Dr. Varsha Singh |
पिछले लगभग वर्ष भर के कोरोना काल में सोशल मीडिया पर मानों कवियों की बाढ़-सी आ गई। साहित्य में तनिक भी रुचि रखने वालों के पास समय भी था और अपने मित्रों की रचनाओं की प्रेरणाएं भी थीं। इससे हुआ यह कि कुछ कच्चे, कुछ पक्के कवियों की एक पूरी खेप तैयार हो गई। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो साहित्य की उर्वर भूमि में अनेक पौधे उग आए जिनमें कुछ सुंदर, सुगंधित पौधे हैं तो कुछ खरपतवार। लेकिन उत्साह की तनिक भी कमी नहीं। ऐसे में अनेक काव्य संग्रहों का प्रकाशित हो कर सामने आना स्वाभाविक है। लिहाज़ा, पिछले दो-तीन माह से लगातार काव्य संग्रह प्रकाशित हो रहे हैं और अब इनके विमोचन/लोकार्पण कार्यक्रमों का सिलसिला शुरू हो गया है। इनमें ग़ज़ल संग्रह, गीत संग्रह, दोहा संग्रह तथा कविता संग्रह आदि सभी हैं।
प्रायः यह देखने में आता है की काव्य सृजन को लोग बहुत हल्के ढंग से लेते हैं। "पैशन" की जगह इसे लोगों ने फैशन बना लिया है। कहां तो पूरी उम्र खप जाती है एक अच्छे शेर या एक अच्छी कविता के सृजन में... और कहां सृजन के नाम पर कचरा परोस कर भी लोग उत्सव मनाते हैं। शायद वे गंभीर होकर सृजन करना ही नहीं चाहते। सोशल साइट्स और स्थानीय समाचार पत्रों में अपना नाम एक कवि के रूप में देख कर सातवें आसमान को छूने का भ्रम ही तो है कि महज चार लाइनें लिख कर ही अपने-आप को यह समझने लगते हैं कि कबीर, सूर, तुलसी, निराला, ग़ालिब, मीर आदि से भी वे आगे निकल चुके हैं जबकि काव्य सृजन एक गंभीर कार्य है।
जिगर मुरादाबादी का यह शेर काव्य सृजन पर भी लागू होता है -
ये इश्क़ नहीं आसां इतना ही समझ लीजे
इक आग का दरिया है और डूब के जाना है
कोई भी सर्जक तब तक सृजन नहीं कर सकता है जब तक कि उसमें भावनाओं का विपुल उद्वेग न हो। ये भावनाएं ही हैं जो परिस्थितियों, दृश्यों एवं संवेगों से प्रभावित होती हैं और सृजन के लिए प्रेरित करती हैं। मूर्तिकार मूर्तियां गढ़ता है, काष्ठकार काष्ठ की अनुपम वस्तुएं तराशता है और साहित्य सर्जक साहित्य की विभिन्न विधाओं में साहित्य रचता है। जीवन में अनेक तत्व हैं जो व्यक्ति को प्रभावित करते हैं- प्रेम, क्रोध, प्रतिकार, प्रतीक्षा, स्मृति, जन्म, मृत्यु, सहचार, आदि। ये तत्व मनुष्य के भीतर मनुष्यत्व को गढ़ते हैं। मनुष्यत्व मनुष्य के भीतर सभी संवेगों को जागृत रखता है। जिसके फलस्वरूप वह दूसरे के दुख में व्यथित होता है और दूसरे की प्रसन्नता में प्रफुल्लित हो उठता है। जीवन को एक उत्सव की तरह जीना भी मनुष्यत्व ही सिखाता है। साहित्य की श्रेष्ठता एवं गुणवत्ता इसी मनुष्यत्व पर टिकी होती है। वस्तुतः जीवन की समस्त चेष्टाएं दो भागों में बंटी होती हैं- स्वहित और परहित। इन दोनों के बीच मनुष्यत्व की एक बारीक सी रेखा होती है। जब यह रेखा मिट जाती है तो स्वहित और परहित एकाकार हो जाता है और यहीं मिलता है साहित्य का प्रस्थान बिन्दु।
