Sunday, October 13, 2019

शरद पूर्णिमा एक, मान्यताएं अनेक - डॉ. वर्षा सिंह

Dr Varsha Singh
          वर्ष भर में पड़ने वाली समस्त पूर्णिमा में शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व है। शारदीय नवरात्रि के समाप्त होने के बाद शरद पूर्णिमा आती है। हिंदू पंचांग के अनुसार आश्विन माह यानी क्वांर मास की पूर्णिमा तिथि पर शरद पूर्णिमा मनाई जाती है। इस बार वर्ष 2019 में यह आज 13 अक्टूबर को है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से पूर्ण होकर रात भर अपनी किरणों से अमृत की वर्षा करता है। माना जाता है कि इस दिन दूध और चावल से बनाई गई खीर को खुले आसमान के नीचेे रखने से ओस के कण के रूप में अमृत बूंदें खीर के पात्र में भी गिरती हैं जिसके फलस्वरूप यह खीर अमृत तुल्य हो जाती है, जिसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करने से आरोग्य तथा कांति में श्रीवृद्धि होती है। मान्यता है कि चंद्रमा कि किरणें उस पर पड़ने से यह खीर औषधियुक्त हो जाती है।

शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा की किरणों को अवशोषित करती खीर

          बुंदेलखंड के सागर दमोह आदि क्षेत्र में शरद पूर्णिमा पर महिलाएं व्रत रखकर भगवान विष्णु को मावा के लड्डूओं का भोग लगाती हैं। व्रत के दौरान कथा एवं चंद्रदेव, तुलसी और भगवान विष्णु का विशेष पूजन-अर्चन किया जाता है। विशेष तौर पर भगवान को मावा यानी खोबा एवं शक्कर से निर्मित 6 लड्डुओं का भोग लगाया जाता है, जिसमें से एक लड्डू भगवान विष्णु को, दूसरा पंडित को, तीसरा गर्भवती स्त्री को एवं चौथा अपनी सहेली को दिये जाने की परम्परा है।

शरद पूर्णिमा का पूजन

     शरद पूर्णिमा की रात को छत पर खुले आसमान के नीचेे खीर को रखने के पीछे वैज्ञानिक तथ्य भी निहित है। खीर दूध और चावल के मिश्रण को पकाने से बनकर तैयार होती है। दरअसल दूध में लैक्टिक नाम का एक अम्ल होता है। यह एक ऐसा तत्व है जो चंद्रमा की किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति अवशोषित कर लेता है। वहीं चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया सरल हो जाती है। इस खीर का सेवन करना अत्यंत लाभप्रद होता है। शरद पूर्णिमा का दिन कई मायनों में महत्वपू्र्ण है। इस दिन जहां उत्तर भारत में इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और खीर का प्रसाद बनाकर रात को चंद्रमा के नीचे रखा जाता है।

भगवान विष्णु

अश्विन मास के शुक्‍ल पक्ष की इस पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के साथ कोजागर पूर्णिमा भी कहा जाता है।
पूरे साल में 12 पूर्णिमा तिथि आती है जिनमें, आषाढ़, कार्तिक और शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व है। शरद पूर्णिमा के बारे में कहा जाता है कि इस दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से युक्त होकर आसमान से अमृत की वर्षा करता है। इस रात देवी लक्ष्मी भगवान विष्णु के साथ पृथ्वी भ्रमण के लिए आती हैं। इसलिए कहते हैं कि जो इस रात में जागरण करता है मां लक्ष्मी उसकी झोली सुख संपत्ति से भर देती हैं। इसलिए शरद पूर्णिमा की रात को कोजागरा और कोजागरी की रात कहते हैं। कोजागरा व्रत पर इस वर्ष सर्वार्थ सिद्धि और रवि नामक शुभ योग बन रहे हैं जो इस दिन को और भी शुभ बना रहे हैं। इस दिन को देवी लक्ष्मी के जन्मोत्सव के रूप में भी जाना जाता है। कथाओं के अनुसार सागर मंथन के समय देवी लक्ष्मी शरद पूर्णिमा के दिन ही समुद्र से उत्पन्न हुई थीं।

शरद पूर्णिमा पर श्री कृष्ण का महारास

पेंटिंग... महारास में लीन राधा, कृष्ण और गोपिकाएं

    चूंकि महामति प्राणनाथ बुंदेलखंड केसरी  छत्रसाल के गुरु थे और कृष्ण के सखी भाव से उपासक थे अतः मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड के पन्ना जिले के सुप्रसिद्ध मंदिर श्री प्राणनाथ जी मंदिर में शरदऋतु की शरदपूर्णिमा पर हजारों व लाखों देशी व विदेशी श्रद्धालुओं के साथ प्रतिवर्ष अक्टूबर के महिने में श्री 108 प्राणनाथ ट्रस्ट के एवं प्रशासन के सहयोग से बडे ही धूमधाम से आयोजित किया जाता है। महारास की यह link देखें....
      https://youtu.be/jmuO_RVlwS0
        अंतर्राष्ट्रीय शरद पूर्णिमा का मुख्य समारोह पूर्णिमा की रात्रि में होता है । रात्रि में करीब 12 बजे बंगला जी मंदिर में श्रीजी की सवारी ब्रम्हक चबूतरे में लाई जाती है । पूर्णमासी की महारास का उल्लास रात्रि भर चलता है । श्रीजी की सवारी ब्रम्ह‍ चबूतरे पर पांच दिन तक रूकी रहती है । इस दौरान पांच दिन तक गरबा सहित विविध धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन चलता रहता है ।
श्रद्धालुओं द्वारा महारास, गरबा आदि किया जाता है...
https://youtu.be/8VPjMBMIIwE

