Tuesday, September 3, 2019

सागर: साहित्य एवं चिंतन 62... साहित्य के मौन साधक डाॅ. अरविंद गोस्वामी - डाॅ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

       स्थानीय दैनिक समाचार पत्र "आचरण" में प्रकाशित मेरा कॉलम "सागर साहित्य एवं चिंतन " । जिसमें इस बार मैंने लिखा है मेरे शहर सागर के साहित्यकार डॉ. अरविंद गोस्वामी पर आलेख। पढ़िए और जानिए मेरे शहर के साहित्यिक परिवेश को ....

सागर: साहित्य एवं चिंतन

         साहित्य के मौन साधक डाॅ. अरविंद गोस्वामी
                     - डाॅ. वर्षा सिंह
                 
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परिचय - डॉ अरविंद गोस्वामी
जन्म -  11 मार्च 1953
जन्म स्थल - खुर्जा, बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश
माता - स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा देवी गोस्वामी
पिता - गोस्वामी मुकुंदाचार्य
शिक्षा - एमबीबीएस डीसीएच शिशु रोग विशेषज्ञ
प्रकाशन - विभिन्न समाचारपत्रों में
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         सागर नगर में साहित्य सेवा की भावना विभिन्न क्षेत्रों के व्यक्तियों में समान रूप से देखी जा सकती है। यह आवश्यक नहीं है कि अध्यापन से जुड़ा व्यक्ति ही साहित्य के प्रति पूर्ण समर्पण का भाव रखता हो। यहां चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े कई मनीषी ऐसे हैं जो अपना चिकित्सकीय कार्य करते हुए समाज की सेवा के साथ ही साहित्य की सेवा भी कर रहे हैं। उन्हीं में से एक नाम है डाॅ अरविंद गोस्वामी का। उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के खुर्जा में जन्मे। इसके बाद बाल्यावस्था से ही वे सागर में ही निवासरत हैं। उन्होंने प्राथमिक शाला मोरारजी एवं चिंतामनराव मॉडल बहुउद्देशीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय सागर से स्कूली शिक्षा प्राप्त किया। तदोपरांत उन्होंने हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर में अध्ययन किया। इसके बाद उन्होंने मेडिकल कॉलेज भोपाल एवं जबलपुर से एम.बी.बी.एस तथा शिशु रोग विशेषज्ञ की उपाधि प्राप्त की।
             शासकीय चिकित्सालयों में निष्ठावान डॉक्टर के रूप में अपनी सेवाएं विभिन्न स्थानों में देने के पश्चात् उनका शासकीय सेवा का अंतिम पड़ाव जिला चिकित्सालय सागर रहा, यहीं से मार्च 2018 को शिशु रोग विशेषज्ञ के पद से सेवानिवृत्त हुए । डॉ. अरविंद गोस्वामी ने अकादमिक अध्ययन के साथ हिंदी, अंग्रेजी एवं संस्कृत साहित्य का अध्ययन बचपन से ही किया। उनके मन में अगली कतार एवं शीर्ष पर होने की जिद, भीड़ से अलग दिखने की ललक रही। वे एक सफल शिशु रोग विशेषज्ञ के रूप में कार्यरत रहे। खेलों में रुचि रखने वाले डॉ. गोस्वामी की शतरंज में गहन अभिरुचि है। क्रीडा क्षेत्र में शतरंज के अलावा टेबल टेनिस, हॉकी, फुटबॉल में भी अपनी विशेष उपस्थिति दर्ज कराई है ।
डॉ. अरविंद गोस्वामी

