Wednesday, July 10, 2019

सागर : साहित्य एवं चिंतन 57 ... बहुमुखी प्रतिभा के धनी कवि, नाटककार एवं लेखक डॉ. आलोक चौबे - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

       स्थानीय दैनिक समाचार पत्र "आचरण" में प्रकाशित मेरा कॉलम "सागर साहित्य एवं चिंतन " । जिसमें इस बार मैंने लिखा है मेरे शहर सागर के कवि डॉ. आलोक चौबे पर आलेख। पढ़िए और जानिए मेरे शहर के साहित्यिक परिवेश को ....

सागर : साहित्य एवं चिंतन

बहुमुखी प्रतिभा के धनी कवि, नाटककार एवं लेखक डॉ. आलोक चौबे
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                   - डॉ. वर्षा सिंह
                               
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परिचय :- डॉ आलोक चौबे
जन्म :-  20 मई 1979
जन्म स्थान :- ललितपुर ,उत्तर प्रदेश
पिता एवं माताः- श्री प्रताप नारायण चौबे एवं श्रीमती अंजू चौबे
शिक्षा :- मनोविज्ञान तथा पत्रकारिता और जनसंचार में परास्नातक, संज्ञानात्मक मनोविज्ञान विषय में पीएचडी, उत्तर प्रदेश फिल्म डेवलपमेंट कारपोरेशन से स्क्रिप्ट लेखन शिक्षा, भारतीय प्रबंध संस्थान (आईआईएम) कोझिकोड से एग्जीक्यूटिव मैनेजमेंट डेवलपमेंट प्रोग्राम अध्ययनरत।
लेखन विधा :- गीत, लेख, नाटक, कहानी, पुस्तक समीक्षा, शोधपत्र।
प्रकाशन :- विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित।
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          सागर नगर की माटी में वह ममता है कि जो भी यहां आता है, वह यहीं का हो कर रह जाता है। अनेक साहित्यकार जो प्रदेश के दूसरे जिलों अथवा देश के दूसरे प्रदेशों से सागर आए, शीघ्र ही सागर उनकी कर्मभूमि अर्थात् सृजनभूमि बन गई। 20 मई 1979 को उत्तरप्रदेश के ललितपुर में जन्मे डॉ आलोक चौबे विगत सन् 2002 से सागर में निवासरत हैं। यह कहा जा सकता है कि सागर उनकी वास्तविक कर्मभूमि है। अपने पिता श्री प्रताप नारायण चौबे एवं माताश्री अंजू चौबे से मिले संस्कारों ने उन्हें अध्ययनशीलता का गुण प्रदान किया। उन्होंने मनोविज्ञान तथा पत्रकारिता और जनसंचार में डबल एम. ए. किया। इसके बाद मनोविज्ञान में ही विशेष अध्ययन एवं शोधकार्य करते हुए संज्ञानात्मक मनोविज्ञान विषय में पीएचडी उपाधि प्राप्त की। लेखन की रुचि ने डॉ आलोक चौबे को उत्तर प्रदेश फिल्म डेवलपमेंट कारपोरेशन से स्क्रिप्ट लेखन शिक्षा प्राप्त करने की प्रेरणा दी। आज भी वे भारतीय प्रबंध संस्थान (आईआईएम) कोझिकोड से एग्जीक्यूटिव मैनेजमेंट डेवलपमेंट प्रोग्राम अध्ययनरत हैं।
             बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ आलोक चौबे आकाशवाणी सागर से कैजुअल अनाउंसर के रूप में जुड़े। सागर नगर की चर्चित नाट्य संस्था अन्वेषण थिएटर ग्रुप के सचिव रहे। चाइल्ड राइट्स ऑब्जर्वेटरी मध्य प्रदेश, भोपाल के जनरल बॉडी मेंबर, पब्लिक रिलेशन सोसाइटी ऑफ इंडिया के सदस्य तथा सोसाइटी फॉर आइडियल ग्लोबल नीड्स के अध्यक्ष हैं। यूनिसेफ, उत्तर प्रदेश में राज्य संचार सलाहकार के तौर पर भी काम कर चुके हैं। अपने लेखन एवं सृजन की विविधता के अंतर्गत डॉ आलोक चौबे ने कई राज्यों और संस्थाओं की योजनाओं की संचार सामग्री का निर्माण किया। उन्होंने बीबीसी मीडिया के उपक्रम बीबीसी मीडिया एक्शन के साथ भी स्वास्थ्य संचार परियोजना में कार्य किया। वे सागर के शहीदों पर केन्द्रित ‘‘हम भूल न जाएं उनको’’ स्मारिका का संपादन कर चुके हैं जिसके अब तक दो संस्करण सन् 2004, 2014 में  प्रकाशित हो चुके हैं। डॉ. आलोक चौबे लेख भी लिखते हैं। सन् 1999 से मनो-सामाजिक-राजनीतिक और संचार विषयों पर देश के 15 से अधिक राज्यों के अखबारों में सम्पादकीय पृष्ठों पर उनके लेख प्रकाशित हो चुके हैं।
            भ्रमण मनुष्य की चिंतन क्षमता को नए आयाम प्रदान करता है। उसे नवीन अनुभवों से जोड़ता है। डॉ. चौबे के लेखन में अनुभवजन्य विविधता मिलती है। इसका कारण है कि वे अब तक बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, हिमाचल, उत्तरांचल, महाराष्ट्र ,हरियाणा, दिल्ली, पंजाब आदि राज्यों के शासकीय और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ कार्य करते हुए सैकड़ों गांवों की सामाजिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक विविधताओं से साक्षात्कार कर चुके हैं। इसके साथ ही वे मंचों पर काव्यपाठ करते हैं। इसी तारतम्य में वे विभिन्न प्रदेशों के कवि सम्मेलनों, मुशायरों में काव्यपाठ कर चुके हैं। जहां तक प्रसारण की बात है तो डॉ. चौबे की रचनाओं का आकाशवाणी छतरपुर, सागर और झांसी से प्रसारण हो चुका है।
Sagar Sahitya Avam Chintan - Dr. Varsha Singh # Sahitya Varsha