महामति प्राणनाथ मंदिर, पन्ना, मध्यप्रदेश

       पन्ना में शरद पूर्णिमा महोत्स्व का पहला कार्यक्रम संवत 1740 में हुआ था । स्थानीय  प्रणामी धर्माविलंबियों के मतानुसार श्री प्राणनाथ जी बंगला जी मंदिर में अपने पांच हजार सुंदरसाथ के साथ ठहरे थे । पूर्णिमा की चांदनी रात में वे सुंदरसाथ के साथ श्रीकृष्ण द्वारा ग्वांलवालों व सखियों के साथ खेले जाने वाले महारास की चर्चा कर रहे थे । इसी दौरान उनके साथ आए सुंदरसाथ नें महामति प्राणनाथ जी से अखंड महारास का अनुभव कराने का निवेदन किया तब पूर्णिमा की अर्ध रात्रि शुरू होने वाली थी । इस पर महामति प्राणनाथ जी नें पांच हजार सुंदरसाथ के साथ महारास खेलना शुरू किया । यह महारास पांच दिन तक बिना रूके, बिना थके चलता रहा । तभी से यह हर साल मनाया जाता है ।

महामति प्राणनाथ मंदिर, पन्ना, मध्यप्रदेश

        यूं तो अनेक लोककथाएं प्रचलित हैं किन्तु बहुश्रवणीय, जनसामान्य में बहुप्रचलित एक लोककथा के अनुसार एक साहुकार को दो पुत्रियां थीं। दोनो पुत्रियां पूर्णिमा का व्रत रखती थीं। लेकिन बड़ी पुत्री पूरा व्रत करती थी और छोटी पुत्री अधूरा व्रत करती थी। इसका परिणाम यह हुआ कि छोटी पुत्री की संतान पैदा होते ही मर जाती थी। उसने पंडितों से इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया की तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती थी, जिसके कारण तुम्हारी संतान पैदा होते ही मर जाती है। पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक करने से तुम्हारी संतान जीवित रह सकती है।  उसने पंडितों की सलाह पर पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक किया। बाद में उसे एक लड़का पैदा हुआ। जो कुछ दिनों बाद ही फिर से मर गया। उसने लड़के को एक पाटे (पीढ़ा) पर लेटा कर ऊपर से कपड़ा ढंक दिया। फिर बड़ी बहन को बुलाकर लाई और बैठने के लिए वही पाटा दे दिया। बड़ी बहन जब उस पर बैठने लगी जो उसका घाघरा बच्चे का छू गया। बच्चा घाघरा छूते ही रोने लगा। तब बड़ी बहन ने कहा कि तुम मुझे कलंक लगाना चाहती थी। मेरे बैठने से यह मर जाता। तब छोटी बहन बोली कि यह तो पहले से मरा हुआ था। तेरे ही भाग्य से यह जीवित हो गया है। तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है। उसके बाद नगर में उसने पूर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया।

शरद पूर्णिमा व्रत कथा का श्रवण एवं पूजन दृश्य

      चूंकि आश्विन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है इसलिए शरद पूर्णिमा को चंद्रमा पूरा नजर आने से इसे महापूर्णिमा भी कहते हैं। चंद्रमा इस दिन 16 कलाओं से युक्त रहता है। ये कलाएं मनुष्य के लिए सुख, सिद्धि दायक एवं उन्नति कारक मानी जाती है। सर्वार्थसिद्घ और अमृत सिद्ध का संयोग भी इस दिन बना रहता है। शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा भी कहा जाता है। शरद पूर्णिमा की रात को ही भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ रास रचाया था। वैसे ताे हर माह में पूर्णिमा आती है, लेकिन शरद पूर्णिमा का महत्व उन सभी से कहीं अधिक है। शरद पूर्णिमा से ही स्नान और व्रत प्रारंभ हो जाता है। साथ ही माताएं अपनी संतान की मंगल कामना से देवी,देवताओं का पूजन करती है। इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के अत्यंत समीप आ जाता है। कार्तिक का व्रत भी शरद पूर्णिमा से ही प्रारंभ होता है। शरद ऋतु में मौसम एकदम साफ़ रहता है। इस दिन आकाश में न तो बादल होते हैं और न ही धूल-गुबार। इस रात्रि में भ्रमण और चंद्र किरणों का शरीर पर पड़ना बहुत ही शुभ माना गया है। प्रति पूर्णिमा को व्रत करने वाले इस दिन भी चंद्रमा का पूजन करके भोजन करते हैं।

शिव-पार्वती

    शरद पूर्णिमा के दिन शिव-पार्वती और कार्तिकेय की भी पूजा की जाती है। यही पूर्णिमा कार्तिक स्नान के साथ राधा-दामोदर पूजन व्रत धारण करने का भी दिन है। 
     
डॉ. (सुश्री) शरद सिंह की बहुचर्चित पेंटिंग "शरद पूर्णिमा"



2 comments:

  1. शरद पूर्णिमा के सम्बन्ध में बहुत अच्छी जानकारी

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    1. कविता रावत जी, सुस्वागतम् 🙏🌹

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