Sunday, August 19, 2018

सागर : साहित्य एवं चिंतन -18 साहित्य और संगीत के साधक : कवि पूरन सिंह राजपूत - डॉ. वर्षा सिंह

डॉ. वर्षा सिंह

स्थानीय दैनिक समाचार पत्र "आचरण" में प्रकाशित मेरा कॉलम "सागर साहित्य एवं चिंतन " । जिसमें इस बार मैंने लिखा है मेरे शहर सागर के चर्चित कवि पूरन सिंह राजपूत पर आलेख। पढ़िए और जानिए मेरे शहर के साहित्यिक परिवेश को ....

सागर : साहित्य एवं चिंतन

साहित्य और संगीत के साधक : कवि पूरन सिंह राजपूत
- डॉ. वर्षा सिंह

सागर नगर साहित्य और संगीत का धनी है। कला के ये दोनों क्षेत्र अपने आप में पूर्ण समृद्ध हैं। सागर के कई साहित्यकारों ने राष्ट्रीय स्तर पर जितनी ख्याति अर्जित की वहीं सागर में कई ऐसे संगीतज्ञ हुए हैं जिन्होंने संगीत जगत में सागर को एक अलग मुकाम पर पहुंचाया है। नगर में कुछ ऐसे साहित्यकार भी हैं जो साहित्य साधना के साथ ही संगीत के क्षेत्र में भी अच्छा-खासा दखल रखते हैं। इन्हीं में एक उल्लेखनीय नाम है- पूरन सिंह राजपूत का। स्व. कुंजन सिंह राजपूत के घर में 07 नवम्बर 1950 में जन्में पूरन सिंह को अपनी माता स्व. सहोल राजपूत का विशेष स्नेह मिला। पूरन सिंह ने बाल्यावस्था से ही अपनी माता को लोकधुनों में गुनगुनाते सुना था, सम्भवतः वहीं से संगीतप्रेम का बीज उनके मन में अंकुरित होने लगा होगा। इंटरमीडिएट उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने वैद्यरत्न तथा वैद्य विशारद किया। होमियोपैथी में भी डिप्लोमा उपाधि अर्जित की। चिकित्सा संबंधी ज्ञान उनके संगीत प्रेम को दबा नहीं पाया। उन्होंने गायन कला में संगीत प्रभाकर किया, साथ ही तबलावादन में भी संगीत प्रभाकर करने के साथ ही योग में भी डिप्लोमा प्राप्त किया। कदमकुंआ लक्ष्मीपुरा में निवासरत पूरन सिंह राजपूत हिन्दी, उर्दू और बुंदेली में रचनाएं लिखते हैं। मुख्य रूप से छंदबद्ध काव्य सृजन उन्हें पसन्द है। उनके दोहों में भावनाओं का सहज प्रवाह मिलता है, उदाहरण देखिये -
सुख मुट्ठी में बांधना, सहज नहीं है काम ।
कोशिश दर कोशिश रही, पूरन पर नाकाम।।
कहते-कहते रुक गया, मन का जब संकोच।
वो सब आंखों ने कहा, जो थी मन की सोच।।
टूटे दिल से पूछिये, क्यों हैं उसकी आस।
जिसने जीवन भर तुझे, पूरन किया उदास।।
पर्यावरण के असंतुलन की चिन्ता से कोई भी अछूता नहीं है। हरे-भरे जंगल कम हो गये हैं। नदियों और जलाशयों का जल स्तर तेजी से नीचे गिरता जा रहा है। जिसका सीधा असर पशु-पक्षियों पर दिखाई देने लगा है। कई पक्षी विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुके हैं। कवि पूरन सिंह ने इस परिदृश्य पर इन शब्दों में अपनी चिन्ता व्यक्त की है-
गलगल, बुलबुल, डोंकला, कहां गए सब आज।
सुआ, बया, कठफोड़वा, चील, कबूतर, बाज ।
चील, कबूतर, बाज नहीं, अब कड़कनाथ की टेर।
जलमुर्गी, हुंकना, बतख, तीतर, लवा, बटेर।
सोनचिरैया लुप्त है, दुर्लभ है खरमोर ।
गिद्ध, गौरैया, कौवा, कोयल, मैना, उलुक, चकोर।
Sagar Sahitya Chintan -18 Sahitya Aur Sangeet Ke Sadhak - Kavi Pooran Singh Rajput - Dr Varsha Singh