         साहित्यिक परिप्रेक्ष्य में विभिन्न समाचार पत्रों में स्वास्थ्य संबंधी एवं सामाजिक सरोकार वाले लेखों का प्रकाशन हुआ है तथा आकाशवाणी से वार्ताएं प्रसारित होती रही है। साहित्यिक गोष्ठियों में भी उनकी महत्वपूर्ण उपस्थिति रहती है।
             डॉ. गोस्वामी  का मानना है कि ‘‘साहित्य क्षेत्र में व्यक्ति विशेष की उम्र का आकलन उसके पठन-पाठन एवं लेखन से ही तय करना चाहिए। मात्र वयोवृद्ध होना ही सम्मान का पात्र नहीं होना चाहिए।’’ वे कहते हैं कि ‘‘जिंदगी के हर पल को शिद्दत से महसूस किया जा सकता है । मेरी काव्य सर्जना में यथार्थ का कटु सत्य अहम् होता है यथा- हर वर्ष आता है बसंत, अब तो बस अंत आया है या कितना अजीब होता है कि लोग स्वस्थ रहने के लिए योगासन लगाते हैं मनुष्य होते हुए भी पशु पक्षियों के मुद्राएं अपनाते हैं आदमी ने आदमी के सदृश्य नहीं सीखा है चलना धरा पर ।’’
            डाॅ. अरविंद गोस्वामी की कविताओं में कथ्य की कोमलता और अभिव्यक्ति की आत्मीयता है। वे अपनी भावाभिव्यक्ति को लयात्मक ढंग से शब्दों में उतारते हैं। मसलन, सरल शब्दों में सहज अभिव्यक्ति उनके काव्य की विशेषता है। उदाहरण के लिए ये पंक्तियों देखें-
मुझको खफा न कीजिए पछताइएगा आप ।
मैं वो नहीं कि जिस को मना पाइएगा आप ।
यह दिल है इसको तोड़कर पछतायेगा आप ।
आईना देखने को तरस जाइएगा आप ।
हैं आप अभी गुम किसी रंगीं खयाल में
आऊंगा याद होश में जब आइएगा आप ।
पहले की तरह मुझको पड़ा रहने दीजिए
उठ जाऊंगा तो साफ नजर आइएगा आप।

          श्रृंगार रस जीवन में अहम् स्थान रखता है, यह श्रृंगारिक भावना चाहे इंसान के प्रति हो अथवा ईश्वर के प्रति। श्रृंगार में संयोग भी होता है और वियोग भी। कभी-कभी बेरुखी की स्थिति भी आ जाती है जिसे अपनी इन पंक्तियों में डाॅ. गोस्वामी ने बड़ी सुंदरता से व्यक्त किया है-
मिलते हैं आप मुझसे मगर बेरुखी के साथ ।
यह हादसा है खूब मेरी जिंदगी के साथ।
गम आपके दिए हुए ताजा हैं इसलिए
हमने गले लगा लिया उनको खुशी के साथ ।
नजरें चुरा के मिलते हो क्यों मुझसे इस तरह
क्या दिल लगा लिया है किसी अजनबी के साथ ।
दी हमको काटने को उल्फत की ये सजा
मिलते भी हो अगर तो बड़ी बेरुखी के साथ।
Sagar Sahitya Avam Chintan - Dr. Varsha Singh # Sahitya Varsha

         ऐसा नहीं है कि डाॅ. गोस्वामी के काव्य में मात्र श्रृंगार रस ही हो, उनकी अनेक रचनाओं में दर्शन की भावना भी प्रबल रूप से दिखाई देती है। एक उदाहरण देखें -
मेरे जीवन की पुस्तक का इक अध्याय बाकी है
अभी तक  हाशिए पर था  अध्यवसाय बाकी है
यहां सब लोग देते हैं दुआएं स्वस्थ जीवन की
मगर मैं जानता हूं कि प्रकृति का न्याय बाकी है

