Friday, May 17, 2019

सागर : साहित्य एवं चिंतन 50 ....मंचों पर धूम मचाने वाले कवि शिखरचंद जैन ‘शिखर’ - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

       स्थानीय दैनिक समाचार पत्र "आचरण" में प्रकाशित मेरा कॉलम "सागर साहित्य एवं चिंतन " । जिसमें इस बार मैंने लिखा है मेरे शहर सागर के कवि शिखरचंद जैन "शिखर" पर आलेख। पढ़िए और जानिए मेरे शहर के साहित्यिक परिवेश को ....

सागर : साहित्य एवं चिंतन

          मंचों पर धूम मचाने वाले कवि शिखरचंद जैन ‘शिखर’
                                - डॉ. वर्षा सिंह
                             
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परिचय :- शिखरचंद जैन ‘शिखर’
जन्म :-  24 नवम्बर 1954
जन्म स्थान :- ग्राम बीजरी, सागर (म.प्र.)
पिता एवं माताः- श्री होतीलाल जैन एवं श्रीमती चम्पा बाई जैन
शिक्षा :- विद्यालयीन
लेखन विधा :- गीत, गजल
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            काव्य विधा ने जितना स्थायीत्व मुद्रण के द्वारा प्राप्त किया, उतनी ही ख्याति मंच पर मुखर हो कर भी पाई। मंचीय काव्य की गरिमा को सोम ठाकुर, गोपालदास ‘नीरज’, माया गोविंद, प्रभा ठाकुर ने श्रंगारिक सरसता की ऊंचाईयों तक पहुंचाया, वहीं प्रदीप चौबे, शैल चतुर्वेदी, काका हाथरसी ने हास्य और व्यंग्य को शालीनता की सीमा में रखते हुए प्रस्तुत करने की एक परम्परा गढ़ी। सागर नगर के कवियों ने भी मंच से अपना नाता रखा। नगर के वरिष्ठ कवि निर्मलचंद ‘निर्मल’ आज भी नीरज के साथ पढ़े गए मंचों की स्म्ृतियों को सहेजे हुए हैं तथा मंचीय कविता से साहित्यिकता को विलोपित होते देख दुखी होते हैं। किन्तु यह सागर नगर के साहित्कारों की काव्य के प्रति प्रतिबद्धता है कि जहां देश में मंचीय स्तर पर कविता अपनी गरिमा खोती जा रही है, वहां सागर के मंचीय कवि कविता की गरिमा को यथासम्भव बचाए हुए हैं। इस क्रम में एक उल्लेखनीय नाम है- कवि शिखरचंद जैन ‘शिखर’ का।
             सागर जिले की खुरई तहसील के ग्राम बीजरी में श्री होतीलाल जैन एवं श्रीमती चम्पा बाई के पुत्र के रूप में 24 नवम्बर 1954 को शिखरचंद जैन का जन्म हुआ। शिखरचंद के पिता व्यवसायी थे तथा रेडीमेड कपड़ों का व्यवसाय करते थे। इस पारिवारिक व्यवसाय को शिखरचंद जैन ने बड़ी कुशलता से आज भी सम्हाला हुआ है। उन दिनों शिखरचंद की आयु 13 वर्ष थी जब वे सागर आ कर निवास करने लगे। सागर में ही उनकी स्कूली शिक्षा हुई। बाल्यावस्था से ही शास्त्ऱीय गायन में रुचि होने के कारण प्रयाग संगीत समिति, इलाहाबाद से गायन विधा में विशारद की उपाधि प्राप्त की। अपने पिता के व्यवसाय में हाथ बंटाने की व्यस्तता के कारण उनकी औपचारिक शिक्षा सीमित रह गई। किन्तु साहित्य और संगीत से उनका लगाव असीमित बना रहा। शिखरचंद जैन का रुझान गीत और गजल लेखन की ओर बढ़ा। वे नगर में होने वाली काव्य गोष्ठियों में काव्यपाठ करने लगे। इस दौरान वे नगर के वरिष्ठ गीतकार निर्मलचंद ‘निर्मल’ के सम्पर्क में आए। शिखरचंद जैन बताते हैं कि - ‘‘सन् 1982 में निर्मल दादा ने मुझे अपना शिष्य बना लिया। इसके बाद मेरे मंचीय काव्य प्रस्तुति को सही दिशा मिली। मैं अखिल भारतीय कविसम्मोलनों में आमंत्रित किया जाने लगा।’’
 

