Tuesday, April 28, 2020

पारिवारिक रिश्तों को आईना दिखा रहा कोरोना लाॅकडाउन : यही समय है रिश्तों को सुधारने का - डाॅ वर्षा सिंह

   
Dr. Varsha Singh
    आज दिनांक 28.04.2020 को दैनिक "स्वदेश ज्योति" में प्रकाशित हुआ मेरा लेख यहां प्रस्तुत है... कृपया पढ़ कर प्रतिक्रिया से अवगत कराएं।
हार्दिक आभार स्वदेश ज्योति 🙏



पारिवारिक रिश्तों को आईना दिखा  रहा कोरोना लाॅकडाउन

यही समय है रिश्तों को सुधारने का
- डाॅ वर्षा सिंह,  वरिष्ठ लेखिका

      कोरोना लाॅकडाउन ने पारिवारिक रिश्तों के चेहरे से नक़ाब हटा दिए हैं। कहीं बंधन सुदृढ़ हुए हैं तो कहीं घरेलू हिंसा में वृद्धि हो गई है। कोरोना संकट के कारण देश व्यापी लॉकडॉउन चल रहा है। जिसके कारण सभी को पूरे समय घर पर ही रहना पड़ रहा है। ऐसे वक्त में पारिवारिक झगड़े होने लगे हैं। लॉकडॉउन के दौरान राष्ट्रीय महिला आयोग के पास अब तक बड़ी संख्या में शिकायतें घरेलू हिंसा को लेकर आ चुकी है। महिलाओं के प्रति होने वाले इन अपराधों की संख्या आम दिनों की अपेक्षा अधिक हैं, जो परिवार में महिलाओं की स्थिति को सामने लाती हैं। देखा जाए तो लाॅकडाउन ने महिलाओं की स्थिति का आकलन कर के उनका पारिवारिक जीवन सुधारने का एक मौका दिया है।
      भारतीय पारिवारिक संरचना मूलरूप से संयुक्त परिवार की रही है।’मनुस्मृति’ (3/56) में कहा गया है कि
‘‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः ।।   
      अर्थात जहां स्त्रियों की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं और जहां स्त्रियों की पूजा नही होती है, उनका सम्मान नही होता है वहां पूर्व में किए गए समस्त अच्छे कर्म भी निष्फल हो जाते हैं। किन्तु आज महिलाओं का मान-सम्मान आए दिन धूल में मिलता रहता है। इसका सबसे बड़ा कारण है कि पाश्चात्य प्रभाव के कारण ये संयुक्त परिवार न्यूक्लियर फैमली में ढलते जा रहे हैं जिनमें बुर्जुगों के लिए कोई स्थान नहीं है। युवा माता-पिता और स्कूल की आयु तक के बच्चे। स्कूल आयु पूरी करते ही बच्चे दूसरे शहरों के कोचिंग  सेंटर्स में चले जाते हैं और माता-पिता अपनी-अपनी महत्वाकांक्षाओं के पीछे भागते रहते हैं। परिवार का भारतीय कंसेप्ट यह कभी नहीं रहा। ऐसे परिवारों में बच्चों में संस्कारों के बीज पनप ही नहीं पाते हैं। जब संस्कार नहीं होंगे तो महलिाओं के पगहत सम्मान की भावना कहां से आएगी? दरअसल जब सामाजिक संरचना के स्वस्थ नियमों को तोड़ा जाता है तो अस्वस्थ स्थितियां सामने आने लगती हैं। यही हो रहा है लाॅकडाउन के दौरान।
         पति-पत्नी जो चौबीस घंटे में छः-सात घंटे ही साथ में व्यतीत करते थे वे अब पूरे चौैबीस घंटे एक ही छत के नीचे साथ-साथ रह रहे हैं। इस स्थिति से अनेक परिवार अत्यंत प्रसन्न हैं क्योंकि वे जिस साथ के लिए तरसते थे वह उन्हें मिल रहा है। बच्चे अपने माता-पिता का भरपूर प्यार पा रहे हैं। माता-पिता भी अपने बच्चों का साथ पा कर उनकी इच्छाओं एवं उनके सपनों को समझ पा रहे हैं। इन सबके दौरान सबसे खुश है वे बुजुर्ग जो अकेलेपन से त्रस्त थे। ऐसे बुजुर्गों को अपने बच्चों, अपने नाती-पोतों सभी का साथ मिल रहा है। वे जिस भरे-पूरे घर का सपना देखते थे, उसे अपनी जागती आंखों से देख पा रहे हैं। लेकिन जैसे हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, लाॅकडाउन के दौरान पारिवारिक रिश्तों के भी दो पहलू हैं। एक पहलू खुशहाली का है तो दूसरा मार-पीट और हिंसा का।
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स्वदेश ज्योति - पारिवारिक रिश्तों को आईना दिखा  रहा कोरोना लाॅकडाउन यही समय है रिश्तों को सुधारने का- डाॅ वर्षा सिंह

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