Wednesday, November 21, 2018

सागर : साहित्य एवं चिंतन 34 - वरिष्ठ साहित्यकार लक्ष्मी नारायण चौरसिया - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh
स्थानीय दैनिक समाचार पत्र "आचरण" में प्रकाशित मेरा कॉलम "सागर साहित्य एवं चिंतन " । जिसमें इस बार मैंने लिखा है मेरे शहर सागर के वरिष्ठ साहित्यकार लक्ष्मी नारायण चौरसिया पर आलेख। पढ़िए और जानिए मेरे शहर के साहित्यिक परिवेश को ....

       सागर : साहित्य एवं चिंतन

 वरिष्ठ साहित्यकार लक्ष्मी नारायण चौरसिया

                - डॉ. वर्षा सिंह
                     
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परिचय :- लक्ष्मी नारायण चौरसिया
जन्म :- तुलसी जयन्ती, 1936
जन्म स्थान :- सागर
शिक्षा :- एम.ए. हिंदी, अंग्रेजी एवं राजनीति विज्ञान, एम.एड.
लेखन विधा :- गद्य एवं पद्य
प्रकाशन :- पत्र-पत्रिकाओं में ।
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          सागर नगर के वरिष्ठ साहित्यकार लक्ष्मी नारायण चौरसिया 82 वर्ष की आयु में भी हिन्दी साहित्य के पठन-पाठन और लेखन के प्रति समर्पित हैं। पिता श्री काशी प्रसाद चौरसिया से मिले संस्कारों ने उनके भीतर शिक्षा के प्रति ऐसी लौ जलाई कि उन्होंने सागर विश्वविद्यालय से हिन्दी में स्नात्कोत्तर उपाधि प्राप्त करने के साथ ही अंग्रेजी और राजनीति विज्ञान में स्नात्कोत्तर उपाधि प्राप्त की। शिक्षा के प्रति रुझान के कारण उन्होंने शिक्षक बनना तय किया और वर्ष 1959 से 1996 तक जनता स्कूल, सागर एवं पद्माकर उच्चतर माध्यमिक शाला, सागर में अध्यापक रहे। डॉ. सुरेश आचार्य जैसे ख्यातिलब्ध साहित्यकार उनके शिष्य रहे, जो सागर विश्वविद्यालय में हिन्दी विभागाध्यक्ष रहे और आज जो अनेक संस्थाओं के अघ्यक्ष एवं संरक्षक होने के साथ ही व्यंग्य विधा के क्षेत्र में सागर का नाम रोशन कर रहे हैं।
       लक्ष्मी नारायण चौरसिया गद्य एवं पद्य दोनों विधाओं में लेखन कार्य करते हैं। सन् 1953 में दैनिक जागरण के भोपाल से प्रकाशित होने वाले साहित्यिक परिशिष्ट में एक कविता के रूप में उनकी प्रथम रचना का प्रकाशन हुआ। इसके बाद रचनाओं के लेखन और प्रकाशन का क्रम आरम्भ हो गया। उनकी रचनाएं साप्ताहिक हिंदुस्तान, दिल्ली, नवभारत टाइम्स मुंबई, भारती मुंबई, माधुरी मुंबई, नई धारा पटना, आरसी हैदराबाद, दक्षिण भारतीय हैदराबाद, माध्यम इलाहाबाद, युवक आगरा, वातायन बीकानेर, जागृति चंडीगढ, उषा इंदौर, नर्मदा ग्वालियर, हरित क्रांति पटना, रसरंग भास्कर भोपाल, राजस्थान पत्रिका जयपुर, अहा जिंदगी जयपुर, नवीन दुनिया जबलपुर आदि में प्रकाशित होती रही हैं। आकाशवाणी के भोपाल, इंदौर, सागर एवं छतरपुर केन्द्रों से रचनाओं का प्रसारण होता रहा है। लक्ष्मी नारायण चौरसिया ने सागर के कवियों की रचनाओं पर केन्द्रित विभिन्न संग्रहों का सम्पादन किया जिसमें तूफानों के बोल, सागर के कवियों की राष्ट्रीय रचनाएं, सागर के मोती, सागर के कवियों के मुक्तक, नव जातक। इसके अतिरिक्त सागर विश्वविद्यालय नगर छात्रसंघ की पत्रिका संकेत, सागर से प्रकाशित कविता पत्रिका प्रवेशक का भी सम्पादन किया।
Sagar Sahitya awm Chintan - Dr. Varsha Singh
     