बाएं से : डॉ. वर्षा सिंह, डॉ. (सुश्री) शरद सिंह एवं कवि शिखरचंद जैन "शिखर"

         शिखरचंद जैन ने ‘शिखर’ उपनाम रखा और वे देश के विभिन्न शहरों जैसे - मुम्बई, दिल्ली, जयपुर, लखनऊ, विजयनगर, गोहाटी, नागपुर, बनारस, जौनपुर, कोटा से ले कर अमरकंटक तक अनेक मंचों पर काव्यपाठ किया। उन्होंने सुप्रसिद्ध जैन तीर्थ कुण्डलपुर, महावीर जी तथा शिखर जी में भी मानवतापूर्ण धर्मप्रवण कविताएं पढ़ीं। आकाशवाणी तथा दूरदर्शन से भी इनके गीतों का प्रसारण होता रहता है।
           कवि सम्मेलनों के गिरते स्तर पर चिंता व्यक्त करते हुए शिखरचंद जैन ‘शिखर’ कहते हैं कि - ‘‘पहले जो कविसम्मेलन होते थे उनमें फूहड़ता नहीं होती थी, लेकिन वर्तमान में कवि सम्मेलनों का स्तर निरंतर गिरता जा रहा है। हम केवल श्रोताओं को दोष दें, यह ठीक नहीं। दोषी तो वे कवि हैं जो वाह -वाही लूटने के लिए स्तरहीन रचनाएं पढ़ते हैं। जबकि श्रोता मंचों से आज भी अच्छे गीत, गजल, हास्य-व्यंग्य सुनने की चाह रखते हैं।’’
उर्दू साहित्य की भांति हिन्दी साहित्य में गुरु-शिष्य परम्परा प्रखर नहीं रही। किन्तु हिन्दी साहित्य में भी जो कवि गुरु-शिष्य परम्परा को मानते आए हैं, उन्होंने अपने गुरु को अपनी सफलता का केन्द्र बिन्दु इंगित किया है। कवि शिखरचंद जैन ‘शिखर’ भी मंचों पर अपनी सफलता का श्रेय अपने गुरु कवि निर्मलचंद ‘निर्मल’ को देते हैं। कवि शिखर मानते हैं कि - ‘‘मेरे काव्य जीवन को ऊंचाईयों तक पहुंचाने में मेरे गुरु निर्मलचंद जी का योगदान है ही, साथ ही मेरे परिवार के सदस्यों ने मेरे हिस्से का भी दायित्व सम्हालते हुए जो मुझे सहयोग दिया वह भी उल्लेखनीय है। मेरे बड़े भाई मास्टर सुरेशचंद जैन, मेरी पत्नी सुषमा, पुत्र सिद्धार्थ, पुत्रियां सारिका, सपना, शालिनी, शिखा के साथ ही मेरे दामादों ने भी मेरे मंचों पर जा कर काव्यपाठ को प्रोत्साहन दिया।’’
           शिखरचंद जैन की कविताओं में सादगी और सरलता की विशेषता है। यही कारण है कि उनकी कविताएं मंचों से सम्प्रेषणीय रहीं। एक बानगी देखिए-
मिल के सोचें जरा किस तौर गुजर जाती है।
जिन्दगी नाम की जो एक लहर आती है।
कहीं बारिश कहीं पे धुंध कहीं कोहरा,
कहीं विकराल हो आतप सी बिखर जाती है।
लगे जो जोड़ने टूटे दिलों की तकदीरें
उनके किरदार से फूलों की महक आती है।
कब तलक डाल पे पंछी का बसेरा होगा
एक दिन उड़ना है, पदचाप ठहर जाती है।
आंख ऊंची का तो सम्मान हुआ करता है
आंख नीची भी कभी खूब कहर ढाती है।
हस्तियां खास क्या शमशान निगल पाएगा
याद वीरों को तो यादों का शिखर पाती हैं।

