हार्दिक आभार "पत्रिका" 🙏

मैं डॉ. वर्षा सिंह और मेरी माता जी डॉ. विद्यावती सिंह "मालविका"
 
       लॉकडाउन मैंने अपने जीवन में पहली बार देखा
                   - डॉ. विद्यावती सिंह "मालविका"
                      वरिष्ठ साहित्यकार, सागर

             मैंने अपने 90 वर्ष की आयु के दौरान अनेक बार कर्फ्यू की स्थिति देखी है।  ब्रिटिश काल में कई बार कर्फ्यू की स्थिति बन जाती थी और इसी प्रकार दंगे फसाद के समय भी कर्फ्यू लगाया जाता था  लेकिन लॉकडाउन मैंने अपने जीवन में पहली बार देखा है, जब मंदिर के पट भी बंद हैं और अस्पतालों में ओपीडी भी बंद कर दी गई है। पहले जब कर्फ्यू  लगाया जाता था तो उस कर्फ्यू के नियमों को तोड़ने वालों पर पुलिस के डंडे चलते थे या उन्हें जेल भेज दिया जाता था लेकिन आज अगर लॉकडाउन के नियमों का पालन नहीं करेंगे तो हम अपने ही स्वास्थ्य  ही नहीं अपने परिवार के अपने पड़ोसियों के स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंचाएंगे। यह जीवन और मृत्यु का सवाल है अतः हमें इसे गंभीरता से लेना होगा। कोरोना वायरस को किसी भी हाल में और फैलने. नहीं देना है।
          देश में लॉकडाउन पहली बार किया गया है तो  ऐसा संकट भी तो पहली बार आया है। कोरोना वायरस का असर इतना भीषण है कि पूरा देश, पूरी मानव जाति संकट में आ गई है। इस संकट से उबरने के लिए हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने जनता कर्फ्यू भी लगाया लेकिन दुख है कि लोगों ने उसका ढंग से पालन नहीं किया। कोरोना वायरस संक्रमण को देखते हुए अत्यधिक सतर्कता बरतने की जरूरत है। कोरोना वायरस से सम्बन्धित लक्षण यदि किसी भी व्यक्ति में पाए जाते है तो उसे तुरंत नजदीकी हस्पताल में ले जाएं।
             प्रशासन की तरह मेरा भी सबसे अनुरोध है कि  नवरात्रि में घर में रह कर पूजा-पाठ करें। घर से बाहर बिलकुल नहीं निकलें। जो भी वस्तुएं घर में हों उन्हीं से नवरात्रि मनाएं। यह अच्छा है कि नवरात्रि में आयोजित होने वाले वार्षिक मेला, भजन संध्या, अखंड रामध्वनि आदि कार्यक्रमों को स्थगित कर दिया गया है। ईश्वर भक्ति से प्रसन्न होता है, जोकि घर में रह कर भी उतनी ही श्रद्धा से की जा सकती है। घर में रहें और प्रार्थना करें कि दुनिया में सभी मनुष्य स्वस्थ-प्रसन्न रहें। यह मानें कि  ईश्वर हमारी परीक्षा ले रहा है और हमें इस परीक्षा में उत्तीर्ण होना ही है।
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#SagarPatrika


Sunday, April 5, 2020

तमसो मा ज्योतिर्गमय

तमसो मा ज्योतिर्गमय ....
आज 5 अप्रैल रविवार रात 9 बजे पूरे देश के साथ मैंने भी अपने घर की बालकनी पर दीप जलाया।
🇮🇳 मेरा भारत, स्वस्थ भारत 🇮🇳






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Saturday, April 4, 2020

सालों बाद चिड़िया की चहचहाहट सुन रही हूं, देख रही हूं गिलहरियों का पेड़ पर चढ़ना - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

      लॉकडाउन के इन दिनों के मेरे अनुभव को प्रकाशित किया है "नवदुनिया" ने... इस हेतु "नवदुनिया" को हृदय से आभार.🙏

