Monday, August 20, 2018

सागर : साहित्य एवं चिंतन -22 डॉ. गोपीरंजन साक्षी : जिनके काव्य में आध्यात्मिकता है - डॉ. वर्षा सिंह

डॉ. वर्षा सिंह
स्थानीय दैनिक समाचार पत्र "आचरण" में प्रकाशित मेरा कॉलम "सागर साहित्य एवं चिंतन " । जिसमें इस बार मैंने लिखा है मेरे शहर सागर के कवि डॉ. गोपीरंजन साक्षी पर आलेख। पढ़िए और जानिए मेरे शहर के साहित्यिक परिवेश को ....
सागर : साहित्य एवं चिंतन
डॉ. गोपीरंजन साक्षी : जिनके काव्य में आध्यात्मिकता है
- डॉ. वर्षा सिंह
वर्तमान युग इतना अधिक मशीनी हो चला है कि मानव-धर्म और आध्यात्म के पल सिकुड़ते चले जा रहे हैं। इन दिनों ध्यान और योग आत्मिक सुख और शांति के लिए नहीं गोया फैशन के लिए अपनाए जाने लगे हैं। इस प्रकार का आधुनिक आडम्बर समाज का परिष्कार भला कैसे कर सकता है? यही कारण है कि समाज में असंवेदनशीलता बढ़ रही है और अपराध एवं अनाचार बढ़ रहा है। सागर के कवि एवं आध्यात्मिक चिंतक डॉ. गोपीरंजन साक्षी अपनी कविताओं में समाज की वर्तमान दशा के प्रति चिन्ता को आध्यात्मिक मूल्यों पर परखते हुए सब के सामने रखते हैं। डॉ. साक्षी के जीवन पर ओशो के विचारों का गहन प्रभाव है। यही कारण है कि प्रेम के प्रति उनका दृष्टिकोण संकुचित न हो कर अनन्त विस्तार लिए हुए है। उन्होंने प्रेम के प्रति अपने विचार अपने कविता संग्रह ‘‘जेहि घट प्रेम न संचरै’’ के ‘आत्मकथ्य’ में इन शब्दों में व्यक्त किया है कि -‘‘प्रेम परमात्मा है लेकिन समाज में प्रायः उसका घृणित वासनात्मक रूप ही दिखाई दे रहा है। पुत्र-पुत्री अपने स्वजनों के समक्ष चर्चा करने से कतराते हैं। ऐसी दृष्टि समाज में पल्लवित है, जबकि सभी संतों, कवियों ने प्रेमाभक्ति से परमात्मा को प्राप्त किया है। प्रेमसाधना भी है और साध्य भी। यही नूतन दृष्टि आज के सम्यक सम्बुद्ध ओशो ने नए युग के मनुष्य को दी है।’’
डॉ. गोपी रंजन साक्षी

