अभी कुछ देर पहले आदरणीय ललित सुरजन जी के निधन का समाचार पा कर हतप्रभ हूं।😥
बड़े भाई के रूप में मुझे सदैव मिलने वाली उनकी आत्मीयता हमेशा स्मरणीय रहेगी।
मेरी विनम्र श्रद्धांजलि 🙏😥💐
देशबंधु समाचार समूह के प्रधान संपादक व वरिष्ठ पत्रकार ,कवि ललित सुरजन को ब्रेन हैमरेज होने के कारण निधन हो गया। 74 वर्षीय श्री सुरजन को कल मंगलवार 01 दिसम्बर को नोयडा स्थित एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
22 जुलाई 1946 को जन्में ललित सुरजन देशबंधु पत्र समूह के प्रधान संपादक थे। वे 1961 से एक पत्रकार के रूप में कार्यरत रहे थे। अपने पिता मायाराम सुरजन द्वारा स्थापित समाचार पत्र देशबंधु का उनके जाने के बाद उन्होंने सफलतापूर्वक संचालन किया। अपने पिता मायाराम सुरजन की तरह वह भी वामपंथी रुझान के थे। और वामपंथी विचारधारा वाले बहुत सारे राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय संगठनों में भी सक्रिय रहते थे। इसके अलावा समाज के साथ अपने सरोकारी रिश्ते के चलते सभी जनआंदोलनों का वे अभिन्न हिस्सा हुआ करते थे। इतना ही नहीं अखबार मालिक होने के बावजूद पत्रकारों या फिर उनके पेशे से जुड़े किसी भी संकट के समय वे हमेशा उनके साथ खड़े पाए जाते थे। वे एक जाने माने कवि व लेखक थे। ललित सुरजन स्वयं को एक सामाजिक कार्यकर्ता मानते थे तथा साहित्य, शिक्षा, पर्यावरण, सांप्रदायिक सदभाव व विश्व शांति से सम्बंधित विविध कार्यों में उनकी गहरी संलग्नता थी । वे छत्तीसगढ़ हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष भी थे।
हिन्दी पत्रकारिता जगत में श्रद्धेय स्व. मायाराम सुरजन जी की परंपरा को आगे बढ़ाने वाले आदरणीय ललित सुरजन ‘‘देशबंधु के साठ साल’’ के रूप में एक ऐसी लेखमाला लिखी जो देशबंधु समाचारपत्र की यात्रा के साथ हिन्दी पत्रकारिता की यात्रा से बखूबी परिचित कराती है। उनकी अनुमति से इसे धारावाहिक रूप से डॉ. (सुश्री) शरद सिंह ने अपने ब्लॉग में शेयर किया था ...
ट्विटर पर ललित जी सदैव तत्परता से अपने विचार व्यक्त करते थे। मेरी माता जी डॉ. विद्यावती "मालविका" जी से संबंधित एक पोस्ट पर उनकी टिप्पणी इसका प्रमाण है -
(डॉ. (सुश्री) शरद सिंह के ट्विटर एकाउंट से साभार )
यहां प्रस्तुत है स्व. ललित सुरजन जी की एक कविता -
लखनऊ के पास सुबह-सुबह
अभी-अभी
सरसों के खेत से
डुबकी लगाकर निकला है
आम का एक बिरवा,
अभी-अभी
सरसों के फूलों पर
ओस छिड़क कर गई है
डूबती हुई रात,
अभी-अभी
छोटे भाई के साथ
शरारत करती चुप हुई है
एक नन्हीं बिटिया,
अभी-अभी
बूढ़ी अम्माँ को सहारा दे
बर्थ तक लाई है
एक हँसमुख बहू,
अभी सुबह की धूप में
रेल लाईन के किनारे
उपले थाप रही है
एक कामकाजी औरत,
अभी सुदूर देश में
अपने नवजात शिशु के लिए
किताब लिख रहा है
एक युद्ध संवाददाता,
अभी मोर्चे से लौट रहा है
वीरता का मैडल लेकर
अपने परिवार के पास
एक सकुशल सिपाही,
अभी मैंने
अवध की शाम
नहीं देखी है,
अभी मैं जग रहा हूँ
लखनऊ के पास
अपना पहिला सबेरा,
और खुद को
तैयार कर रहा हूँ
एक खुशनुमा दिन के लिए।
06.02.1998
(ललित सुरजन की कविताएं)
उनका निधन अपूर्णनीय क्षति है।
श्रद्धानवत - डॉ. वर्षा सिंह
दुखद समाचार है।
ReplyDeleteमेरी विनम्र श्रद्धांजलि।
जी आदरणीय
Delete🙏
हार्दिक आभार मीना जी 🙏
ReplyDeleteबहुत दुखद समाचार। सुरजन जी को विनम्र श्रद्धांजलि।
ReplyDelete🙏
Deleteविनम्र श्रद्धांजलि
ReplyDelete🙏
Deleteविनम्र श्रद्धांजलि - - 'लखनऊ के पास सुबह-सुबह' की तरह उनकी अमूल्य स्मृतियां सदैव जीवित रहेंगी।
ReplyDelete🙏
Deleteविनम्र श्रद्धांजलि....
ReplyDeleteउनकी कविता बहुत ही लाजवाब है।
🙏
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