Monday, October 14, 2019

सागर: साहित्य एवं चिंतन 66 ... एक संवेदनशील लेखिका देवकी भट्ट नायक दीपा - डाॅ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

                  स्थानीय दैनिक समाचार पत्र "आचरण" में प्रकाशित मेरा कॉलम "सागर साहित्य एवं चिंतन " । जिसमें इस बार मैंने लिखा है मेरे शहर सागर की लेखिका देवकी नायक भट्ट दीपा पर आलेख। पढ़िए और जानिए मेरे शहर के वर्तमान साहित्यिक परिवेश को ....

सागर: साहित्य एवं चिंतन

      एक संवेदनशील लेखिका  देवकी भट्ट नायक दीपा
                            - डाॅ. वर्षा सिंह

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       परिचय:- देवकी भट्ट नायक दीपा
       जन्म:-   27 दिसंबर 1964
       जन्म स्थान:- पिथौरागढ़ (उत्तराखंड)
       माता-पिता:- स्व. कमला देवी भट्ट एवं स्व.रूद्र दत्त भट्ट
      शिक्षा:- हिंदी साहित्य, अंग्रेजी साहित्य तथा अर्थशास्त्र में एम.ए. पत्रकारिता में डिप्लोमा
लेखन विधा:- गद्य, पद्य
प्रकाशन:- पत्र, पत्रिकाओं में
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        लेखन के क्षेत्र में महिलाओं की दस्तक पिछली सदी से ही पड़नी शुरू हो गई थी। वे साहित्य में अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराने लगी थीं। सागर में भी लेखिकाओं ने अपनी लेखनी को साबित करने का हरसंभव प्रयास किया है। देवकी भट्ट नायक दीपा सागर नगर की एक ऐसी लेखिका हैं जिन्होंने प्रचुरता से तो नहीं लिखा है किन्तु उनका लेखन अनदेखा नहीं किया जा सकता है। देवकी भट्ट नायक दीपा का जन्म 27 दिसंबर 1964 को उत्तराखंड के पिथौरागढ़ नामक जिले में हुआ था। वे अपने नाम के संबंध में बताती हैं कि विवाह पूर्व उनका नाम देवकी भट्ट था तथा विवाहोपरांत ‘नायक’ सरनेम जुड़ा। जब वे लेखन के क्षेत्र में प्रविष्ट हुईं तो उन्होंने ‘दीपा भट्ट’ के नाम से भी रचनाएं लिखीं। देवकी भट्ट नायक दीपा के पिता स्वर्गीय रूद्रदत्त भट्ट  भारतीय सेना में आनरेरी कैप्टन थे एवं माता स्वर्गीय कमला देवी गृहणी थीं। देवकी भट्ट ने और हिंदी साहित्य अंग्रेजी साहित्य तथा अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की है उन्होंने पत्रकारिता मे डिप्लोमा कोर्स भी किया। उनकी रचनाओं का प्रकाशन दैनिक नवदुनिया, नारी संबल, आचरण, नाइस डे, अबला नहीं नारी, साहित्य सरस्वती आदि पत्र-पत्रिकाओं में हो चुका है। इनकी कविताओं और कहानियों का प्रसारण आकाशवाणी सागर तथा भोपाल दूरदर्शन से भी हुआ है। साहित्यिक गोष्ठियों में कहानी एवं कविता का पाठ कर चुकी हैं। महिला सशक्तिकरण में विश्वास रखने वाली देवकी भट्ट नायक ने रुद्र कमला महिला एवं बाल विकास समिति के माध्यम से गरीब और श्रमिक महिलाओं के बीच कई कार्य किए हैं। भारतीय महिला फेडरेशन की संयोजक होने के साथ ही महारानी लक्ष्मीबाई शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय सागर मध्य प्रदेश में शिक्षक हैं। उल्लेखनीय है कि जहां उत्कृष्ट सेवा कार्यों के लिए राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत किया जा चुका है।
         देवकी भट्ट नायक दीपा ने कहानियां भी लिखी हैं और कविताएं भी। उनकी कविता में स्त्री के रोजमर्रा के जीवन के अनेक दृश्य दिखाई देते हैं। जैसे उनकी एक कविता है-‘औरत जात’। इस कविता का एक अंश देखिए-
बात चलती है
तो कह देते हैं लोग मुझसे
कि अब सबसे ज्यादा धर्म
औरतों में बचा है
मैं घुसती हूं बातों के तालाब की
गहराई में
जहां मर्द से पहले उठकर
झाड़ू बुहारी करती
घर लिपती, बर्तन धोती, खाना बनाती
गर्म-गर्म औरों को खिलाकर
बचा-खुचा खुद खाती
बच्चे जनती
Sagar Sahitya Avam Chintan - Dr. Varsha Singh # Sahitya Varsha