स्व. खुमान सिंह एवं स्व. भाग्यवती के घर 2 अक्टूबर 1944 को जन्मे डॉ. गोपीरंजन साक्षी ने अध्ययन के क्षेत्र में एम.ए., पीएच.डी., बी.एड. के साथ ही आयुर्वेदरत्न, योगविद् एवं साहित्यालंकार की उपाधि प्राप्त की। वरिष्ठ स्नातकोत्तर अध्यापक, केन्द्रीय विद्यालय के पद से सेवानिवृत्ति के उपरांत डॉ. साक्षी की सक्रियता साहित्यिक एवं सामाजिक कार्यों में बढ़ गई। डॉ. साक्षी की साहित्यिक अभिरुचि उनकी पुत्री कुमारी सुमि अनामिका साक्षी एवं पुत्र अमीश कुमार साक्षी में भी पल्लवित हुआ। कुमारी सुमि एक संवेदनशील कवयित्री के रूप में अपनी प्रतिभा को उद्घाटित कर ही रही थी कि सन् 2013 में एक सड़क दुर्घटना में उसे संसार से विदा लेना पड़ा। अपनी पुत्री को यूं अचानक खोना डॉ. साक्षी के लिये बहुत बड़ा सदमा था। उनकी पुत्री साहित्यिक एवं आध्यात्मिक प्रतिभा की धनी तो थी ही, अपने परिवार का आर्थिक सहारा भी थी। सेवानिवृत्ति के बाद डॉ. साक्षी को अपनी अस्वस्थ पत्नी के इलाज पर निरंतर धनव्यय करना पड़ रहा था। पुत्री की 29 वर्ष की अल्पायु में मृत्यु के बाद अपने पुत्र और अस्वस्थ पत्नी की चिन्ता ने उन्हें एक बार फिर दृढ़ता प्रदान की। अपनी पुत्री की अप्रकाशित रचनाओं को डॉ. साक्षी ने पुस्तक के रूप में सम्पादित कर प्रकाशित कराया, जिसका नाम है-‘‘ज़िन्दगी! तू एक कविता है।’’उन कविताओं का संकलन अमीश साक्षी ने किया था। इसी के साथ अमीश के सहसंपादन में डॉ. साक्षी ने अपनी पुत्री सुमि का जीवनवृत्त ‘फिर मिलूंगी’ का लेखन एवं संपादन किया। यह दोनों पुस्तकें सन् 2016 में प्रकाशित हुईं। सन् 2016 में ही ओशो दर्शन पर आधारित उनकी पुस्तक ‘‘हंसत्व की ओर’’ प्रकाशित हुई जिसमें हंस प्रज्ञा, रेकी प्रज्ञा, महाजीवन प्रज्ञा, सम्मोहन प्रज्ञा, ज्योतिष प्रज्ञा, सूफ़ी दरबार आदि आध्यात्मिक विषयों पर विस्तृत चर्चा की गई है। अपने लेख ‘उमंग प्रज्ञा’ में लेखक ने लिखा है कि ’’दुनिया में शायद ही कोई मिले जो इन दो शब्दों और उनकी अर्थवत्ता से अपरिचित हो-उदासी एवं उमंग। उदासी के प्रकोप तो सभी ने झेले हैं, यह बढ़ती हुई मनोदशा में महारोग अवसाद का कारण बनती है।’’ इसी प्रकार की व्याख्या ‘आनन्द प्रज्ञा’ के बारे में करते हुए डॉ साक्षी लिखते हैं कि ‘‘दुख से आनन्द की ओर क्यों? दुखी व्यक्ति में कोई उत्सुक नहीं होता, सभी किनारा कर जाते हैं।’’ डॉ. गोपीरंजन साक्षी के तीन काव्य संग्रह ‘हाशिए पर’, ‘रेतीले छीटें’ तथा ‘जेहि घट प्रेम न संचरै’ तथा एक खण्ड काव्य ‘लंकायन’ प्रकाशित हो चुका है। ‘कबीर साखी दर्शन’ तथा ‘कबीर की आध्यात्म साधना का स्वरूप विवेचन’ शोध ग्रंथ अभी प्रकाशनाधीन हैं। किन्तु इनसे स्पष्ट है कि उनके विचारों पर कबीर-दर्शन का भी प्रभाव है। डॉ. गोपीरंजन साक्षी की कविताओं में प्रेम का परिष्कृत रूप निखर कर सामने आया है। वे प्रेम को उद्धार का मार्ग निरुपित करते हुए लिखते हैं-
प्रिय/ तुम्हारा समर्पण ही
देगा बल/ ऊपर उठने का
सीखूंगा मैं भी समर्पण
प्रेरणा ले कर/तुम्हीं से
अतः तुम्हारा साथ/ पल दो पल का नहीं
स्थायी हो जीवन भर।
Sagar Sahitya Chintan -22 Dr Gopi Ranjan Sakshi - Jinke Kavya Me Adhyatmikta Hai - Dr Varsha Singh
‘नए तेवर’ शीर्षक कविता में प्रेम के पावन स्वरूप को रेखांकित करते हुए डॉ. साक्षी ने प्रेम की उत्पत्ति तथा अनुभूति को इन शब्दों में व्यक्त किया है-
प्रेम सिखाया नहीं जाता
यह अपने आप हो जाता है
हृदय में उमंग उठे तो
कह डालो,
प्रिये!
तुलसी-पूजन/कितना शुभ होता है
मैं तुलसी को नित्यप्रति/अर्पित करता हूं
निर्मल जल, प्रेमपूर्ण।
डॉ. गोपीरंजन साक्षी की कविताओं की लयात्मकता किसी सूफियाना धुन की भांति मधुरता से प्रवाहित होती है। ‘भेद मिट जाएंगे’ शीर्षक कविता में संयोग श्रृंगार को बड़े ही सहज शब्दों में बांधा गया है -
प्रिय/ एक ही करवट
एक ही याद में
कब तक रहोगे
करवट बदलो
आमना-सामना होगा
रूप निखर आएगा/ रंग बदल जाएगा
इमारत बुलन्द हो जाएगी
खण्डहर-सी ज़िन्दगी/क्यों ढोते हो?
‘हाशिए पर’ काव्य संग्रह में संकलित कविताओं में वर्तमान जीवनदशा के प्रति चिंतन मुखर हुआ है। ‘प्रश्नचिन्ह’ शीर्षक कविता में डॉ. साक्षी ने राकेटयुग की आधुनिकता को एक और रूढ़ि निरुपित करते हुए लिखा है-
राकेट का पदचिन्ह घूम
आकाश में तैरता है/गाला सदृश्य
उन मधुर कल्पनाओं की भांति
जो शुभ और सुंदर हैं।
राजनीतिज्ञ और वैज्ञानिक
जिसे अपनी सूझ और मेधा की
सर्वोत्तम उपलब्धि समझते हैं
वही तैरता है/ रेख
जैसे रूढ़ि हो इस नए युग की।
बेरोजगारी के दारूण से भी कविमन अछूता नहीं है। कवि डॉ. साक्षी की कविता ‘रक्तिम अनुराग’ का यह अंश किसी भी पाठक के मन को उद्वेलित करने में सक्षम है-
सर्वोच्च डिगरियां बांझ
दर-बा-दर की ठोकरें सांझ
लौटता हूं।
हिम्मत पस्त/सब अस्त-व्यस्त
उम्र का तकाज़ा/बचपन का राजा
घेरती चिंगारियां/बढ़ती भूख/उत्तर दो टूक।
डॉ. गोपीरंजन साक्षी ने कविताओं के साथ ही लेख, निबंध, कहानी, संस्मरण आदि भी लिखे हैं। आकाशवाणी के सागर, अम्बिकापुर एवं जगदलपुर केन्द्रों से उनकी रचनाओं का प्रसारण हो चुका है।
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( दैनिक, आचरण दि. 07.08.2018)
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