दूसरे शब्दों में कहा जाए तो समष्टि और व्यष्टि का भेद मिट जाता है और व्यक्ति की भावनाएं सकल संसार के हित में विचरण करने लगती हैं तो एक श्रेष्ठ साहित्य का सृजन स्वयं होने लगता है। जब हम सकल संसार की बात करते हैं तो उसमें धर्म, जाति, वर्ग, लिंग, रंग के भेद मिट जाते हैं। धरती पर जन्म लेने वाला प्रत्येक मनुष्य समस्त सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक एवं लैंगिक भिन्नताओं के बावजूद सिर्फ मनुष्य ही रहता है। इस यथार्थ को वही व्यक्ति महसूस कर सकता है जो माटी से जुड़ा हुआ हो, अपने अंतर्मन को तथा दूसरे के मन को भली-भांति समझ सकता हो। यूं तो यह गुण प्रत्येक मनुष्य के भीतर होता है किन्तु सुप्तावस्था में। साहित्य इस गुण को न केवल जागृत करता है वरन् परिष्किृत भी करता है। इसीलिए यह गुण पहले साहित्यकार को सृजन के लिए प्रेरित करता है, तदोपरांत पाठक को विचार और चिन्तन की अवस्था में पहुंचाता है।
काव्यकर्म साहित्य का सबसे कोमल कर्म है। इसमें भावानाओं का आवेग और संवेग हिलोरें लेता रहता है। इसीलिए साहित्य के क्षेत्र में प्रवृत्त होने वाले अधिकांश युवा साहित्यकार काव्य को अपनी अभिव्यक्ति एवं सृजन के पहले माध्यम के रूप में चुनते हैं। काव्य रस, छंद, लय और शाब्दिक प्रवाह के साथ आकार लेता है। इन सब में तारतम्य स्थापित करना ही काव्यकला है। जहां कला है वहां साधना तो होगी ही। इसीलिए काव्य के लिए भी साधना को आवश्यक माना गया है। काव्य मनोभावों की रसात्मक शाब्दिक अभिव्यक्ति है। जिस प्रकार एक चित्रकार दृष्य के अनुरूप रंगों को चुनता है और चित्र बनाता है, उसी प्रकार कवि मनोभावों के अनुरूप शब्दों को चुनता है और कविताएं रचता है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने ‘‘कविता क्या है?’’ शीर्षक निबन्ध में कविता को ‘जीवन की अनुभूति’ कहा है। वहीं जयशंकर प्रसाद ने सत्य की अनुभूति को कविता माना। जबकि पं. अम्बिकादत्त व्यास ने कहा कि -
लोकोत्तरानंददाता प्रबंधः काव्यानाम् यातु ।।
अर्थात् लोकोत्तर आनंद देने वाली रचना ही काव्य है। वस्तुतः काव्य का सीधा संबंध हृदय से होता है। काव्य में कही गईं बातें एक हृदय से उत्पन्न होती हैं और दूसरे हृदय को प्रभावित करती हैं। काव्य के दो पक्ष होते हैं - भाव पक्ष और कला पक्ष। अपनी हृदयगत भावनाओं को व्यक्त करने के लिए कवि उसमें शब्द, शब्द-शक्ति, शब्द-गुण, छंद, अलंकार और गेयता जैसे कला तत्वों का सहारा लेता है जो कला पक्ष के रूप में काव्य को पूर्णता प्रदान करते हैं।
सच्चा कवि वही है जो काव्य सृजन को "फैशन" नहीं बल्कि "पैशन" के रूप में आत्मसात करे।
मित्रों,कल दिनांक 28 फरवरी 2021 को सागर शहर में ही आयोजित एक काव्य संग्रह के विमोचन कार्यक्रम में मेरी यानी इस ब्लॉग की लेखिका डॉ. वर्षा सिंह एवं बहन डॉ. (सुश्री) शरद सिंह की सहभागिता रही। संयोग यह कि उस विमोचित पुस्तक की भूमिका मैंने ही लिखी है। कुछ भी कहिए साहित्यिक समारोहों, उत्सवों के आनंद की बात निराली ही होती है। शहर के साहित्यकारों, साहित्यप्रेमियों और कुछ ग़ैर साहित्यिक आमंत्रित अतिथियों से की गई चर्चाएं आनंददायी स्मृतियों में एक और पृष्ठ जोड़ देती हैं। तस्वीरें पुस्तक के उसी विमोचन समारोह की हैं, जिन्हें मैं आप सभी से साझा कर रही हूं।
बहुत सुन्दर आलेख, सुन्दर आयोजन और छवियां आप और शरद जी दोनों को ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई
ReplyDeleteअत्यंत आभारी हूं आपकी इस सराहना भरी टिप्पणी के लिए...🙏
Deleteमेरे ब्लॉग पर सदैव आपका स्वागत है आदरणीय 🙏
वर्षा जी ,सबसे पहले आपको एवम् शरद जी दोनों को जीवन की हर सफलता के लिए हार्दिक शुभकामनाएं..आपका आलेख, तथा फोटोज़ दोनों ही सुन्दर हैं..खासतौर से कवि होने के मर्म से जुड़ा संदर्भ बड़ा ही प्रासंगिक है.. सादर..
