Dr. Varsha Singh |
प्रत्येक वर्ष 15 मई को विश्व परिवार दिवस मनाया जाता है।
सम्पूर्ण प्राणी जगत एवं समाज में परिवार सबसे छोटी इकाई है। इसे सामाजिक संगठन की मौलिक इकाई भी कहा जा सकता है। सच तो यह है कि परिवार को एक सूत्र में बांधे रखना एक बड़ी चुनौती है। वर्तमान समय में परिवार के रिश्ते टूट रहे हैं असहिष्णुता के कारण रिश्ते मज़बूत नहीं रह गए हैं। विश्व परिवार दिवस को संयुक्त राष्ट्र अमेरिका ने 1994 को अंतरराष्ट्रीय परिवार वर्ष घोषित किया था। तब से विश्व में लोगों के बीच परिवार की अहमियत बताने के लिए हर साल 15 मई को अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस मनाया जाने लगा और 1995 से अभी तक यह सिलसिला जारी है।
हमारे देश में भी परिवार के महत्व को समझाने के लिए अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस विभिन्न संस्थाओं द्वारा अनेक प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस हेतु जिस प्रतीक चिह्न को चुना गया है, उसमें हरे रंग के एक गोल घेरे के बीचों बीच एक दिल और घर अंकित किया गया है, जो यह बताता है कि किसी भी समाज का केंद्र परिवार ही होता है। परिवार ही हर उम्र के लोगों को शांति से जीना सिखाता है।
उपभोक्तावादी संस्कृति के कारण आपसी मतभेद और पारिवारिक कलह के कारण समाज में जहां अपनत्व की भावना क्षीण होते जा रही है, वहीं रिश्ते भी तार-तार हो रहे हैं। परिवार को साथ जोड़ने का मौका है परिवार दिवस । आज विश्व भर में एकल परिवार की मानो लहर सी फैल गयी है।
बुंदेलखंड में संयुक्त परिवार की परम्परा अब टूटती जा रही है। एकल परिवार यहां बुंदेलखंड के हृदय स्थल सागर में भी बढ़ते जा रहे हैं। ख़ास वज़ह यह भी है कि बुंदेलखंड में रोजगार के अवसर बेहद सीमित हैं। रोजगार के लिए युवा बड़े शहरों में जाने को विवश हैं। लगभग हर दूसरे परिवार में बच्चे बड़े होकर बड़े शहरों में नौकरी करने लगते हैं, तब मां-बाप अकेले रह जाते हैं और परिवार से अलग रहने पर बच्चों को बड़ों का साथ नहीं मिल पाता। जिसकी वजह से नैतिक संस्कार दिन ब दिन गिरते ही जा रहे हैं और इससे समाज में बिखराव भी होने लगा है।
अपने रीत रिवाज़, भाईचारे की भावना, मिलजुल कर रहने की आदत.... सबकुछ बहुत पीछे छूट गया है।
इसके लिए हमें एकल परिवार की पद्धति पर विराम लगाना होगा, ताकि समाज में बिखराव की स्थिति उत्पन्न न हो सके। रोजगार के साधन मुहैया कराने होंगे। ताकि युवा घरबार, परिवार छोड़ कर अंजाने शहरों में जा कर संघर्ष करने से छुटकारा पा सकें और तब मिलजुल कर एक साथ रहें। संयुक्त परिवार से हमारी संस्कृति सुरक्षित रहेगी।
मेरी यानी इस ब्लॉग लेखिका डॉ. वर्षा सिंह की एक ग़ज़ल है, जो अंतरराष्ट्रीय/ विश्व परिवार दिवस पर सभी सुधीजनों को समर्पित है....
जो समझ पाते नहीं घरबार की भाषा।
जान वो पाते नहीं परिवार की भाषा।
ज़िन्दगी तन्हा गुज़ारी शौक से लेकिन,
पढ़ न पाये वो यहां त्यौहार की भाषा।
हो न नफ़रत तब दिलों के दरमियां बेशक़,
एक हो जाये अगर संसार की भाषा।
दोस्ती जिसने कलम के साथ कर ली हो
रास कब आई उसे तलवार की भाषा !
द्वेष से हासिल कभी ख़ुशियां नहीं होतीं
क्लेश देती है सदा प्रतिकार की भाषा!
रूठ जाये कोई गर अपना कभी हमसे,
याद तब कर लीजिये मनुहार की भाषा।
है गुज़ारिश आपसे "वर्षा" की इतनी सी,
सीख लीजे आप भी अब प्यार की भाषा।
- डॉ. वर्षा सिंह
परिवार... # साहित्य वर्षा |
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