        इसी कविता का एक और अंश स्त्रियों की पारिवारिक एवं सामाजिक दशा के परिप्रेक्ष्य में चिंतन करने योग्य हैः-
रक्ताल्पता की शिकार होती
हड़बड़ा कर, बच्चों को तैयार करती
नाश्ता कराती, स्कूल भेजती
पति की तमाम तैयारियों के बाद
स्वयं जल्दी-जल्दी तैयार होकर
दफ्तर जाती स्त्रियों का समूह है
तमगा लटकाए मंगलसूत्र का
भोगती अमंगल
एक पूरी की पूरी जमात है।

        दहेज भारतीय समाज में एक ऐसा कलंक है जो आज भी पूरी तरह नहीं मिट सका है।  दहेज की बलिवेदी पर प्रति वर्ष अनेक नववधू मृत्यु की भेंट चढ़ा दी जाती हैं। यह कलंक समाज के प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति के मन को कचोटता है। ‘‘दहेज’’ शीर्षक रचना में देवकी भट्ट नायक दीपा लिखती हैं-
मैंने आत्मा को नहीं मारा
गला घोंटा नहीं जमीर का
इसीलिए आज बेचैन हूं
आज जब मेरी सहेली की
शादी की पक्यिात की बात हो रही है
उसमें हो रही है खुल कर सौदेबाजी
कितनी बरेक्षा, कितना फलदान
और कितना दहेज
किस-किस जिंस में दिया जाएगा
बता रहे हैं वरपक्ष की ओर से
आए हुए मध्यस्थ
एक-एक रेशा उधाड़ा जा रहा है
इज्जत की सीवन का
और मैं विवश खड़ी हूं

लेखिका देवकी भट्ट नायक दीपा

       दीपा रुद्र भट्ट के नाम से प्रकाशित देवकी भट्ट नायक दीपा की कहानी ‘‘उनसे पूछ लो’’ में उन बंधनों का विवरण है जिसमें एक आम स्त्री बंधी रहती है। ये बंधन पारिवारिक रिश्तों में संतुलन बनाए रखने में भी कभी-कभी कठिनाइयां पैदा करने लगते हैं और तब स्थितियां जटिल हो जाती हैं। मन संत्रास के झंझावात से गुजरने लगता है। इस कहानी का एक अंश यहां प्रस्तुत है -
‘‘इंतिजार की घड़ियां कितनी लम्बी होती हैं। एक-एक पल युगों सा प्रतीत होता है। जैसे घड़ी रुक गई हो। उस दिन कम्मू का बुरा हाल था। वह बेसब्री से पति के घर आने का इंतिजार कर रही थी। दोपहर का एक बजा था। उसने बिना चबाए ही खाना गटक लिया ताकि देर न हो जाए। फिर बाहर निकल कर देखा तो वहां कोई न था। वह वापस अंदर गई। घड़ी देखी तो एक बज कर पांच मिनट ही हुए थे। पांच मिनट में वह खाना खा कर तैयार हो गई थी। प्रतिदिन एक से दो बजे के बीच उसके पति परेश दुकान बंद करके घर खाना खाने आते थे। जो अभी तक प्रकट नहीं हुए थे। कम्मू को मां की याद बहुत सता रही थी। रह-रह कर उनका चेहरा जेहन में आ जाता था। सूचना मिली थी कि उनका स्वास्थ्य खराब है। मां इसी शहर में रहती थी।’’
     देवकी भट्ट नायक दीपा सागर शहर की एक ऐसी संवेदनशील लेखिका हैं जिनमें गम्भीर साहित्य सृजन की सम्भावनाएं हैं।

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( दैनिक, आचरण  दि. 14.10.2019)
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