              डॉ. आलोक चौबे की पत्नी प्रिया जैन भी लेखन में रुचि रखती हैं। उल्लेखनीय है कि डॉ चौबे एवं उनकी पत्नी प्रिया जैन ने ‘‘टर्निंग पॉइंट’’ नाटक मिल कर लिखा था जिसका मंचन थर्ड बेल थिएटर ग्रुप द्वारा किया गया था। डॉ चौबे ने कई नुक्कड़ नाटक भी लिखे जिनका प्रदर्शन मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में विभिन्न संस्थाओं द्वारा समय-समय पर किया जाता रहा है। वे नाटकों में अभिनय भी कर चुके हैं। उन्होंने कई डॉक्यूमेंट्री फिल्मों का लेखन, निर्माण एवं निर्देशन भी किया जिनमें प्रमुख हैं- लाइफ ऑन लाइन, संभावनाओं का सागर, हंगरमार्च आदि।
          कविता में जब यथार्थ एवं कल्पना का सुंदर समन्वय हो तो उसकी भाव संपदा द्विगुणित हो जाती है। ऋतुओं का अनुभव तो सभी करते हैं किन्तु एक कवि जब ऋतुओं का अनुभव करता है तो उसके ऋतुवर्णन में जीवन का दर्शन और सौंदर्य निखर आता है। जैसे डॉ आलोक चौबे जब वर्षा ऋतु को अपनी कविताओं में उतारते हैं तो उसमें बारिश की एक अलग ही छटा दिखाई देती है जो ऋतु की सरसता अनुभव कराते हुए एक पल ठहर कर सोचने को भी विवश करती है। उदाहरण के लिए उनकी यह कविता देखिए -
गीले बादल आसमान में नज़र आने लगे ..
अब बारिश होगी...मिट्टी में सोंधी-सोंधी खुशबू आएगी...
नयी कोंपलें निकलेंगी ....नए पत्ते निकलेंगे ...
चारों तरफ फैलेगी हरियाली चादर .....
और मन भावन होगा सब कुछ....
धरती की प्यास बुझेगी..../किसानांं की आस जगेगी.. ..
बच्चे कागज़ की नाव चलाएंगे...
नवयुगल भीगकर बारिश में.../प्रेममय हो जायेंगे...
घर के आंगन में पानी की बूंदे अठखेलियां करेंगी...
चलो इन खूबसूरत लम्हों को सहेज ले....
इन पानी की बूंदों को समेट ले....
ताकि प्यास बुझी रहे../आस जगी रहे .......