सालों बाद चिड़िया की चहचहाहट सुन रही हूं, देख रही हूं गिलहरियों का पेड़ पर चढ़ना
            - डॉ. वर्षा सिंह  
   इन दिनों लॉकडाउन के कारण जाहिर है कि और सभी लोगों की तरह मैं भी अपने घर की हदों में कैद हूं। जी हां, दरवाज़े पर लगा ताला मुझे इस बात की याद दिलाता है कि बाहर कोरोना वायरस का खतरा है और मुझे अपने परिवार के साथ घर के भीतर ही रहना है। बाहर न निकल पाने से होने वाली छटपटाहट लॉकडाउन के शुरुआती दिनों में मैंने महसूस की, लेकिन फिर मैंने महसूस किया कि कभी-कभी ऐसी स्थिति हमें स्वयं के करीब लाने और उन चीजों से जोड़ने का एक बेहतरीन अवसर देती है जिनको हम अपनी रोजमर्रा की व्यस्त जिंदगी में इग्नोर कर देते हैं। मसलन चिड़ियों का चहचहाना, घर के सामने वाली सड़क पर से गुजरती हुई गायों का निकलना और उन्हें रोटी देने पर ठिठक कर कृतज्ञता भरी नजरों से देखना, घर के सामने लगे हुए चांदनी के पेड़ पर गिलहरियों का चढ़ना उतरना इधर-उधर देखते हुए फिर हाथों में लिए हुए कुछ सामान को धीरे-धीरे कुतरना …. ऐसी कितनी सारी चीजें हैं जिन्हें हम अपनी जिंदगी में देख कर भी अनदेखा करते चलते हैं।
        तो मुझे बार-बार यह महसूस होता है कि यदि लॉकडाउन नहीं होता तो इन चीजों को महसूस करने का मौका भी नहीं मिलता। इन दिनों जबकि बाहर जाने का कोई भी काम नहीं है जैसे सब्जी लाना, किराना शॉपिंग, माताजी के लिए दवा का प्रबंध, सामाजिक कार्यों- साहित्यिक आयोजनों में भागीदारी … तो ऐसे समय में मेरी दिनचर्या में जुड़ गए हैं वह कार्य जिन्हें मैं पहले चाह कर भी नहीं कर पा रही थी। हां, मैंने कुछ अच्छी क़िताबें पढ़ीं हैं, कुछ कविताएं- कुछ लेख लिखे हैं,  कुछ स्केच बनाए हैं, घर की साफ सफाई की है।
      इन दिनों मैं अपनी माताजी की कही हुई छोटी-छोटी बातों को भी सुन पा रही हूं, उनसे बातचीत कर पा रही हूं और महसूस कर पा रही हूं कि वे अपनी इस वृद्धावस्था के दौर में किस तरह स्वयं को एकाकी महसूस करती रहती हैं। हम अपने कामों में उलझे रहते हैं तरह-तरह की व्यस्तताओं के चलते हम यह नहीं समझ पाते कि हमारे बुजुर्ग हमसे कितना कुछ कहना चाह रहे हैं, हमसे कौन-कौन सी अपेक्षाएं करना चाह रहे हैं जिस वक्त वे हमें आवाज़ देते हैं, उस वक्त हम अपनी व्यस्तता में उलझे रहने के कारण उन्हें सुन नहीं पाते हैं और बाद में जाकर जब उनसे पूछते हैं कि वे क्या कहना चाहते हैं तो तब तक हमारे बुजुर्ग भूल जाते हैं कि वे हमसे क्या कहना चाह रहे थे। संवादों में इस प्रकार का गैप हमारे बुजुर्गों को छटपटाहट से भर देता है और हमें हमारे बुजुर्गों से दूर कर देता है। इन दिनों लॉक डाउन के कारण जबकि मैं लगातार घर में ही हूं और अपनी माता जी द्वारा पुकारे जाने पर तत्काल ही उनकी बात सुनकर रिस्पांस देती हूं तो मैंने यह महसूस किया है कि मेरी माता जी की आंखों में चमक आ जाती है उनकी ममता-करुणा छलकने लगती है। वे आत्म सुख का अनुभव करती हैं और उनके उस आत्मसुख को महसूस कर मुझे भी आंतरिक खुशी प्राप्त होती है। यही तो है रिश्तों की तरलता जिसे कितने ही बरसों के बाद अब जाकर मैं महसूस कर पा रही हूं। ऐसा नहीं है कि मैं अपनी माता जी की सेवा नहीं करती या उनकी बातें नहीं सुनती लेकिन जिस वक्त वह कुछ कहती हैं ठीक उसी वक्त उसे सुनना महत्वपूर्ण होता है। आगे-पीछे की बातें बेमानी हो जाती है।
         मुझे लगता है कि लॉकडाउन के इन लंबे दिनों में लॉकडाउन के अनुभवों से सीख लेकर हम अपने भविष्य की जिंदगी में भी कुछ समय ऐसा निकालें कि मानो हम लॉकडाउन में ही जी रहे हों। सप्ताह में अथवा पक्ष या माह में कम से कम एक दिन बाहरी दुनिया से अपने आप को काट कर घर और घर-परिवार में रहने वालों की बातें सुनें। वह सब कुछ महसूस करें जो हम बाहर आते-जाते हुए लगातार इग्नोर करते रहते हैं और महसूस नहीं कर पाते हैं तो इससे हमें अपने जीवन में एक बहुत बड़ी तब्दीली महसूस होगी और यह सकारात्मक तब्दीली हमें जीवन जीने का एक नया रास्ता दिखाएगी, एक नया दिशा बोध कराएगी। लॉकडाउन को मजबूरी न समझते हुए जीवन में मिलने वाली एक उपलब्धि के रूप में स्वीकार करें, तो शेष बचे दिन भी बड़ी सहजता से गुजर जाएंगे और हम आईने के सामने खड़े होने पर स्वयं को देखते हुए यह अनुभव करेंगे कि हमने खोया कुछ भी नहीं है बल्कि बहुत कुछ पा लिया है और यह पाने का सुख हमें हमसे परिचित कराएगा। यह जीवन का नियम है कि हर बुरी घटना बहुत सी अच्छी सीख दे जाती है। आज ऐसी ही सीखों को महसूस करने और आत्मसात करने का समय है।
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Wednesday, April 1, 2020