           डाॅ. गोस्वामी के मित्र कवि कपिल बैसाखिया कहते हैं कि -‘‘डाॅ. गोस्वामी जितने अच्छे कवि हैं उतने ही अच्छे इंसान भी। अपने मित्रों के बीच लोकप्रिय होने के साथ ही सदा सभी के सहयोगी रहते हैं।’’ जीवन को उद्देश्य एवं आकार देने वाले व्यक्तियों के प्रति कृतज्ञता का भाव होना, व्यक्ति के भीतर उपस्थित सदाशयता का परिचायक होता है। डाॅ. अरविंद गोस्वामी ने भी अपने मुक्तक में अपने माता-पिता, अपने गुरुवृंद एवं मित्रों के प्रति कृतज्ञता प्रकट की है-
प्रथम आभार उनका है जो मुझको जग में लाए हैं
तत्पश्चात गुरुवर है जो पथ मुझको दिखलाए हैं
मेरे मित्रों की तो कुछ बात है अद्भुत और अव्यक्त
बन कर लहू के कण मेरी रग-रग में समाए हैं

          डॉक्टर गोस्वामी ठीक सफर चिकित्सक, शिशु रोग विशेषज्ञ होने के साथ ही कवि भी है और वे अपनी इस सफल जीवन यात्रा का रहस्य अपनी स्वयं के जीवनानुभव के आधार पर बताते हुए इन पंक्तियों में कहते हैं कि -
 निष्कर्ष अनुभव का बतला रहा हूं मैं
मिलती लगन से जीत जतला रहा हूं मैं
महत्ता मेहनत की समझी जो मैंने अपने बचपन से
इसलिए गीत सफलता का अब तक गा रहा हूं मैं

        अपनी परिवार के प्रति कवि के मन में अगाध स्नेह और अपनत्व की भावना है। वे अपनी जीवन संगिनी और पुत्र-पुत्री तथा पुत्र वधू के प्रति इन पंक्तियों में अपने हृदय के उद्गार व्यक्त करते हैं -
मेरी परिवार का आधार है मेरी जीवन संगिनी
हर खुशियों का भंडार है मेरी जीवन संगिनी
पूनम की ज्योत्सना मानिंद छाई है जो जीवन में
हमारे गौरव का विस्तार है मेरी जीवन संगिनी
बहू अंकिता बिल्कुल बिटिया समान है
बेटा निमेष मेरा सारा जहान है
नजर न लग जाए इनको यही ईश्वर से बिनती है
नेहा जो बिटिया है अपने कुल की शान है

         डॉ. गोस्वामी जीवन के यथार्थ को अपनी कविता में जिस गहराई से प्रस्तुत करते हैं, वे अपनी कोमल मनोभावनाओं को भी उतनी ही गहराई से प्रकट करने में सक्षम है। उनकी यह कविता देखें-
मुद्दत हुई जैसे किसी को देखे हुए
एक तपते से रेगिस्तान के मानिंद
लंबी सी उदासी का आलम
न जाने क्यों दिल तड़पता है
एक अनजान के लिए
समय उड़ता है पंख लगा कर/पर स्मृतियां
लगता है जैसे किसी जोंक की तरह
चिपट गई है मेरे जेहन से में

       अपनी अतुकांत कविताओं में भी डाॅ. गोस्वामी उतने ही सहज नज़र आते हैं जितनी कि अपनी तुकांत रचनाओं में। उनकी इस प्रकार की कविताओं में एक अलग गंभीरता की अनुभूति होती है। जैसे यह कविता-
तुम्हारा खत मिला
धारणा ना टूटी लंबे अंतराल बाद
कि निर्जीव शब्द भी बोलते हैं
विगत से जुड़ी ग्रंथियां खोलते हैं
किंचित शब्दों में उभरता व्यतीत आह्लाद
और लहराता तुम्हारा प्यार
सच उमड़ पड़ता है/शब्दों से जुड़ी तुम
अतीव तृप्ति दे जाती हो
एक बात कहूं तुम खत न लिखा करो
क्योंकि यह सिखा देगा
तुम्हारे बिना रहना और सहना
अनगिनत त्रासों को।

      डाॅ. अरविंद गोस्वामी मंच और प्रकाशन की ललक से दूर रहते हुए एक मौन साधक की भांति सतत साहित्य साधना से आज भी सागर के साहित्य को समृद्ध कर रहे हैं।
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( दैनिक, आचरण  दि. 29.08.2019)
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