           अतुकांत कविताओं के साथ ही मुक्तक के रूप में तुकांत काव्य में भी मौसम की सुंदर व्याख्या करते हैं डॉ आलोक चौबे। यह मुक्तक उल्लेखनीय है-
वारिस सपनों का बनाता है कोई
वसीयत गमले में उगाता है कोई
सांसों से सींच दूं अगर नींदों को
बादलों से प्यास बुझाता है कोई
डॉ. आलोक चौबे

           कवि डॉ. आलोक चौबे की रेलवे स्टेशन पर एक लम्बी कविता है जिसमें उन्होंने स्टेशन की आपाधापी भरी गतिविधियों का सजीव चित्रण किया है। रेलवे स्टेशन यूं भी मनोभावों का एक ऐसा जमावड़ा अपने आप में समेटे होता है जिसमें मिलन का सुख तो विदाई का दुख, परिचितों की भीड़ तो अपरिचितों का हुजूम, मन के एकाकीपन से भीड़ के कोलाहल तक सभी कुछ निबद्ध रहता है। डॉ चौबे की कविता में रेलवे स्टेशन की ये सारी खूबियां दृश्य की तरह उभरती हैं। इस कविता को उनकी प्रतिनिधि कविताओं में गिना जा सकता है-
रंगमंच सा ये स्टेशन
1, 2 3 ए सी , स्लीपर और
जनरल में भी बंटा स्टेशन
करता है पर भेद भाव भी
आदमी आदमी में स्टेशन
पैसे की माया है सबकुछ
जान गया है अब स्टेशन
जाने कितने एकाकों का
घर परिवार है ये स्टेशन
जाने कितने घर परिवारों
को मिलवाता है स्टेशन
जाने कितने मजदूरों को
काम दिलाता है स्टेशन
मैं भी अक्सर रहता हूं साथी
इस स्टेशन , उस स्टेशन।

              समाज में घटित होने वाली जघन्य घटनाएं कवि के मन को खुरचती हैं और इससे उत्पन्न पीड़ा प्रश्न करती है कि अपराध का मूल कारण क्या है? समाज में बढ़ते जा रहे लैंगिक अपराधों का स्मरण कराते हुए कवि आलोक चौबे ने एक लम्बी कविता लिखी है ‘‘दुष्कर्मी कौन?’’। इस कविता का एक अंश देखिए-
दुष्कर्मी कौन?
वो जिसने बुरा कर्म किया
उनका क्या जो व्यवसाय करते हैं
मसालेदार ख़बरों का ...
और परोसते है नारी देह को
उपभोग की वस्तु की तरह .....
इस अपाहिज समाज में ...
नपुंसकता हावी है अब ....
तमाम विकृतियों के तंत्र साथ
राजनीति में, प्रशासन में, न्याय में
और आदमी में भी ...
कहीं नारीत्व लजा रहा है स्वयं को
और पुरुषत्व वो तो जैसे बचा ही नहीं
वीरो की इस धरा पर ..... दुष्कर्मी कौन?
सिर्फ वो जिसने बुरा कर्म किया
वो क्यूं नहीं जो इन कर्मो को
प्रेरित करता है ...
उकसाता है कुत्सित विचार
और नहीं रहता सजग ...
कि कहीं कोई विकृत मानसिकता का पुरुष
मासूम मुस्कान न छीन ले किसी गुडिया की .....
अब नहीं कोई निर्भया सब भय में है?
क्यूंकि हम कोई सुकर्म भी
नहीं करते ,मतलबपरस्ती हावी है
व्यक्ति पर, समाज पर और तंत्र पर
हम सब पर .......
तो दुष्कर्मी कौन? तो दुष्कर्मी कौन?? तो दुष्कर्मी कौन???

               डॉ. आलोक चौबे सागर नगर के वे साहित्यकार हैं जो अपनी विविधतापूर्ण लेखनी, संवेदनाओं की धनी कविताओं एवं कटाक्ष करते नाटकों से हिन्दी साहित्य संपदा में निरंतर श्रीवृद्धि कर रहे हैं। उनका लेखन उन्हें एक अलग पहचान देने में पूर्ण सक्षम है।
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( दैनिक, आचरण  दि. 10.07.2019)
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