कोरोना, लॉकडाउन और हम - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh


  कोरोना, लॉकडाउन और हम
लॉकडाउन के अनुभवों से सीख लें
             - डॉ. वर्षा सिंह
     कुछ दिनों से मेरे घर में गौरैया चिड़िया ने नल की पाईपलाईनों के बीच एक घोंसला बनाया हुआ है। लॉकडाउन से पहले अपने कामों की व्यस्तता के कारण इस ओर मेरा ख़ास ध्यान गया ही नहीं था। अब जबकि लॉकडाउन के चलते लगातार चौबीसों घंटे  पिछले एक सप्ताह से मैं अपने घर पर ही  हूं तो सुन रही हूं गौरैया के नन्हें बच्चों की वे आवाजें जो दिन भर पूरे घर में गूंजती रहती हैं।
  हां बहुत सी ऐसी चीजें है जिनका एहसास हम घर से बाहर रहकर कर ही नहीं पाते हैं। यह जरूर है कि लॉकडाउन की स्थिति में हमें लगातार घर में रहने के लिए विवश होना पड़ा है और यह लॉकडाउन भी कोरोना वायरस के संक्रमण की विभीषिका से बचाने के लिए लागू किया गया है किंतु हर एक लाभप्रद बात के पीछे अनेक पॉजिटिव बातें भी निहित होती हैं। यदि घर से बाहर नहीं जा पाने को माइनस प्वाइंट मानें तो लॉकडाउन का प्लस प्वाइंट यह है कि घर में रहकर हम घर में होने वाली उन चीजों को भी अब जान रहे हैं जिन्हें जानने की फुर्सत हमें पहले कभी नहीं मिल पाई है।      
           जहां तक लॉकडाउन की स्थिति में समय व्यतीत करने का प्रश्न है तो महिलाओं के पास कार्यों की कमी कभी नहीं रहती है । सुबह उठने से लेकर रात को बिस्तर पर जाने के बीच कितने छोटे-बड़े काम महिलाओं के जिम्मे सुपुर्द रहते हैं कि उन्हें करते - याद रखते हुए ही पूरा दिन व्यतीत हो जाता है । अब जबकि बाहरी कार्य जैसे कहीं आना-जाना किसी से मिलना-जुलना, अन्य सामाजिक कार्यों की व्यस्तताएं बिल्कुल भी नहीं हैं, किसी किस्म के साहित्यिक आयोजन भी नहीं हो रहे हैं तो मैं घर में रहकर उन कामों की ओर स्वयं को केंद्रित कर रही हूं जिन्हें करने की इच्छा होने के बावजूद मैं कर नहीं पाई थी। इन कामों की सूची में सबसे पहला काम मम्मी यानी मेरी माता जी के पास बैठकर उनकी बातें सुनना भी शामिल है । घर के बड़े बुजुर्ग कई दफा हमें आवाज़ देते हैं, वे अपनी कोई बात कहना चाहते हैं लेकिन समय के अभाव में ठीक उसी वक्त हम उन पर ध्यान नहीं दे पाते हैं, उनका कहा सुन नहीं पाते हैं । बाद में जब हम फुर्सत में हो कर उनकी बात सुनने जाते हैं तब तक वे भूल चुके होते हैं कि वे क्या कहना चाह रहे थे और यहां-वहां की छोटी-मोटी बात होकर रह जाती है। वे अपने मन की बात जस की