        साहित्यकर्म एवं विशेष कर्तव्य निर्वहन के लिए लक्ष्मी नारायण चौरसिया को विभिन्न सम्मानों से सम्मानित किया गया। जिनमें प्रमुख हैं- सागर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा आयोजित गद्य शैलियों का विकास की राष्ट्रीय संगोष्ठी में सम्मानित, जनगणना कार्य 1981 में श्रेष्ठ सुपरवाइजर के रूप में सम्मान हेतु राष्ट्रपति पदक द्वारा सम्मानित, माध्यमिक शिक्षा मंडल मध्यप्रदेश भोपाल में कुछ समय तक शासन द्वारा नामजद सदस्य कलमकार परिषद सागर  द्वारा सम्मानित, सरस्वती वाचनालय एवं विद्यापुरम साहित्य परिषद द्वारा 2008 में पद्माकर सम्मान द्वारा सम्मानित, संस्कृत विश्वविद्यालय धर्म श्री एवं सरस्वती वाचनालय के संयुक्त आयोजन में गुरु पूर्णिमा महोत्सव 2018 में महर्षि वेद व्यास सम्मान से सम्मानित, हिंदी साहित्य सम्मेलन सागर इकाई द्वारा दाजी सम्मान से सम्मानित, सद्भावना राखी द्वारा शिक्षक सम्मान से सम्मानित, पंडित शंकर दत्त चतुर्वेदी शिक्षक सम्मान से सम्मानित, पंडित ज्वाला प्रसाद जोशी फाउंडेशन द्वारा साहित्य अलंकरण से सम्मानित, रंग प्रयोग द्वारा साहित्यकार सम्मान से सम्मानित।
     साहित्यकार लक्ष्मी नारायण चौरसिया हिंदी उर्दू साहित्यकार मंच के जनवरी 2006 से मार्च 2014 तक अध्यक्ष पद पर रहे। उन्होंने कविता, मुक्तक, हायकू, गीत, दोहा, कहानी, लघुकथा तथा ललित निबन्ध भी लिखे हैं। उनका एक लघु शोध प्रबन्ध ‘‘सूर काव्य में श्रृंगार‘‘ प्रकाशनार्थ है। साहित्यकार चौरसिया की कविताओं में गहन सामाजिक सरोकार दिखाई देता है। जिसका उदाहरण उनके हायकू में देखा जा सकता है।

1-जागरण है
साफ सुथरा यदि
आचरण है
2- शहंशाह है
जिन के खजाने में
आंसू आह है

लक्ष्मी नारायण चौरसिया ने अपने दोहों में ग्रामीण अंचल की कठिनाइयों, किसानों की परेशानियों का वर्णन करते हुए जिस ढंग से कथाकार प्रेमचंद के गांव का बिम्ब सामने रखा है वह साबित करता है कि किसानों की जो दशा प्रेमचंद के समय में थी वह आज भी है-
धूप ही धूप हर जगह, मुश्किल मिलना छांव।
जस के तस अभी दिखें, प्रेमचंद के गांव।।