ऋतुओं पर रचना लिखना कवि पूरन सिंह को रुचिकर लगता है। ग्रीष्म ऋतु की प्रचंडता का यह वर्णन देखिये-
सूरज भये प्रचंड, लू-लपट रहे दिन रात ।
धूप बेहया चूमती, ढांप रखो मुंह- गात ।।
धरा तवा सी तपत है, सूरज उगलत आग।
दामन की यह चूनरी, बन बैठी अब पाग।।
पूरन सिंह का कहना है कि कविताओं में उनका प्रिय विषय फागुन है। क्योंकि वे मानते है कि फागुन का वातावरण प्रत्येक व्यक्ति के मन में उत्साह और ऊर्जा का संचार करने लगता है। प्रकृति में भी रंग-बिरंगी छटायें दिखाई देने लगती हैं। इस उमंग भरे वातावरण का आनंद भी विशिष्ट होता है। फागुन पर केन्द्रित पूरन सिंह के ये दोहे देखें-
फागुन सखी- सहेलियां, इठला उठी उमंग।
वासंतिक अठखेलियां, मचा रही हुड़दंग।।
पीपल, बरगद झूम कर करते शोर अपार ।
फगुनाई जब देखते, नखरीली कचनार ।।
कविता के दो ही विषय फागुन और सिंगार।
तीजे दुनियादारियां, चौथे मन का भार ।।

बायें से:- डॉ. वर्षा सिंह, डॉ. (सुश्री) शरद सिंह, सांसद लक्ष्मीनारायण यादव, पूरन सिंह राजपूत एवं डॉ. जीवनलाल जैन

पूरन सिंह की गजलों, नज्मों और मुक्तकों में उर्दू के शब्दों का खुल कर प्रयोग किया गया है। ये बानगी देखिये-
कहा सब बज्म ने ही मरहबा यूं वाहवाही दी,
सुना जब दर्दा-गम नाला अलम आहो फुगां मेरा।
मामता की छांव कर खाना खिलाती थी मुझे,
जायका भी बादमा आया नहीं फिर स्वाद का।
उमर भर लडती रही वो, इक बहादुर की तरह,
जिस्म से कमजोर मां का, जिगर था फौलाद का।
मां, मौसम और पर्यावरण के साथ ही पूरन सिंह ने अपनी कलम प्रेम और खुद्दारी पर भी चलाई है -
मुहब्बत जिन्दगी भी, मौत भी, गम भी, खुशी भी है,
समन्दर प्यार का हमने, बहुत गहरा ख्ांगाला है।
जुड़े कुछ नाम वाइज शेख जाहिद मयकदे से तब
गई सुबह यही इनको अदीबों ने उछाला है।
खुद्दारी पर पूरन सिंह का यह मुक्तक देखिये-
बुरे दिन हैं, भले ही भूख से फांके किये मैंने
किसी के सामने पर हाथ फैलाने नहीं जाता।
उसे लगता उठाने फायदा आया गलत पूरन
इसीसे मैं किसी रूठे को समझाने नहीं जाता।
पूरन सिंह राजपूत मंच संचालन के साथ ही सरस्वती वंदना की प्रस्तुति भी देते हैं। शास्त्ऱीय एवं लोक संगीत में अपना गायन प्रस्तुत करने वाले कवि पूरन ठुमरी, कजरी, दादरा आदि का मधुर गायन करते हैं। उनकी यह खूबी उन्हें साहित्य के साथ ही संगीत का साधक निरूपित करती है।
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( दैनिक, आचरण दि. 19.07.2018)
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— in Sagar, Madhya Pradesh.

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