ReplyDeleteप्रिय जिज्ञासा जी,
Deleteमुझे प्रसन्नता है कि आपको मेरी यह पूरी पोस्ट रुचिकर लगी। आपकी शुभकामनाएं मेरे लिए अनमोल उपहार हैं। बहुत धन्यवाद 🙏
इसी तरह आत्मीयता बनाए रखें।
सस्नेह,
डॉ. वर्षा सिंह
आदरणीय डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी,
ReplyDeleteयह सुखद सूचना पढ़ कर मन प्रसन्न हो उठा। मेरी इस पोस्ट को आपने चर्चा मंच हेतु चयनित किया है, यह मेरे लिए अत्यंत प्रसन्नता का विषय है।
आपके प्रति हार्दिक आभार 🙏
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
जितना सुन्दर लेख उतनी ही सुन्दर चित्रावली।
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आदरणीय 'विमल' जी 🙏
Deleteकविता लेखन के संदर्भ में सार्थक और सटीक विश्लेषण किया है.
ReplyDeleteसंग्रह की भूमिका के लिए आपको दोनों को बधाई
और शुभकामनाएं
सुंदर चित्र
मेरा अनुरोध स्वीकारने के लिए बहुत आभार
आदरणीय ज्योति खरे जी,
Deleteमेरी यह पोस्ट आपको रुचिकर लगी यह जान कर प्रसन्नता हुई।
हार्दिक धन्यवाद 🙏
सादर,
डॉ.वर्षा सिंह
एक दौर था जब नवभारत,नवीन दुनिया,देशबंधु के साप्ताहिक परिशिष्ट में प्रायः आपकी, शरद दी और मेरी रचनाएँ प्रकाशित होती थीं, उन दिनों की याद आज भी ताजा हैं.
ReplyDeleteआप दोनों ने मध्प्रदेश में साहित्य के लिए जो काम किया है और नयी पीढ़ी के लिए रचनात्मक जमीन बना कर दी है,उसके लिए आप दोनों को साधुवाद
सादर
आदरणीय खरे जी,
Deleteयह आपकी सहृदयता है कि आप ऐसे विचार रखते हैं। हां, यह सच है कि साहित्य साधना में हम दोनों बहनें- मैं एवं डॉ.(सुश्री) शरद सिंह निष्ठापूर्वक संलग्न हैं।
पुनः हार्दिक आभार 🙏
सादर,
डॉ.वर्षा सिंह
बहुत सुन्दर.बधाई.
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद ओंकार जी 🙏
Delete'सच्चा कवि वही है जो काव्य सृजन को "फैशन" नहीं बल्कि "पैशन" के रूप में आत्मसात करे।' वाह! बहुत सटीक और सुंदर लेख!!
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद अरविंद जी 🙏
Deleteमनोहारी चित्रों से सजा बेहतरीन आलेख
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद प्रिय अभिलाषा जी 🙏
Deleteप्रभावशाली लेख - - शुभ कामनाओं सह।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय सान्याल जी 🙏
Deleteआदरणीया वर्षाजी,
ReplyDeleteजब quantity बढ़ जाती है तो अक्सर quality कम हो जाती है। यही हाल साहित्य क्षेत्र में हो रहा है। मैंने कुछ समय पहले अपने ब्लॉग पर एक रचना लिखी थी - 'उफ्फ! कितना लिख रहे हैं लोग !
