Sunday, December 16, 2018

सागर : साहित्य एवं चिंतन 36 .... तीखे तेवर के कवि के. एल. तिवारी ‘अलबेला’ - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh
      स्थानीय दैनिक समाचार पत्र "आचरण" में प्रकाशित मेरा कॉलम "सागर साहित्य एवं चिंतन " । जिसमें इस बार मैंने लिखा है मेरे शहर सागर के साहित्यकार के.एल.तिवारी ''अलबेला'' पर आलेख। पढ़िए और जानिए मेरे शहर के साहित्यिक परिवेश को ....

  सागर : साहित्य एवं चिंतन

तीखे तेवर के कवि के. एल. तिवारी ‘अलबेला’
                    - डॉ. वर्षा सिंह
                     
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परिचय - के. एल. तिवारी ‘अलबेला’
जन्मस्थान - सागर, मध्य प्रदेश
जन्मतिथि - 03 अप्रैल 1949
शिक्षा - बी.कॉम, एम.ए. (अर्थशास्त्र)
व्यवसाय - सेवानिवृत्त प्रबंधक
लेखनविधा - पद्य एवं गद्य।
प्रकाशन - विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन।
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सागर नगर में अनेक ऐसे साहित्यकार हैं जो लगभग स्वातंःसुखाय के भाव से रचनाकर्म में संलग्न हैं। उन्हीं में से एक हैं के.एल. तिवारी ‘अलबेला’। यूं तो उनका पूरा नाम है कंछेदी लाल तिवारी किन्तु ‘अलबेला’ उपनाम से साहित्य सृजन करते हुए उन्होंने सागर नगर के साहित्य जगत में अपना विशेष स्थान बनाया है। नगर के विभिन्न समाचार पत्रों में उनकी रचनाएं प्रकाशित होती रही हैं, जिनमें प्रमुख समाचार पत्र हैं- गौर दर्शन, आगामी कल, दैनिक राही तथा शरारत। इसके अतिरिक्त जबलपुर के “स्वतंत्र मत“ में भी उनकी कविताओं का प्रकाशन हुआ है। आकाशवाणी के छतरपुर और सागर केंद्र से उनकी काव्य रचनाएं समय-समय पर प्रसारित होती रही हैं। कवि अलबेला ने “सागर के मोती“ नाम से प्रकाशित मुक्तक संग्रह का भी संपादन किया था। इसके अतिरिक्त उन्होंने कुछ समय तक ’सागर टाइम्स’ में मानसेवी सम्पादक का कार्य किया तथा साप्ताहिक ’पदचाप’ में भी वे संपादन कार्य करते रहे साप्ताहिक ’पदचाप’ में ’खबर खोजी’ के नाम से उनका एक कलम भी प्रकाशित होता रहा।
कवि ’अलबेला’ हाइकु, नवगीत तथा गीत विधा में अपनी रचनाएं लिखते हैं। मुख्य रूप से पद्य विधा ही उन्हें प्रिय है। वे स्थानीय गोष्ठियों में भी निरंतर शामिल हो कर अपनी रचनाओं का पाठ करते रहते हैं। उन्होंने हाइकु विधा में बहुत ही रोचक कविताएं लिखी हैं उनके हाइकु तीखे व्यंग लिए हुए होते हैं कम शब्दों में बहुत कुछ कह जाने की जो विशेषता हाइकु में है वह अलबेला जी के हाइकु में खुलकर सामने आती है। उदाहरण के लिए देखिए उनके ये तीन हाइकु -
1
जला चिराग
धो न पाई चांदनी
चांद का दाग
2
गोष्ठियां बंद
मोबाइल दिखाता
मनपसंद
3
झुका मस्तक
पाठकों को ढूंढती
खुली पुस्तक

हायकु की भांति ही क्षणिकाओं में भी कवि के वही तीखे तेवर दिखाई देते हैं-
तालाब किनारे
लगा है बोर्ड
मत्स्य आखेट करना अपराध है
जिस पर आकर
बैठ गया बगुला
चोंच में मछली दबाएं।

कवि का सरोकार जीवन के प्रत्येक दुख सुख से होता है। वह जहां एक ओर दुख सुख के प्रति सभी को सचेत करता है, वहीं दूसरी ओर आगाह भी करता है कि बिना परिश्रम के कुछ भी नहीं हासिल हो सकता है। इसी संदर्भ में विचारणीय हैं कवि ‘अलबेला’ के एक नवगीत के ये अंश-
बिना परिश्रम कभी नहीं
सपने पूरे होने वाले।
कुछ चाय से उबले
कुछ पकौड़े से तले गए
संकल्प हरित क्रांति के
सहसा छले गए
विश्वासों के बिस्तर से उठेंगे
कब खर्राटे लेकर सोने वाले।
नदी तिरोहित जिनके पितर
उनका ईमान इतर
हक की लड़ाई लड़े कुछ
नदी किनारे तरुवर
उन्हें भी उखाड़ फेंकेंगे
अवैध रेत ढोने वाले।

कवि के.एल. तिवारी 'अलबेला' .... दायीं ओर से प्रथम

समाज और राजनीति में व्याप्त भ्रष्टाचार से दुखी कवि का मन यह प्रश्न करने लगता है की कब लोगों में जागृति आएगी और वे भ्रष्टाचार के विरुद्ध उठ खड़े होंगे कवि अलबेला अपनी इस पीड़ा को इन शब्दों में बयान करते हैं-
कब खुलेगी नींद सबकी।
शहद भरे कुछ
नारे आए
जातिवाद के
पुतले लाए
उजियारे की ढिबरी
ओसारे में भभकी।
लो आ गई द्वारे
विकास की गंगा
फटे लिबास का हुआ
साहूकार से पंगा
सोने की चिरैया
बिल्ली सी दुबकी।
युगों से रहे जो
परस्पर मित्र
उन्हें लगाया किसने
नीम का इत्र
अकारण ही उनमें
वैमनस्यता टपकी।

नींद खुलने के बारे में कभी स्वयं ही हल सुजाता है और कहता है कि जब आपसी भाईचारा होगा तभी विकास और विश्वास की नींद खुलेगी यह पंक्तियां देखें-
संपन्नता हो संगीत
और विकास की लय
अर्थ एकरूपता हो
आपस में विनय
सज्जनता ही
पहचान सबकी
हां, खुलेगी नींद सबकी।

 वर्तमान में व्याप्त विडंबना ओं को सामने रखने के लिए कवि अलबेला प्रकृति के विभिन्न भोका जिस तरह से प्रयोग करते हैं वह उल्लेखनीय है उदाहरणार्थ उनका यह गीत देखें-
धूप की तपन लिए
शाम की उदासी लिए
छत पर से फड़फड़ाता
उड़ गया दिन।
कटीली शाखाओं पर
गुलाब हुए आबाद
शूल रहा देश में
आज आतंकवाद
नित कितने हुए हत्
निर्दोष खबर में गिन।

कवि के.एल. तिवारी ‘अलबेला’ की संवेदनाओं, भावनाओं एवं विचारों के धनी हैं तथा उनकी रचनाओं के तीखे तेवर उनकी सृजनात्मक पहचान को प्रतिबिम्बित करते हैं। वे आज भी प्रतिबद्धतापूर्वक साहित्यसेवा में संलग्न हैं।                   
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( दैनिक, आचरण  दि. 13.12.2018)
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