तस कर ही नहीं पाते । लॉकडाउन के दौरान मैंने महसूस किया कि माता-पिता के प्रति बच्चे अपना दायित्व तभी अच्छी तरह निभा सकते हैं जब किसी एक दिन वे पूरी तरह माता-पिता की सेवा में व्यतीत करें, उनकी बातें सुनें। अब जबकि लॉकडाउन की स्थिति है तो तत्काल ही उनकी वे सभी बातें सुनकर हम उनके मन को संतुष्ट रहे हैं, जिनका एहसास हम घर से बाहर रहकर कर ही नहीं पाते हैं।
      तो मुझे लगता है कि भविष्य में आने वाले दिनों में जब लॉकडाउन की स्थिति समाप्त हो जाएगी और हम पुनः सामान्य जीवन के दैनिक कार्य करने लगेंगे तब उस वक्त इस लॉकडाउन के अनुभवों से सीख ले कर सप्ताह में कोई एक दिन हम ऐसा चुने जिसमें हम अधिक से अधिक समय अपने घर के बुजुर्गों के साथ पूरी तरह समर्पित भाव से व्यतीत करें। इस तरह घर के बुजुर्गों को भी आत्मसुख का अनुभव करा सकते हैं और स्वयं भी आत्मसंतुष्टि पा सकते हैं। 
   जहां तक प्रशासन की बात है तो लॉकडाउन में कम से कम मुझे तो इस बात की पूरी तरह संतुष्टि है कि मेरे शहर सागर का प्रशासन बहुत चुस्त है। पूरी तरह समर्पण भाव के साथ हमारी जिले के अधिकारी, पुलिस विभाग और प्रशासन के साथ समाजसेवी, पत्रकार सभी जागरूकता से सेवा कार्यों में लगे हैं। ज़िला प्रशासन का जिम्मा जिला कलेक्टर प्रीति मैथिल नायक के पास है जो एक महिला हो कर पूरी तत्परता के साथ मैदानी निरीक्षण -परीक्षण कर जनता को हर प्रकार की हर संभव सुविधाएं, मदद आदि उपलब्ध कराने के लिए तत्परता से कार्य कर रही हैं। इसी प्रकार पुलिस विभाग में कार्यरत समस्त स्टाफ हर समय लॉकडाउन में अपने घरों में बंद नागरिकों की सुरक्षा-सुविधा के प्रति जागरूकता के साथ अपने कर्तव्य का पालन कर रहा है। माननीय प्रधानमंत्री जी ने कोरोना संक्रमण से सुरक्षित रखने का जो लॉकडाउन का क़दम उठाया है, वह वास्तव में स्तुत्य है। इस तरह का कदम हमारे देश के सुरक्षा के लिए अत्यंत जरुरी है ।
     तो आइए हम सभी मिल जुलकर लॉकडाउन के शेष बचे हुए दिनों में निर्धारित नियमों का पूरी आस्था के साथ पालन करें ताकि हम, हमारा परिवार, समाज, देश और साथ ही संपूर्ण विश्व सुरक्षित रह कोरोना वायरस की इस संक्रमणकारी आपदा से मुक्ति पा सके।
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मेरे इस लेख को तीनबत्ती न्यूज डॉट कॉम में प्रकाशित किया गया है। यदि आप चाहें तो निम्नलिखित link पर जा कर इसे पढ़ सकते हैं....
https://www.teenbattinews.com/2020/03/blog-post_905.html