लिखें, लिखना अच्छी बात है परंतु कुछ भी लिख देते हैं और उसे छपवा भी लेते हैं। अभिव्यक्ति के साधन इतने सरल, सुलभ हो गए कि उनका दुरुपयोग अधिक और सदुपयोग कम हो रहा है।
सुंदर चित्रों के साथ आपके बेबाक विचार, लेख बहुत उपयोगी है।
जी, मीना शर्मा जी..।
Deleteहार्दिक धन्यवाद आपको 🙏
मेरे ब्लॉग पर सदैव आपका स्वागत है।
मैं आपकी वह पोस्ट अवश्य पढ़ना चाहूंगी मीना जी, आपने सही कहा कि quantity बढ़ने पर बहुधा quality में गिरावट आ जाती है।
Deleteसच को बयान करता ईमानदार आलेख।आजकल लोग रातों रात मीर ग़ालिब बन जाना चाहते हैं।आपको सादर अभिवादन
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया तुषार जी 🙏
Deleteसत्य पर आधारित साहित्य चर्चा को बड़ी गंभीरता के साथ आपने अपने आलेख मे प्रस्तुत किया उदाहरण सहित, जो तारीफ के काबिल है ,सभी तस्वीरें भी उतनी ही सुंदर है, सभी बातों के लिए आपको बहुत बहुत बधाई हो वर्षा जी नमस्कार
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद ज्योति सिंह जी 🙏
Deleteकविता एक साधना है
ReplyDeleteजी, सही कहा आपने...
Deleteहार्दिक धन्यवाद आपको 🙏
सार्थक लेखन ! बहुत बहुत बधाई !
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आदरणीया 🙏
Deleteसच्चा कवि वही है जो काव्य सृजन को "फैशन" नहीं बल्कि "पैशन" के रूप में आत्मसात करे।
ReplyDeleteप्रिय कविता रावत जी,
Deleteमेरी बात से सहमत होने के लिए हार्दिक धन्यवाद 🙏
शुभकामनाओं सहित,
सस्नेह,
डॉ. वर्षा सिंह
आपको आपकी बिटिया के जन्मदिन पर अनंत शुभकामनाएं प्रिय कविता रावत जी 🙏
Deleteपहली बार मैं आपके ब्लॉग पर और आपका लेख पढ़ कर बहुत अच्छा लगा!
ReplyDeleteआप बहुत अच्छा लिखती हो!
हमारे ब्लॉग पर भी आइए आपका हार्दिक स्वागत है🙏🙏🙏
बहुत शुक्रिया....
Deleteज़रूर पहुंचना चाहूंगी आपके ब्लॉग पर
मेरे ब्लॉग पर सदैव आपका स्वागत है।
आपको एवम् शरद जी को जीवन मे सफलता के लिए हार्दिक शुभकामनाएं । बेहतरीन सृजन ।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आपकी शुभेच्छाओं के लिए मनोज जी 🙏
Deleteआपके इस आलेख पर आने में मुझे अत्यन्त विलम्ब हुआ वर्षा जी जो मेरे लिए ही अहितकर रहा । अच्छा हुआ जो आज मैंने आपके पृष्ठ पर लिंक देख लिया तथा यहाँ चला आया अन्यथा मैं आपके इन यथार्थपरक विचारों को जानने से वंचित ही रह जाता । मैंने आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी का लेख 'कविता क्या है' पढ़ा है । मैं सहमत हूँ आपसे कि कविता एक साधना है जो अंतस से फूटे तो ही काव्य कहलाने योग्य होती है । केवल फ़ैशन की भांति कविता के नाम पर कुछ भी रच डालना इस अद्भुत साहित्यिक विधा के साथ अन्याय ही है । मैं स्वयं अपने आपको इस योग्य नहीं पाता कि पद्य में अपने मनोभावों को अभिव्यक्त कर सकूं, इसीलिए केवल गद्य में सृजन करता हूँ । इसके अतिरिक्त मेरा यह भी मानना है कि सच्चे सर्जक अपने आत्मसंतोष के लिए सृजन करते हैं, व्यवसाय अथवा प्रसिद्धि के निमित्त नहीं । और जो सृजन आत्मसंतोष के लिए किया जाए वही स्वाभाविक होता है, सार्थक होता है क्योंकि उसमें अन्य व्यक्तियों की प्रशंसा अथवा अनुमोदन की प्राप्ति का आग्रह नहीं होता, ऐसी कोई अपेक्षा नहीं होती । बहुत अच्छे और सच्चे विचार अभिव्यक्त किए हैं आपने जो एक ऐसा सच्चा कवि ही अभिव्यक्त कर सकता है जिसके लिए कविता का अपमान अथवा उपहास सहनीय न हो । काश आपका यह लेख कतिपय छद्म कवि बन बैठे लोगों के नेत्र खोल दे !
ReplyDeleteआपने मेरे लेख को पढ़ा ...उसका मर्म समझा और अपना बहुमूल्य समय निकाल कर इस पर टिप्पणी दी...हार्दिक आभार आदरणीय 🙏
Deleteमुझे प्रसन्नता है कि आप भी मेरे विचारों से सहमत हैं।
पुनः हार्दिक आभार 🙏