Dr. Varsha Singh |
स्थानीय दैनिक समाचार पत्र "आचरण" में प्रकाशित मेरा कॉलम "सागर साहित्य एवं चिंतन "। जिसमें इस बार मैंने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लिखा है एक विशेष आलेख - " सागर के समकालीन काव्य में स्वतंत्रता के स्वर "। पढ़िए और जानिए मेरे शहर के साहित्यिक परिवेश को ....
सागर: साहित्य एवं चिंतन - स्वतंत्रता दिवस विशेष :
सागर के समकालीन काव्य में स्वतंत्रता के स्वर
- डॉ. वर्षा सिंह
अमर शहीद मधुकर शाह बुंदेला से लेकर वीर साबूलाल तक सागर के अनेक स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने आजादी की अलख जगाने में जो योगदान दिया, वह सागर ही नहीं भारत के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में दर्ज है। स्वतंत्रता सेनानियों ने, लाठियां खाईं, जेल गए, धरना, प्रदर्शन एवं असहयोग आंदोलन किया, अपना रक्त बहाया तब कहीं जा कर देश को दासता से मुक्ति मिली। यह अनमोल स्वतंत्रता प्रत्येक कविहृदय को उल्लासित करती रहती है। आज स्वतंत्र भारत में जब स्वतंत्रता की बयार बहती है तो सागर नगर के काव्य जगत में भी देशप्रेम और आजादी के स्वर मुखर होने लगते हैं। किसी भी देश के लिए स्वतंत्रता का सबसे बड़ा महत्व यही होता है कि आमजनता को राजनीतिक निर्णय के अधिकार मिल जाते हैं। यही तो मूल स्वर है प्रजातंत्र का जिसमें जनता अपने लिए अपना शासन स्वयं चुनती है। जैसा कि सागर के प्रख्यात व्यंगकार प्रो. सुरेश आचार्य ने कहा है-‘‘इस देश के मतदाता बार-बार सिद्ध कर चुके हैं कि भैया देश हम चला रहे हैं। पर दिल्ली में रहने वाले झाडूदारों तक को यह भ्रम बना रहता है कि वे चूंकि दिल्ली में बैठे हैं इसलिए देश वे चलाते हैं। इस अदा पर मर जाने की तबीयत होती है।’’ ( सुरेश आचार्य: शनीचरी का पण्डित, पृ.75 )
जहां एक ओर व्यंग और कटाक्ष के द्वारा स्वतंत्रता के महत्व को साहित्यकारों ने स्थापित किया, वहीं कवियों ने अपने कोमल भावों को शब्दों में पिरो कर स्वतंत्रता की आवश्यकता को रेखांकित किया। सागर नगर के वरिष्ठ कवि निर्मल चंद निर्मल मातृभूमि वंदना के रूप में यह दोहा कहते हुए अपने भारत देश के गौरव का गान करते हुए कहते हैं -
वीरों की ये है धरा, इतिहासों का मान।
पूरित है धनधान्य से अपना हिन्दुस्तान।।
अधिनायक कोई नहीं, है जनता का तंत्र।
आजादी से आजतक सफल रहा यह मंत्र।।
त्याग हमारे रुधिर में, त्यागी रहा जुनून।
वीरों ने रणक्षेत्र में किया समर्पित खून
शरणस्थली सदा से, है ये भारत देश
किन्तु शरण की चाह में गया नहीं परदेश
कवयित्री डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह अपने गीत के माध्यम से उन सभी को चेतावनी देती हैं कि जो भी भारत की स्वतंत्रता अथवा अक्षुण्णता को चोट पहुंचाने की कोशिश करेगा उसे देश की जनता कभी माफ नहीं करेगी क्यों कि बलिदानों के बाद जो आजादी मिली है वह प्राणों से भी अधिक प्रिय है। ये पंक्तियां देखें-
बलिदानों के बाद मिली है हमको ये आजादी
प्राणों से भी प्यारी हमको अपनी ये आजादी
कोई भी जो आंख उठाए
कोई भी जो नज़र लगाए
होगी तब तो हाथ हमारे उसकी फिर बरबादी
प्राणों से भी प्यारी हमको अपनी ये आजादी
कोई भी जो सेंध लगाए
कोई भी गर चैन चुराए
लोहा लेगी, इस धरती पर रहती जो आबादी
प्राणों से भी प्यारी हमको अपनी ये आजादी
Sagar Sahitya Avam Chintan - Dr. Varsha Singh # Sahitya Varsha |
