Dr. Sharad Singh |
वेब मैगजीन "युवाप्रवर्तक" के दिनांक 12.11.2019 के अंक में प्रकाशित समाचार...
हार्दिक आभार "युवाप्रवर्तक" 🙏
साहित्य की बेड़ियां कौन-सी हैं, उन्हें किस तरह काटा जा सकता है, उनसे किस तरह आजाद हुआ जा सकता है? यह विषय था चर्चा का जिसमें सागर निवासी देश की चर्चित साहित्यकार एवं लेखिका डॉ. (सुश्री) शरद सिंह को चर्चाकार के रूप में राष्ट्रीय टी.वी. चैनल ‘आजतक’ द्वारा आमंत्रित किया गया था।
‘‘हल्ला बोल’’ स्टेज नं-3, एम्फी थिएटर के मंच पर आयोजित इस चर्चा में आजतक की ओर से चर्चा के प्रखर सूत्रधार थे नवीन कुमार। पहला प्रश्न उन्होंने डॉ शरद सिंह से ही किया कि उनके उपन्यास ‘‘पिछले पन्ने की औरतें’’ के संदर्भ में वे कौन-सी बेड़ियां है जिनसे महिलाएं बंधी हुई हैं? उनके प्रश्न का उत्तर देते हुए शरद सिंह ने बेड़िया समाज की स्त्रियों के स्वाभिमान और संघर्ष के बारे में बताया। समाज, राजनीति और साहित्य के परस्पर संबंध के विषय में प्रश्न पर खुल कर बोलते हुए सुश्री सिंह ने अपने विचार व्यक्त किए कि साहित्य और राजनीति के बीच संतुलित संबंध होना चाहिए। यदि साहित्यकार सरकार के सामने एक भिखारी की तरह खड़ा रहेगा लाभ की आशा में, तो वह कभी निष्पक्ष साहित्य नहीं रच सकेगा। एक अन्य प्रश्न के उत्तर में शरद सिंह ने कहा कि बेड़ियां हमीं ने बनाई हैं किसी एलियन (परग्रही) ने नहीं और हमें ही उन्हें तोड़ना होगा। इस संदर्भ में उन्होंने फ्रांसीसी दार्शनिक रूसो का यह वाक्य याद दिलाया कि ‘हम स्वतंत्र जन्म लेते है फिर सर्वत्र बेड़ियों में जकड़े रहते हैं।’ इस अवसर पर विभिन्न बिन्दुओं पर खुल कर चर्चाएं हुईं । साथ ही चर्चा में सहभागी लेखक भगवानदास मोरवाल की नवीन पुस्तक के लोकार्पण भी किया।
उल्लेखनीय है कि विगत 1 से 3 नवंबर 2019 को देश की राजधानी दिल्ली के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में लगने वाले साहित्य के सबसे बड़े महाकुंभ "आजतक" चैनल के इस प्रतिष्ठित चौथे तीन दिवसीय आयोजन में हिंदी साहित्य जगत के सुनाम दिग्गजों सहित देश- विदेश की कला, साहित्य, संगीत, संस्कृति और किताबों से जुड़ी अंतर्राष्ट्रीय ख्याति की अनेक शख़्सियतों ने शिरकत किया।
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