Saturday, December 22, 2018

प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग संग्रहालय, डॉ हरीसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय, सागर की हीरक जयंती - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh
दिनांक 18.12.2018 को प्राचीन  भारतीय  इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग, डॉ हरीसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर द्वारा दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन पुरातत्व विभाग स्थित पुरातत्व संग्रहालय के सभागार में किया गया । विषय था "भारतीय संस्कृति को मध्यप्रदेश का योगदान"। यह विभाग में स्थित पुरातत्व संग्रहालय का हीरक जयंती वर्ष है।  
Dr. Sharad Singh, Dr. Varsha Singh & another guest





            इस आयोजन में डॉ. (सुश्री) शरद सिंह और मैं यानी डॉ वर्षा सिंह आमंत्रित अतिथि के रुप में सम्मिलित हुए । बहुत सुखद अनुभूति रही। इसी विभाग से डॉ.(सुश्री) शरद सिंह ने एम.ए.(गोल्ड मेडल) एवं पीएचडी किया है। डॉ.(सुश्री) शरद सिंह के द्वारा लिखी पुस्तकें "खजुराहो की मूर्तिकला के सौंदर्यात्मक तत्व" ( Elements of Beauty in the Sculptures of Khajuraho) एवं "प्राचीन भारत का सामाजिक और आर्थिक इतिहास" टेक्स्ट बुक्स के तौर पर अनेक विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में शामिल हैं।
डॉ.(सुश्री) शरद सिंह के द्वारा लिखी पुस्तक "खजुराहो की मूर्तिकला के सौंदर्यात्मक तत्व" ( Elements of Beauty in the Sculptures of Khajuraho)

डॉ.(सुश्री) शरद सिंह के द्वारा लिखी पुस्तक "प्राचीन भारत का सामाजिक और आर्थिक इतिहास" 

         इस आयोजन की महत्वपूर्ण उपलब्धि बीज वक्ता के रूप में दिया गया प्रख्यात इतिहासविद एवं भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद, दिल्ली के सदस्य डॉ. रहमान अली का व्याख्यान रहा। उन्होंने भारतीय मंदिरों की वास्तुकला की उत्पत्ति और विकास पर चर्चा करते हुए बताया कि वेदों में मंदिरों के प्लान, उनके एलिवेशन, क्षितिज और उनकी सजावट, सौंदर्य के बारे में संपूर्ण वर्णन किया गया है। 
डॉ.(सुश्री) शरद सिंह , प्रख्यात इतिहासविद एवं भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद, दिल्ली के सदस्य डॉ. रहमान अली के साथ

डॉ.(सुश्री) शरद सिंह , प्रख्यात इतिहासविद एवं भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद, दिल्ली के सदस्य डॉ. रहमान अली के साथ

डॉ.(सुश्री) शरद सिंह , प्रख्यात इतिहासविद एवं भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद, दिल्ली के सदस्य डॉ. रहमान अली के साथ

डॉ.(सुश्री) शरद सिंह , प्रख्यात इतिहासविद एवं भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद, दिल्ली के सदस्य डॉ. रहमान अली के साथ

डॉ.(सुश्री) शरद सिंह , प्रख्यात इतिहासविद एवं भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद, दिल्ली के सदस्य डॉ. रहमान अली के साथ

डॉ.(सुश्री) शरद सिंह , प्रख्यात इतिहासविद एवं भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद, दिल्ली के सदस्य डॉ. रहमान अली के साथ

डॉ.(सुश्री) शरद सिंह , प्रख्यात इतिहासविद एवं भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद, दिल्ली के सदस्य डॉ. रहमान अली के साथ

व्याख्यान देते हुए इतिहासविद एवं भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद, दिल्ली के सदस्य डॉ. रहमान अली 

       हजारों साल पहले से मंदिरों के निर्माण में आर्किटेक्ट का उपयोग हो रहा है। इतना ही नहीं आर्किटेक्ट में एक सटीक गणितीय हिसाब, ज्यामिति और तर्क का पूरा ध्यान रखा जाता था। नींव से शिखर तक एक-एक इंच का नाप को ध्यान में रखकर ही मंदिर बनाए जाते थे। ये सब विष्णु धर्मोतर पुराण में लिखा है। यही कारण है कि सालों पहले बने मंदिर आज भी पूरी तरह से सुरक्षित स्थिति में खड़े है। प्राचीन मंदिर निर्माण की वास्तुकला का वर्णन इतिहासकार और भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के सदस्य डॉ. रहमान अली ने पीपीटी प्रेजेंटेशन के माध्यम से लोगों को समझाने का प्रयास किया।
Nar-Varaha rescuing the Earth from Eran, Madhya Pradesh, 5th century in Dr.Harisingh Gour Archaeological Museum, Sagar University, Sagar.


        इतिहासकार डॉ. अली ने बताया कि वेदों में मंदिरों के प्लान, उनके एलिवेशन (क्षितिज) और उनकी सजावट (सौंदर्य) के बारे में संपूर्ण वर्णन किया गया है। उनका कहना था कि वेद में मंदिरों के स्तंभ, हॉल, वृत्तों के बारे में इतना सटीक जिक्र किया गया है कि मानों ईश्वर  दैवीय ज्ञान के आधार पर उस दौर के मनुष्यों को मंदिर निर्माण सिखा रहा है। उन्होंने नागर शैली में निर्मित किए गए मंदिरों के बारे में बताया कि ऐसे मंदिरों की सजावट के लिए चारों दिशाओं में शिव परिवार के सदस्यों के चित्र होते हैं। शिखर की तुलना कैलाश पर्वत के रूप में की जाती है। 
Dr. Varsha Singh

Dr. Varsha Singh

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