स्वतंत्रता दिवस पर सभी को बधाई देते हुए कवि डॉ श्याम मनोहर सीरोठिया इसे महापर्व की संज्ञा देते हुए अपनी ये पंक्तियां व्यक्त करते हैं-
आजादी की रचना करना है संकल्प हमारा
लहराता यूं रहे शान से, सदा तिरंगा प्यारा
बहुत हुई कुरर्बानी तब ये खुशी हमें मिल पाई
आजादी के महापर्व की सबके लिए बधाई
कोई भी आजादी बिना त्याग-बलिदान के हासिल नहीं हुई है। इसीलिए स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर सागर नगर के आशुकवि कवि नलिन जैन स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का स्मरण करते हुए कहते हैं -
शहीदों को नमन करके, अंश्रु धारा ना बहायें
उठ खड़े हो शस्त्र लेकर, लहू का सिंधु बहायें
अडिग प्रहरी हिमालय के,मुकुटमणि रक्षक यहीं हैं
मन न्योछावर,तन न्योछावर,ये समर्पण के मही हैं
स्वतंत्रता वह अनमोल रत्न है जो हमारे देश के मुकुट पर सदा शोभायमान रहना चाहिए। इस संदर्भ में डाॅ वर्षा सिंह (अर्थात् मैं) कहती हैं कि बलिदानों से मिली इस आजादी ने देश के गौरव को बढ़ाया है और विकास के अनेक द्वार खोले हैं। अनेकता में एकता इस देश की खूबी है-
आजादी के गीत हमेशा गाएंगे
अपना प्यारा परचम हम लहराएंगे
संघर्षों के बाद मिली जो आजादी
उसका हम इतिहास सदा दोहराएंगे
बलिदानों की गाथा को आदर्श बना
नई राह पर क़दम बढ़ाते जाएंगे
चांद छू लिया, मंगल तक जा पहुंचेंगे
अंतरिक्ष को धरती पर ले आएंगे
एक देश है भारत, रंग हज़ारों हैं
रंग एकता का ‘वर्षा’ दिखलाएंगे
देशभक्ति से ओतप्रोत अपनी कविताओं के लिए सुपरिचित कवि डाॅ. ललित मोहन स्वतंत्रता के प्रतीक तिरंगे की स्तुति में ये पंक्तियां व्यक्त करते हैं -
भारत की पहचान तिरंगा
आन बान, सम्मान तिरंगा
केसरिया है त्याग तन का
श्वेत शांति दूत है मन का
हरा धरा की हरियाली है
चक्र बना है मध्य तिरंगा
देश आजाद हो तो मन में उत्साह स्वतः ही जागृत हो जाता है। कवि कपिल बैसाखिया के आजादी के इस गीत में जो उत्साह छलक रहा है वह अनुपम है-
आजादी के जांबाजों ने , स्वतंत्रता का दिया नगीना
स्मरण करें हम उस पीढ़ी को अर्पित जिनका खून-पसीना
भूख-प्यास की परवाह नहीं
ललाट पर लिपटा सदा कफन
आजाद देश की चाहत में
सुख-सुविधाओं का दिया दमन
सत्य, अहिंसा की राह पकड़, कठिन किया गोरों का जीना
स्मरण करें हम उस पीढ़ी को अर्पित जिनका खून-पसीना
कवयित्री डाॅ. चंचला दवे भी देश की स्वतंत्रता के बलिदानियों का इन शब्दों में स्मरण करती हैं-
ध्वज को करें सलाम
अगणित शीशों की बलि से
हुआ स्वतंत्र देश हमारा।
देश के प्रति कवि डाॅ अनिल जैन का भावनात्मक लगाव उनकी रचना में कुछ इस तरह मुखरित हुआ है-
भारतीय सेना के जांबाज़ों का
शत शत वंदन अभिनंदन।
हर आफ़त को समझकर फूल,
अपने सर पे झेलेंगे
पहाड़ों से गले मिलकर,
ये तूफानों से खेलेंगे
हैं ऊंचे हौसले भारत के,
इन फ़ौज़ी जवानों के
वतन के दुश्मनों के खून से
होली ये खेलेंगे
इरादे पाक रक्खो, अपनी हद में,
सीख लो रहना
अगर कश्मीर मांगोगे,
तो पाकिस्तान ले लेंगे
सागर के समकालीन काव्य में राष्ट्रभक्ति और स्वतंत्रता के स्वर जिस ओज और माधुर्य के साथ प्रस्फुटित हुए हैं उनमें प्रबल भावनात्मकता के साथ ही राष्ट्र के प्रति कर्त्तव्यबोध एवं रक्षा की शपथ भी ध्वनित होती है।
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( दैनिक, आचरण दि. 13.08.2019)
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