प्रिय ब्लॉग पाठकों, आज मेरा बुंदेली व्यंग्य लेख "पत्रिका" समाचारपत्र में प्रकाशित हुआ है।
हार्दिक आभार "पत्रिका" 🙏
बुंदेली व्यंग्य
अंगना में ठाड़े बड्डे
- डॉ. वर्षा सिंह
हमाए एक बड़े भैया जी आंए, जोन से हम बड्डे कहत हैं। भौतई नोनो सुभाव है उनखों। जोन चाए की मदद खों तैयार रैत हैं, मनो ना कहबो तो उन्ने सीखोई नईंया। बरहमेस, दूसरन के लाने अपनो पूरो टेम दे देत हैं। उनकी जेई आदत पे भौजी सो भारी खिजात हैं उन पे। मनो तनक सी डांट- डपट कर के बे सोई बड्डे खों संग देन लगत हैं। अब करें भी का। कोनऊ की मदद करे बिना उनखों जी सोई नईं मानत है।
हमाए बड्डे आयोजन करवाबे में भौतई एक्सपर्ट आएं। बे जोन आयोजन कराबे के लाने ‘‘हऔ’’ बोल देत हैं, तो मनो ऊ आयोजन कभऊं फेल तो होई नईं सकत आए। जा कोरोनाकाल के पैलें आयोजन कराबे के लाने उनके ऐंगर भीड़ लगी रैत्ती। काय से के उन्ने ऐसे-ऐसे आयोजन कराए के लोग देखतई रै गए। कोरोनाकाल में उन्ने भीड़-भाड़ बारो आयोजन खों काम बंद कर दौ है। काय से के बे कोरोना गाइडलाइन खों पालन कर रए हैं। बाकी कल बड्डे के संगे भौतई गजब भऔ। भओ जे के कल जब बे दुपैरी खों अपने अंगना में ठाड़े हते, उनके ऐंगर हरीरो सो सलूखा पैरे एक आदमी आओ, औ कहन लगो के हमाए लाने एक आयोजन करा देओ।
‘‘काय को आयोजन?’’- बड्डे ने पूछी।
‘‘मोय सम्मान कार्यक्रम कराने है।’’ ऊने बड्डे से कही। फेर बोलो -‘‘अच्छो बड़ो सो आयोजन, जीमें हजार-खांड़ लुगवा-लुगाई जुड़ जाएं सो मनो मजो आ जाए।’’
‘‘अब न जुड़हें हजार-खांड, तुमें ओनलाईन कराने हो सो बोलो’’ बड्डे ने कही।
‘‘जे ओन-फोनलाईन हमें नईं करानें। हमाए लाने तो तीनबत्ती से पूरो कटरा बजारे लों भर दइयो। बो भी रात नौ के बाद, काय से के दिन में तो उते हमाए भक्तन की भीड़ जुड़ई रैत आय। सम्मान करबे खों मजा तो मनो रातई में आहै।’’ हरीरो सलूखा बारे ने कही।
‘‘कोन को सम्मान, कैसो सम्मान, हमाई कछ्छू समझ में ने आ रओ। काय से के ई टेम पे भीड़-भाड़़ जोड़बे वारो कौनऊ आयोजन हम नईं करवा रए। औ रात की तो सोचियो भी नई।’’ बड्डे ने कही।
‘‘ऐसो न बोलो भैय्या, तुमाओ बड़ो नाम सुनो है, तुमाए ऐंगर बड़ी आसा ले के आएं हैं।’’ बा गिड़गिड़ात भओ बोलो।
‘‘मनो तुम हो कौन? औ कौन को सम्मान करो चात हो?’’ बड्डे खिझात भए बोले।
‘‘हओ, सो तुम काए चीनहो हमाए लाने। काय से के तुम तो घरई में पिड़े रैत हो। चलो, हमाई बता देत हैं के हम को आएं। तो सुनो, हम कोरोना आएं। औ हमें उन औरन खों सम्मान करने है जो बिना मास्क लगाए, बिना डिस्टेंसिंग बनाए बजार-हाट में नांए-मांए घूमत रैत हैं। कोनऊ की नईं सुनत हैं। बे हमाए से मिलबे खों उधारे से फिरत हैं। सो हमें भी लग रओ है के हमें अपने ऐसे भक्तन खों सम्मान कारो चइए। काय, ठीक सोची ने हमने?’’ ऊने कही।
अंगना में ठाड़े बड्डे ने इत्ती सुनी, औ लगा दई दौड़ कमरा के भीतरे। कोरोना हतो सो, अपनो सो मों ले के लौट गओ, बाकी हमाए बड्डे तभई, ओई टेम से उन औरन खों पानी पी-पी के कोस रए हैं जो गाइड- माइड लाईन भुला के कोरोना खों मूड़ पे बिठाए गली-गैल, बजार-हाट में खुल्ला मों लेके नांय-मांय सटत फिरत हैं। सो बड्डे कभऊं कोरोना खों गरियात हैं, सो कभऊं कोरोना भक्तन खों।
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सिर्फ कुछ शब्दों के अलावा मैं भाषा समझ नहीं पाई वर्षा जी म जिसका मुझे खेद है ||
ReplyDeleteरेणू जी बुंदेली लेख आपने पढ़ा यह मेरे लिए प्रसन्नता का विषय है। यह बुंदेलखंड क्षेत्र में बोली जाने वाली बोली है।
Delete"भाभीजी घर पर हैं" सब टीवी पर प्रसारित सीरियल में हप्पू सिंह पात्र द्वारा बुंदेली बोली गई है। बहुत मीठी बोली है।
कोरोनाकाल में समारोह नहीं कराए जा पा रहे हैं। एक प्रसिद्ध आयोजक से कोरोना वायरस कहता है कि वे आयोजन कराएं ताकि वह कोरोना गाइडलाइंस का पालन नहीं करने वालों का सम्मान कर सके। यही है इस व्यंग्य लेख की मूल थीम।
पुनः हार्दिक आभार 🙏💐🙏
बहुत ख़ूब वर्षा जी ! शब्दों को शत-प्रतिशत न समझ पाने के बावजूद भाव पूरी तरह से समझ में आ गया । बुंदेली भाषा समझने वाले तो इसे पढ़कर ख़ूब हंसे होंगे ।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जितेन्द्र माथुर जी 🙏
Deleteजी हां, यहां बहुत प्रशंसा मिली है मेरे इस हास्य-व्यंग्य लेख को 🙏