Friday, January 17, 2020

हां, मुझे प्यार है अपने शहर सागर से - डॉ. वर्षा सिंह

   
Dr. Varsha Singh
     मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड वाले हिस्से में स्थित सागर ज़िला, सागर संभाग का संभागीय मुख्यालय है। यहां डॉ॰ हरीसिंह गौर द्वारा स्वयं निजी पूंजी से दी गई  दानराशि से 18 जुलाई 1946 को स्थापित सागर विश्वविद्यालय है। अपनी स्थापना के समय यह भारत का 18वां विश्वविद्यालय था। किसी एक व्यक्ति के दान से स्थापित होने वाला यह देश का एकमात्र विश्वविद्यालय है। वर्ष 1983 में इसका नाम डॉ॰ हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय कर दिया गया। पहले यह म.प्र. राज्य शासन के स्वायत्तशासी था फिर 27 मार्च 2008  से इसे केन्द्रीय विश्वविद्यालय की श्रेणी प्रदान की गई। 





       सागर के इतिहास पर दृष्टिपात करें तो उपलब्ध दस्तावेज के अनुसार छठवीं शताब्दी में यह उत्तर भारत के महाजनपदों में से एक चेदी साम्राज्य का हिस्सा बन गया था। इसके बाद इसे पुलिंद शहर में शामिल कर लिया गया। गुप्तवंश के शासनकाल में इसे काफी महत्व मिला। समुद्र गुप्त के शासनकाल में इसे स्वभोग नगर का रूप मिला। यह राजकीय तथा सैन्य गतिविधियों का महत्वपूर्ण केन्द्र था। नौवीं शताब्दी में चंदेल और कल्चुरी राजवंशों ने यहां राज किया। इसके बाद परमारों का और फिर तेरवीं व चौदहवीं शताब्दी में मुगलों का शासनकाल यहां था।
 एेतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार  सागर का प्रथम शासक श्रीधर वर्मन था। 15 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में सागर पर गौड़ शासकों ने कब्जा जमा लिया। फिर महाराज छत्रसाल ने धामौनी, गढ़ाकोटा और खिमलासा में मुगलों को हराकर अपनी सत्ता स्थापित की। बाद में इसे मराठाओं को सौंप दिया। 




         यह भी माना जाता है कि सागर नगर को राजा निहालशाह के वंशज ऊदनशाह ने बसाया था। पुराने समय से मध्य भारत में एक महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में शुमार सागर का इतिहास 1660 से शुरू माना जाता है, जब निहालशाह के वंशज ऊदनशाह ने तालाब किनारे स्थित एक किले के स्थान पर छोटे किले का निर्माण कराया। इसके आसपास गांव बसाया गया जिसे परकोटा नाम दिया। परकोटे के आसपास हुई बसाहट से अब वह शहर के मध्य में पहुंच गया है। वर्तमान किला और उसके अंदर एक बस्ती का निर्माण पेशवा के अधिकारी गोविंदारव पंडित ने 1735 में कराया। एेसा माना जाता है कि जिले का नाम सागर विशाल सरोवर के किनारे बसे होने के कारण पड़ा।
सन् 1818 में अंग्रेजों ने अपना कब्जा जमाया और यहां ब्रिटिश साम्राज्‍य का आधिपत्य हो गया। सन् 1861 में इसे प्रशासनिक व्यवस्था के लिए नागपुर में मिला दिया गया और यह व्यवस्था सन् 1956 में नए मध्यप्रदेश राज्‍य का गठन होने तक बनी रही।






       सागर जिला मध्य प्रदेश के उत्तर मध्य भाग और भारत के मध्य भाग में 23.10 उत्तरी अक्षांश से 24.27 उत्तरी अक्षांश तथा 78.5 पूर्व देशांश से 79.21 पूर्व देशांश के मध्य में स्थित है। यह क्षेत्र भाषाई आधार पर एवं बुंदेला शासकों के कारण बुंदेलखंड के रूप में जाना जाता है। इसके उत्तर में छतरपुर और ललितपुर, पश्चिम में विदिशा, दक्षिण में नरसिंहपुर और रायसेन तथा पूर्व में दमोह जिले की सीमाएं लगती हैं। यहां की बोली बुंदेली कहलाती है। सागर जिले के दक्षिणी भाग से कर्क रेखा गुजरती है। भौगोलिक दृष्टि से सागर देश के मध्य में स्थित है और इसे ‘‘भारत का हृदय’’ कहना उचित होगा। विंध्य पर्वत श्रृंखला के बीच स्थित यह जिला प्राचीन समय से ही मध्य भारत का एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है। सागर के आरंभिक इतिहास की कोई निश्चित जानकारी तो उपलब्ध नहीं है, लेकिन किताबों में दर्ज विवरणों के अनुसार प्रागैतिहासिक काल में यह क्षेत्र गुहा मानव की क्रीड़ा स्थली रहा। आपचंद की गुफाओं में मिले शैलचित्र इसका प्रमाण हैं।

   पौराणिक साक्ष्यों में ऐसे संकेत मिलते हैं कि इस जिले का भूभाग रामायण और महाभारत काल में विदिशा और दशार्ण जनपदों में शामिल था। इसके बाद ईसा पूर्व छठवीं शताब्दी में यह उत्तर भारत के विस्तृत महाजनपदों में से एक चेदी साम्राज्‍य का हिस्सा बन गया। इसके उपरांत ज्ञात होता है कि इसे पुलिंद देश में सम्मिलित कर लिया गया पुलिंद देश में बुंदेलखंड का पश्चिमी भाग और सागर जिला शामिल था।

  सागर जिले में प्रमुख रूप से धसान, बेबस, बीना, बामनेर और सुनार नदियां निकलती हैं। इसके अलावा कड़ान, देहार व कुछ अन्य छोटी नदियां भी हैं जो बारिश में ज़्यादा जलप्रवाहित करती हैं। प्राकृतिक संसाधनों के मामले में सागर जिले को समृद्ध नहीं कहा जा सकता है। कृषि उत्पादन में सागर जिले की खुरई तहसील में उन्नत किस्म के गेहूं का उत्पादन बड़ी मात्रा में होता है, जो पूरे देश में निर्यातित होता है।




       सागर शहर में सिविल लाइन स्थित चंद्रा पार्क बहुत पुराना है। स्मार्ट सिटी प्राेजेक्ट के अंतर्गत चंद्रा पार्क के पास सेल्फी प्वाइंट और ग्रीन वाॅल बनाई गई है। वर्तमान में चंद्रा पार्क का  प्रवेश द्वार है, जबकि दूसरा प्रवेश द्वार आशीर्वाद होटल के पास पिम्पलापुरे मार्ग पर है। यहां शहर के युवा, बच्चे, बड़े सभी सुबह- शाम सैर के लिए आते हैं।

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