Kavi Shikharchand Jain "Shikhar"


           शिखर चंद जैन शिखर की कविताओं में दार्शनिक भाव देखने को मिलते हैं। जैसे इन पंक्तियों को देखें....
भटके हैं जन्म जन्म तुम्हारी ही आस में
सदियां गुजर गई है क्षणों की तलाश में
आनंद की हिलोरें तो तट के करीब हों
सागर का रूप मिलता है लघु के विनाश में
मजहब के नाम पर यही पाया है आजकल
बस चाहता है आदमी आ जाना प्रकाश में

         जहां तक गीतों में कथ्य की सादगी का प्रश्न है तो कवि शिखर  के गीतों में एक अलग ही सादगी होती है। जैसे, उनका एक गीत है- “मैं कविता लिखना क्या जानूं“। इस गीत में  भुने अपने उन्होंने अपने गीत सृजन के उद्देश्य को बखूबी वर्णित किया है। पंक्तियां इस प्रकार हैं-
 मैं कविता लिखना क्या जानूं केवल तुकतान भिड़ाता  हूं
 शब्दों के खेल खेलता हूं भावों के पेंच लड़ाता हूं .....

उलझावा छंद व्याकरण का  मुझको तो नहीं सुहाता है
जनमानस को भा जाए जो मुझको वह लिखना आता है
मैं गीत ग़ज़ल की नाड़ी को हर धड़कन में धड़काता हूं
मैं कविता लिखना क्या जानूं केवल तुकतान भिड़ाता हूं

जीना सीखो इस जीवन को यह कहकर मैं मुस्काता हूं
थोड़े दिन के सब मेहमां हैं मेहमानी ही जतलाता हूं
क्यों करें गुलामी आदत की संकट को नहीं बुलाता हूं
जितनी चादर अपने हक में उतने ही पैर बढ़ाता हूं
जीवन पथ में जो हार गए उनको समझाने जाता हूं
मैं कविता लिखना क्या जानूं केवल तुकतान भिड़ाता हूं

          शिखर चंद जैन शिखर बुंदेली बोली में भी गीत लिखते हैं उनके बुंदेली गीत मधुर और सरस होते हैं बुंदेली में उन्होंने रितु और प्रकृति का सुंदर वर्णन किया है, वहीं वर्तमान समाज में व्याप्त स्वार्थपरता पर भी दिखा कटाक्ष किया है-
रस के मेघा बरसे हम बूंद-बूंद को तरसे
अपनी विपत कौन से केवें नाहक निकले घर से .....
मतलब के सब दोस्त यार हैं संग चाय तक पीवो
मोरी हालत कोऊ ने पूछे दिन दिन कैसो जीवो
ऐसे ऐसे दिन गुजरे हैं मन उखरे है जड़ से, रस के मेघा बरसे....
कोऊ कोऊ को किलब बने हैं कोऊ खों महल अटारी
इते किराए की मिली झुपड़िया ऐसी दुनियादारी
हम उसईं के ऊंसईं रे गए बे नारायण नर से, रस के मेघा बरसे...

       आज सागर नगर अनेक युवा कवि मंच की ओर निरंतर अपने कदम बढ़ा रहे हैं ऐसे युवा कवि शिखर चंद जैन शिखर की मंचीय अनुभवों एवं साहित्यिकता के भावों को ग्रहण कर सकते हैं तथा अपने साहित्य और मंच के बीच कवि शिखर की भांति एक शालीन एवं सम्मानित संबंध स्थापित कर सकते हैं।
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( दैनिक, आचरण  दि. 17.05.2019)
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