फिरती खाला दरबदर, कौन सुने फरियाद।
न्याय मिलना कठिन हुआ, निर्धन है नाशाद ।।

धनिया खड़ी बिसूरती, होरी है बीमार ।
पूरा जीवन बन गया दुखों का त्योहार।।

त्योहार आ चले गए, लगे नहीं त्योहार।
खेतों में फसलें नहीं, महंगाई की मार ।।

बैल बिके, जेवर बिके, बिके खेत-खलिहान।
खातों में बनते गए, अंगूठे के निशान ।।

दरकी छाती खेत की, सूखे की है साल।
फाईल में बंधते रहे, पापी पेट सवाल।।

एक सच्चा कवि  समाज का पथप्रदर्शक होता है। लक्ष्मी नारायण चौरसिया ने समाज को राह दिखाते हुए युवाओं से विशेष आग्रह किया है। उनका ये मुक्तक इसका उदाहरण है-
अपनी तक़दीर पर भरोसा मत करना।
झूठी तक़रीर पर भरोसा मत करना ।
बेशक़ भरोसा करना अपने हाथों पर,
हाथ की लकीरों पर भरोसा मत करना।

इंसान ने तंग घेराबंदी तोड़ी है ।
संबंधों की डोरी अंतरिक्ष से जोड़ी है ।
इंसान के हाथों का इक इशारा है ये,
पर्वतों के सिर झुके नदियों ने धारा मोड़ी है।

बायें से :- डॉ. सुरेश आचार्य, लक्ष्मी नारायण चौरसिया एवं एम.डी. त्रिपाठी
वर्तमान राजनीति की दुरावस्था और बढ़ती हुई मंहगाई से कवि का मन खिन्न हो उठता है और वह आज की स्थिति का आंकलन किए बिना नहीं रह पाता है। कुछ ऐसी ही मनोदशा से गुजरते हुए कवि लक्ष्मी नारायण चौरसिया ने एक बहुत ही सुन्दर कविता लिखी है , जिसका शीर्षक है- एक प्रश्न : दो प्रश्न। यह कविता देखें-

अ अनार का। आ आम का ।
सीखने वाली मेरी छोटी बिटिया
गाहेबगाहे मुझसे पूछती है - पापा, अनार और आम कब लाएंगे?
मेरा उत्तर सदा अपरिवर्तित -
बिटिया, जब ये सस्ते हो जाएंगे, तब लाएंगे
वह निरंतर पूछे जा रही है - आप कब लाएंगे ? यह सस्ते कब हो जाएंगे ?
और मैं निरंतर उत्तर की खोज में हूं ।
रोज अखबार के पन्नों में खोज रहा हूं -पेंशन में वृद्धि हुई कि नहीं
अनार और आम के उत्पादन में वृद्धि हुई कि नहीं
यह भी देख रहा हूं विदेशों से इनका आयात हुआ कि नहीं
विधानसभाओं और संसद में महंगाई के मसले पर बहसें तो हुईं
लेकिन बहस के बाद कुछ हुआ कि नहीं  कल ही बिटिया ने नया प्रश्न पूछा है -
प्रश्न बड़ा भोला और बड़ा अनूठा है
अ अनार की जगह किसी सस्ती वस्तु का क्यों नहीं होता ?
आ आम की जगह किसी सस्ती वस्तु का क्यों नहीं होता
और मैं निरंतर इस नए प्रश्न के उत्तर की खोज में हूं
अन्य सस्ती वस्तु कौन सी हो सकती है जो मेरी बिटिया की हो सकती है।

   
डॉ. वर्षा सिंह, डॉ. (सुश्री) शरद सिंह एवं अन्य साहित्यकारों के साथ नाटकीय मुद्रा में लक्ष्मी नारायण चौरसिया
     साहित्यकार लक्ष्मी नारायण चौरसिया अपने लम्बे जीवनानुभव के आधार पर युवाओं से यह आग्रह करते दिखाई देते हैं कि कर्म से ही जीवन का निर्माण हो सकता है, जो व्यक्ति कर्महीन है, वह जीवन के मर्म को समझ ही नहीं सकता है। इसीलिए वे एक जिम्मेदार वरिष्ठजन का दायित्व निभाते हुए एक वरिष्ठ साहित्यकार की हैसियत से युवाओं से कहते है कि -

बैठे-बैठे मत जीवन की शाम करो
कर्म का नाम है जीवन काम करो
फिर नहीं आने वाला है बीता क्षण
जीवन के हर क्षण को प्रणाम करो

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( दैनिक, आचरण  दि. 21.11.2018)
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